पर्यावरण और धारणीय विकास (भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास)
पर्यावरण ,धारणीय विकास का अर्थ एवं कार्य
धारणीय विकास : ऐसा विकास पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए हो और आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदुषणरहित हो जो भावी पीढ़ी के लिए स्वच्छ एवं अधिक संसाधन उपलब्ध कर सके तो इसे धारणीय विकास कहते हैं|
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन द्वारा धारणीय विकास की परिभाषा :
“ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं पूर्ति भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति में बिना समझौता किए पूरा करे|”
ब्रूटलैंड कमीशन द्वारा धारणीय विकास की परिभाषा : “हमारा नैतिक दायित्व है कि वर्त्तमान पीढ़ी को आगामी पीढ़ी द्वारा एक बेहतर पर्यावरण उतराधिकार के रूप में सौपा जाना चाहिए| कम से कम हमें आगामी पीढ़ी के जीवन के लिए अच्छी गुणवता वाली परिसंपतियों का भंडार छोड़ना चाहिए, जो कि हमें अपने पिछली पीढ़ी से विरासत के रूप में प्राप्त हुआ है|”
धारणीय विकास एवं आर्थिक विकास में अन्तर :
धारणीय विकास :
- धारणीय विकास में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में दीर्घकालीन वृद्धि होती है|
- इससे वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है|
- यह पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदुषण से बचाव पर विशेष बल देती है|
- इसमें प्राकृतिक पूँजी का उचित प्रयोग होता है जिससे भावी पीढ़ियों के हितों की रक्षा की जा सके|
आर्थिक विकास :
- इसमें प्रति व्यक्ति आय में दीर्घकालिक वृद्धि होती है|
- इसमें वर्त्तमान पीढ़ियों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है|
- यह पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदुषण को महत्व नहीं देती है|
- इसमें प्राकृतिक पूँजी का शोषण होता है|
धारणीय विकास के लिए अनिवार्य शर्ते :
- मानव जनसँख्या को पर्यावरण की धारण क्षमता के स्तर तक सिमित करना|
- प्रौद्योगिकी प्रगति आगत-कुशल होना चाहिए न कि आगत का उपभोग करने वाली|
- नवीकरणीय संसाधनों की प्राप्ति धारणीय आधार पर की जानी चाहिए|
- गैर-नवीकरणीय संसाधनों के रिक्तिकरण की दर नवीकरणीय प्रतिस्थापकों की संवृद्धि की दर से अधिक नहीं होनी चाहिए|
- प्रदुषण से उत्पन्न अक्षमताओं का सुधार किया जाना चाहिए|
धारणीय विकास की प्राप्ति के उपाय :
- अधिक से अधिक उर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों का उपयोग|
- बायोमास ईंधन के उपयोग के बजाय गैसों का प्रयोग|
- वन विनाश पर रोक|
- अधिक से अधिक जलीय विद्युत संयंत्रों की स्थापना|
- पारंपरिक व्यवहारों का उपयोग ताकि पर्यावरण की अनुकूलता बनी रहे|
- कृषि के लिए जैविक कम्पोस्ट का उपयोग और जैविक कृषि को बढ़ावा|
NCERT SOLUTIONS
अभ्यास (पृष्ठ संख्या 182-183)
प्रश्न 1 पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- किसी स्थान विशेष में मनुष्य के आस-पास भौतिक वस्तुओं जल, भूमि, वायु का आवरण, जिसके द्वारा मानव घिरा रहता है, को पर्यावरण कहते हैं।
प्रश्न 2 जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?
उत्तर- जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो पर्यावरण जीवन पोषण का अपना तीसरा और महत्वपूर्ण कार्य करने में असफल हो जाता है और इससे पर्यावरण संकट पैदा होता है।
प्रश्न 3 निम्न को नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें-
- वृक्ष।
- मछली।
- पेट्रोलियम।
- कोयला।
- लौह-अयस्क।
- जल।
उत्तर-
नवीकरणीय संसाधन | गैर-नवीकरणीय संसाधन |
वृक्ष | पेट्रोलियम |
मछली | पेट्रोलियम |
जल | लौह-अयस्क |
प्रश्न 4 आजकल विश्व के सामने _____________ और _____________ की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं।
उत्तर- आजकल विश्व के सामने वैश्विक उष्णता और ओजोन अपक्षय की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं।
प्रश्न 5 निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं?
