11th Geography HM

अध्याय-14: जैव विविधता एवं संरक्षण

Class 11 Geography NCERT Solutions in Hindi

जैव विविधता

जैव विविधता एवं संरक्षण (Biodiversity and Conservation) पर आधारित 11वीं कक्षा की भूगोल की यह अध्याय, जैव विविधता के महत्त्व, उसके घटकों और संरक्षण के उपायों पर केंद्रित है। जैव विविधता से तात्पर्य है पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं, पौधों, और सूक्ष्मजीवों की प्रचुरता और उनके परस्पर संबंध। यह अध्याय छात्रों को विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में जैव विविधता के महत्व और इसके घटते स्तर के कारणों को समझने में मदद करता है, जैसे वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और मानवीय हस्तक्षेप।

साथ ही, इस अध्याय में जैव विविधता के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य, बायोस्फीयर रिजर्व और अन्य कानूनी उपायों का उल्लेख किया गया है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रयास, जैसे ‘जैव विविधता संधि’ और ‘वन्यजीव संरक्षण अधिनियम’, को भी विस्तार से समझाया गया है। जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

यह अध्याय छात्रों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने और जैव विविधता के संरक्षण में योगदान देने के लिए प्रेरित करता है।

जैव विविधता एवं संरक्षण

परिचय:- जैव विविधता एवं संरक्षण

  1. आज जो जैव – विविधता हम देखते हैं, वह 2.5 से 3.5 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है।
  2. मानव के आने से जैव – विविधता में तेजी से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति का आवश्यकता से अधिक उपयोग होने के कारण, वह लुप्त होने लगती है। 
  3. आज भारत में 66 राष्ट्रीय पार्क, 368 अभ्यारण्य 14 जैव आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserve) हैं। जहाँ विविधता को अक्षुण रखने का प्रयास जारी है।

जैव विविधता:-

जैव विविधता दो शब्दों Bio (बायो) व Diversity (डाईवर्सिटी) के मेल से बना है ‘ बायो ‘ का अर्थ है- जैव तथा डाईवर्सिटी का अर्थ है – विविधता अर्थात् किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या व उनकी विविधता को जैव विविधता कहते हैं।

जैव विविधता उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में अधिक है। जैसे – जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की ओर बढ़ते हैं प्रजातियों की विविधता कम होती जाती है। किंतु जीवधारियों की संख्या अधिक हो जाती है।

जैव विविधता को किन स्तरों पर समझा जा सकता है। 

जैव विविधता को निम्नलिखित तीन स्तरों पर समझा जा सकता है। 

  1. अनुवांशिक विविधता (Genetic Biodiversity):- अनुवांशिक जैव विविधता में किसी प्रजाति के जीवों का वर्णन किया जाता है। जीवन निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीव की विविधता ही अनुवांशिक जैव – विविधता है। 
  2. प्रजातीय विविधता (Species Biodiversity):- प्रजातीय विविधता किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की अनेक रूपता बताती है और प्रजातियों की संख्या से सम्बन्धित है। जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हे विविधता के हॉट – स्पॉट (HotSpots) कहते हैं। 
  3. पारितंत्रीय विविधता (Eco System Diversity):- पारितंत्रीय विविधता पारितंत्रो की संख्या तथा उनके वितरण से सम्बन्धित है। पारितंत्रीय प्रक्रियाएं, आवास तथा स्थानों की भिन्नता ही पारितंत्रीय विविधता बनाते हैं।

जैव – विविधता के आर्थिक महत्व:-

  1. सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव विविधता एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जैव – विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में समझा जा सकता है जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियों और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में होता है। जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव – विविधता के विनाश के लिए भी उत्तरदायी है।
  2. साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बंटवारे को लेकर उत्पन्न नए विवादों का भी जनक है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्व के उत्पाद है, जो मानव को जैव – विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।

