खाद्य संसाधन में सुधार की आवश्यकता
खाद्य संसाधनों में सुधार
खाद्य संसाधन किसी भी देश की आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय समृद्धि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में, खाद्य संसाधनों की गुणवत्ता और मात्रा को सुधारने की आवश्यकता और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। आइए इस विषय को विस्तार से समझें।
खाद्य संसाधनों का महत्व
खाद्य संसाधन वह आधारभूत सामग्री है जो मनुष्य को ऊर्जा, पोषण और जीवन के लिए आवश्यक तत्व प्रदान करती है। कृषि, पशुपालन, और मछली पालन जैसे क्षेत्र खाद्य संसाधनों के मुख्य स्रोत हैं। इन संसाधनों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और सुधारना आवश्यक है ताकि जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ इनकी मांग को पूरा किया जा सके।
खाद्य संसाधनों में सुधार के मुख्य क्षेत्र
- फसल उत्पादन में सुधार
- फसल उत्पादन में सुधार का अर्थ है कृषि तकनीकों, उपकरणों और संसाधनों का उपयोग कर फसलों की उत्पादकता को बढ़ाना। इसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
(i) उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग: • उच्च गुणवत्ता वाले और रोग प्रतिरोधक बीज फसल उत्पादन में सुधार के लिए अनिवार्य हैं। • इन बीजों का चयन वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर किया जाना चाहिए।
(ii) सिंचाई प्रणाली का सुधार: • परंपरागत सिंचाई प्रणालियों को ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक प्रणालियों से बदलने की आवश्यकता है। • पानी की बचत और फसलों को उचित मात्रा में जल प्रदान करने के लिए यह महत्वपूर्ण है।
(iii) जैविक खाद और उर्वरकों का संतुलित उपयोग: • मृदा की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैविक और रासायनिक खाद का संतुलित उपयोग आवश्यक है। • अत्यधिक उर्वरक के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता खराब हो सकती है।
(iv) फसल चक्र (Crop Rotation): • विभिन्न प्रकार की फसलों को एक क्रम में उगाने से मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जा सकती है।
- फसल उत्पादन में सुधार का अर्थ है कृषि तकनीकों, उपकरणों और संसाधनों का उपयोग कर फसलों की उत्पादकता को बढ़ाना। इसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
- पशुपालन में सुधार
- पशुपालन कृषि का अभिन्न हिस्सा है और यह खाद्य संसाधनों में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसे बेहतर बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
(i) उच्च नस्ल के पशुओं का चयन: • अधिक दूध उत्पादन और मांस उत्पादन के लिए उच्च गुणवत्ता वाली नस्लों का चयन करना।
(ii) पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल: • पशुओं को नियमित टीकाकरण और पोषक आहार प्रदान करना। • बीमारियों की रोकथाम के लिए समय पर उपचार।
(iii) आधुनिक तकनीकों का उपयोग: • पशुओं के प्रजनन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान और जेनेटिक सुधार तकनीकों का उपयोग।
- पशुपालन कृषि का अभिन्न हिस्सा है और यह खाद्य संसाधनों में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसे बेहतर बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- मछली पालन और जलीय कृषि में सुधार
- जल संसाधनों के बेहतर उपयोग से मछली पालन और जलीय कृषि में सुधार संभव है।
(i) उन्नत मछली पालन तकनीकें: • मछलियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक विधियों का उपयोग।
(ii) जलीय पर्यावरण की देखभाल: • जल के प्रदूषण को कम करना और मछलियों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना।
(iii) पोषक तत्वों का संतुलन: • मछलियों को उच्च गुणवत्ता वाला आहार प्रदान करना।
- जल संसाधनों के बेहतर उपयोग से मछली पालन और जलीय कृषि में सुधार संभव है।
खाद्य संसाधनों के संरक्षण के उपाय
खाद्य संसाधनों में सुधार के साथ-साथ उनके संरक्षण की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- खाद्य अपव्यय को रोकना:
- हर साल बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थ बर्बाद हो जाते हैं। इस अपव्यय को रोकने के लिए: • बेहतर भंडारण सुविधाओं का विकास। • लोगों को जागरूक करना।
- पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना:
- जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। • रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का सीमित उपयोग।
- भंडारण और प्रसंस्करण में सुधार:
- उचित भंडारण प्रणाली जैसे कोल्ड स्टोरेज का उपयोग।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार।
- जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा अधिक पोषण और उत्पादकता वाली फसलें तैयार करना।
खाद्य संसाधनों में सुधार के लिए सरकार की भूमिका
सरकार खाद्य संसाधनों में सुधार के लिए कई नीतियां और कार्यक्रम चला रही है। इनमें प्रमुख हैं:
- हरित क्रांति (Green Revolution):
- उन्नत तकनीक, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, और सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से फसल उत्पादन बढ़ाना।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM):
- यह मिशन मुख्य रूप से चावल, गेहूं और दालों की उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
- जैविक खेती को प्रोत्साहन:
- रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग को कम कर जैविक खाद को बढ़ावा देना।