- बढ़ती जनसंख्या।
- वायु प्रदूषण।
- जल प्रदूषण।
- सम्पन्न उपभोग मानक।
- निरक्षरता।
- औद्योगीकरण।
- शहरीकरण।
- वन क्षेत्र में कमी।
- अवैध वन कटाई।
- वैश्विक उष्णता।
उत्तर-
- बढ़ती जनसंख्या- बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण संकट का महत्त्वपूर्ण कारण है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास हुआ है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के कारण इन संसाधनों पर अतिरिक्त भार के कारण इनकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसके अतिरिक्त अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन पर्यावरण की धारणीय क्षमता से बाहर हो गया है।
- वायु प्रदूषण- वायु में ऐसे बाह्य तत्वों की उपस्थिति जो मनुष्य के स्वास्थ्य अथवा कल्याण हेतु हानिकारक हो, वायु प्रदूषण कहलाता है। वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का खूब प्रसार हो रहा है। वायु प्रदूषण से श्वसन तन्त्र सम्बन्धी रोग, त्वचा कैन्सर आँख, गले व फेफड़ों में खराबी व दूषित जल आदि समस्याएँ पैदा हो रही हैं। वायु प्रदूषण के कारण ही अम्लीय वर्षा होती है जो जीवों एवं पौधों के लिए हानिकारक है।
- जल प्रदूषण- जब जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ व गैसें एक निश्चित अनुपात से अधिक मात्रा में घुल जाते हैं तो ऐसा जल प्रदूषित कहलाता है। जल प्रदूषण के कारण मनुष्य को हैजा, अतिसार, बुखार व पेचिश आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
- सम्पन्न उपभोग मानक- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। जनसंख्या वृद्धि के कारण यहाँ उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों के पुनः सृजन की दर से बहुत अधिक है। अधिक उपभोग ने पर्यावरण पर दबाव बनाया है और इसी कारण से वनस्पति एवं जीवों की अनेक जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- निरक्षरता- भारत में अनपढ़ लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है। निरक्षरता मानव जाति के लिए एक अभिशाप है। निरक्षर मनुष्य के मानसिक स्तर का कम विकासे हो पाता है। वह नई तकनीक को सहजता से स्वीकार नहीं करता है। उसमें खोजी दृष्टिकोण नहीं होता है। निरक्षर व्यक्ति की उत्पादकता भी कम होती है। निरक्षर होने पर व्यक्ति देश के संसाधनों का उचित प्रकार से प्रयोग नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार निरक्षरता का शहरीकरण, औद्योगीकरण, आर्थिक संवृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है
- औद्योगीकरण- भारत विश्व का दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है। तीव्र औद्योगीकरण के कारण अनियोजित शहरीकरण प्रदूषण एवं दुर्घटनाएँ आदि परिणाम सामने आए हैं। तीव्र आर्थिक विकास के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ा है तथा अपशिष्ट पदार्थों का भी अधिक उत्पादन हुआ है जो पर्यावरण की धारणीय क्षमता से परे है।
- शहरीकरण- शहरीकरण तीव्र आर्थिक विकास का परिणाम है। शहर पर्यावरण को प्रमुख रूप से प्रदूषित करते हैं। कई शहर अपने पूरे गन्दे पानी और औद्योगिक अवशिष्ट कूड़े का 40% से 60% असंसाधित रूप से अपने पास की नदियों में बहा देते हैं। इसके अतिरिक्त शहरी उद्योग वातावरण को अपनी चिमनियों से निकलते धुएँ तथा जहरीली गैसों से प्रदूषित करते हैं। शहरीकरण से गाँवों की काफी जनसंख्या शहरों में आ गई है। शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ा है और अपशिष्ट पदार्थों के अधिक उत्पादन से पर्यावरण पर भी दबाव बढ़ा है। इसके अतिरिक्त शहरीकरण से जल व वायु प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।
- वन-क्षेत्र में कमी- भारत में प्रति व्यक्ति जंगल भूमि केवल 0.8 हैक्टेयर है, जबकि बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह संख्या 0.47 हैक्टेयर होनी चाहिए। वन-क्षेत्र में कमी से देश को प्रति वर्ष 0.8 मिलियन टन नाइट्रोजन, 1.8 मिलियन टन फॉस्फोरस और 26.3 मिलियन टन पोटैशियम का नुकसान होता है। इसके अतिरिक्त भूमि क्षय से 5.8 मिलियन टन से 8.4 मिलियन टन पोषक तत्वों की क्षति होती है। एक वर्ष की अवधि में औसत वर्ष का स्तर गिर गया है तथा ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी आई है।
- अवैध वन-कटाई- वनों के विनाश में औद्योगिक विकास, कृषि विकास, दावाग्नि, चरागाहों का विस्तार, बाँधों, सड़कों व रेलमार्गों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन जैव पदार्थों में सर्वप्रमुख हैं। अन्य जैव पदार्थ जैसे जीव-जन्तु, पशु तथा मानव; इस पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त यह अजैव पदार्थ जैसे मिट्टी से भी सम्बन्धित है। समस्त पर्यावरण इन्हीं तत्वों की सुचारु क्रिया-प्रणाली द्वारा सन्तुलन प्राप्त करता है। अत: यदि पर्यावरण के आधारभूत तत्व वन नष्ट हो जाते हैं तो पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है, जिसका प्रभाव जैव-जगत के विनाश का कारण बन सकता है।
