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अध्याय-5: आधुनिक विश्व में चरवाहे

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आधुनिक विश्व में चरवाहे ( सामाजिक विज्ञान)परिचय:

आधुनिक विश्व में चरवाहे

आधुनिक विश्व में चरवाहे, चरवाहे मानव इतिहास के सबसे पुराने समुदायों में से एक हैं, जिनकी आजीविका पशुपालन पर निर्भर करती है। आधुनिक समय में, चरवाहों का जीवन, उनकी परंपराएं और आर्थिक गतिविधियां बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई हैं। यह अध्याय हमें बताता है कि कैसे आधुनिक विश्व में औपनिवेशिक शासन, राष्ट्रीय सीमाओं, और अर्थव्यवस्था के बदलते स्वरूप ने चरवाहों के जीवन को बदल दिया।


1. चरवाहों का पारंपरिक जीवन:

चरवाहे अपने पशुओं को चराने के लिए मौसमी प्रवास करते थे। यह प्रवास मुख्यतः जलवायु और चरागाहों की उपलब्धता पर निर्भर करता था। उनके जीवन का मुख्य आधार:

  • पशुपालन: जैसे भेड़, बकरी, गाय, ऊंट, याक आदि।
  • मौसमी प्रवास: सर्दियों में गर्म स्थानों पर और गर्मियों में ठंडे स्थानों की ओर।
  • आत्मनिर्भर जीवन: उनके पास सीमित भौतिक साधन थे, लेकिन वे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में आत्मनिर्भर थे।

उदाहरण:

  • हिमालय में गड्डी चरवाहे।
  • राजस्थान में रैबारी समुदाय।
  • कर्नाटक में कुरुबा चरवाहे।

2. औपनिवेशिक शासन और चरवाहों पर प्रभाव:आधुनिक विश्व में चरवाहे

औपनिवेशिक शासन ने चरवाहों के जीवन को गहराई से प्रभावित किया। उनकी पारंपरिक गतिविधियां सरकार की नीतियों के कारण बाधित हुईं।

(i) वन कानूनों का प्रभाव:

  • औपनिवेशिक शासन ने वन क्षेत्रों को आरक्षित घोषित किया।
  • चरवाहों को जंगलों में चराई की अनुमति नहीं थी।
  • इससे उनकी पारंपरिक आजीविका में बाधा आई।

(ii) राजस्व नीतियां:

  • चरागाह भूमि पर कर लगाया गया।
  • चरवाहों को पशुओं की संख्या के अनुसार टैक्स देना पड़ता था।
  • इससे उनका आर्थिक बोझ बढ़ा।

(iii) राष्ट्रीय सीमाओं का निर्धारण:

  • औपनिवेशिक काल में देशों की सीमाएं तय की गईं, जिससे चरवाहों के प्रवास के मार्ग सीमित हो गए।
  • पारंपरिक मार्गों पर प्रतिबंध ने उनकी मौसमी प्रवास की प्रक्रिया को बाधित किया।

(iv) व्यवसायिक परिवर्तन:

  • स्थानीय बाजारों का विदेशी बाजारों से जुड़ना।
  • चरवाहों को व्यापारिक खेती के लिए मजबूर किया गया।

3. आधुनिक काल में चरवाहों के सामने चुनौतियां:आधुनिक विश्व में चरवाहे

आधुनिक समय में, चरवाहों को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

(i) भूमि की कमी:

  • शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण चरागाह भूमि में कमी आई।
  • कृषि के विस्तार ने चरागाह भूमि को सीमित कर दिया।

(ii) जलवायु परिवर्तन:

  • बढ़ता जलवायु परिवर्तन उनके प्रवास के लिए चुनौती बन गया।
  • चरागाह क्षेत्रों में पानी और घास की कमी ने समस्याएं खड़ी कीं।

(iii) आर्थिक दबाव:

  • बदलती अर्थव्यवस्था में चरवाहों का पारंपरिक व्यवसाय लाभदायक नहीं रहा।
  • उन्हें वैकल्पिक रोजगार की तलाश करनी पड़ी।

(iv) सरकारी नीतियां:

  • चरवाहों के प्रवास पर प्रतिबंध।
  • राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित क्षेत्र बनने से उनके पारंपरिक मार्ग बाधित हुए।

4. चरवाहों का योगदान:आधुनिक विश्व में चरवाहे

चरवाहे न केवल अपनी आजीविका कमाते हैं, बल्कि समाज और पर्यावरण में भी महत्वपूर्ण योगदान करते हैं:

(i) पर्यावरण संरक्षण:

  • उनके पशु चरागाहों को उपजाऊ बनाए रखते हैं।
  • जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक होते हैं।

(ii) सामाजिक संरचना:

