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कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर:जीवन परिचय !

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर: एक महान शिक्षाविद और सामाजिक सुधारक

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर (1857-1932) भारत के एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद, लेखक, और सामाजिक सुधारक थे। वे मराठी साहित्य में अपने योगदान और अपने प्रेरणादायक कार्यों के लिए जाने जाते हैं। केलुस्कर ने अपने जीवन में शिक्षा और समाज में सुधार लाने के लिए अद्भुत योगदान दिया। उनकी लेखनी और समाज-सेवा ने भारतीय समाज को नई दिशा दी।

प्रारंभिक जीवन

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर का जन्म 1857 में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका बचपन अत्यंत साधारण परिस्थितियों में बीता। उनके माता-पिता किसान थे, और उनका परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। कठिन परिस्थितियों के बावजूद, केलुस्कर ने अपनी शिक्षा को प्राथमिकता दी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई।

शिक्षा के प्रति समर्पण

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर को बचपन से ही पढ़ने और सीखने का गहरा शौक था। उन्होंने आत्मनिर्भरता और आत्मविकास के महत्व को समझा। कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की और अपने ज्ञान को समाज के कल्याण के लिए उपयोग करने का निश्चय किया। उन्होंने इंजीनियरिंग और साहित्य के क्षेत्र में विशेष रुचि ली।

लेखन और साहित्यिक योगदान

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर मराठी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें “राजा शिवाजी” उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है। यह पुस्तक मराठी भाषा में लिखी गई और छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन और उनके वीरता पूर्ण कार्यों पर आधारित है। इस पुस्तक ने महाराष्ट्र में राष्ट्रीयता और स्वाभिमान की भावना को प्रबल किया।

उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास, और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी लेख लिखे। उनके लेखन का उद्देश्य समाज को शिक्षित करना और उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना था।

सामाजिक सुधार कार्य

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर केवल लेखक ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों, और जाति-पाति के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनके विचारों में शिक्षा का प्रमुख स्थान था, और वे मानते थे कि शिक्षा ही समाज की प्रगति का आधार है।

उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर विशेष जोर दिया। उस समय महिलाओं की शिक्षा को समाज में अधिक महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन केलुस्कर ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने निचले तबके के लोगों को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाने का प्रयास किया।

महात्मा गांधी पर प्रभाव

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर का प्रभाव महात्मा गांधी पर भी पड़ा। गांधीजी ने उनकी पुस्तक “राजा शिवाजी” पढ़ी और इससे प्रेरित हुए। यह पुस्तक गांधीजी के जीवन में राष्ट्रीयता और स्वाभिमान की भावना को प्रबल करने में सहायक सिद्ध हुई। केलुस्कर और गांधीजी के बीच गहरी विचारधारा की समानता थी।

शिक्षा के लिए योगदान

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने शिक्षा को समाज सुधार का सबसे महत्वपूर्ण साधन माना। उन्होंने विभिन्न शिक्षा संस्थानों की स्थापना की और शिक्षा के प्रसार के लिए काम किया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया, जहां उस समय शिक्षा का अभाव था।

उनका मानना था कि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को आत्मनिर्भर, जागरूक, और नैतिक बनाती है। उन्होंने मराठी भाषा में सरल और प्रभावी शिक्षा सामग्री तैयार की, ताकि आम लोग भी इसे आसानी से समझ सकें।

प्रेरणा और विरासत

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर का जीवन प्रेरणा का स्रोत है। उनकी कृतियों और समाज-सेवा ने अनेक लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने यह साबित किया कि एक व्यक्ति भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है, बशर्ते वह अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो।

उनकी विरासत आज भी जिंदा है। उनके विचार, उनकी पुस्तकें, और उनके कार्य आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। केलुस्कर ने शिक्षा और समाज सुधार के माध्यम से जो बीज बोए थे, वे आज एक वृक्ष के रूप में खड़े हैं।

निष्कर्ष

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर एक महान शिक्षाविद, लेखक, और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने कार्यों से भारतीय समाज को नई दिशा दी। उनके जीवन और कार्यों से यह सिखने को मिलता है कि शिक्षा और सामाजिक सुधार के माध्यम से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है। उनकी पुस्तकें, उनके विचार, और उनकी प्रेरणादायक कहानियां आज भी हमें प्रगति की ओर बढ़ने का संदेश देती हैं।

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्करका जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक समर्पित और जागरूक व्यक्ति समाज में कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता है। उनका योगदान भारतीय समाज के लिए सदैव स्मरणीय रहेगा।

Summary  of Article 

कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर (20 अगस्त, 1860 – 14 अक्टूबर, 1934) एक मराठी लेखक थे। वेंगुरल्या के एक गांव केलुस में पैदा हुए कृष्णराव अर्जुन केलुस्कर को मराठी में पहला शिव जीवनी लेखक कहा जाता है। [उद्धरण वांछित] उन्होंने बुद्ध की जीवनी भी लिखी। केलुस्कर जाति से मराठा थे। एक समाज सुधारक तथा महान सहयोगी शिक्षक जिन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को वजीफे के लिए बडौदा नरेश गायकवाड़ से मिलवाया। गुरु जी केलुसकर अम्बेडकर को एक पार्क में अक्सर पढ़ता हुआ देखते थे।