- वैश्विक उष्णता- वैश्विक उष्णता पृथ्वी और समुद्र के औसत तापमान में वृद्धि को कहते हैं। भू-तापमान में वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के परिणामस्वरूप हुई है। वैश्विक उष्णता मानव द्वारा वन विनाश तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण होती है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन गैस तथा दूसरी गैसों के मिलने से हमारी भूमण्डल सतह लगातार गर्म हो रही है। बीसवीं शताब्दी के दौरान वायुमण्डल केऔसत तापमान में 0.6°C की बढ़ोतरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ पिघली है एवं समुद्र का जलस्तर बढ़ा है।
प्रश्न 6 पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर- पर्यावरण में निम्नलिखित कार्य हैं-
- यह संसाधनों की आपूर्ति करता है।
- यह अवशेष को समाहित कर लेता है।
- यह जननिक और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
- यह सौंदर्य विषयक सेवाएँ भी प्रदान करता है, जैसे कि कोई सुंदर दृश्य।
प्रश्न 7 भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें।
उत्तर- भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक निम्नलिखित हैं-
- वन कटाव के कारण वनस्पति की हानि।
- अधारी जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण।
- कृषि परिवर्तन।
- वन भूमि का अतिक्रमण।
- वाग्नि और अत्यधिक चराई।
- अनियोजित फसल चक्र।
प्रश्न 8 समझायें कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च क्यों होती है?
उत्तर- अवसर लागत का अर्थ किसी विकल्प का चुनाव अथवा निर्णय लेने में लगे लागत है। नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी व अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं। इसके साथ जुड़ी है पर्यावरण की अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत। जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रामक रोगों की घटनाएँ बढ़ी हैं। परिणामस्वरूप, व्यय भी बढ़ता जा रहा है। वैश्विक पर्यावरण मुद्दों जैसे, वैश्विक उष्णता और ओजोन क्षय ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है, जिसके कारण सरकार को अधिक व्यय करना पड़ा। इस प्रकार, नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च होती है।
प्रश्न 9 भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर- भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपाय निम्नलिखित हैं-
- मानव जनसंख्या को पर्यावरण की धारण क्षमता के स्तर तक सीमित करना होगा।
- प्रोद्योगिक प्रगति संसाधनों को संवर्धित करने वाली हो न कि उनका उपभोग करने वाली।
- नवीकरणीय संसाधनों का विदोहन धारणीय आधार पर हो ताकि किसी भी स्थिति में निष्कर्षण की दर पुनः सृजन की दर से कम हो।
- गैर-नवीकरणीय संसाधनों की अपक्षय दर नवीकरणीय संसाधनों के सृजन की दर से कम होनी चाहिए।
- प्रदूषण के कारण उत्पन्न अक्षमताओं पर रोक लगनी चाहिए।
प्रश्न 10 भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है- इस कथन के समर्थन में तर्क दें।
उत्तर- भूमि की उच्च गुणवता, नदियाँ व उपनदियों, हरे- भरे वन, भूमि के सतह के नीचे बहुतायत में उपलब्ध खनिज-पदार्थ, हिन्द महासागर का विस्तृत क्षेत्र. पहाड़ों की श्रृंखला आदि के रूप में भारत के पास पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन हैं। दक्षिण के पठार की काली मिट्टी विशिष्ट रूप से कपास को खेती के लिए उपयुक्त है। इसके कारण ही इस क्षेत्र में कपड़ा उद्योग केन्द्रित है। अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गंगा का मैदान है, जो कि विश्व के अत्यधिक उर्वर क्षेत्रों में से एक है और विश्व में सबसे गहन खेती और घनत्व जनसंख्या वाला क्षेत्र है। भारतीय वन वैसे तो असमान रूप से वितरित हैं, फिर भी वे उसकी अधिकांश जनसंख्या को हरियाली और उसके वन्य-जीवन को प्राकृतिक आवरण प्रदान करते हैं। देश में लौह-अयस्क, कोयला और प्राकृतिक गैस के भारी भंडार हैं केवल भारत में ही विश्व के समस्त लौह-अयस्क भंडार का 20 प्रतिशत उपलब्ध है। हमारे देश के विभिन्न भागों में बॉक्साइट, तांबा, क्रोमेट, हीरा, सोना, सीसा, भूरा कोयला, मैंगनीज, जिंक, युरेनियम इत्यादि भी मिलते हैं।