  • ग्रामीण समाज में चरवाहों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
  • उनके उत्पाद जैसे दूध, ऊन, और मांस स्थानीय बाजारों में महत्वपूर्ण हैं।

(iii) संस्कृति और परंपरा:

  • उनके गीत, नृत्य, और रीति-रिवाज स्थानीय संस्कृति को समृद्ध करते हैं।

5. चरवाहों का प्रतिरोध और परिवर्तन:आधुनिक विश्व में चरवाहे

चरवाहों ने अपने अधिकारों और पारंपरिक जीवन शैली की रक्षा के लिए कई प्रयास किए।

(i) आंदोलन:

  • औपनिवेशिक काल में चरवाहों ने वन कानूनों के खिलाफ आंदोलन किए।
  • वर्तमान समय में भी वे अपनी जमीन और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

(ii) नवाचार:

  • चरवाहों ने नई तकनीकों को अपनाया, जैसे बेहतर पशुपालन पद्धतियां।
  • उन्होंने सहकारी समितियों के माध्यम से अपने उत्पादों को बाजार तक पहुंचाया।

6. भारत और विश्व में चरवाहों की स्थिति:आधुनिक विश्व में चरवाहे

भारत और विश्व के कई हिस्सों में चरवाहों की स्थिति समान है।

(i) भारत में चरवाहे:

  • भारत के विभिन्न राज्यों में चरवाहे अलग-अलग समुदायों से आते हैं।
  • जैसे गड्डी (हिमाचल प्रदेश), रैबारी (राजस्थान), कुरुबा (कर्नाटक)।
  • उनका जीवन सरकार की नीतियों और आर्थिक बदलावों से प्रभावित हुआ है।

(ii) विश्व में चरवाहे:

  • अफ्रीका, मध्य एशिया, और मंगोलिया जैसे क्षेत्रों में चरवाहों का जीवन भी भूमि और जलवायु परिवर्तनों से प्रभावित हुआ है।
  • वैश्वीकरण ने उनकी पारंपरिक गतिविधियों को प्रभावित किया है।

7. चरवाहों का भविष्य:आधुनिक विश्व में चरवाहे

चरवाहों का भविष्य उनके अधिकारों की रक्षा, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, और उनके पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ने पर निर्भर करता है।

(i) नीतिगत सुधार:

  • चरवाहों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार को नीतियां बनानी चाहिए।
  • चरागाह भूमि को संरक्षित करना आवश्यक है।

(ii) शिक्षा और जागरूकता:

  • चरवाहों के बच्चों के लिए शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
  • उन्हें उनके अधिकारों और आधुनिक तकनीकों के बारे में जागरूक करना जरूरी है।

(iii) सामुदायिक सहयोग:

  • चरवाहों के बीच सहकारी समितियां बनाना।
  • उनके उत्पादों के लिए बाजारों तक पहुंच बनाना।

(iv) पर्यावरणीय जागरूकता:

  • चरवाहों को पर्यावरण के महत्व के बारे में जागरूक करना।
  • उनके पारंपरिक ज्ञान का उपयोग टिकाऊ विकास में करना।

निष्कर्ष:आधुनिक विश्व में चरवाहे

आधुनिक विश्व में चरवाहों का जीवन परिवर्तन और संघर्षों से भरा रहा है। हालांकि, उनका योगदान अभी भी समाज और पर्यावरण में महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि उनकी परंपराओं, आजीविका, और अधिकारों को संरक्षित किया जाए। सरकारी नीतियों, सामुदायिक सहयोग, और नवाचार के माध्यम से चरवाहों को एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर किया जा सकता है।

 आधुनिक विश्व में चरवाहे Q/A

प्रश्न 1– स्पष्ट कीजिए कि घुमंतु समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?

उत्तर – घुमंतू ऐसे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि रोजी-रोटी के जुगाड़ में यहां से वहां घूमते रहते हैं। तो सबसे पहले यहां घुमंतू शब्द का मतलब घूमने वाले लोगों से है जो कि कहीं भी कभी भी एक जगह पर ज्यादा दिनों तक लगातार नहीं रुकते हैं या रुक कर नहीं टिकते हैं। ये अपने पूरे परिवार के साथ हो सकते हैं या फिर पूरे समुदाय के साथ कहने का तात्पर्य यह है कि ये अकेले नहीं होते बल्कि पूरे समूह में होते हैं।

इनका एक जगह पर रुकना या रहना भी मौसम या उनकी आवश्यकता के अनुसार होता है। ये कहीं भी स्थाई रूप से निवास नहीं करते हैं। ये अपनी जरूरतों के हिसाब से अपना ठिकाना बदलते रहते हैं। कई बार लोग इन्हें घुमक्कड़, घुमंतू, बंजारे या अन्य नामों से भी पुकारते हैं। ये जगह-जगह निरंतर आते-जाते रहने के कारण ही घुमंतू कहलाते हैं।

