12th Geography

अध्याय-3: जल संसाधन

 जल संसाधन(Water Resources)

जल संसाधन

जल संसाधन :-

जल संसाधन, पृथ्वी का लगभग 71% धरातल पानी से आच्छादित है। परन्तु अलवणीय जल की मात्रा कुल जल का केवल 3% ही है।

जल गुणवत्ता :-

जलगुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता या अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है।

भारत के जल संसाधन :-

  • भारत में विश्व के कुल क्षेत्रफल का लगभग 2.45 प्रतिशत, जनसंख्या का लगभग 16 % तथा जल संसाधनों का 4 प्रतिशत भाग ही पाया जाता है।
  • भारत को वार्षिक वर्षा से 4000 घन कि.मी, और सतह और भूजल स्रोतों से 1869 घन कि.मी पानी प्राप्त होता है। लेकिन पानी के इन दो स्रोतों से केवल 60 % (1122 क्यूबिक कि.मी) ही लाभकारी और उपयोगी है।

जल संसाधनों का वर्गीकरण :-

  • जल संसाधनों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है : 
  • धरातलीय जल संसाधन
  • भौम जल संसाधन

धरातलीय जल संसाधन :-

धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत है, 

  • नदियाँ  
  • झीलें 
  • तलैया 
  • तालाब 

भारत में कुल नदियों व उसकी सहायक नदियों जिनकी लम्बाई 1.6 कि.मी. से अधिक है। इनकी संख्या 10360 है।

फिर भी स्थलाकृतिक, जलीय और अन्य दबावों के कारण प्राप्त धरातलीय जल का केवल लगभग 690 घन कि . मी . (32 %) जल का ही उपयोग किया जा सकता है।

भौम जल संसाधन :-

  1. देश में, कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन कि.मी. है। उत्तर – पश्चिमी प्रदेश और दक्षिणी भारत के कुछ भागों के नदी बेसिनों में भौम जल उपयोग अपेक्षाकृत अधिक है।
  2. भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है। जबकि छत्तीसगढ़, उड़ीसा, केरल राज्य भौम जल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं।

भारत मे भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग के दुष्परिणाम :-

  • पंजाब, हरियाण और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग से भौमजल स्तर नीचा हो गया है। 
  • राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लुरोइड की मात्रा बढ़ गई है।
  • पं . बंगाल और बिहार के कुछ भागों में संखिया की मात्रा बढ़ गई है। 
  • पानी को प्राप्त करने में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

जल की माँग और उपयोग :-

  • पारंपरिक रूप से भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो – तिहाई भाग कृषि पर निर्भर है। 
  • इसीलिए कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को एक अति उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ जैसे- भाखड़ा नांगल, हीराकुड, दामोदर घाटी, नागार्जुन सागर, इंदिरा गांधी नहर परियोजना आदि शुरू की गई हैं। 

भारत में सिंचाई की बढ़ती हुई माँग के लिए उत्तरदायी कारक :-

सिंचाई की बढ़ती माँग के कारण निम्नलिखित है :-

  1. वर्षा का असमान वितरण :- देश में सारे वर्ष वर्षा का अभाव बना रहता है। अधिकांश वर्षा केवल (मानसून) वर्षा के मौसम में ही होती है इसलिए शुष्क ऋतु में सिंचाई के बिना कृषि संभव नहीं। 
  2. वर्षा की अनिश्चितता :- केवल वर्षा का आगमन ही नहीं बल्कि पूरी मात्रा भी अनिश्चित है। इस उतार – चढ़ाव की कमी को केवल सिंचाई द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। 
  3. परिवर्तन शीलता :- वर्षा की भिन्नता व परिवर्तनशीलता अधिक है। किन्हीं क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है तो कहीं कम, कहीं समय से पहले तो कहीं बाद में। इसलिए सिंचाई के बिना भारतीय कृषि ‘ मानसून का जुआ बनकर रह जाती है। 
  4. मानसूनी जलवायु :- भारत की जलवायु मानसूनी है जिसमें केवल तीन से चार महीने तक ही वर्षा होती है। अधिकतर समय शुष्क ही रहता है जबकि कृषि पूरे वर्ष होती है इसलिए सिंचाई पर भारतीय कृषि अधिक निर्भर है। 
  5. खाद्यान्न व कृषि प्रधान कच्चे माल की बढ़ती माँग :- देश की बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों व कच्चे माल की माँग में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इसलिए बहुफसली कृषि जरूरी है जिसके कारण सिंचाई की माँग बढ़ रही है।

