बाबू मंगूराम मुंगोवालिया:जीवन परिचय!
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया (14 जनवरी, 1886 – 22 अप्रैल, 1980) थे। वे होशियारपुर जिले के मुगोवाल नामक गांव में चमड़े का व्यवसाय करने वाले एक परिवार में जन्में थे। उनके पिता उन्हें पढ़ाना-लिखाना चाहते थे, ताकि वे व्यवसाय में उनकी मदद कर सकें – जैसे अंग्रेजी में लिखे आर्डर पढ़कर। अपेक्षाकृत समृद्ध परिवार से आने के बावजूद, ‘नीची जाति’ में जन्म लेने के कारण उन्हें सामाजिक बहिष्करण का सामना करना पड़ा।
इसी कारण उन्हें अपने गांव के नज़दीक बजवारा में स्थित स्कूल को मैट्रिकुलेशन किये बगैर छोड़ना पड़ा। इसके बाद दोआब के अनेकानेक शुरूआती प्रवासियों की तरह, बेहतर जीवन की तलाश में मंगूराम 1909 में अमरीका पहुंच गए। उस समय, उत्तरी अमेरिका में रह रहे पंजाबी प्रवासी देश को स्वतंत्र करवाने के लिए एक क्रांतिकारी संगठन का गठन करने की योजना बना रहे थे। बाबू मंगूराम मुंगोवालिया भी 1913 में स्थापित ग़दर लहर के सक्रिय सदस्य बन गए। वे पांच क्रांतिकारियों के एक ग़दर दल के सदस्य थे, जिसे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह के लिए हथियार भारत पहुंचाने का कठिन काम दिया था।
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया -विदेश में पढ़ाई
1905 में पढ़ाई छोड़ पिताजी को इस बात के लिए मना लिया कि वह अमेरिका चला जाएगा। 1909 बाबूजी अमेरिका चले गए। 1913 में जो पंजाबी लोग कैलिफोर्निया में स्थापित हो चुके थे उन्होंने गदर आंदोलन शुरू किया। बाबूजी भी इस आंदोलन में शामिल हो गए।
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया- पहचान की खोज
1925 में भारत आ गए। गांव में पहुंचकर शिक्षा के महत्व को समझते हुए गांव में मीटिंग बुलाई और आदिधर्म स्कूल की स्थापना की, साथ ही आदिधर्म मंडल का गठन किया गया। वे ऐसी संस्था/संगठन का निर्माण करने के लिए उतावले थे जो समाज के सामाजिक व आर्थिक बदहाली को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए वचनबद्ध हो। इस कार्य के लिए उन्होंने पंजाब के दोआब एरिया का तूफानी दौरा किया। बाबूजी ने अपने भाषणों में ब्राह्मणवादी व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाई।
उनका मत था कि हम हिंदू नहीं है। हिंदू अपने धर्म का हिस्सा बनाकर अपने हितों की पूर्ति कर रहे हैं। इसलिए आदिधर्म की नींव रखी। प्रचार प्रसार के लिए साप्ताहिक पत्रिका ‘आदि डंका’ निकाली। 1930 में उर्दू संस्करण भी शुरू किया। आदिधर्म मंडल ने दलितों पर हो रहे अत्याचारों को अंग्रेज सरकार तक पहुंचाने के लिए अखबार द्वारा बीड़ा उठाया था।
बाबू मंगूराम मुगोवालिया ने पंजाब में वही भूमिका निभाई जो जोतीराव फुले ने महाराष्ट्र में निभाई थी। महाराष्ट्र में फुले ने शूद्रादिशूद्र आंदोलन की परिकल्पना की और उसे प्रारंभ किया। इसी तरह पंजाब में बाबू मंगूराम मुंगोवालिया ने अछूतों के आंदोलन की परिकल्पना की और उसे अमली जामा पहनाया। फुले महाराष्ट्र के शूद्रादिशूद्रों को देश के मूलनिवासी मांनते थे। मंगूराम का भी पंजाब के अछूतों के बारे में यही विचार था। अगर फुले पर इंग्लैंड में जन्मे अमरीकी राजनैतिक कार्यकर्ता, विचारक, दार्शनिक और क्रांतिकारी थामस पेन (1737-1809) के लेखन का प्रभाव था तो मंगूराम ने समानता और आजादी का सबक अमरीका के प्रजातांत्रिक और उदारवादी मूल्यों से सीखा था।
वे अमरीका में अपने प्रवास के दौरान क्रांतिकारी स्वाधीनता संग्राम सेनानियों, जिन्हें ऐतिहासिक गदर लहर के गदरी बाबाओं के नाम से जाना जाता था, के संपर्क में रहे थे। इससे भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से मुक्त कराकर आमजनों को गरिमापूर्ण जीवन सुलभ कराने का उनका संकल्प और मजबूत हुआ। वे चाहते थे कि भारत में ब्रिटिश राज का स्थान प्रजातांत्रिक और समतावादी होमरूल ले जिसमें हर व्यक्ति को उसकी जाति, वर्ग, पंथ, भाषा, लिंग व रहवास के स्थान से परे समानता और स्वतंत्रता हासिल हो।
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया-सायमन कमीशन
1928 में बाबूजी के नेतृत्व में एक दल सायमन कमीशन से मिला और अछूतों के साथ हो रहे अत्याचार, सामाजिक और आर्थिक गैरबराबरी के बारे में मेमोरेंडम (मांग-पत्र) दिया। बाबूजी को लाहौर मिलने के लिए आमंत्रित किया गया। बाबूजी ने मांगपत्र में माँग की कि आदिधर्म के लोग न तो हिंदू है ना मुसलमान और ना ही सिक्ख। हिंदू हमारी गिनती अपने में मिलाकर हमारे हिस्से की रोटी अंग्रेजी सरकार से मांगकर स्वयं खा रहे हैं। आदि धर्म की रैली को साइमन कमीशन से भेंट करने से रोका गया। फलस्वरूप पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। 1931 की जनगणना में बड़ी संख्या में अछूतों ने अपना धर्म आदिधर्म लिखवाया।
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया-यूनिक स्टाईल
यहाँ इस घटना का जिक्र करना जरूरी है कि जब बाबूजी गवर्नर से मिलने लाहौर गए तो वह अपने साथ एक कुर्सी लेकर गए। कुर्सी को सिर पर उठाकर घूमने लगे। गवर्नर साहब ने बाबूजी को अपनी मांगों के संबंध में बातचीत के लिए दफ्तर में बुलाया। बाबूजी वैसे ही सिर पर कुर्सी उठाए गवर्नर साहब के समक्ष पेश हुए। गवर्नर साहब ने उनको कुर्सी नीचे रखकर बैठने के लिए कहा तो बाबूजी का जवाब था कि कुर्सी कहाँ रखूं, हमारे नाम तो जमीन ही नहीं है, जहाँ हम कुर्सी रखकर बैठ सकें। बाबूजी ने गवर्नर को अछूतों की मांगों और उनके हक अधिकारों को उनकी जनसंख्या के आधार पर देने की मांग की।
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया-और डॉ अंबेडकर
1945 में बाबूजी होशियारपुर से एमएलए चुने गए। बहुजन समाज के अधिकारों की मांग का नेतृत्व बाबूजी ने किया और इन अधिकारों को कानून का दर्जा डॉ अंबेडकर जी ने संविधान में दिया। 22 अप्रैल 1980 को बाबू जी का निधन हो गया।