इन्हें भिन्न -भिन्न देशों, राज्यों, प्रदेशों या इलाकों में विभिन्न नामों से जाना या पहचाना जाता है। कहीं घुमंतू, कहीं बंजारे, कहीं धंगर, कहीं गुज्जर, कहीं गड़रिए, कहीं बकरवाल, कहीं मासाई, कहीं सोमाली आदि अनेक नामों से जाना पहचाना जाता है। आज घुमक्कड़ जातियों को हम अनेक स्थानों पर रहते या जीवन यापन करते हुए देख सकते हैं। कुछ सदी पूर्व तक इनका मुख्य पेशा पशु पालन ही हुआ करता था। जैसे जैसे समय बीतता गया औपनिवेशिक काल का आरंभ हुआ वैसे वैसे इनके पेशे वा जीवन यापन के तरीके में भी बदलाव आता गया।

समय के साथ ये अपने आप में परिवर्तन करते रहते हैं। पहले ये पूरी तरह से पशुओं तथा प्रकृति पर ही निर्भर रहते थे। परंतु अब समय के साथ साथ इनके जीवन यापन के तरीके में भी बदलाव आया है। पहले इनका पशुपालन ही मुख्य पेशा होने के कारण पशुओं पर ही पूरी निर्भरता होती थी जिसके कारण पशुओं के भोजन के लिए इन्हें एक जगह से दूसरी जगह पर जाना ही पड़ता था।

खेती ये नाम मात्र की ही करते थे।खेती किसानी में इनकी रुचि नहीं होती थी। क्योंकि उसके लिए एक जगह पर स्थाई रूप से निवास करना पड़ता था। क्योंकि फसल उगाने के लिए नियमित देखभाल की जरूरत होती थी और ये पशुओं की वजह से बहुत दिन तक एक स्थान पर रुक नहीं सकते थे।

देश के कई हिस्सों में हम घुमंतू चरवाहों को आपने जानवरों के साथ आते जाते देख सकते हैं।19वीं सदी में चरवाहे चारागाह की खोज में बहुत दूर-दूर तक चले जाते थे। जब एक जगह के चारागाह सूख जाते थे। तो वे अपने रेवड़ लेकर किसी और जगह चले जाते थे। ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी और उनके पशुओं के लिए चारा मिल सके।

घुमंतु समुदाय के निरंतर आवागमन से पर्यावरण को लाभ – एक चारागाह की हरियाली खत्म हो जाती थी या इस्तेमाल काबिल नहीं रह जाती थी। तो वह किसी और चरागाह की तरफ चले जाते थे। इस आवाजाही से चारागाह जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से भी बच जाते थे और उन्हें दोबारा हरियाली वह जिंदगी भी लौट आती थी।

  • हरियाली के कारण मवेशियों का पेट भी भर जाता था उन्हें सेहतमंद खुराक भी मिल जाती थी।
  • खरीफ की कटाई के बाद खेतों में बची रह गई डंठलो को खाते थे और उनके गोबर से खेतों को खाद मिल जाती थी।
  •  खेत जोतने का भी काम करते थे।
  •  खेतों को उपजाऊ बनाने का भी काम करते थे।
  • व्यापार और यातायात संबंधी काम भी करने का मौका मिल जाता था

प्रश्न 2– इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाएं? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा:आधुनिक विश्व में चरवाहे?

  1. परती भूमि नियमावली
  2. वन अधिनियम
  3. अपराधी जनजाति अधिनियम
  4. चराई कर

उत्तर – 1) परती भूमि नियमावली – 19वी शताब्दी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में परती भूमि विकास के लिए नियम बनाए जाने लगे। इन कायदे-कानूनों के जरिए सरकार गैर-खेतिहर जमीन को अपने कब्जे में लेकर कुछ खास लोगों को सौंपने लगी। लोगों को कई तरह की रियायतें दी गई और इस जमीन को खेती के लायक बनाने और उस पर खेती करने के लिए जमकर बढ़ावा दिया गया। ऐसे कुछ लोगों को गांव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्जे में ली गई ज्यादातर जमीन चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे।

2) वन अधिनियम – 19वीं सदी के मध्य तक आते-आते देश के विभिन्न प्रांतों में वन अधिनियम भी पारित किए जाने लगे थे। कानूनों की आड़ में सरकार ने ऐसे कई जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया जहां देवदास या सागवन जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई। वन अधिनियम ने चरवाहों की जिंदगी बदल डाली अब उन्हें उन जंगलों में जाने से रोक दिया गया। जो पहले मवेशियों के लिए बहुमूल्य चारे का स्रोत थे। जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश की छूट दी गई वहां भी उन पर कड़ी नजर रखी जाती थी।

