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Chapter 9: आनुवंशिकता एवं जैव विकास

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आनुवंशिकता एवं जैव विकास

आनुवंशिकता एवं जैव विकास (Genetics and Evolution)

आनुवंशिकता और जैव विकास जीवविज्ञान के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक है। यह विषय जीवन के विकास और गुणसूत्रों की संरचना के आधार पर उत्पन्न होने वाली विविधताओं और विकास के बारे में समझ प्रदान करता है। इस अध्याय में आनुवंशिकता (Genetics) के सिद्धांतों, गुणसूत्रों, डीएनए, जीन, और विकास (Evolution) की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला जाता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

आनुवंशिकता (Genetics) क्या है?

आनुवंशिकता जीवन के गुणसूत्रों द्वारा आनुवांशिक गुणों के स्थानांतरण और प्रसार की प्रक्रिया को कहा जाता है। यह अध्ययन करता है कि कैसे गुणसूत्र (Chromosomes) और जीन (Genes) हमारे शारीरिक और मानसिक लक्षणों को पीढ़ी दर पीढ़ी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक منتقل करते हैं। आनुवंशिकता के सिद्धांतों की नींव ग्रेगोर मेंडेल ने रखी थी।

मेंडेल के आनुवंशिकता के सिद्धांत (Mendel’s Laws of Inheritance)

ग्रेगोर मेंडेल ने आनुवंशिकता के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों की खोज की, जिनकी मदद से हम यह समझ सकते हैं कि गुणसूत्रों के माध्यम से गुणों का प्रसार कैसे होता है। मेंडेल ने मटर के पौधों पर प्रयोग करके निम्नलिखित दो प्रमुख सिद्धांतों की खोज की:

  1. पहला सिद्धांत (Law of Dominance):
    इस सिद्धांत के अनुसार, कुछ गुण (Alleles) दूसरे गुणों पर हावी होते हैं। यदि किसी गुणसूत्र में दो प्रकार के जीन होते हैं, तो हावी जीन का प्रभाव प्रकट होता है जबकि अदृश्य जीन का प्रभाव नहीं दिखाई देता।
  2. दूसरा सिद्धांत (Law of Segregation):
    इस सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक गुणसूत्र में दो जीन होते हैं, और जब गुणसूत्रों का विभाजन होता है, तो हर एक जीन स्वतंत्र रूप से एक गुणसूत्र में स्थानांतरित हो जाता है।

गुणसूत्र और जीन (Chromosomes and Genes)

गुणसूत्र (Chromosomes) कोशिका में उपस्थित संरचनाएँ हैं जो आनुवंशिक जानकारी को संग्रहित करती हैं। प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्रों का एक विशिष्ट संख्या होती है, जो प्रजातियों के अनुसार भिन्न होती है। मनुष्य में 46 गुणसूत्र होते हैं, जो 23 जोड़ियों में विभाजित होते हैं।

जीन (Genes) गुणसूत्रों पर स्थित छोटे-छोटे खंड होते हैं जो विशेष लक्षणों या गुणों के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये जीन अगली पीढ़ी में गुणसूत्रों के माध्यम से स्थानांतरित होते हैं और शारीरिक लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

डीएनए (DNA)

डीएनए (डिऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड) गुणसूत्रों का प्रमुख घटक है, जो आनुवंशिक जानकारी का संग्रहण और प्रसार करता है। डीएनए की संरचना दो घुमावदार स्ट्रैंड्स से बनी होती है, जो एक दूसरे से जुड़ी होती हैं और इसमें चार प्रकार के न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं: एडेनाइन (A), थायमिन (T), साइटोसिन (C), और गुआनाइन (G)। डीएनए के माध्यम से ही गुणसूत्रों के जीन की जानकारी अगली पीढ़ी में जाती है।

विकास (Evolution)

विकास वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जीवन के विभिन्न रूपों में समय के साथ परिवर्तन आता है। यह जैविक रूप से उत्पन्न होती है और अनुकूलन, प्राकृतिक चयन, और उत्परिवर्तन जैसी घटनाओं के माध्यम से विकसित होती है। विकास का सिद्धांत सबसे पहले चार्ल्स डार्विन ने प्रस्तुत किया, जिसे “प्राकृतिक चयन का सिद्धांत” (Theory of Natural Selection) कहा जाता है।

  1. प्राकृतिक चयन (Natural Selection):
    चार्ल्स डार्विन के अनुसार, जीवों में उत्पन्न होने वाली विविधताएँ पर्यावरण के अनुरूप होती हैं। जो जीव अपने पर्यावरण के अनुसार अनुकूल होते हैं, वही जीव बचते हैं और प्रजनन करते हैं, जबकि जो अनुकूल नहीं होते, वे समाप्त हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को प्राकृतिक चयन कहते हैं।
  2. उत्परिवर्तन (Mutation):
    उत्परिवर्तन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी जीव के गुणसूत्रों में अचानक बदलाव आता है। यह बदलाव जीवन के गुणसूत्रों के संरचनात्मक या कार्यात्मक हिस्सों में हो सकता है। उत्परिवर्तन से नए लक्षण उत्पन्न होते हैं, जो कभी-कभी विकास में सहायक होते हैं।
  3. अनुकूलन (Adaptation):
    अनुकूलन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जीव अपने वातावरण के अनुसार अपनी संरचना, आकार, और व्यवहार में बदलाव करता है ताकि वह अपने अस्तित्व को बनाए रख सके। उदाहरण के लिए, ऊंट की झुकी हुई आंखें उसे रेगिस्तान के तेज़ रेत के तूफान से बचाती हैं।

विकास के प्रमाण (Evidence of Evolution)

विकास के कई प्रमाण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि जीवन समय के साथ विकसित हुआ है। इनमें से कुछ प्रमुख प्रमाण निम्नलिखित हैं:

  1. जीवाश्म (Fossils):
    जीवाश्म जीवों के प्राचीन अवशेष होते हैं, जो हमें यह बताते हैं कि प्राचीन समय में कौन-कौन से जीव थे और वे समय के साथ कैसे बदल गए। जीवाश्मों के अध्ययन से विकास की प्रक्रिया को समझा जा सकता है।
  2. सामान्य संरचना (Homologous Structures):
    कुछ जीवों के अंगों में समान संरचनाएँ होती हैं, लेकिन उनका उपयोग अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, मानव हाथ, बैट की पंख और व्हेल की पूंछ का हड्डियों का ढांचा समान होता है, जो एक सामान्य पूर्वज के होने का संकेत है।
  3. आनुवंशिक समानताएँ (Genetic Similarities):
    विकास का एक महत्वपूर्ण प्रमाण आनुवंशिक समानताएँ हैं। विभिन्न प्रजातियों के डीएनए में समानताएँ पाई जाती हैं, जो यह दर्शाती हैं कि वे समान विकासात्मक मार्ग से विकसित हुए हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

आनुवंशिकता और जैव विकास जीवन की उत्पत्ति और विकास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। आनुवंशिकता के सिद्धांतों को समझने से हम जीवन के गुणसूत्रों, जीन और डीएनए के कार्यों को जान सकते हैं, जबकि विकास की प्रक्रिया हमें यह समझने में मदद करती है कि समय के साथ जीवन के विभिन्न रूपों में कैसे परिवर्तन आया है। विकास के सिद्धांतों का अध्ययन न केवल जैविक रूप से जीवन के अस्तित्व को समझने में मदद करता है, बल्कि यह हमें जीवन के संरक्षण और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी जागरूक करता है।

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