- मछली पालन और डेयरी विकास योजनाएं:
- मत्स्य पालन और पशुपालन क्षेत्र में सरकारी सहायता प्रदान करना।
खाद्य संसाधनों में सुधार की चुनौतियां
खाद्य संसाधनों में सुधार के लिए कुछ चुनौतियां भी हैं, जिन्हें दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन:
- बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा फसलों और पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- भू-क्षरण:
- कृषि भूमि का ह्रास और मिट्टी की उर्वरता का कम होना।
- प्रौद्योगिकी की कमी:
- कई क्षेत्रों में किसान आधुनिक कृषि तकनीकों से अनभिज्ञ हैं।
- कृषि में निवेश की कमी:
- छोटे किसानों के पास सीमित संसाधन होते हैं, जिससे वे नई तकनीकों को अपनाने में असमर्थ रहते हैं।
NCERT SOLUTIONS
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न. 159)
प्रश्न 1 – अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है?
उत्तर :- अनाज जैसे गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा तथा ज्वार से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है। दालें जैसे चना, मटर, उड़द, मूंग, अरहर, मसूर से प्रोटीन प्राप्त होती है। फल तथा सब्जियों से हमें विटामिन तथा खनिज लवण, कुछ मात्रा में प्रोटीन वसा तथा कार्बोहाइड्रेट भी प्राप्त होते हैं।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न. 160)
प्रश्न 1 – जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?
उत्तर :- जैविक (रोग, कीट तथा निमेटोड) ये फसल के उत्पादन को नष्ट करते हैं अर्थात सफल को खराब करते हैं। अजैविक (सूखा, क्षारता, जलाक्रांति, गर्मी, ठंड तथा पाला ये सभी परिस्थितियां फ़सल के उत्पादन को कम करती है।
प्रश्न 2 – फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या है?
उत्तर :- फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण चारे वाली फसलों के लिए लंबी तथा सघन शाखाएं ऐच्छिक गुण है। अनाज के लिए बौने पौधे उपयुक्त हैं ताकि इन फसलों को उगाने के लिए कम पोषकों की आवश्यकता हो। इस प्रकार सस्य विज्ञान वाली किसमें अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं।
प्रश्न 3 – वृहत् पोषक क्या है और इन्हें वृहत् – पोषक क्यों कहते हैं?
उत्तर :- जैसे हमें विकास, वृद्धि तथा स्वस्थ रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है वैसे ही पौधों को भी वृद्धि के लिए पोषक पदार्थों की आवश्यकता होती है। पौधों को पोषक पदार्थ हवा पानी तथा मिट्टी से प्राप्त होता है। जो अन्य पोषक पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होते हैं तथा जिनमे से कुछ की अधिक मात्रा चाहिए उन्हें वृहत् पोषक कहते हैं। जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर।
प्रश्न 4 – पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर :- पौधों को पोषक पदार्थ हवा, पानी तथा मिट्टी से प्राप्त होता है। जैसे हवा से कार्बन, ऑक्सीजन तथा पानी से हाइड्रोजन, ऑक्सीजन पोषक प्राप्त होता है।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न. 162)
प्रश्न 1 – मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।
उत्तर :- खाद में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है तथा यह मिट्टी को अल्प मात्रा में पोषक प्रदान करते हैं। खाद को जंतुओं के अपशिष्ट तथा पौधों के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है। खाद मिट्टी को पोषकों तथा कार्बनिक पदार्थों से परिपूर्ण करती है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है। खाद में कार्बनिक पदार्थों की अधिक मात्रा मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है। उर्वरक व्यवसायिक रूप में तैयार पादप पोषक है।
उर्वरक नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम प्रदान करते हैं। इनके उपयोग से अच्छी कायक वृद्धि होती है और स्वस्थ पौधों की प्राप्ति होती है। अधिक उत्पादन के लिए उर्वरक का उपयोग होता है परंतु यह आर्थिक दृष्टि से महंगे पड़ते हैं। उर्वरक का सतत प्रयोग मिट्टी की उर्वरता को घटाता है क्योंकि कार्बनिक पदार्थ की पुनः पूर्ति नहीं हो पाती तथा इससे सूक्ष्म जीव एवं भूमिगत जीवों का जीवन चक्र अवरुद्ध होता है। इसके उपयोग द्वारा फसलों का अधिक उत्पादन कम समय में प्राप्त होता है परंतु यह मृदा की उर्वरता को कुछ समय के पश्चात हानि पहुंचाते हैं जबकि खाद के उपयोग के लाभ दीर्घावधि है।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न 165)
प्रश्न 1 – निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा? क्यों?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई न करे अथवा उर्वरक का उपयोग न करें।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करे, उर्वरक का उपयोग करें तथा फ़सल सुरक्षा की विधियां अपनाएं।
उत्तर :- किसान को अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करना चाहिए, सिंचाई अच्छे से करनी चाहिए, अधिक उत्पादन के लिए उर्वरक का उपयोग करना चाहिए तथा फ़सल विधियां भी सही अपनानी चाहिए क्योंकि एक अच्छी फ़सल के लिए यह भी जरूरी है कि हम अच्छा बीज चुने, उस फसल की उचित देखभाल करे, उगी फ़सल की सुरक्षा करे साथ में कटी हुई फ़सल को हानि से बचाए।
प्रश्न 2 – फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियां तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?