भारत देश में जल संसाधन किन समस्याओं से जूझ रहा है :-

जल मानव की आवश्यक आवश्यकताओं में आता है लेकिन आज जल संसाधन की प्रति व्यक्ति उपलब्धता दिनों दिन कम होती जा रही है। 

इससे जुड़ी समस्यायें निम्नलिखित है :-

  1. जल की उपलब्धता में कमी :- जनसंख्या वृद्धि एवं सिंचाई के साधनों में वृद्धि के कारण भूमिगत जल का दोहन बढ़ गया है जिससे भूमिगत जल का स्तर दिनों दिन घट रहा है। नगरों की बढ़ती जनसंख्या को पेय जल की आपूर्ति कठिन हो रहा है।
  2. जल के गुणों का हास :- जल का अधिक उपयोग होने से जल भंडारों में कमी आती है साथ ही उसमें बाहृय अवांछनीय पदार्थ जैसे सूक्ष्म जीव औद्योगिक अपशिष्ट आदि मिलते जाते है जिससे नदियाँ जलाशय सभी प्रभावित होते हैं। इसमें जलीय तन्त्र भी प्रभावित होता है। कभी – कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं और भूमिगत जल को प्रदूषित करते हैं। 
  3. जल प्रबन्धन :- जल प्रबंधन के लिए देश में अभी भी पर्याप्त जागरूकता नहीं है। सरकारी स्तर पर बनी नीतियों एवं कानूनों का प्रभावशाली रूप से कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है इसीलिये प्रमुख नदियों के संरक्षण के लिए बनी योजनायें निरर्थक साबित हुई है।
  4. जागरूकता एवं जानकारी का अभाव :- जल एक सीमित संसाधन है हालाकि यह पुनः पूर्ति योग्य है, इसे सुरक्षित एवं शुद्ध रखना हमारी जिम्मेदारी है और इस तरह की जागरूकता का अभी देश में अभाव हैं।

भारत में जल संसाधनों की कमी के कारण :-

  1. अत्यधिक उपयोग :- बढ़ती जनसंख्या के कारण जल संसाधनों का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। घरेलू ही नहीं औद्योगिक क्षेत्र में भी जल अत्यधिक उपयोग इस कमी को और भी बढ़ा देता है। 
  2. नगरीय क्षेत्रों का धरातल कंक्रीट युक्त होना :- बढ़ते विकास व औद्योगिकरण के कारण अब नगरीय क्षेत्रों में कहीं भी धरातल कच्चा नहीं है बल्कि कंक्रीट युक्त हो चुका है जिसमें भूमि के नीचे जल रिसाव की मात्रा में कमी होती जा रही है और भौम जल संसाधनों में कमी आ गई है। 
  3. वर्षा जल संग्रहण के संदर्भ में जागरूकता की कमी :- वर्षा जल संग्रहण के द्वारा संसाधनों का संरक्षण आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए जरूरत है लोगों को जागरूक करने की ताकि वो वर्षा जल के महत्व को समझे और विभिन्न विधियों द्वारा उसका संग्रहण व संरक्षण कर सकें। वर्षा जल संग्रहण घरेलू उपयोग भूमिगत जल पर निर्भरता को कम करता है। 
  4. जलवायविक दशाओं में परिवर्तन :- जलवायु की दशाओं में परिवर्तन के कारण मानसून में भी परिवर्तन आता जा रहा है। जिसके कारण धरातलीय व भौम जल संसाधनों में लगातार कमी आ रही है। 
  5. किसानों द्वारा कृषि कार्यों के लिए जल की अति उपयोग :- किसानों द्वारा कृषि कार्यों के लिए अत्यधिक धरातलीय व भौम जल का उपयोग जल संसाधनों में कमी ला रहा है। बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्ष में तीन बार कृषि करने से जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।

