12th Econimics

अध्याय-5: ग्रामीण विकास (भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास)

ग्रामीण विकास (भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास)

ग्रामीण विकास

ग्रामीण विकास

ग्रामीण विकास से अभिप्राय उस क्रमबद्ध योजना से है जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर तथा आर्थिक व सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जाती है।

ग्रामीण विकास के मुख्य तत्व

  • भूमि के प्रति इकाई कृषि उत्पादकता को बढ़ाना
  • कृषि विपणन प्रणाली को सुधारना ताकि किसान को उसके उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो सके।
  • ज्यादा मूल्य वाली फसलों के उत्पाद को बढ़ावा देना।
  • कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देना।
  • उत्पादन की गतिविधियों का विविधीकरण ताकि फसल – खेती के अलावा रोजगार के वैकल्पिक साधनों को ढूंढा जा सके।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में साख को सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि तथा गैर – कृषि रोजगारों द्वारा निर्धनता को कम करना।
  • जैविक खेती को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना।

भारत में ग्रामीण साख के स्रोत

  • गैर – संस्थागत अथवा अनौपचारिक स्रोत
  • संस्थागत अथवा औपचारिक स्रोत

गैर – संस्थागत अथवा अनौपचारिक स्रोत

इसमें साहकार, व्यापारी, कमीशन एजेंट, जमींदार, संबंधी तथा मित्रों को शामिल किया जाता है।

संस्थागत अथवा औपचारिक स्रोत

  • सहकारी साख समितियाँ
  • स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया व अन्य व्यापारिक बैंक।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक।
  • कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक (NABARD)
  • स्वयं सहायता समूह।

कृषि विपणन

कृषि विपणन में उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो फसल के संग्रहण, प्रसंस्करण, वर्गीकरण, पैकेजिंग, भण्डारण, परिवहन तथा बिक्री से सम्बन्धित है।

कृषि विपणन के दोष

  • अपर्याप्त भण्डार ग्रह
  • परिवहन व संचार के कम साधन
  • अनियमित मण्डियों में गड़बड़ियाँ
  • बिचौलियों की बहुलता
  • फसल के उचित वर्गीकरण का अभाव
  • पर्याप्त संस्थागत वित्त का अभाव
  • पर्याप्त विपणन सुविधाओं का अभाव

विपणन प्रणाली को सुधारने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • नियमित मण्डियों की स्थापना
  • कृषि उत्पादों के संग्रहण के लिए भण्डार गृह की सुविधाओं का प्रावधान। 
  • मानक बाट और नाप – तौल की अनिर्वायता।
  • रियायती यातायात की व्यवस्था।
  • कृषि व संबद्ध वस्तुओं की श्रेणी विभाजन एंव मानकीकरण की व्यवस्था (केन्द्रीय श्रेणी नियंत्रण प्रयोगशाला महाराष्ट्र के नागपुर में है)।
  • भण्डार क्षमता को बढाने के उद्देश्य से सार्वजनिक में भारतीय खाद्य निगम ( FCI ), केंद्रीय गोदाम निगम (CWC) आदि की स्थापना।
  • न्यूनतम समर्थन कीमत नीति
  • विपणन सूचना का प्रसार

विविधीकरण

कृषि क्षेत्र में बढ़ती हुई श्रम शक्ति के एक बड़े हिस्से के अन्य और कृषि क्षेत्रों में वैक्लपिक रोजगार में अवसर ढूंढ़ने की प्रक्रिया को विविधिकरण कहते हैं।

इसके दो पहलू है :

  • फसलों के उत्पादन का विविधीकरण :- इसके अन्तर्गत एक फसल की बजाए बहु – फसल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है। इसके दो लाभ है :-
  1. मानसून की कमी के कारण होने वाले खेतों के जाखिम को कम करती है।
  2. यह खेतों के व्यापारीकरण को बढ़ावा देती है।
  • उत्पादन गतिविधियों अथवा रोजगार का विविधिकरण :- इसमें श्रम शक्ति को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर – कृषि कार्यों जैसे – पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी आदि में लगाया जाता है।