उत्तर :- फसल के लिए इनका उपयोग इसलिए अच्छा समझा जाता है ताकि जो भी कारक इसमें शामिल हो वह मर जाए और फ़सल को कोई नुकसान न हो। इसमे नियंत्रण सफाई, फ़सल को अच्छी तरह सुखाना तथा धूमक का उपयोग भी सम्मिलित है।
प्रश्न 3 – भंडारण की प्रक्रिया में कौन से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर :- भंडारण की प्रक्रिया में जैविक कारक कीट, कृंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु है तथा अजैविक कारक भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी व ताप का आभाव है।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न 165)
प्रश्न 1 – पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर :- पशुओं की नस्ल सुधार के लिए संकरण विधि का उपयोग किया जाता है जिसमे रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। यह इसलिए कराया जाता है ताकि पशुओं को एक ऐसी संतान प्राप्त हो जिसमें दोनों ऐच्छिक गुण जोकि रोग प्रतिरोधक क्षमता व लम्बा दुग्धस्रवण काल शामिल हो।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न 167)
प्रश्न 1 – निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए:-
“ यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते है”।
उत्तर :- भारत में कृषि के द्वारा जो भी खाद्य पदार्थ या विभिन्न पशु पालन के द्वारा उच्च पोषकता या प्रोटीन के आहार उत्पन्न किए जाते है वे अल्प रेशो के पदार्थों में गिने जाते हैं जोकि मनुष्य का आहार या प्रोटीन पूरा नहीं कर पाते, जिसे परिपूर्ण रूप से मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता। इसलिए अंडे व कुक्कुट मास के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मुर्गी पालन किया जाता है जोकि प्रोटीन की उत्पादकता को बढ़ाते हैं।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न 168)
प्रश्न 1 – पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबंधन प्रणाली में क्या समानता है?
उत्तर :- पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं। इसके अंतर्गत बहुत से कार्य आते हैं जैसे भोजन देना, प्रजनन करना और पशु में रोगों का नियंत्रण करना। उनकी साफ सफाई रखना, उनको अच्छे से चारा डालना। जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे दूध, मास, अंडे की खपत भी बढ़ रही है। पशुपालन में दो उद्देश्य है दूध देने वाले पशु तथा कार्य करने वाले पशु। जैसे पशुपालन में दो प्रकार का पशु पालन किया जाता है ऐसे ही कुकुट पालन में दो प्रकार के मुर्गी पालन किए जाते हैं। अंडों के लिए अंडे देने वाली मुर्गी पालन किया जाता है तथा मांस के लिए ब्रौलर पालन किया जाता है।
प्रश्न 2 – ब्रौलर तथा अंडे देने वाली लेयर में क्या अंतर है। इनके प्रबंधन के अंतर को भी स्पष्ट करो।
उत्तर :- ब्रौलर को मास के लिए तथा अंडे देने वाली लेयर को मुर्गी के लिए पाला जाता है। ब्रौलर की आवास, पोषण तथा पर्यावरणीय आवश्यकताएं अंडे देने वाली लेयर से भिन्न होती है। ब्रौलर के आहार में प्रोटीन तथा वसा प्रचुर मात्रा में होता है तथा अंडे देने वाली लेयर में विटामिन A तथा विटामिन K की मात्रा भी अधिक रखी जाती है।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न 169)
प्रश्न 1 – मछलियां कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर :- मछली प्राप्त करने की दो विधियां है:- एक प्राकृतिक स्रोत जिसे मछली पकड़ना कहते हैं तथा दूसरा स्त्रोत मछली पालन जिसे मछली संवर्धन कहते हैं।
प्रश्न 2 – मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ है?