भारत में जल संसाधनों का संरक्षण की आवश्यकता :-

  • अलवणीय जल की घटती उपलब्धता 
  • शुद्ध जल की घटती उपलब्धता। 
  • जल की बढ़ती मांग। 
  • तेजी से फैलते हुए प्रदूषण से जल की गुणवत्ता का हास।

जल संरक्षण एवं प्रबंधन :-

  • जनसंख्या वृद्धि, जल का अति उपयोग व पर्यावरण प्रदूषण के कारण जल दुर्लभता बढ़ती जा रही है। भारत को जल – संरक्षण के लिए तुरंत कदम उठाने हैं और प्रभावशाली नीतियाँ और कानून बनाने हैं, और जल संरक्षण हेतु प्रभावशाली उपाय अपनाने हैं। 
  • जल – संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुनः चक्रण और पुन : उपयोग और लंबे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

जल संभर प्रबंधन :-

धरातलीय एवं भौम जल संसाधनों का दक्ष प्रबन्धन, जिसमें कि वे व्यर्थ न हो, जल संभर प्रबन्धन कहलाता है। इससे भूमि, जल पौधे एवं प्राणियों तथा मानव संसाधन के संरक्षण को भी विस्तृत अर्थ में शामिल करते हैं।

जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य :-

  • कृषि और कृषि से संबंधित क्रियाकलापों जैसे उद्यान, कृषि, वानिकी और वन संवर्धन का समग्र रूप से विकास करना। 
  • कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए।
  • पर्यावरणीय हास को रोकना तथा लोगों के जीवन को ऊँचा उठाना।

जल संभर प्रबन्धन के लिए सरकार द्वारा उठाये गये प्रमुख कदम :-

  • ‘ हरियाली ‘ केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल संभर विकास परियोजना है। इस योजना से ग्रामीण जल संरक्षण करके पेय जल की समस्या को दूर करने के साथ – साथ वनरोपण, मत्स्य पालन एवं सिंचाई की सुविधा भी प्राप्त कर सकते हैं। 
  • नीरू – मीरु कार्यक्रम आन्ध्रप्रदेश में चलाया गया है। जिसका तात्पर्य है ‘ जल और आप ‘ | इस कार्यक्रम में स्थानीय लोगों को जल संरक्षण की विधियाँ सिखाई गई है।
  • अरवारी पानी संसद – राजस्थान में जोहड़ की खुदाई एवं रोक बांध बनाकर जल प्रबन्धन किया गया है।
  • तमिलनाडु में सरकार द्वारा घरों में जल संग्रहण संरचना आवश्यक कर दी गई है। उपर्युक्त सभी कार्यक्रमों में स्थानीय निवासियों को जागरूक करने उनका सहयोग लिया गया है।

वर्षा जल संग्रहण :-

वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है।

वर्षा जल संग्रहण के आर्थिक व सामाजिक मूल्य :-

  • पानी के उपलब्धता को बढ़ाता है जिसे सिंचाई तथा पशुओं के लिए उपयोग किया जाता है। 
  • भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है। 
  • मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है। 
  • लोगों में सामूहिकता की भावना को बढ़ाता है।
  • भौम जल को पम्प करके निकालने में लगने वाली ऊर्जा की बचत करता है। 
  • लोगों में समस्या समाधान की प्रवृत्ति बढ़ाता है। 
  • प्रकृति से मधुर संबंध बनाने में सहायक होता है।
  • लोगों को एक – दूसरे के पास लाता है। 
  • फ्लुओराइड और नाइट्रेटस जैसे संदूषकों को कम कर के भूमिगत जल की गुणवत्ता को बढ़ाता है।