ग्रामीण जनसंख्या के लिए रोजगार के गैर – कृषि क्षेत्र

  • पशुपालन
  • मछली पालन
  • मुर्गी पालन
  • मधुमक्खी पालन
  • बागवानी
  • कुटीर और लघु उद्योग

जैविक कृषि

जैविक कृषि खेती की वह पद्धति है जिसमें खेतों के लिए जैविक खाद (मुख्यतः पशु खाद और हरी खाद) का प्रयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को हतोत्साहित करते हुए जैविक खाद के उपयोग पर बल दिया जाता है। यह खेत करने की वह पद्धति है जो पर्यावरण के सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण एंव संवर्धन करती है।

जैविक कृषि के लाभ

  • जैविक खादों के प्रयोग से मृदा का जैविक स्तर बढ़ता है और मृदा काफी उपजाऊ बनी रहती है।
  • जैविक खाद पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ प्रदान करती है, जो मृदा में मौजूद सूक्ष्म जीवों द्वारा पौधों को मिलाते हैं। जिससे पौधे स्वस्थ बनते हैं और उत्पादन बढ़ता है।
  • रसायनिक खादों के मुकाबले जैविक खाद सस्ते और टिकाऊ होते हैं।
  • जैविक खादों के प्रयोग से हमें पौष्टिक व स्वास्थ्य वर्धक भोजन प्राप्त होता है।
  • जैविक खाद पर्यावरण मिश्र होते हैं। इनमें रासायनिक प्रदूषण नही फैलता।
  • छोटे और सीमान्त किसानों के लिए सस्ती प्रक्रिया है।
  • यह पद्धति धारणीय कृषि को बढावा देती है।
  • जैविक खेती श्रम प्रधान तकनीक पर आधारित है।

NCERT SOLUTIONS अभ्यास (पृष्ठ संख्या 118)

प्रश्न 1 ग्रामीण विकास का क्या अर्थ है? ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्नों को स्पष्ट करें।

उत्तर- ‘ग्रामीण विकास’ एक व्यापक शब्द है। यह मूलतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उन घटकों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करने पर बल देता है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास में पिछड़ गए हैं।

ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्न निम्नलिखित हैं-

  • मानव पूँजी निर्माण- शिक्षा में निवेश किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य और तकनीकी कौशल लोगों को अधिक कुशल और काम करने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक है।
  • उत्पादक संसाधनों का विकास- ग्रामीण लोग मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर होते हैं जो आम तौर पर कम उत्पादकता, आधारिक संरचनाओं की कमी और छुपी हुई बेरोजगारी से ग्रस्त हैं। इसलिए, उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से वैकल्पिक व्यवसाय के विकास का प्रयास करना चाहिए।
  • भूमि-सुधार- तकनीकी सुधारों के साथ भूमि सुधारों से किसान आधुनिक तकनीकों और विधियों का उपयोग कर सकते हैं जो कि उत्पादकता और कृषि उत्पादन की कुल मात्रा में वृद्धि करते हैं। भूमि सुधारों से जमीन का कुशल और अनुकूलतम उपयोग हो सकता है, जो बड़े पैमाने पर उत्पादन को सक्षम करता है।
  • आधारिक संरचनाओं का विकास- आधारिक संरचना, जैसे- बिजली, सिंचाई, बैंक, ऋण, परिवहन, बाजारों के विकास आदि सभी प्रकार के विकास के प्राथमिक स्तर हैं।
  • निर्धनता निवारण- निर्धनता निवारण और समाज के कमजोर वर्गों की जीवन दशाओं में महत्वपूर्ण सुधार के विशेष उपाय, जिसमें उत्पादक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 2 ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व पर चर्चा करें।

उत्तर- कृषि साख से अभिप्राय कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक भौतिक आगतों को खरीदने की क्षमता से है। ग्रामीण विकास में साख का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. किसान को अपनी दैनिक कृषि संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साख की आवश्यकता होती है।
  2. भारतीय किसानों को अपने पारिवारिक निर्वाह, खर्च, शादी, मृत्यु तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए, भी साख की आवश्यकता पड़ती है।
  3. किसानों को मशीनरी खरीदने, बाड़ लगवाने, कुआँ खुदवाने जैसे कार्यों के लिए भी साख की । आवश्यकता होती है।
  4. साख की मदद से किसान एवं गैर-किसान मजदूर ऋणजाल से मुक्त हो जाते हैं।
  5. साख की सहायता से कृषि फसलों एवं गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में विविधता उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 3 गरीबों की ऋण आवश्यकताएँ पूरी करने में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।

