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Toggle- नियोजित विकास की राजनीति (Politics of Planned Development)
- Here are some detailed FAQs related to the Chapter “नियोजित विकास की राजनीति”
- 1. नियोजित विकास की राजनीति क्या है, और यह क्यों आवश्यक थी?
- 2. योजना आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था?
- 3. पंचवर्षीय योजनाओं का भारत के आर्थिक विकास में क्या योगदान है?
- 4. नियोजित विकास की राजनीति के प्रमुख लाभ क्या रहे हैं?
- 5. पंचवर्षीय योजनाओं की असफलता के प्रमुख कारण क्या रहे हैं?
- 6. 1991 के उदारीकरण के बाद भारत की नियोजित विकास नीति में क्या परिवर्तन आया?
- 7. नियोजित विकास और समावेशी विकास में क्या अंतर है?
- 8. भारत के विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका क्या है?
- 9. भारत में नियोजित विकास नीति की आलोचनाएँ क्या हैं?
- 10. नीति आयोग का गठन क्यों किया गया, और इसका उद्देश्य क्या है?
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- Here are some detailed FAQs related to the Chapter “नियोजित विकास की राजनीति”
नियोजित विकास की राजनीति (Politics of Planned Development)
नियोजित विकास की राजनीति” भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण विषय है, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक विकास के प्रयासों से जुड़ा है। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत एक नए रास्ते पर चला, जहाँ नीति-निर्माताओं का उद्देश्य देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र की ओर अग्रसर करना था। इसके लिए, नियोजित विकास की अवधारणा को लागू किया गया, जिसका आधार आर्थिक योजनाएँ और विकास की योजनाएँ थीं।
1950 में योजना आयोग की स्थापना के साथ ही भारत में नियोजित विकास का दौर शुरू हुआ। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास का मार्ग अपनाया। यह मॉडल सोवियत संघ के विकास मॉडल से प्रेरित था, जिसमें राज्य की केंद्रीय भूमिका मानी जाती थी। इस नीति का मुख्य उद्देश्य आर्थिक असमानताओं को कम करना, औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना, और संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करना था। नियोजित विकास के माध्यम से गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन, शिक्षा, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार की योजनाएँ बनाई गईं।
प्रथम पंचवर्षीय योजना का ध्यान कृषि क्षेत्र को सुधारने पर केंद्रित था, क्योंकि उस समय भारत की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी। इसके बाद, दूसरी पंचवर्षीय योजना ने भारी उद्योगों और बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। नियोजित विकास की राजनीति में सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, नीति आयोग, और केंद्रीय व राज्य स्तर पर अनेक परियोजनाओं का समन्वय शामिल रहा। समय के साथ नियोजित विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका को भी महत्व दिया गया, खासकर उदारीकरण के बाद के दौर में।
हालाँकि, नियोजित विकास की राजनीति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन योजनाओं की आलोचना की गई कि यह अपेक्षित गति से गरीबी और बेरोजगारी को समाप्त नहीं कर सकीं और असमानताओं को दूर करने में सीमित रही। साथ ही, केंद्रीय योजना पर निर्भरता ने राज्यों के स्वतंत्र विकास में भी रुकावटें डालीं। 1991 के बाद जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, तब नियोजित विकास के मॉडल में बदलाव आया। आज भी नियोजित विकास की राजनीति एक चर्चा का विषय है, जहाँ भारत का लक्ष्य समावेशी विकास प्राप्त करना है, ताकि सभी वर्गों को लाभ मिल सके और देश आर्थिक व सामाजिक रूप से सशक्त बन सके।
इस प्रकार, नियोजित विकास की राजनीति ने भारत के विकास पथ को आकार दिया, और यह विषय आर्थिक और सामाजिक संरचना में बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।
Here are some detailed FAQs related to the Chapter “नियोजित विकास की राजनीति”
1. नियोजित विकास की राजनीति क्या है, और यह क्यों आवश्यक थी?
उत्तर: नियोजित विकास की राजनीति भारत में स्वतंत्रता के बाद आर्थिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक संगठित प्रयास था। इसका उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, बेरोजगारी कम करना, और सभी नागरिकों के लिए संसाधनों का समान वितरण करना था। योजना आयोग की स्थापना के साथ, पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक नींव को मजबूत करने का कार्य किया गया।
2. योजना आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: योजना आयोग की स्थापना 1950 में हुई थी, और इसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास के लिए योजनाएँ बनाना और उनके कार्यान्वयन की देखरेख करना था। इसका कार्य राज्य की केंद्रीय भूमिका को बढ़ावा देना और संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना था। इसके तहत पाँच-पाँच वर्षों की पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं, जो कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य, और शिक्षा क्षेत्रों में विकास को गति देती थीं।
3. पंचवर्षीय योजनाओं का भारत के आर्थिक विकास में क्या योगदान है?