प्रश्न 11 क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर- प्राचीन काल में जब सभ्यता शुरू हुई थी, पर्यावरण संसाधनों की माँग और सेवाएँ उनकी पूर्ति से बहुत कम थीं। संक्षेप में प्रदूषण की मात्रा अवशोषण क्षमता के अन्दर थी और संसाधन निष्कर्षण की दर इन संसाधनों के पुनः सृजन की दर से कम थी। अत: पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न नहीं हुईं। लेकिन आधुनिक युग में जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या की पूर्ति के लिए औद्योगिक क्रान्ति के आगमन से उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों की पुन: सृजन की दर से बहुत अधिक हो गई है। इसके अलावा अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन अवशोषक क्षमता से ज्यादा हो गया है।
प्रश्न 12 इनके दो उदाहरण दें-
- पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग।
- पर्यावरणीय संसाधनों का दुरूपयोग।
उत्तर-
- पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग-
- बढ़ती सिंचाई तथा बाढ़ भंडारण जलाशयों के निर्माण नदियों के सूखने का कारण हैं।
- बढ़ती आबादी और उनकी बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर वनों की कटाई होती है। इससे मिट्टी की कटाव बढ़ जाता है तथा मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है।
- पर्यावरणीय संसाधनों का दुरूपयोग-
- डीजल और पेट्रोल के अतिरिक्त उपयोग ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों को कम कर रहे हैं।
- वृक्षों से लकड़ी प्राप्त की जाती है। खाना पकाने जैसे कार्यों के लिए पर्यावरण के अनुकूल वैकल्पिक ईंधन के बजाय लकड़ी का उपयोग करना वनों की कटाई को बढ़ावा देता है।
प्रश्न 13 पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाओं का वर्णन कीजिए। महत्त्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए। पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाएँ-
- यह संसाधनों की पूर्ति करता है।
- यह अवशेष को समाहित कर लेता है।
- यह जननिक एवं जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
- यह सौन्दर्य प्रदान करता है।
महत्त्वपूर्ण मुद्दे-
- वैश्विक उष्णता।
- ओजोन अपक्षय।
- वायु प्रदूषण।
- जल प्रदूषण।
- वन-कटाव।
- भू-अपरदन।
- अनेक महत्त्वपूर्ण संसाधनों का विलुप्त हो जाना।
पर्यावरणीय असंगतियाँ ठीक करने के लिए सरकार विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर है। जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रमण रोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, फलस्वरूप व्यय भी बढ़ा है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए। संसाधनों का पुनः सृजन करने वाली तकनीक का विकास करना चाहिए। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण पर नियन्त्रण लगाना चाहिए। इस प्रकार पर्यावरण सन्तुलन को बनाए रखने की अवसर लागत होती है।
प्रश्न 14 पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति-मांग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से पहले प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति मांग से अधिक थी। लेकिन, जनसंख्या विस्फोट और औद्योगिक क्रांति के साथ आज के परिवेश में, पर्यावरणीय संसाधनों की मांग इसकी आपूर्ति से कहीं ज्यादा है। इसलिए, उपलब्ध संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए मांग और आपूर्ति संबंधों में यह उत्क्रमण पर्यावरण संसाधनों की आपूर्ति मांग में उत्क्रमण है।
प्रश्न 15 वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें।
उत्तर- आज आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों का बहुत अधिक शोषण हो रहा है। भूमि पर निरन्तर फसलें उगाने में उसकी उत्पादकता कम होती जा रही है। खनिज पदार्थों जैसे–पेट्रोल, लोहा, कोयला, सोना-चाँदी आदि का खनन ज्यादा होने से उनके भण्डार में कमी होने लगी है। कारखानों और यातायात के साधनों से निकले धुएँ और गन्दगी न वायु एवं जल को प्रदूषित कर दिया है जिस कारण अनेक श्वसन एवं जल संक्रमित बीमारियों ने जन्म ले लिया है। अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन अवशोषण क्षमता से बाहर हो गया है। तीव्र एवं गहन विदोहन से अनेक प्राकृतिक संसाधन समाप्ति की ओर हैं। पर्यावरण क्षरण से वैश्विक उष्णता एवं ओजोन अपक्षय आदि चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं।
प्रश्न 16 भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें। भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है- एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में संपन्नता का कारण भी है। क्या यह सत्य है?