उत्तर- स्वयं सहायता समूहों (एस. एच. जी.) और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम गरीबों को प्रदान की जाने वाली साख और वित्तीय सेवाओं को अतिलघु साख कार्यक्रम कहा जाता है। ग्रामीण परिवारों में बचत की आदतों को पैदा करके उनकी साख आवश्यकताओं को पूरा करने में स्वयं सहायता समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। स्वयं सहायता समूहों के जरूरतमंद सदस्यों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई किसानों की व्यक्तिगत बचत को एकत्रित किया जाता है। इस समूह के सदस्यों को बैंकों से जोड़ा गया है। दूसरे शब्दों में,स्वयं सहायता समूह (एस. एच. जी.) एक समूह के भाग के रूप में आर्थिक रूप से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाती है। इसके अतिरिक्त, स्वयं सहायता समूह के माध्यम से किए गए वित्तपोषण से ऋणदाताओं तथा ऋण लेने वालों के बीच लेनदेन लागत कम हो जाता है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ने विशेष रियायती दरों पर साख उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में, सात लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। इन समूहों द्वारा चलाए गए कार्यक्रम छोटे और सीमान्त ऋणदाताओं के बीच अपनी अनौपचारिक साख व्यवस्था के कारण लोकप्रिय हो रहे हैं, जिसमें न्यूनतम कानूनी औपचारिकताएँ हैं।

प्रश्न 4 सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें।

उत्तर- ग्रामीण बाजारों के विकास हेतु सरकारी प्रयास सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयास इस प्रकार हैं-

  1. व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार का नियमन करना-इस नीति से कृषक और उपभोक्ता दोनों ही लाभान्वित हुए हैं, परंतु अभी भी लगभग 27,000 ग्रामीण क्षेत्रों में अनियत मंडियों को विकसित किए जाने की आवश्यकता है।
  2. सड़कों, रेलमार्गों, भण्डारगृहों, गोदामों, शीतगृहों और प्रसंस्करण इकाइयों के रूप में भौतिक आधारिक संरचनाओं का प्रावधान–वर्तमान आधारिक सुविधाएँ बढ़ती हुई माँग को देखते हुए अपर्याप्त हैं और उनमें पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है।
  3. सरकारी विपणन द्वारा किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ करना।
  4. नीतिगत साधन को अपनाना, जैसे
  • 24 कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करना।
  • भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ और चावल के सुरक्षित भंडारों का रख-रखाव।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्नों और चीनी का वितरण। इन नीतिगत साधनों का उद्देश्य क्रमशः किसानों को उनकी उपज के उचित दाम दिलाना तथा गरीबों को सहायिकी युक्त कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध कराना रहा है।

प्रश्न 5 आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है?

उत्तर- कृषि विविधीकरण का अर्थ फसलों के उत्पादन की प्रणाली में परिवर्तन तथा श्रम शक्ति को खेती से हटाकर अन्य संबंधित कार्यों जैसे, पशुपालन, मुर्गी और मत्स्य पालन आदि तथा गैर कृषि क्षेत्र में लगाना है। यह आवश्यक है क्योंकि-

