12th Econimics

अध्याय-2: भारतीय अर्थव्यवस्था (1950 – 1990 )

भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 – 1990

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था , पंचवर्षीय योजनाएँ (Five Year Plans):

प्रत्येक पाँच वर्ष के लिए सरकार विकास कार्यों को तय समय सीमा में पूरा करने लिए सामूहिक रूप से कुछ योजनाएँ तैयार करती है जिसमें इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम एवं नीतियों का निर्धारण किया जाता है| चूँकि ये योजनाएँ पाँच वर्ष के लिए होती है इसलिए इन्हें पंचवर्षीय योजनाएँ कहते है| 

पंचवर्षीय योजनाएँ के लक्ष्य

  • आर्थिक नियोजन (Economic Planning): आर्थिक नियोजन एक प्रक्रिया है जिसमें केन्द्रीय संस्थागत अधिकारी देश की आवश्यकताओं और साधनों को ध्यान में रखते हुए कुछ आवश्यक लक्ष्यों के समूह को निर्धारित करता है और एक निश्चित समयावधि में आर्थिक संवृद्धि तथा विकास के निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करता है| 
  • योजना आयोग (Planning Commission) : योजना आयोग भारत सरकार वह केन्द्रीय अधिकारी है जो देश के संवृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक कार्यक्रमों का निर्धारण करता है और अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ पंचवर्षीय योजनाओं को निर्माण करता है| 

योजना आयोग की स्थापना : 1950

योजना आयोग की का अध्यक्ष : भारत का प्रधानमंत्री 

वर्त्तमान में मोदी सरकार के आने के बाद योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया है| फ़रवरी 2015 में इसका नाम बदलकर नीति आयोग (NITI Aayog) कर दिया गया है| 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था

 पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमे “क्या उत्पादन किया जाए”, “कैसे उत्पादन किया जाए” और “किसके लिए उत्पादन किया जाए” जैसे निर्णय बाजार की शक्तियाँ मांग और पूर्ति लेती है|  

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण :

  • आर्थिक विकास की तीव्र होती है|
  • इसमें स्वहित का पोषण होता है| 
  • उत्पादन से साधनों पर निजी क्षेत्र का अधिकार होता है|

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अवगुण :

  • ये सामाजिक तथा सामुहिक हितों का उपेक्षा करता है| 
  • इसमें बाजार की अनिश्चितताओं के कारण निर्धन वर्ग वर्ग की स्थित दयनीय रहती है| 

समाजवादी अर्थव्यवस्था

 समाजवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमे “क्या उत्पादन किया जाए”, “कैसे उत्पादन किया जाए” और “किसके लिए उत्पादन किया जाए” जैसे निर्णय उस देश की सरकार द्वारा लिया जाता है|

नियोजन के दीर्घकालीन लक्ष्य –

  • संवृद्धि (Growth) : संवृद्धि का अर्थ दीर्घकाल में GDP में वृद्धि की स्थित से है, जिससे लोगों के औसत जीवन स्तर में वृद्धि होती है| 
  • विकास (Development) : विकास से अभिप्राय: अर्थव्यस्था में साम्य तथा रचनात्मक परिवर्तनों के साथ संवृद्धि से है| 
  • साम्य (Equity) : साम्य का अर्थ आय में सामानांतर वितरण से है ताकि संवृद्धि के लाभों का हिस्सा समाज के सभी वर्गों को प्राप्त हो| 
  • आधुनिकरण (Modernisation) : जब हम संवृद्धि की प्रक्रिया में आधुनिक प्रौद्योगिकी तंत्रों को उन्नत करते है और अपनाते हैं तो ऐसी स्थित को आधुनिकरण कहते हैं| 
  • आत्म-निर्भरता (self-sufficiency) : यहाँ आत्मनिर्भरता का अर्थ है की हम जिन वस्तुओं का आयात करते है उनका अपने ही देश में उत्पादन करना| भारत का यह एक दीर्घकालीन लक्ष्य है की हम हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने|

NCERT SOLUTIONS  अभ्यास (पृष्ठ संख्या 34-35)

प्रश्न 1 योजना की परिभाषा दीजिए।

उत्तर- योजना इसकी व्याख्या करती है कि किसी देश के संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए। योजना के कुछ सामान्य तथा कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं, जिनको एक निर्दिष्ट समयावधि में प्राप्त करना होता है।

प्रश्न 2 भारत ने योजना को क्यों चुना?