जैव – विविधता के पारिस्थितिक महत्व:-

  1. जीव व प्रजातियां ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती है, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एंव विघटित करती हैं और परितंत्र में जल व पोषक तत्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं। ये वायुमंडलीय गैस को स्थिर करती हैं, और जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। 
  2. ये पारितंत्रीय क्रियाएं मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं। पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। जिस पारितंत्र मे जितनी अधिक प्रजातियां होगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा। 

जैव – विविधता के वैज्ञानिक महत्त्व:-

वैज्ञानिकों के अध्ययनों से वर्तमान में मिलने वाली जैव प्रजाति से हम यह जान सकते हैं कि जीवन का आरम्भ कैसे हुआ तथा भविष्य में यह कैसे विकसित होगा? पारितंत्र को कायम रखने में प्रत्येक प्रजाति की भूमिका का मूल्यांकन भी जैव – विविधता के अध्ययन से किया जा सकता है।

जैव विविधता के सम्मेलन में लिए गए संकल्पों में जैव – विविधता संरक्षण के लिए सुझाए गए उपाय:-

  1. संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए। 
  2. प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए उचित योजनाएं व प्रबंधन अपेक्षित हैं। 
  3. खाद्यानों की किस्में, चारे संबंधी पौधों की किस्में, इमारती लकडी के पेड़, पशुधन, जंतु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।
  4. प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को चिन्हित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए। 
  5. प्रजातियों के पलने – बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित होने चाहिए। 
  6. वन्य जीवों व पौधों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, नियमों के अनुरूप हो।

जैव – विविधता के हास को रोकने के उपाय:-

  1. संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। 
  2. प्रजातियों को लुप्त होने से बचाया जाए। 
  3. वनरोपण द्वारा पौधों की सुरक्षा करनी चाहिए। प्रदूषण पर नियंत्रण, कीटनाशकों के प्रयोग पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। 
  4. वन्य जीवों के आवास को चिन्हित करके उन्हें सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
  5. वन्य जीवों एवं पौधों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर रोक लगानी चाहिए।

जैव विविधता के द्वारा (विनाश) के कारण:- जैव विविधता एवं संरक्षण

जैव विविधता विनाश के निम्नलिखित कारण हैं:-

  • आवास में परिवर्तन
  • जनसंख्या में वृद्धि
  • विदेशज जातियां
  • प्रदूषण 
  • वनों का अतिदोहन
  • शिकार 
  • बाढ़ व भूकंप आदि।

प्रजाति:-

समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। 

  1. एक अनुमान के अनुसार संसार में कुल प्रजातियों की संख्या 20 लाख से 10 करोड़ के बीच है किंतु अभी तक एक करोड़ का ही सही अनुमान हो पाया है।
  2. एक अनुमान के अनुसार लगभग 99 % प्रजातियाँ, जो कभी पृथ्वी पर रहती थीं, आज विलुप्त हो चुकी हैं।

महाविविधता केन्द्र:-

ये उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र जहां संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है उन्हें महा – विविधता केन्द्र कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और इनके नाम है : मैक्सिको, कोलंबिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, डेमोक्रेटिक स्पिब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनशिया और आस्ट्रेलिया। इन देशों में समृद्ध महा – विविधता के केन्द्र स्थित हैं।

I.U.C.N:-

  1. पूरा नाम:- International Union For The Protection Of Nature 
  2. स्थापना:- 5 October 1948 – France 1956 में इसका नाम I.U.C.N कर दिया गया 
  3. I.U.C.N:- International Union For Conservation Of Nature (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ)

आई यू सी एन द्वारा प्रजातियों वर्गीकरण:-

  1. संकटापन प्रजातियां (Endangered Species):- इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेज (आई यू सी एन) विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियाँ के बारे में रेड लिस्ट (Red List) के नाम से सूचना प्रकाशित करता है।
  2. सूभेद्य प्रजातियां (Vulnerable Species):- इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं, किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्याधिक कम होने के कारण, इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है। 
  3. दुर्लभ प्रजातियां (Rare Species):- संसार में इन प्रजातियों की संख्या बहुत कम है। ये प्रजातियों कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़े क्षेत्र में विरल रूप से बिखरी हैं।