  • देश में अधिकांश कृषि रोजगार खरीफ की फसल से जुड़ा रहता है किन्तु रबी की फसल के मौसम में तो जहाँ पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ नहीं हैं, उन क्षेत्रों में लाभप्रद रोजगार दुर्लभ हो जाता है। अतः अन्य प्रकार की उत्पादक और लाभप्रद गतिविधियों में प्रसार के माध्यम से ही हम ग्रामीण जनसमुदाय को अधिक आय कमाकर गरीबी तथा अन्य विषम परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ बना पाएँगे।
  • संबद्ध गतिविधियों, गैर कृषि रोजगार, तथा नए वैकल्पिक आजीविका स्रोतों के विकास के लिए कृषि विविधीकरण की आवश्यकता है।
  • बढ़ती हुई श्रम शक्ति के लिए अन्य गैर कृषि कार्यों में वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की आवश्यकता है जिसके लिए कृषि का विविधीकरण किया जाना चाहिए।
  • गैर कृषि अर्थतंत्र में कुछ घटकों में पर्याप्त गतिशील अंतर्संबंध होते हैं और उनमें ‘स्वस्थ’ संवृद्धि की संभावनाएँ रहती हैं।

प्रश्न 6 भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

उत्तर- भारत में ग्रामीण साख आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बहुसंस्था व्यवस्था अपनाई गई है। इसके बाद 1982 ई. में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई। यह बैंक सम्पूर्ण ग्रामीण वित्त व्यवस्था के समन्वय के लिए एक शीर्ष संस्थान है। ग्रामीण बैंक की संस्थागत संरचना में आप निम्नलिखित संस्थाएँ शामिल हैं-

  1. व्यावसायिक बैंक।
  2. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक।
  3. सहकारी बैंक।
  4. भूमि विकास बैंक।

प्रश्न 7 कृषि विपणन से आपका क्या अभिप्राय है?

उत्तर- कृषि विपणन एक ऐसा तंत्र है जिसमें सामानों को विभिन्न स्थानों तक पहुँचाने का माध्यम बाजार व्यवस्था है। कृषि विपणन वह प्रक्रिया है, जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग, वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है।

प्रश्न 8 कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ बताइए।

उत्तर- कृषि विपणन प्रक्रिया की निम्नलिखित बाधाएँ हैं-

  1. तोल में हेरा-फेरी।
  2. खातों में गड़बड़ी।
  3. बाजार में प्रचलित भावों का पता न होना।
  4. अच्छी भण्डारण सुविधाओं का अभाव।
  5. किसानों में जागरूकता का अभाव।
  6. किसानों की आय का निम्न स्तर।
  7. साख विस्तार का अभाव।

प्रश्न 9 कृषि विपणन की कुछ उपलब्ध वैकल्पिक माध्यमों की उदाहरण सहित चर्चा करें।

उत्तर- कृषि विपणन की कुछ उपलब्ध विभिन्न वैकल्पिक माध्यम हैं जिनके अंतर्गत किसान स्वयं ही उपभोक्ता को अपना उत्पादन बेच सकते हैं जिससे अधिक आय प्राप्त होती है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी, पुणे की हाड़पसार मंडी, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की रायथूबाज नामक फल सब्जी मंडियाँ तथा तमिलनाडु की उझावरमंडी के कृषक बाजार, इस प्रकार से विकसित हो रहे वैकल्पिक क्रय विक्रय माध्यम के कुछ उदाहरण हैं। ये सब कुछ वैकल्पिक विपणन संरचनाओं के उदाहरण हैं। यही नहीं, अनेक राष्ट्रीय/ बहुराष्ट्रीय त्वरित खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियाँ भी अब किसानों के साथ कृषि-उत्पाद की खेती के लिए उत्पादकों से अनुबंध कर रही हैं। ये किसानों को उचित बीज तथा अन्य आगत तो कराती ही हैं, उन्हें पूर्व निर्धारित कीमतों पर माल खरीदने का आश्वासन भी देती हैं। ऐसी व्यवस्था छोटे तथा सीमांत किसानों के कीमत विषयक आशंकाओं और जोखिमों का निवारण करती हैं।

प्रश्न 10 ‘स्वर्णिम क्रांति’ तथा ‘हरित क्रांति’ में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर-