उत्तर- 1947 ई. (स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात्) में भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन तथा पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी। कृषि ही जीवन-निर्वाह का मुख्य साधन थी किंतु कृषि की अवस्था अत्यधिक दयनीय थी। अर्थव्यवस्था के द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र अविकसित थे और देश की बहुत बड़ी जनसंख्या घोर निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रही थी। अर्थव्यवस्था मुख्यत: माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों पर आधारित थी। जिसका परिणाम था-निर्धनता, असमानता एवं गतिहीनता। ऐसी अर्थव्यवस्था को बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। अतः इन समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए भारत ने ‘नियोजन’ का मार्ग अपनाया।

प्रश्न 3 योजनाओं के लक्ष्य क्या होने चाहिए?

उत्तर- योजनाओं के निम्नलिखित लक्ष्य होने चाहिए: संवृद्धि, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता। सीमित संसाधनों के कारण प्रत्येक योजना में ऐसे लक्ष्यों का चयन करना पड़ता है, जिनको प्राथमिकता दी जानी है। योजनाकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि जहाँ तक संभव हो, चारों उद्देश्यों में कोई अंतर्विरोध न हो।

प्रश्न 4 उच्च पैदावार वाली किस्म (HYV) बीज क्या होते हैं?

उत्तर- उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) को चमत्कारी बीज कहते हैं। इन बीजों का प्रयोग करने से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है।

प्रश्न 5 विक्रय अधिशेष क्या हैं?

उत्तर- किसानों द्वारा उत्पादन का बाजार में बेचा गया अंश ही ‘विक्रय अधिशेष’ कहलाता है।

विक्रय अधिशेष = किसानों द्वारा उत्पादित कुल कृषि उत्पादन – कृषि उत्पादन का स्वयं उपभोग

प्रश्न 6 कृषि क्षेत्रक में लागू किए गए भूमि सुधार की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या करो।

उत्तर- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत भारत में मूलत: एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था ही बनी रही। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या, जो गाँवों में बसी थी, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि के माध्यम से ही रोजी-रोटी कमा रही थी परंतु फिर भी कृषि क्षेत्र में न तो संवृद्धि हुई और न ही समता रह गई। इन्हीं सब कारणों से भूमि सुधार की आवश्यकता पड़ी। कृषि क्षेत्रक में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं

  1. देश में कृषि क्षेत्रक में बिचौलियों का उन्मूलन किया गया।
  2. वास्तविक कृषकों को ही भूमि का स्वामी बनाया गया।
  3. किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण किया गया।
  4. नई तकनीक के प्रयोग पर बल दिया गया।

मध्यस्थों के उन्मूलन का परिणाम यह हुआ कि लगभग 2 करोड़ काश्तकारों को सरकार से सीधा संपर्क हो गया तथा वे जमींदारों द्वारा किए जा रहे शोषण से मुक्त हो गए।

प्रश्न 7 हरित क्रांति क्या है? इसे क्यों लागू किया गया और इससे किसानों को कैसे लाभ पहुँचा? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

उत्तर- हरित क्रांति का तात्पर्य उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) के प्रयोग से है, विशेषकर गेहूँ तथा चावल उत्पादन में वृद्धि से इसे इसलिए लागू किया गया क्योंकि स्वतंत्रता के समय देश की 75 प्रतिशत जनसँख्या कृषि पर आधारित थी। इस क्षेत्रक में उत्पादकता बहुत ही कम थी, क्योंकि पुरानी प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता था और अधिसंख्य किसानों के पास आधारिक संरचना का भी नितांत अभाव था। भारत की कृषि मानसून पर निर्भर है।

यदि मानसून स्तर कम होता था तो किसानों को कठिनाई होती थी, क्योंकि उन्हें सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध न थीं। यह सुविधा कुछ ही किसानों के पास थी उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) के प्रयोग से खाद्यान्न के उत्पादन में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है तथा हरित क्रांति काल में किसानों द्वारा गेहूँ तथा चावल के अतिरिक्त उत्पादन का अच्छा खासा भाग बाजार में बेचा गया था। भारत ने अनाज में आत्म-निर्भरता तथा आत्म-विश्वसनीयता प्राप्त की है।

