12th Geography

अध्याय-5: भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास

 

भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास

नियोजन एवं सततपोषणीय विकास

नियोजन :-

नियोजन का तात्पर्य सोच विचार की प्रक्रिया, कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार करना तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गतिविधियों के क्रियान्वयन से है।

खण्डीय नियोजन :-

अर्थव्यस्था के विभिन्न सेक्टरों जैसे – कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना और उन्हें लागू करना।

प्रादेशिक नियोजन :-

देश के सभी क्षेत्रों में आर्थिक विकास समान रूप से नहीं हो पाता। इसलिए विकास का लाभ सभी को समान रूप से पहुँचाने के लिए योजनाकारों ने प्रदेशों की आवश्यकता के अनुसार नियोजन किया। इस प्रादेशिक नियोजन कहते हैं।

पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम :-

नेशनल कमेटी आन दि डेवलपमेंट ने 1981 में 600 मी . से अधिक की ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों को इस योजना के अन्तर्गत शामिल करने की सिफारिश की जो जनजातियों के लिए बने योजनाओं के अन्तर्गत न आते हो। इन क्षेत्रों की भूआकृति, पारिस्थितिकी, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति को ध्यान में रखकर विकास योजनायें बनायी जाती है।

पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम को बनाते समय किन बातों को ध्यान में रखा :-

  • सभी लोगों को लाभ मिले।
  • स्थानीय संसाधनों एवं प्रतिभाओं का विकास हो।
  • पिछड़े क्षेत्रों को व्यापार में शोषण से बचाना आदि।

सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम :-

  1. इस कार्यक्रम की शुरूवात चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई, 
  2. उददेश्य :- इसका उददेश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना था व उसके प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। 
  3. पांचवी पचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अंतर्गत अधिक श्रम की आवश्यकता वाले सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जा सके। 
  4. इसके अंतर्गत सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों वनीकरण, चारागाह विकास कार्यक्रम शुरू किये गये।
  5. गांवों में आधार भूत अवसंरचना – विद्युत, सड़कों, बाजार – ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर बल दिया गया। 
  6. इस क्षेत्र के विकास की रणनीति में जल, मिट्टी, पौधों, मानव तथा पशु जनसंख्या के बीच परिस्थितिकीय संतुलन, पुनः स्थापन पर ध्यान देने पर बल दिया गया।

भरमौर क्षेत्र विकास कार्यक्रम :-

  • यह क्षेत्र विकास योजना भरमौर क्षेत्र के निवासियों की जीवन गुणवत्ता को सुधारने व हिमाचल के अन्य प्रदेशों के समानान्तर विकास के उद्देश्य से शुरू की गई थी। 
  • इसके लिए निम्न कदम उठाये गये। 
  • आधारभूत अवसंरचनाओं जैसे विद्यालयों, अस्पतालों का विकास किया गया। 
  • स्वच्छ जल, सड़कों, संचार तंत्र एवं बिजली की उपलब्धता पर ध्यान दिया गया। 
  • कृषि के नये एवं पर्यावरण अनुकूल तरीकों को प्रोत्साहित किया गया। 
  • पशुपालन के वैज्ञानिक तरीकों को प्रोत्साहित किया गया।

समाजिक व आर्थिक प्रभाव :-

  • जनसंख्या में साक्षरता दर बढ़ी विशेषरूप से स्त्रियों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई। 
  • दालों एवं अन्य नगदी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई। 
  • कुरीतियों जैसे बाल – विवाह से समाज को मुक्ति मिली। 
  • लिंगानुपात में सुधार हुआ। 
  • लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हुई।

सतत् पोषणीय विकास :-

  • एक ऐसा विकास जो भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा आवश्यकता की पूर्ति हेतु किया जाता है, सतत् पोषणीय विकास कहलाता है। 
  • उदाहरण स्वरूप – भौम जल का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना कि जलस्तर अधिक नीचे न जाने पाये और वर्षा जल या धरातलीय जल रिस कर अन्दर चला जाये।

इंदिरा गांधी नहर सिंचाई के पर्यावरण पर प्रभाव :-

सकारात्मक प्रभाव :-

अब, लंबी अवधि के लिए मिट्टी की पर्याप्त उपलब्धता है। विभिन्न वनीकरण और चारागाह विकास कार्यक्रम अस्तित्व में आए। हवा के कटाव और नहर प्रणालियों की गाद में काफी कमी दर्ज की गई है। 

नकारात्मक प्रभाव :-

गहन सिंचाई और पानी के अत्यधिक उपयोग के कारण जल भराव और मिट्टी की लवणता की एक खतरनाक दर दर्ज की गई है।

इंदिरा गांधी नहर सिंचाई के कृषि पर प्रभाव :-

सकारात्मक प्रभाव :-

इस नहर की सिंचाई से खेती योग्य भूमि में वृद्धि हुई और फसल की तीव्रता बढ़ी। मुख्य वाणिज्यिक फसलों यानी गेहूं, चावल, कपास, मूंगफली ने सूखा प्रतिरोधी फसलों जैसे चना, बाजरा, और ज्वार की जगह ले ली। 

नकारात्मक प्रभाव :-

गहन सिंचाई भी जल जमाव और मिट्टी की लवणता का कारण बन गई है। इसलिए, निकट भविष्य में यह कृषि की स्थिरता को बाधित कर सकता है।

इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत् पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक उपाय :-

  • जल प्रबन्धन नीति का कठोरता से क्रियान्वयन करना।
  • सामान्यतः जल सघन फसलों को नहीं बोना चाहिए। 
  • कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम जैसे नालों को पक्का करना, भूमि विकास तथा समतलन और बाड़बन्दी पद्धति प्रभावी रूप से कार्यान्वित की जाए ताकि बहते जल की क्षति मार्ग में कम हो सके। 
  • जलाक्रान्त, वृक्षों की रक्षण मेखला का निर्माण और चारागाह विकास, पारितंत्र विकास से लिए अति आवश्यक है।

भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सततपोषणीय विकास: FAQs

प्रश्न 1: भारत में नियोजन का क्या अर्थ है, और यह कब शुरू हुआ?
उत्तर:
नियोजन का अर्थ है राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी उपयोग और प्राथमिकताओं का निर्धारण करके देश के विकास के लिए कार्ययोजना बनाना। भारत में नियोजन की प्रक्रिया 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के साथ शुरू हुई। यह योजना भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए बनाई गई थी।


प्रश्न 2: सततपोषणीय विकास का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सततपोषणीय विकास (Sustainable Development) का अर्थ है वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को समझौता किए बिना प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना। इसका उद्देश्य आर्थिक विकास, सामाजिक समानता, और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना है।


प्रश्न 3: भारत में नियोजन प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:

  1. केन्द्रीय नियोजन: अधिकांश योजनाएँ केंद्र सरकार द्वारा तैयार की जाती हैं।
  2. लक्ष्य आधारित: योजनाएँ विशिष्ट उद्देश्यों जैसे गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, और स्वास्थ्य में सुधार पर केंद्रित होती हैं।
  3. लोकलुभावन विकास: सभी वर्गों और क्षेत्रों को शामिल करने के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं।
  4. समाजवादी दृष्टिकोण: विकास में समानता और न्याय सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाता है।

प्रश्न 4: सततपोषणीय विकास के लिए भारत में कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं?
उत्तर:

  1. जनसंख्या वृद्धि: बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर दबाव।
  2. प्रदूषण: जल, वायु, और मृदा प्रदूषण में वृद्धि।
  3. गरीबी: सतत विकास के लाभ सभी तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।
  4. जलवायु परिवर्तन: अप्रत्याशित मौसम और प्राकृतिक आपदाएँ।
  5. संसाधनों का अति-उपयोग: जैसे जल, जंगल, और खनिजों का अत्यधिक दोहन।

प्रश्न 5: भारत में सततपोषणीय विकास के लिए कौन-कौन से प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन (National Solar Mission): नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  2. जल संरक्षण अभियान: जल संसाधनों का स्थायी उपयोग।
  3. स्वच्छ भारत मिशन: स्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार।
  4. हरित भारत अभियान: वनीकरण और जैव विविधता को संरक्षित करना।
  5. स्मार्ट सिटी परियोजना: शहरी क्षेत्रों में पर्यावरणीय संतुलन और टिकाऊ आधारभूत संरचना।

प्रश्न 6: भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ सततपोषणीय विकास के लिए कैसे सहायक रही हैं?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं ने सततपोषणीय विकास को ध्यान में रखते हुए संसाधनों के न्यायसंगत वितरण और पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) विशेष रूप से टिकाऊ और समावेशी विकास पर केंद्रित थी।


प्रश्न 7: ग्रामीण और शहरी नियोजन में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. ग्रामीण नियोजन: कृषि, सिंचाई, ग्रामीण उद्योग, और ग्रामीण बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित।
  2. शहरी नियोजन: यातायात प्रबंधन, आवास, स्वच्छता, और शहरी बुनियादी ढाँचे में सुधार।
  3. सामाजिक पहलू: ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना।
  4. पर्यावरणीय दृष्टिकोण: शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण और हरित क्षेत्र बढ़ाना।

प्रश्न 8: भारत में पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
उत्तर:

  1. हरित प्रौद्योगिकी: उद्योगों में पर्यावरणीय अनुकूल तकनीकों का उपयोग।
  2. जन जागरूकता: सतत विकास के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान।
  3. कचरा प्रबंधन: कचरे का पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण।
  4. संविधान और नीतियाँ: पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त कानूनों का पालन।
  5. नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: सौर, पवन, और बायोगैस जैसे ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना।

प्रश्न 9: सततपोषणीय विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य (SDGs) का भारत में क्या महत्व है?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्य (SDGs) भारत के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। इन लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छ जल, और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषय शामिल हैं। भारत ने इन लक्ष्यों को अपनी विकास नीतियों में शामिल किया है।


प्रश्न 10: भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC): जलवायु परिवर्तन के लिए रणनीतिक योजनाएँ।
  2. वनीकरण: वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण।
  3. नवीकरणीय ऊर्जा: सौर और पवन ऊर्जा को प्राथमिकता देना।
  4. सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को शामिल करके टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना।
  5. जलवायु शिक्षा: स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरणीय जागरूकता कार्यक्रम।

अध्याय-6: परिवहन तथा संचार

 

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