उत्तर :- मछली संवर्धन में ऐसी मछलियों को चुना जाता है जिनमे आहार के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं होती क्योंकि उनके आहार भिन्न -भिन्न होते है। ये सभी मछलियां साथ रहते हुए भी बिना स्पर्धा के अपना आहार ले लेती है। इससे मछली के उत्पादन में भी वृद्धि होती है।
पाठ के बीच में आए प्रश्न (पेज न 170)
प्रश्न 1 – मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन से ऐच्छिक गुण होने चाहिए?
उत्तर :- मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में यह गुण होना चाहिए कि वे कम डंक मारती हो, निर्धारित छत्ते में काफी समय तक रहती हो और प्रजनन तीव्रता से करती हो।
प्रश्न 2 – चरागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे संबंधित है?
उत्तर :- चरागाह से अभिप्राय मधु एकत्र करने वाली फूलों की उपलब्धता से है। जहा मधुमक्खियां फूलों से मकरंद तथा पराग एकत्र करती है। चरागाह की पर्याप्त उपलब्धता के अतिरिक्त फूलों की किस्में मधु के स्वाद को निर्धारित करती है।
अभ्यास प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1 – फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर :- अधिक लाभ और अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए हम फसल उगाने के विभिन्न विधियों का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन उनमें से प्रमुख हैं, मिश्रित फसल जिसमें दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक साथ ही खेत में उगाते हैं। जैसे गेहूं+चना, गेहूं+सरसों। इससे हानि होने की संभावना भी कम होती है क्योंकि फसल के नष्ट हो जाने पर भी फसल उत्पादन की आशा बनी रहती है। इसके साथ ही हम अंतराफसलीकरण जिसमें दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न पर उगाते है।
कुछ पंक्तियों में एक प्रकार की फसल तथा उनके एकांतर में स्थित दूसरी पंक्ति में दूसरी प्रकार की फसल उगाते हैं जैसे सोयाबीन+मक्का, बाजरा+लोबिया। इस विधि द्वारा पीड़क एवं रोगों को एक प्रकार के फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है और दोनों फसलों से अच्छा उत्पादन और पैदावार को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 2 – खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर :- खेतों में खाद का उपयोग मिट्टी को पोषकों, कार्बनिक पदार्थो से परिपूर्ण करने तथा उसकी उर्वरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। खाद में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है तथा यह मिट्टी को अल्प मात्रा में पोषक प्रदान करते हैं। उर्वरक का उपयोग अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है।
प्रश्न 3 – अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ है?
उत्तर :- अंतराफसलीकरण में दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न पर उगा सकते है। इससे पीड़क व रोगों को एक प्रकार की फ़सल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है। इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। फ़सल के नष्ट होने पर भी फ़सल उत्पादन की आशा बनी रहती है। किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों के उगाने को फ़सल चक्र कहते हैं।
फ़सल चक्र खरपतवार को नियंत्रण करने में सहायक होती है। यदि फ़सल चक्र उचित ढंग से अपनाया जाए तो एक वर्ष में दो अथवा तीन फसलों से अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। यह मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ाता है।
प्रश्न 4 – आनुवंशिक फेरबदल क्या है? कृषि प्रणालियों में ये कैसे उपयोगी है?
उत्तर :- फसल की किस्मों या प्रभेदों के लिए विभिन्न उपयोगी गुणों जैसे रोगप्रतिरोधक क्षमता, उर्वरक के प्रति अनुरुपता, उत्पादन की गुणवत्ता तथा उच्च उत्पादन का चयन प्रजनन द्वारा कर सकते हैं। फसलों की किस्मों में ऐच्छिक गुणों को संकरण द्वारा ढाला जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप अनुवांशिक फ़सल प्राप्त होती है। इससे फ़सल की उत्पादकता बढ़ती है। जैविक तथा अजैविक के कारण होने वाली परेशानियों को खत्म कर फ़सल उत्पादन में सुधार होता है। यह प्रक्रिया फ़सल को सरल बनाता है तथा कटाई के दौरान होने वाली वाली फ़सल की हानि को कम करता है।
प्रश्न 5 – भंडार गृहों में अनाज की हानि कैसे होती है?