प्रश्न 8 योजना उद्देश्य के रूप में ‘समानता के साथ संवृद्धि’ की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य हैं-संवृद्धि, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता। संक्षेप में, आयोजन से जनसामान्य के जीवन-स्तर में सुधार होना चाहिए। केवल संवृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के द्वारा ही जनसामान्य के जीवन-स्तर में सुधार नहीं आ सकता। किसी देश में उच्च संवृद्धि दर और विकसित प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने के बाद भी अधिकांश लोग गरीब हो सकते हैं।

यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आर्थिक समृद्धि के लाभ देश के निर्धन वर्ग को भी सुलभ हों, केवल धनी लोगों तक ही सीमित न रहें। अतः संवृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के साथ-साथ समानता भी महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक भारतीय को भोजन, अच्छा आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करवाने में समर्थ होना चाहिए और धन-वितरण की असमानताएँ भी कम होनी चाहिए। संक्षेप में, आर्थिक संवृद्धि, समानता के अभाव में अर्थहीन होती है।

प्रश्न 9 ‘क्या रोजगार सृजन की दृष्टि से योजना उद्देश्य के रूप में आधुनिकीकरण विरोधाभास पैदा करता है?’ व्याख्या कीजिए।

उत्तर- नहीं, रोजगार सृजन की दृष्टि से योजना उद्देश्य के रूप में आधुनिकीकरण विरोधाभास पैदा नहीं करता है। बल्कि, आधुनिकीकरण तथा रोगगार सृजन दोनों सकारात्मक रूप से संबंधित हैं। नई प्रौद्योगिकी को अपनाकर वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को बढ़ाना ही आधुनिकीकरण है। उदाहरण के लिए, किसान पुराने बीजों के स्थान पर नई किस्म के बीजों का प्रयोग कर खेतों की पैदावार बढ़ा सकता है। उसी प्रकार, एक फैक्ट्री नई मशीनों का प्रयोग कर उत्पादन बढ़ा सकती है।

ससे रोजगार सृजन के अवसरों में कटौती नहीं होता बल्कि यह श्रमशक्ति को बढ़ावा देता है। जरूरत इस बात की होती है कि मानव संसाधन का प्रशिक्षण हो। आधुनिक तकनीक तथा यंत्र का प्रयोग उत्पादकता को बढ़ाएगा और परिणामस्वरूप, लोगों की आय बढ़ने से वस्तुओं और सेवाओं के माँग में भी वृद्धि होगी। इस बढती माँग की पूर्ति के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। अधिक से अधिक लोगों की नियुक्ति होगी तथा रोजगार सृजन के अवसर में भी वृद्धि होगी। इस प्रकार, आधुनिकीकरण और रोजगार सृजन दोनों विरोधाभास नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न 10 भारत जैसे विकासशील देश के रूप में आत्मनिर्भरता का पालन करना क्यों आवश्यक था?

उत्तर- आत्मनिर्भरता का अर्थ है-देश अपनी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए पर्याप्त मात्रा में अतिरेक उत्पन्न करे और अपने आयातों का भुगतान करने के लिए सक्षम हो। जो देश अपने आयातों का भुगतान अपने उत्पादन के निर्यातों द्वारा करते हैं, वे आत्मनिर्भर देश कहलाते हैं। विकासशील देश समाान्यतः आत्मनिर्भर नहीं हैं क्योंकि उनके निर्यात उनके आयातों का भुगतान करने के लिए अपर्याप्त हैं। एक विकासशील देश के रूप में भारत को आत्मनिर्भरता का पालन करना-निम्नलिखित कारणों से आवश्यक था।

  • विदेशी सहायता देश की आंतरिक प्रयास क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
  • विदेशी सहायता विकास विरोधी तथा बचत विरोधी है।
  • विदेशी सहायता अधिकांशतः प्रतिबद्ध होती है। अत: इसका इच्छित उपयोग नहीं हो पाती। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का मूल लक्ष्य आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना रहा है। उदाहरण के लिए, प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई ताकि खाद्यान्नों के मामले में देश आत्मनिर्भर हो सके। बाद में औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया।