भारत में जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए वैधानिक उपाय :-

  • जल अधिनियम – 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियन्त्रण) 
  • पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम – 1986 
  • जल उपकर अधिनियम – 1977

जल क्रांति अभियान :-

भारत सरकार द्वारा 2015 – 16 में आरंभ किया गया। 

उद्देश्य :-

  • जल की उपलब्धता को सुनिचित करना। 
  • स्थानीय निकायो, सरकारी संगठन एवं नागरिकों को सम्मिलित करके लोगो को जल सरंक्षण के विषय में जागरूक करना।

जल क्रांति अभियान के तहत किए गए कार्य :-

  • जल ग्राम बनाने के लिए देश के 672 जिलो में से एक ग्राम जिसमें जल की कमी है, उसे चुना गया है। 
  • भारत के विभिन्न भागों में 1000 हेक्टेयर मॉडलज कमांड क्षेत्र की पहचान की गई। 

प्रदूषण को कम करने के लिए :-

  • जल सरंक्षण और कृत्रिम पुनर्भरण।
  • भूमिगत जल प्रदूषण को कम करना।
  • देश के चयनित क्षेत्र में आर्सेनिक मुक्त कुँओ का निर्माण।
  • लोगो में जागरूकता फैलाने के लिए जनसंचार माध्यमों का प्रयोग।

FAQs on “जल संसाधन” (Water Resources)


1. जल संसाधन क्या हैं, और इनके महत्व को स्पष्ट करें?

उत्तर: जल संसाधन वे स्रोत हैं जिनसे हमें जल प्राप्त होता है, जैसे नदियाँ, झीलें, भूजल, तालाब, जलाशय और महासागर। जल मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक है। यह कृषि, उद्योग, पेयजल आपूर्ति, ऊर्जा उत्पादन और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए आवश्यक है।
जल संसाधनों का सही उपयोग समाज और अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य है क्योंकि जल संकट के कारण कई क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और सूखे से प्रभावित हो सकते हैं।


2. भारत में जल संसाधनों का वितरण असमान क्यों है?

उत्तर: भारत में जल संसाधनों का वितरण असमान है क्योंकि इसका भौगोलिक स्वरूप और जलवायु विविध है।

  • हिमालयी क्षेत्र में नदियाँ बारहमासी हैं, जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ मौसमी हैं।
  • उत्तर भारत में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियाँ हैं, जबकि दक्षिण भारत में कावेरी, कृष्णा, गोदावरी जैसी कम जल प्रवाह वाली नदियाँ हैं।
  • पश्चिमी भारत का बड़ा हिस्सा शुष्क और अर्धशुष्क है। राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में जल संकट अधिक है।

3. जल संकट के क्या कारण हैं?

उत्तर: जल संकट के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  1. अत्यधिक उपयोग: कृषि, उद्योग, और शहरीकरण के लिए जल का अंधाधुंध उपयोग।
  2. प्रदूषण: नदियों और जल स्रोतों में घरेलू और औद्योगिक कचरे का बढ़ता प्रवाह।
  3. जलवायु परिवर्तन: ग्लेशियरों का पिघलना और असमान वर्षा।
  4. अनियमित प्रबंधन: जल संचयन और संरक्षण की कमी।
  5. जनसंख्या वृद्धि: अधिक जनसंख्या के कारण जल की मांग बढ़ रही है।

4. जल संसाधन विकास और प्रबंधन क्या है? इसके प्रमुख उपाय बताइए।

उत्तर: जल संसाधन विकास और प्रबंधन का अर्थ जल के स्रोतों को संरक्षित, संचय और उचित तरीके से उपयोग करना है।
उपाय:

  1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting): वर्षा जल को संग्रहित करके उपयोग करना।
  2. पुनर्भरण (Recharge): भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए उपाय।
  3. सिंचाई के आधुनिक तरीके: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई।
  4. जल संरक्षण: घरेलू और औद्योगिक स्तर पर जल बचाने के प्रयास।
  5. नदी जोड़ो परियोजना: नदियों के जल का समान वितरण सुनिश्चित करना।

5. वर्षा जल संचयन क्या है, और इसके क्या लाभ हैं?