  स्वर्णिम क्रांति हरित क्रांति
1. फलों, सब्जियों, कंद फसलों, फूलों आदि जैसे बागवानी फसलों के उत्पादन में तेजी से वृद्धि को स्वर्णिम क्रांति के रूप में जाना जाता है। चावल और गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि के लिए संयुक्त रूप से HYV बीज का और उर्वरकों और विकसित सिंचाई सुविधाओं का उपयोग। खद्यान्न के उत्पादन में यह बढ़ोतरी हरित क्रांति के रूप में जानी जाती है।
2. इससे फल, सब्जियों, फूल, सुगंधित पौधों, मसालों आदि के उत्पादन में वृद्धि हुई। इससे खद्यान्न, खासकर चावल और गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि हुई।
3. इस क्रांति के परिणामस्वरूप, भारत आम, केला, नारियल और मसालों के उत्पादन में विश्व प्रतिनिधित्व बन गया। इस क्रांति के परिणामस्वरूप, भारत गेहूँ और चावल के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया।

प्रश्न 11 क्या सरकार द्वारा कृषि विपणन सुधार के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं? व्याख्या कीजिए।

उत्तर- सरकार ने कृषि विपणन में सुधार के लिए विभिन्न उपाय किये हैं जैसे कि बाजार का नियमन, शीत भंडारण, सड़कों, रेलवे और नीतिगत साधनों जैसे आधारिक संरचनाओं का विकास। लेकिन सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद कृषि बाजारों में ग्रामीण राजनितिक अभिजात वर्ग, बड़े व्यापारी तथा अमीर किसानों का अस्तित्व कायम है। इसके अतिरिक्त, कृषि विपणन के मार्ग में निम्नलिखित बाधाएँ हैं-

  • उत्पादन बेचते समय किसानों को तोल में हेरा-फेरी तथा खातों में गड़बड़ी का सामना करना पड़ता है।
  • प्रायः किसानों को बाजार में प्रचलित भावों का ज्ञान न होने पर कम कीमत पर माल बेचना पड़ता है।
  • किसानों के पास अपना माल रखने के लिए अच्छी भंडारण सुविधाएँ नहीं होती हैं, अतः वे अच्छे दाम मिलने तक माल की बिक्री को स्थगित नहीं रख पाते।
  • कभी-कभी किसान कृषि साख का लाभ नहीं उठा सकते हैं, फलस्वरूप, वे महाजनों द्वारा शोषण का शिकार होते हैं।

प्रश्न 12 ग्रामीण विविधीकरण में गैर-कृषि रोजगार का महत्त्व समझाइए।

उत्तर- कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या के अत्यधिक बोझ को खत्म करने के लिए ऋणशक्ति को अन्य गैर-कृषि कार्यों में वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की आवश्यकता है। गैर-कृषि रोजगार का महत्त्व इस प्रकार है-

  • इसके द्वारा हमें सिर्फ खेती के आधार पर आजीविका कमाने का जोखिम कम होगा।
  • इससे निर्धन किसानों की आय में वृद्धि होती है।
  • यह ग्रामीण क्षेत्रों से निर्धनता उन्मूलन का अच्छा स्रोत है।
  • गैर-कृषि क्षेत्र में वर्ष भर आय कमाने का रोजगार मिल जाता है।
  • ये कृषि क्षेत्र में श्रमशक्ति का भार कम करने में सहायक होते हैं।
  • कृषि कार्यबल को धारणीय जीवन-स्तर जीने के लिए अच्छे स्रोत हैं।

प्रश्न 13 विविधीकरण के स्रोत के रूप में पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के महत्व पर टिप्पणी करें।

उत्तर- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विविधीकरण के स्रोत के रूप में पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी का बहुत महत्व है। पशुपालन और बागवानी का कार्य लगभग हर गाँव में किया जा सकता है जबकि मत्स्यपालन चुने हुए स्थानों पर ही किया जा सकता है। हालाँकि, इन कार्यों द्वारा किसानों को आय के वैकल्पिक स्रोत सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। ये कार्य कृषि की तुलना में अधिक स्थायित्व है जिसमें एक वर्ष में सिर्फ दो प्रमुख फसलों के मौसम शामिल हैं। ‘ऑपरेशन फ्लड’ की सफलता ने यह साबित किया है कि डेयरी उद्योग किसानों को समृद्ध बनाने में सहायता कर सकता है। आज पशुपालन क्षेत्रक देश के 7 करोड़ छोटे व सीमान्त किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने के वैकल्पिक साधन सुलभ करा रहे हैं। इसी प्रकार, नीली क्रांति की सफलता ने मछुवारे समुदाय की स्थिति में सुधार लाने में मदद की है।