प्रश्न 11 किसी अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक गठन क्या होता है? क्या यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के जी. डी. पी. में सेवा क्षेत्रक को सबसे अधिक योगदान करना चाहिए? टिप्पणी करें।

उत्तर- देश का सकल घरेलू उत्पाद देश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों से प्राप्त होता है। ये क्षेत्रक हैं- कृषि क्षेत्रक, औद्योगिक क्षेत्रक और सेवा क्षेत्रक इन क्षेत्रकों के योगदान से ही अर्थव्यवस्था का ढाँचा तैयार होता है। हाँ, यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक को सबसे अधिक योगदान करना चाहिए। इस घटना को संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। विकास के साथ कृषि क्षेत्रक का योगदान कम तथा औद्योगिक क्षेत्रक का योगदान प्रमुख होता जाता है। विकास के उच्च स्तर पर, सेवा क्षेत्रक का योगदान दो अन्य क्षेत्रों से अधिक हो जाता है। यह विश्व के विकसित अर्थव्यवस्था में देखा गया है।

प्रश्न 12 योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक को ही अग्रणी भूमिका क्यों सौंपी गई थी?

उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को अग्रणी भूमिका सौंपने के निम्नलिखित कारण थे-

  1. स्वतंत्रता-प्रप्ति के समय भारत के उद्योगपतियों के पास अर्थव्यवस्था के विकास हेतु उद्योगों में निवेश करने के लिए पर्याप्त पूँजी नहीं थी।
  2. उस समय बाजार भी इतना बड़ा नहीं था, जिसमें उद्योगपतियों को मुख्य परियोजनाएँ शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिलता।
  3. भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योग पर नियंत्रण करेगी।
  4. देश में क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमता को कम करने के लिए आर्थिक व सामाजिक संकेन्द्रण को कम करना आवश्यक था।

प्रश्न 13 इस कथन की व्याख्या करें: ‘हरित क्रांति ने सरकार को खाद्यान्नों के प्रापण द्वारा विशाल सुरक्षित भण्डार बनाने के योग्य बनाया, ताकि वह कमी के समय उसका उपयोग कर सके’।

उत्तर- हरित क्रांति के कारण खद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि हुई। आधुनिक तकनीक के प्रयोग, उर्वरक, कीटनाशकों तथा HYV बीजों के व्यापक उपयोग से कृषि उत्पदकता तथा प्रति कृषि भूमि उत्पादन में वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त बाजार व्यवस्था के विस्तार, मध्यस्थों की समाप्ति तथा ऋणों की सरल उपलब्धता किसानों को विक्रय अधिशेष प्राप्त करने में सक्षम बनाया है। इन कारणों से सरकार पर्याप्त खद्यान्न प्राप्त कर सुरक्षित स्टॉक बना सकी जिसे खाद्यान्नों की कमी के समय प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 14 सहायिकी किसानों को नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने को प्रोत्साहित तो करती है पर उसका सरकारी वित्त पर भारी बोझ पड़ता-इस तथ्य को ध्यान में रखकर सहायिकी की उपयोगिता पर चर्चा करें।

उत्तर- आजकल कृषि क्षेत्र को दी जा रही आर्थिक सहायिकी एक ज्वलंत बहस का विषय बन गथा है। हमारे देश के छोटे किसान अधिकांशत: गरीब हैं; अत: छोटे किसानों को विशेष रूप से HYV प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए सहायिकी दी जानी आवश्यक है। सहायता के अभाव में वे नई प्रौद्योकि का उपयोग नहीं कर पाएँगे जिसका कृषि उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। परंतु कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि एक बार प्रौद्योगिकी का लाभ मिल जाने तथा उसके व्यापक प्रचलन के बाद सहायिकी धीरे-धीरे समाप्त कर देनी चाहिए क्योंकि उर्वरकी सहायता का लाभ बड़ी मात्रा में प्रायः उर्वरक उद्योग तथा अधिक समृद्ध क्षेत्र के किसानों को ही पहुँचता है।

अतः यह तर्क दिया जाता है कि उर्वरकों पर सहायिकी जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। इनसे लक्षित समूह को लाभ नहीं होगा और सरकारी कोष पर आवश्यक बोझ पड़ेगा। इसके विपरीत कुछ विशेषज्ञों का मत है कि सरकार को कृषि सहायिकी जारी रखनी चाहिए क्योंकि भारत में कृषि एक बहुत ही जोखिम भरा व्यवसाय है। अधिकतर किसान गरीब हैं और सहायिकी को समाप्त करने से वे अपेक्षित आगतों का प्रयोग नहीं कर पाएँगे।