उत्तर: वर्षा जल संचयन वह प्रक्रिया है जिसके तहत वर्षा से प्राप्त जल को संग्रहित और संरक्षित किया जाता है।
लाभ:

  1. जल संकट वाले क्षेत्रों में जल की उपलब्धता।
  2. भूजल स्तर में सुधार।
  3. शहरी बाढ़ को नियंत्रित करना।
  4. कृषि में जल की उपलब्धता बढ़ाना।
  5. पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना।

6. जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:

  1. असमान वर्षा: कहीं भारी बारिश तो कहीं सूखा।
  2. ग्लेशियरों का पिघलना: हिमालयी नदियों का प्रवाह प्रभावित होता है।
  3. भूजल स्तर में गिरावट: सूखा और बढ़ती गर्मी के कारण।
  4. समुद्र स्तर में वृद्धि: तटीय क्षेत्रों में जल स्रोत खारे हो जाते हैं।
  5. जलवायु अप्रत्याशितता: कृषि और पेयजल के लिए जल उपलब्धता में कमी।

7. भारत में जल संसाधनों के प्रमुख उपयोग क्या हैं?

उत्तर:

  1. कृषि: सिंचाई के लिए जल का सबसे बड़ा उपयोग।
  2. उद्योग: कागज, कपड़ा, बिजली, इस्पात जैसे उद्योग जल पर निर्भर हैं।
  3. पेयजल: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति।
  4. ऊर्जा उत्पादन: जलविद्युत परियोजनाएँ।
  5. परिवहन: नदियों और समुद्र का उपयोग जल परिवहन के लिए।
  6. पारिस्थितिकी संतुलन: जैव विविधता और वनस्पति संरक्षण।

8. भारत की प्रमुख जलविधुत परियोजनाएँ कौन-कौन सी हैं?

उत्तर:

  1. भाखड़ा नांगल परियोजना (सतलुज नदी): जलविद्युत और सिंचाई।
  2. हीराकुंड परियोजना (महानदी): बाढ़ नियंत्रण और जल आपूर्ति।
  3. सर्दार सरोवर बांध (नर्मदा नदी): पीने का पानी, सिंचाई, और बिजली उत्पादन।
  4. तेहरी बांध (भागीरथी नदी): बिजली उत्पादन और जल आपूर्ति।
  5. इन्दिरा गांधी नहर परियोजना (राजस्थान): मरुस्थल में जल आपूर्ति।

9. नदी जोड़ो परियोजना क्या है? इसके लाभ और चुनौतियाँ बताइए।

उत्तर: नदी जोड़ो परियोजना भारत में जल संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने का प्रस्तावित कार्यक्रम है।
लाभ:

  1. सूखे और बाढ़ की समस्या का समाधान।
  2. सिंचाई क्षमता में वृद्धि।
  3. जल संकट वाले क्षेत्रों में जल आपूर्ति।
    चुनौतियाँ:
  4. पर्यावरणीय क्षति।
  5. बड़े पैमाने पर विस्थापन।
  6. आर्थिक लागत।
  7. अंतरराज्यीय विवाद।

10. भूजल का अधिक दोहन क्यों हो रहा है, और इसके क्या परिणाम हैं?

उत्तर:
अधिक दोहन के कारण:

  1. खेती के लिए अत्यधिक सिंचाई।
  2. शहरीकरण और औद्योगीकरण।
  3. जल संरक्षण की कमी।
    परिणाम:
  4. भूजल स्तर में गिरावट।
  5. भूमि धंसने की समस्या।
  6. जल गुणवत्ता में गिरावट।
  7. पेयजल संकट।

अध्याय-4: खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

 

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