उत्तर- भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभाव भूमि अपक्षय तथा वायु प्रदूषण है।
- भूमि अपक्षय: भूमि की उर्वरता की क्रमिक लेकिन लगातार हानि को भूमि अपक्षय कहा जाता है। यह भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के संदर्भ में एक गंभीर चिंता के रूप में उभर रहा है। भूमि अपक्षय के लिए उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारण मृदा क्षरण, वनों की कटाई, खेती-बारी, अनुचित फसल चक्र आदि हैं।
- वायु प्रदूषण: भारत में, शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण व्यापक है जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है। अन्य क्षेत्रों में उद्योगों के भारी जमाव और थर्मल पॉवर संयंत्रों के कारण वायु प्रदूषण होता है। वाहन उत्सर्जन चिंता का प्रमुख कारण है क्योंकि यह धरातल पर वायु प्रदूषण का स्रोत है और आम जनता पर अधिकतम प्रभाव डालता है।
भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है। भारत में वन्य कटाव, जनसंख्या विस्फोट तथा व्यापक गरीबी का परिणाम है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब लोगों को अपनी जीविका अर्जन के लिए पेड़ों को काटने के लिए मजबूर किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में उत्पादन क्रियाओं में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग मौजूदा पर्यावरण अधोगति के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार है। पर्यावरण संबंधी क्रियाओं के प्रभाव पर दो अलग-अलग मत हैं। पहला मत औद्योगिक उत्पादन द्वारा भारत की समृद्धि का समर्थक है, जबकि दूसरा मत तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्र के कारण प्रदूषण के खतरे पर प्रकाश डालता है। यह समस्या तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण उत्पन्न होती है। वाहनों के आवागमन के विस्तार से शोर और वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है।
प्रश्न 17 धारणीय विकास क्या है?
उत्तर- धारणीय विकास वह प्रक्रिया है जो आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले दीर्घकालिक शुद्ध लाभों को वर्तमान तथा भावी पीढ़ी दोनों के लिए अधिकतम करती है।
प्रश्न 18 अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ सुझाइए।
उत्तर- मुझे अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की निम्नलिखित चार रणनीतियाँ उपयोग में लाना चाहिए-
- ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे- सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा।
- हरियाली में आई कमी को सुधारने के लिए वनीकरण को बढ़ावा देना।
- वाहनों में उच्चदाब प्राकृतिक गैस के प्रयोग को बढ़ावा देना।
- बेहतर सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं का निर्माण।
प्रश्न 19 धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें।
उत्तर- धारणीय विकास से अभिप्राय विकास की उस प्रक्रिया से है जो भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता को बिना कोई हानि पहुँचाए वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है। उपर्युक्त परिभाषा में आवश्यकता की अवधारणा का सम्बन्ध संसाधनों के वितरण से है। संसाधनों का वितरण इस प्रकार से हो कि सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए और सभी को बेहतर जीवन जीने का मौका मिले। सभी की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए संसाधनों के पुनर्वितरण की आवश्यकता होगी जिससे बुनियादी स्तर पर निर्धनों को भी लाभ हो। इस प्रकार की समानता का मापन आय, वास्तविक आय, शैक्षिक सेवाओं, देखभाल, सफाई, जलापूर्ति के रूप में किया जा सकता है।