उत्तर: पंचवर्षीय योजनाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित रूप से विकसित करने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका थीं। प्रथम योजना में कृषि पर जोर दिया गया था, जबकि बाद की योजनाओं में औद्योगिक विकास, बुनियादी ढाँचा, और सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया गया। इन योजनाओं के माध्यम से रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरीबी उन्मूलन में सुधार हुआ, हालांकि इनकी सीमाएँ भी रही हैं।
4. नियोजित विकास की राजनीति के प्रमुख लाभ क्या रहे हैं?
उत्तर: नियोजित विकास की राजनीति के तहत कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई, जिससे बेरोजगारी में कमी आई और लोगों की जीवन स्तर में सुधार हुआ। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना, बांधों और बिजली संयंत्रों का निर्माण, और बुनियादी ढांचे के विस्तार से देश की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिली।
5. पंचवर्षीय योजनाओं की असफलता के प्रमुख कारण क्या रहे हैं?
उत्तर: पंचवर्षीय योजनाओं की प्रमुख असफलताएँ प्रशासनिक अक्षमता, राजनीतिक हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, और संसाधनों का असमान वितरण रही हैं। इसके अलावा, ये योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकीं और गरीबी तथा बेरोजगारी में अपेक्षित कमी नहीं ला पाईं।
6. 1991 के उदारीकरण के बाद भारत की नियोजित विकास नीति में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर: 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद भारत की अर्थव्यवस्था उदारवाद की ओर बढ़ी। विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया गया, और निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में अधिक स्वतंत्रता दी गई। इसके परिणामस्वरूप योजना आयोग का महत्व घटा, और नीति आयोग के रूप में इसका पुनर्गठन हुआ। अब विकास योजनाएँ अधिक समावेशी और राज्यों पर केंद्रित हैं।
7. नियोजित विकास और समावेशी विकास में क्या अंतर है?
उत्तर: नियोजित विकास का उद्देश्य एक केंद्रीकृत योजना के तहत पूरे देश में समान विकास करना था। समावेशी विकास, इसके विपरीत, आर्थिक लाभ को सभी वर्गों तक पहुँचाने पर जोर देता है। समावेशी विकास में खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों, महिलाओं, और कमजोर वर्गों के लिए अवसरों का सृजन होता है।
8. भारत के विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका क्या है?
उत्तर: नियोजित विकास की शुरुआत में निजी क्षेत्र की भूमिका सीमित थी, क्योंकि राज्य का नियंत्रण प्रमुख उद्योगों और संसाधनों पर था। उदारीकरण के बाद निजी क्षेत्र को आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाने का अवसर मिला, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी और विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और गुणवत्ता में सुधार हुआ। निजी क्षेत्र आज भारत के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
9. भारत में नियोजित विकास नीति की आलोचनाएँ क्या हैं?
उत्तर: नियोजित विकास नीति की प्रमुख आलोचना यह है कि इसने केंद्रीकरण पर अधिक ध्यान दिया, जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हुई। इसके अलावा, यह ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षित सुधार लाने में विफल रही, और सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार तथा अक्षमता की समस्याएँ भी बढ़ीं। योजनाएँ समाज के गरीब तबकों की वास्तविक जरूरतों को पूरी तरह से संबोधित नहीं कर सकीं।
10. नीति आयोग का गठन क्यों किया गया, और इसका उद्देश्य क्या है?
उत्तर: 2015 में योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य राज्यों के विकास की जरूरतों को अधिक समावेशी और सहभागिता के आधार पर पूरा करना है। नीति आयोग राज्यों के साथ साझेदारी में विकास की नीतियों को कार्यान्वित करता है, जो स्थानीय जरूरतों को समझने और पूरा करने में मददगार होता है।
ये FAQs नियोजित विकास की राजनीति के विभिन्न पहलुओं और इसके ऐतिहासिक महत्व को समझने में मदद करते हैं, जो भारत के समग्र विकास का आधार बने।