प्रश्न 14 ‘सूचना प्रौद्योगिकी धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।’ टिप्पणी करें।

उत्तर- आज सूचना प्रौद्योगिकी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। धारणीय विकास एवं खाद्य सुरक्षा को हासिल करने में सूचना प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान निम्नलिखित है-

  • सूचनाओं और उपयुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहज ही खाद्य असुरक्षा की आशंका वाले क्षेत्रों का समय रहते पूर्वानुमान लगा सकती है।
  • इस प्रौद्योगिकी द्वारा उदीयमान तकनीकों, कीमतों, मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए मृदा की दशाओं की उपयुक्तता की जानकारी का प्रसारण हो सकता है।
  • ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन की इसमें क्षमता है।
  • यह लोगों के लिए ज्ञान एवं क्षमता का सृजन करती है।

प्रश्न 15 जैविक कृषि क्या है? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा देती है?

उत्तर- जैविक कृषि, कृषि करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय संतुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है। दूसरे शब्दों में, कृषि की यह व्यवस्था जैविक आगतों के प्रयोग पर निर्भर रहती है। परंपरागत कृषि पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों और विषजन्य कीटनाशकों पर आधारित है जो हमारे पर्यावरणीय व्यवस्था को हानि पहुँचाते हैं। इसलिए जैविक कृषि उपभोक्ताओं को विषाक्त रसायनों से मुक्त उत्पाद उपलब्ध कराता है, साथ ही मृदा की उर्वरता बनाये रखने तथा पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान देता है। इस प्रकार की कृषि पर्यावरण के अनुकूल, धारणीय आर्थिक विकास को सक्षम बनाती है।

प्रश्न 16  जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें।

उत्तर- 

जैविक कृषि के लाभ:

  • जैविक कृषि महँगे आगतों के स्थान पर स्थानीय रूप से बने जैविक आगतों के प्रयोग पर निर्भर होती है।
  • परम्परागत फसलों की तुलना में जैविक फसलों में अधिक मात्रा में गौण मेटाबोलाइट्स पाए जाते।
  • जैविक खेतों की मिट्टी में अधिक पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं।
  • निवेश पर अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है।
  • जैविक कृषि में अधिक जैव सक्रियता तथा अधिक जैव विविधता पाई जाती है।
  • यह पद्धति हानिरहित एवं पर्यावरण के लिए मित्र हैं।

जैविक कृषि की सीमाएँ

  • जैविक कृषि अत्यधिक श्रमगहन होती है।
  • जैविक उत्पादन गैर-जैविक से अधिक महँगा होता है।
  • भारतीय किसान जैविक कृषि से अनभिज्ञ हैं तथा उसके प्रति उत्सुक भी नहीं है।
  • इसके लिए आधार संरचना अपर्याप्त है।
  • जैविक उत्पादों के लिए बाजार की कमी है।
  • परम्परागत कृषि की तुलना में जैविक कृषि का उत्पादन औसतन 20% कम होता है।
  • बिना मौसम के फसल उगाने के कम विकल्प हैं।

प्रश्न 17 जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारंभिक वर्षों में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

उत्तर- प्रारंभिक वर्षों में, जैविक कृषि की उत्पादकता रासायनिक कृषि से कम रहती है। अतः बहुत बड़े स्तर पर छोटे और सीमान्त किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होगा। यही नहीं, जैविक उत्पादों के रासायनिक उत्पादों की अपेक्षा शीघ्र ख़राब होने की संभावना रहती है। बे-मौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है। प्रारंभिक वर्षों में इन कमियों के बावजूद भारत ने श्रम-गहन तकनीकों के कारण जैविक कृषि में तुलनात्मक लाभ प्राप्त किया है। इसलिए, भारत में श्रम की प्रचुर उपलब्धता के कारण जैविक कृषि लोकप्रिय हुई है।

 

अध्याय-6: रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे

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