इसका नुकसान यह होगा कि गरीब किसान और गरीब हो जाएँगे, कृषि क्षेत्र में उत्पादन स्तर गिरेगा, खाद्यान्नों की कमी से कीमतें बढ़ने लगेंगी जिससे हम विदेशों से सहायता लेने को मजबूर होंगे। इन विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि सहायिकी से बड़े किसानों तथा उर्वरक उद्योगों को अधिक लाभ हो रहा है, तो सही नीति सहायिकी समाप्त करना नहीं है, बल्कि ऐसे कदम उठाना है जिनसे कि केवल निर्धन किसानों को ही इनका लाभ मिले।

प्रश्न 15 हरित क्रांति के बाद भी 1990 तक हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्रक में ही क्यों लगी रही?

उत्तर- भारत में 1950-90 की अवधि में यद्यपि जी.डी.पी. में कृषि के अंशदान में तो भारी कमी आई है, पर कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात में नहीं (जो 1950 में 67.50 प्रतिशत थी और 1990 तक घटकर 64.9 प्रतिशत ही हो पाई) इस क्षेत्रक में इतनी उत्पादन वृद्धि तो न्यूनतम श्रम के प्रयोग द्वारा भी संभव थी, फिर इस क्षेत्रक में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लगे रहने की क्या आवश्यकता थी? इसका उत्तर यही है कि उद्योग क्षेत्रक और सेवा क्षेत्रक, कृषि क्षेत्रक में काम करने वाले लोगों को नहीं खपा पाए। अनेक अर्थशास्त्री इसे 1950-90 के दौरान अपनाई गई नीतियों की विफलता मानते हैं।

प्रश्न 16 यद्यपि उद्योगों के लिए सार्वजनिक क्षेत्रक बहुत आवश्यक रहा है, पर सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक उपक्रम ऐसे हैं जो भारी हानि उठा रहे हैं और इस क्षेत्रक के अर्थव्यवस्था के संसाधनों की बर्बादी के साधन बने हुए हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों की उपयोगिता पर चर्चा करें।

उत्तर- स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय भारत के उद्योगपतियों के पास हमारी अर्थव्यवस्था के विकास हेतु उद्योगों में निवेश के लिए पर्याप्त पूँजी नहीं थी। इसी कारण राज्य को औद्योगिक क्षेत्र को प्रोत्साहन देने में व्यापक भूमिका निभानी पड़ी। इसके अतिरिक्त भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि राज्य उन उद्योगों पर पूरा नियंत्रण रखेगा, जो अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण थे।

वस्तुतः औद्योगिक क्षेत्र प्रायः सार्वजनिक क्षेत्रक के कारण विविधतापूर्ण बन गया था। इस क्षेत्रक की भूमिका से कम पूँजी वाले लोगों को भी उद्योग क्षेत्र में प्रवेश का मौका मिल गया। भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में सार्वजनिक क्षेत्रक द्वारा किए गए योगदान के बावजूद कुछ अर्थशास्त्रियों ने सार्वजनिक क्षेत्रक के अनेक उद्यमों के निष्पादन की कड़ी आलोचना की है। इस क्षेत्रक ने एकाधिकारी शैली में काम किया जिससे निजी क्षेत्रक को पर्याप्त आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल पाया। अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है कि इस क्षेत्रक को अब उन उद्योगों से हट जाना चाहिए जहाँ निजी क्षेत्रकीक तरह से काम कर सकता है।

किंतु अनेक क्षेत्रक ऐसे हैं जहाँ आज भी सार्वजनिक क्षेत्रक की अपरित बनी हुई है। उदाहरण के लिए, उच्च विकास दर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार आवश्यक है, गैर-लाभकारी किंतु उपयोगी क्षेत्रों में प्रारंभिक विनियोग सार्वजनिक क्षेत्रक का विस्तार आवश्यक है, गैर-लाभकारी किंतु उपयोगी क्षेत्रों में प्रारंभिक विनियोग सार्वजनिक क्षेत्रक द्वारा ही संभव है, जनोपयोगी सेवाओं की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्रक में की जा सकती है और सार्वजनिक क्षेत्रक के विस्तार से ही आर्थिक विषमताओं को कम किया जा सकता है। इस प्रकार निम्न क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्रक का विस्तार अपरिहार्य है-