जंगलों में दाखिल होने के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था।जंगल में उनके प्रवेश और वापसी की तारीख पहले से तय होती थी। और वह जंगल में बहुत कम ही दिन बिता सकते थे। अब चरवाहे किसी जंगल में ज्यादा समय तक नहीं रह सकते थे। भले ही वहां चारा कितना भी हो घास कितनी भी क्यों ना हो। अब उनकी जिंदगी वन विभाग द्वारा जारी किए गए ग्रामीणों के अधीन की समय सीमा का उल्लंघन करने पर जुर्माना लगा दिया जाता था।

3) अपराधी जनजाति अधिनियम – अंग्रेज अफसर घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे। वे गांव- गांव जाकर अपनी चीजें बेचने वाले कारीगरों व व्यापारियों और अपने रेवड के लिए हर साल नए – नए चारगाहों की तलाश में रहने वाले हर मौसम में अपनी रिहाइश बदल लेने वाले चरवाहों पर यकीन नहीं कर पाते थे। वे चाहते थे कि ग्रामीण जनता गांव में रहे, उनकी सियासी और खेतों पर उनके अधिकार तय हों।

इस तरह की आबादी की पहचान करना और उसको नियंत्रित करना ज्यादा आसान था जो एक जगह टिक कर रहते हो। ऐसे लोगों को शांति प्रिय और कानून का पालन करने वाला माना जाता था। घुमंतूओ को अपराधी माना जाता था।1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया। इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची रख दिया गया उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया।

4) चराई कर – अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने लगान वसूलने का हर संभव रास्ता अपनाया। उन्होंने जमीन नहरों के पानी, नमक, खरीद – फरोख्त की चीजों और यहां तक कि मवेशियों पर भी टैक्स वसूलने का ऐलान कर दिया। चरवाहों से चारागाहो में चरने वाले एक – एक जानवर पर टैक्स वसूल किया जाने। देश के ज्यादातर चरवाहों इलाकों में 19वीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। प्रति मवेशी टैक्स की दर तेजी से बढ़ती चली गई।

प्रश्न 3 – मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छीन गए? कारण बताएं। आधुनिक विश्व में चरवाहे

उत्तर – औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, उधर आने – जाने पर बदीशे लगने लगी। मासाई समुदाय चरागाहों का 60% भाग खो दिया। चरवाहों को एक स्थान पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। विशेष परमिट के बिना उन्हें कहीं भी आने-जाने की अनुमति नहीं थी। औपनिवेशिक कार ने स्थानीय किसान लोगों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जिसके कारण मासाई लोगों की चरागाहे खेत खत्म हो गई।

1885 में ब्रिटिश कीनिया और जर्मन के बीच एक अंतरराष्ट्रीय सीमा खींचकर मासाई लैंड के दो बराबर – बराबर टुकड़े कर दिए गए। बाद के सालों में सरकार ने गोरों को बसने के लिए बेहतरीन चरागाहो को अपने कब्जे में ले लिया। बहुत सारे चरागाह को शिकारगाह बना दिया गया। कीनिया में मासाई, मारा व सामबुरू नेशनल पार्क और ताजिया में सेरेगेटी पार्क जैसी शिकारगाह इसी तरह अस्तित्व में आए थे। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों का आना मना था। इन इलाकों में ना तो वह शिकार कर सकते थे और ना अपने जानवरों को चरा सकते थे। 14,760 किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्रफल मसाईयो के चरगाहों गांव पर कब्जा करके बनाया गया था।

प्रश्न 4 – आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों में जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएं थी।ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों दोनों के बीच सामान्य रूप से मौजूद थे।

उत्तर – भारत और अफ्रीका दोनों ने ही जंगलों को यूरोपीय शासकों के द्वारा आरक्षित कर दिया। चरवाहों को जंगलों में जाने की अनुमति नहीं थी। उन्हें जंगलों को आरक्षित किया गया जहां पर खानाबदोश चरागाह अधिक थे। भारत और पूर्वी अफ्रीका के चरवाहा समुदाय के लोग घुमंतू थे। इसलिए औपनिवेशिक शासन के लोग उन्हें संदेह की नजर से देखते थे।

यही कारण उनके पतन का हिस्सा बना। दोनों स्थानों के चरवाहा समुदाय अपनी जगह इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि वहां पर खेती को अधिक महत्व दिया जाने लगा था। चरागाहों के पतन और चरवाहों के लिए समस्या का कारण बना। अफ्रीका में भी मासाई लोगों के द्वारा चारागाहे से जगह छीन ली गई। खेतों को बढ़ाने के लिए उन्हें स्थानीय किसानों समुदायों के रूप में बदल दिया गया।

 

अध्याय-1: भारत आकार और स्थिति

 

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