उनकी शिक्षा ग्रहण करने की लगन से वे बहुत प्रभावित हुए और भीम राव से स्नेह करने लगे। सन् 1907 में एक अछूत का मैट्रिक पास कर लेना एक साधारण बात नहीं थी। बम्बई के अछूतों ने भीमराव का साहस बढ़ाने के लिए उन्हें बधाई देने के लिए एक सभा का आयोजन किया। इस सभा में विल्सन हाई स्कूल के मुख्य अध्यापक मा. कृष्णाजी अर्जुन केलुसकर भी शामिल हुए, जो एक प्रसिद्ध समाज सेवक भी थे। इस अवसर पर गुरु केलुस्कर ने ‘भगवान गौतम बुद्धाचे चरित्र’ नामक पुस्तक भीमराव को भेंट की।

इस अवसर पर सूबेदार जी ने घोषणा की, भले ही मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, परंतु फिर भी मैं भीमराव को उच्च शिक्षा दिलवाने कर दृढ़ निश्चय रखता हूँ। भीमराव बम्बई के एल्फींसटन कॉलेज में प्रविष्ट हो गए। एक अछूत का कॉलेज में प्रविष्ट होना उस समय एक अनहोनी सी बात थी। सूबेदार रामजीराव सकपाल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। उनमें भीमराव को अब शिक्षा दिलवाने का सामर्थ्य नहीं रहा था। ऐसा लगता था कि अब सूर्य को चमकने का अवसर नहीं मिलेगा।

ऐसे में मास्टर कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर एक सच्चे सहायक के तौर पर सामने आए। महाराजा बड़ोदा ने परिश्रमी व योग्य छात्रों को आर्थिक सहायता की घोषणा कर रखी थी। माननीय केलुसकर जी भीमराव को महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के पास ले गये। महाराज ने भीमराव से कुछ प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने ठीक-ठीक उत्तर दिया। अत: महाराजा गायकवाड़ ने भीमराव की उच्च शिक्षा के लिए 25 रुपये मासिक छात्रवृति स्वीकृत कर दी।

बड़े प्यार से बाबासाहब अम्बेडकर को जिस कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर शिक्षक ने स्वलिखित ‘भगवान गौतम बुद्धाचे चरित्र’ भेंट की थी, उनका 14 अक्टूबर 1934 में देहान्त हुआ था। उनके धम्मप्रेम को यादगार करने का बाबा साहेब के लिए यह उचित दिन रहा। इसलिए तारीख- 14 अक्टूबर के दिन धर्मान्तर समारोह तय किया गया था। 14 अक्टूम्बर 1956 को इस दिन माता कचहरी के मैदान में पाँच लाख से भी अधिक अनुयायियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।

बौद्ध जगत के महान विद्वान और भिक्षुगण उपस्थित हुए थे। अब इस जगह को दीक्षा भूमि के नाम से जाना जाता है। अन्याय, गुलामी, विषमता और परस्पर द्वेष फैलाने वाले तानाशाही हिन्दू धर्म से स्थाई रिश्ता खत्म करने का समय करीब आ चुका था। छुआछूत की लानत ने कॉलेज मे भी उनका पीछा नही छोड़ा। कालेज की कँटीन का मलिक एक ब्राह्मण था। इस लिए भीमराव अंबेडकर को कँटीन से चाय तो क्या पानी भी नही दिया जाता था। परन्तु अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर भीमराव आंबेडकर हिंदू घर्म की रूढिवादित्ता की ओर से किए गए अपमान और निरूत्साहन का मुकाबला करते हुए विद्या प्राप्ति के पर्वत को लाँघते गए।

1912 में उन्होंने फारसी और अग्रेजी विषयों के साथ बम्बई यूनिवर्सिटी से बीए की परीक्षा पास की। वे ग्रेजुएट बनने वाले पहले अछूत थे। बाबासाहेब अम्बेडकर स्नातक परीक्षा पास करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे। उन्हीं दिनों महाराजा गायकवाड़ ने घोषणा कर रखी थी कि होनहार छात्रों को वे सहायता देकर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजेंगे। गुरु केलुस्कर अम्बेडकर को संयाजीराव गायकवाड़ के पास बड़ौदा लेकर गये।

महाराजा बड़ौदा ने अम्बेडकर से पूछा कि आप उच्च शिक्षा लेकर क्या करना चाहते हो? बाबा साहेब ने महाराजा को बताया कि मैं उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने समाज को ऊपर उठाने का कार्य करूंगा। महाराजा बड़ौदा डॉ. अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क भेजने के लिए सहमत हो गये और राज्य के खर्चे पर उनको तीन साल के लिए अमेरिका भेज दिया।

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