उत्तर :- कृषि उत्पाद के भंडारण में बहुत हानि हो सकती है। इस हानि के जैविक कारक कीट, कृंतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु है तथा इस हानि के अजैविक कारक भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी व ताप का अभाव है। यह कारक उत्पाद की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं, वजन कम कर देते हैं तथा अंकुरण करने की क्षमता कम कर देते हैं। उत्पाद को बदरंग कर देते हैं। यह सब लक्षण बाजार में उत्पाद की कीमत को कम कर देते हैं। इन कारको पर नियंत्रण पाने के लिए उचित उपचार और भंडारण का प्रबंध होना चाहिए।
प्रश्न 6 – किसानों के लिए पशु पालन प्रणालियां कैसे लाभदायक है?
उत्तर :- पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते है। इसके अंतर्गत बहुत से कार्य जैसे:- भोजन देना, प्रजनन तथा रोगों पर नियंत्रण करना आता है। पशुपालन से लोगों को एक आय प्राप्त करने का साधन प्राप्त हो जाता है जिसका ज्यादातर किसान लाभ उठाते हैं। अर्थात दूध देने, कृषि करने जैसे हल चलाना, सिंचाई करना, बोझा ढोना के लिए पशुओं को पाला जाता है।
प्रश्न 7 – पशु पालन के क्या लाभ है?
उत्तर :- पशु पालन की दूध उत्पादन करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। डेयरी इसका एक उदाहरण भी है। साथ में घर में ही हमें बिना मिलावट वाले दूध की प्राप्ति होती है। गोबर के उपले प्राप्त होते हैं। जिससे गैस में भी बचत होती है। खेतों में भी पशुओं का विभिन्न प्रकार के कामों में उपयोग किया जाता है। कुछ इसलिए पशु पालन करते है ताकि उन्हें मांस की प्राप्ति हो सके। उस मांस को बेच सके और धन प्राप्त कर सके। पहले वाले समय में और अब भी पशुओं का उपयोग यातायात के साधनों में भी किया जाता है। लोग अच्छी तरह से गाय-भैसो़ को खिला पिलाकर उन्हें स्वस्थ, तरो – ताज़ा रखते हैं। उनका अच्छे से ख्याल रखते हैं। उनके पालन पोषण से उन्हें ज्यादा मात्रा में दूध तो प्राप्त होता ही है साथ में वे गाय- भैसों को बेचते हैं और अच्छा मुनाफा प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 8 – उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएं हैं?
उत्तर :- गर्मी अनुकूलन क्षमता, उच्च तापमान
आवास में उचित ताप तथा स्वच्छता का निर्धारण
रोगों तथा पीड़कों पर नियंत्रण
अच्छी प्रबंधन प्रणालियां
प्रश्न 9 – प्रग्रहण मत्स्यन, मेरिकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अंतर है?
उत्तर :- प्रग्रहण मत्स्यन से अभिप्राय है जिसमें मछलियों का संवर्धन समुंद्र तथा ताज़े जल के पारिस्थितिक तंत्रो से किया जाता है। जैसे जाल से पकड़ना, चारा ढाल कर पकड़ना प्राकृतिक स्त्रोत जिसे मछली पकड़ना कहलाते हैं। जिसमें पंखयुक्त मछलियां, कवचीय मछलियां जैसे प्रॉन तथा मोलस्क सम्मिलित है।
मेरिकल्चर जिसमें कुछ आर्थिक महत्व वाली समुंद्री मछलियों का समुंद्री जल में संवर्धन भी किया जाता है। इनमें प्रमुख है मुलेट, भेटकी तथा पर्लस्पॉट, कवचीय मछलियां जैसे झींगा, मस्सल एवं साथ ही समुंद्री खर-पतवार। भविष्य में समुद्री मछलियों का भंडार कम होने की अवस्था में इन मछलियों की पूर्ति संवर्धन के द्वारा हो सकती है जो मेरिकल्चर की प्रणाली कहलाती है।
जल संवर्धन जैसे ताज़ा जल के स्त्रोत नाले, तालाब, पोखर तथा नदियां है। खारे जल के संसाधन, जहा समुद्री जल तथा ताज़ा जल मिश्रित होते हैं, जैसे कि नदी मुख तथा लैगून भी महत्वपूर्ण मत्स्य भंडारण है। जब मछलियों का प्रग्रहण अंत: स्थली वाले स्त्रोतों पर किया जाता है तो उत्पादन अधिक नहीं होता। इन स्त्रोतों से अधिकांश मछली उत्पादन जल संवर्धन द्वारा ही होता है।