  1. सुरक्षात्मक उद्योग।
  2. भारी विनियोग वाले उद्योग।
  3. लम्बी गर्भावधि वाले उद्योग।
  4. जनोपयोगी क्षेत्रक।

प्रश्न 17 आयात प्रतिस्थापन किस प्रकार घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करता है?

उत्तर- अंतर्मुखी व्यापार नीति के अंतर्गत अपनाई गई नीति आयात प्रतिस्थापन कहलाती है, जिसमें उन वस्तुओं के आयात पर रोक लगाया जाता है जिसका घरेलू स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है। आयात प्रतिस्थापन नीति विदेशी वस्तुओं पर अर्थव्यवस्था के निर्भरता कम ही नहीं करती बल्कि घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित भी देती है। घरेलू उद्योगों को आयातित वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए सरकार विभिन्न वित्तीय प्रोत्साहन तथा लाइसेंस प्रदान करती है।

इससे न केवल घरेलू उद्योगों को स्थिरता बनाये रखने में सहयता मिलेगी बल्कि विदेशी प्रतिस्पर्धा से रक्षा भी करेगी। लाइसेंस के रूप में बाजार में हिस्सेदारी उन्हें घरेलू बाजार में एकाधिकार का दर्जा देती है। एकाधिकार होने के कारण, उन्हें अधिक लाभ की प्राप्ति होती है। इस प्रकार यदि घरेलू उद्योगों का संरक्षण किया जाता है, तो समय के साथ वे प्रतिस्पर्धा करना सीख लेते हैं।

प्रश्न 18 औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 में निजी क्षेत्रक का नियमन क्यों और कैसे किया गया था?

उत्तर- भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखने के राज्य के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 को लाया गया था। इस प्रस्थाव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया। इस प्रस्ताव के अनुसार, उद्योगों को तीन वर्गों में विभक्त किया गया। प्रथम वर्ग में वे उद्योग सम्मिलित थे, जिन पर राज्य का अनन्य स्वामित्व था। दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिनके लिए निजी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र के साथ मिलकर प्रयास कर सकते थे, परंतु जिनमें नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी राज्य की होती।

तीसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जो निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आते थे लेकिन इस क्षेत्र को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से राज्य के नियंत्रण में रखा गया। इस प्रस्ताव में सरकार के लिए ऐसा करना आवश्यक था। इस नीति का प्रयोग पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया। पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग लगाने वाले उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रकार से आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय समानता को बढ़ावा देना था।

प्रश्न 19 निम्नलिखित युग्मों को सुमेलित कीजिए।

1. प्रधानमंत्री (क) अधिक अनुपात में उत्पादन देने वाले बीज।
2. सकल घरेलू उत्पाद (ख) आयात की जा सकने वाली मात्रा।
3. कोटा (ग) योजना आयोग के अध्यक्ष।
4. भूमि-सुधार (घ) किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित की गई सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य।
5. उच्च उत्पादकता वाले बीज (ङ) कृषि क्षेत्र की उत्पादकता वृद्धि के लिए किए गए सुधार।
6. सहायिकी (च) उत्पादक कार्यों के लिए सरकार द्वारा दी गई मौद्रिक सहयता।

उत्तर- 

1. प्रधानमंत्री (ग) योजना आयोग के अध्यक्ष।
2. सकल घरेलू उत्पाद (घ) किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित की गई सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य।
3. कोटा (च) उत्पादक कार्यों के लिए सरकार द्वारा दी गई मौद्रिक सहयता।
4. भूमि-सुधार (ङ) कृषि क्षेत्र की उत्पादकता वृद्धि के लिए किए गए सुधार।
5. उच्च उत्पादकता वाले बीज (क) अधिक अनुपात में उत्पादन देने वाले बीज।
6. सहायिकी (ख) आयात की जा सकने वाली मात्रा।

अध्याय-3: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा

Also Visit eStudyzone for English Medium Study Material