भारत सरकार ने विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने संरक्षित करने तथा उनके विस्तार के लिए किए गए उपाय:-

  1. भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने तथा उनके विस्तार के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:-
  2. वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम 1972 पारित किया है। जिसके अंतर्गत नेशनल पार्क, पशुविहार स्थापित किए हैं। 
  3. जीवमंडल आरक्षित क्षेत्रों ( BiosphereReserves ) की घोषणा की गई है जहाँ वन्य जीव अपने प्राकृतिक आवास में निर्भय होकर रह सकते हैं। तथा प्रजाति का विकास कर सकते हैं।

‘ हॉट – स्पॉट:-

जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है उन्हें विविधता के हॉट – सपॉट कहा जाता है।

विभिन्न महाद्वीपों में स्थित पारिस्थितिक हॉट स्पॉट ( ecological hotspots in the world ):-

महाद्वीप हॉट स्पॉट
दक्षिण एवं सेन्ट्रल अमेरिका 1. सेन्ट्रल अमेरिका की उच्च भूमि, निम्न भूमि 
2. पश्चिम इक्वाडोर तथा कोलंबियन काको 
3. उष्ण कटिबंधीय एंडीज 
4. अटलांटिक वन ब्राजील
अफ्रीका 1. पूर्वी मेडागास्कर 
2. पूर्वी चाप पर्वत + तंजानिया 
3. ऊपरी गिनी वन
एशिया 1. पश्चिम घाट, पूर्वी हिमालय, भारत 
2. सिंह राजा वन, श्रीलंका 
3. इन्डोनेषिया 
4. प्रायद्वीपीय मलेषिया 
5. फिलीपीन्स 
6. उत्तरी बोर्निया
आस्ट्रेलिया 1. क्वींस लैन्ड 
2. मेलेनेषिया ( न्यू कैलेडोनिया )

 

जैव विविधता एवं संरक्षण FAQs:

  1. जैव विविधता क्या है?
    जैव विविधता (Biodiversity) से तात्पर्य है पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न जीवों, पौधों, और सूक्ष्मजीवों की विविधता, जो अलग-अलग पारिस्थितिकी तंत्रों में पाई जाती है। इसमें जीन, प्रजातियाँ, और पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता शामिल होती है।
  2. जैव विविधता का संरक्षण क्यों जरूरी है?
    जैव विविधता का संरक्षण इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने, भोजन, औषधि, और जलवायु नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके घटने से पर्यावरण और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
  3. जैव विविधता के घटने के मुख्य कारण क्या हैं?
    वनों की कटाई, अत्यधिक शिकार, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और मानवीय गतिविधियों के कारण जैव विविधता घट रही है। आवासीय क्षेत्र का नुकसान और प्रजातियों का विलुप्त होना इसके प्रमुख परिणाम हैं।
  4. जैव विविधता संरक्षण के उपाय क्या हैं?
    राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य, बायोस्फीयर रिजर्व, और कानूनी उपाय जैसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, महत्वपूर्ण उपाय हैं। इसके साथ ही, जन जागरूकता और स्थायी विकास की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
  5. बायोस्फीयर रिजर्व क्या है?
    बायोस्फीयर रिजर्व ऐसे संरक्षित क्षेत्र होते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और अनुसंधान के लिए स्थापित किए जाते हैं। यहाँ मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।
  6. जैव विविधता संरक्षण में अंतरराष्ट्रीय प्रयास कौन से हैं?
    ‘जैव विविधता संधि’ और ‘रामसर कन्वेंशन’ जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौते जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं। इनका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर जैव विविधता की रक्षा और इसके टिकाऊ उपयोग को सुनिश्चित करना है।
  7. स्थानीय समुदाय जैव विविधता के संरक्षण में कैसे योगदान दे सकते हैं?
    स्थानीय समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों का उपयोग कर जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। वे वन्यजीवों और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के लिए जागरूकता फैला सकते हैं और संरक्षण परियोजनाओं में भाग ले सकते हैं।

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