- अध्याय-10: भारतीय समाजशास्त्री
- भारतीय समाजशास्त्री :
- अध्याय-10: भारतीय समाजशास्त्री (FAQs)
- प्रश्न 1: भारतीय समाजशास्त्र का उद्भव और विकास कैसे हुआ?
- प्रश्न 2: डॉ. बी.आर. आंबेडकर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
- प्रश्न 3: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज का अध्ययन कैसे किया?
- प्रश्न 4: जी.एस. घुर्ये को “भारतीय समाजशास्त्र का पिता” क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न 5: धर्म और समाज पर भारतीय समाजशास्त्रियों का दृष्टिकोण क्या है?
- प्रश्न 6: भारतीय समाजशास्त्र में ग्रामीण समाज का महत्व क्यों है?
- प्रश्न 7: जाति व्यवस्था पर भारतीय समाजशास्त्रियों का क्या दृष्टिकोण है?
- प्रश्न 8: समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के बीच क्या संबंध है?
- प्रश्न 9: भारतीय समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन का क्या महत्व है?
- प्रश्न 10: भारतीय समाजशास्त्र के अध्ययन के क्या लाभ हैं?
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अध्याय-10: भारतीय समाजशास्त्री
भारतीय समाजशास्त्री :
भारतीय समाजशास्त्री, भारत के उन समाजशास्त्रियों को कहते हैं जिन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति पर काम किया है:
अनन्तकृष्ण अरूयर (1861 – 1937) : भारतीय समाजशास्त्री
- अनन्तकृष्ण अरूयर को 1902 में कोचीन के दीवान ने राज्य के नृजातीय सर्वेक्षण के लिए कहा क्योंकि ब्रिटिश सरकार सभी रजवाडों में नृजातीय सर्वेक्षण कराना चाहती थी ।
- उन्होनें इस कार्य को स्वयंसेवी के रूप में पूर्ण किया । कोचीन रजवाडें की तरफ से उन्हे राय बहादुर तथा दीवान बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया गया ।
- उन्हे Indian Science Congress के नृजातीय विभाग का अध्यक्ष चुना गया ।
शरदचन्द्र राय (1871 – 1942): भारतीय समाजशास्त्री
- यह एक अग्रणी मानववैज्ञानिक थे । इन्होंने ईसाई मिशनरी विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में कार्य किया ।
- ये 44 वर्ष तक रांची रहे तथा छोटा नागपुर ( झारखण्ड ) में रहने वाली जनजातियों की संस्कृति तथा समाज के विशेषज्ञ बने ।
- उन्होंने जनजातीयों क्षेत्रों का व्यापक भ्रमण किया तथा उनके बीच रहकर गहन क्षेत्रीय अध्ययन किया ।
- उन्हे सरकारी दुमाषिए के रूप में रांची की अदालत में नियुक्त किया गया । उनके द्वारा ओराव मुंडा तथा रवरिया जनजातियों पर किया गया लेखन कार्य भी प्रकाशित हुआ ।
जी. एस धूर्य: भारतीय समाजशास्त्री
- जन्म : 12 दिसंबर 1893
- स्थान : पश्चिमी भारत
- 1913 में : बम्बई से स्नातक ( Graduation )
- 1918 में : स्त्रनात्कोतर ( Post Graduation
- 1919 में : समाजशास्त्र में छात्रवृति ( Scholarship )
- लंदन के हॉबहॉउस : समाज शास्त्र अध्ययन की
- 1922 में ” PHD उपाधि ग्रहण की ।
- 1951 में : इंडियन सोशियोलॉजीकल सोसायटी की स्थापना
- 30 से ज्यादा किताबें लिखी
- 17 किताब सेवनिर्वित होने के बाद
- 1983 में निधन हो गया
जाति तथा प्रजाति पर जी. एस धूर्य के विचार: भारतीय समाजशास्त्री
- हर्बर्ट रिजले के अनुसार मनुष्य का विभाजन उसकी शारीरिक विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए जैसे खोपड़ी की चौड़ाई , नाक की लम्बाई अथवा कपाल का भार आदि ।
- यह मान्यता थी कि भारत विभिन्न प्रजातियों के अध्ययन की एक ‘ प्रयोगशाला ’ था क्योंकि जातीय अंतर्विवाह निषिद्ध था ।
- सामान्य रूप से उच्च जातियाँ भारतीय प्रजाति की विशिष्टताओं से मिलती हैं ।
- यह सुझाव दिया कि रिजले का तर्क व्यापक रूप से केवल उत्तरी भारत के लिए ही सही है । भारत के अन्य भागों में अंतर समूहों की विभिन्नताएँ व्यापक नहीं हैं ।
- अतः ‘ प्रजातीय शुद्धता केवल उत्तर भारत में ही बची हुई थी क्योंकि वहाँ अंतर्विवाह निषिद्ध था । शेष भारत में अंतर्विवाह का प्रचलन उन वर्गों में हुआ जो प्रजातीय स्तर पर वैसे ही भिन्न थे ।
जाति की विशेषताएँ: भारतीय समाजशास्त्री
- खंडीय विभाजन पर आधारित समाज कई बंद पारस्पारिक अन्य खंडों में बँटा है ।
- सोपनिक विभाजन पर आधारित :- प्रत्येक जाति दूसरी जाति की तुलना में असमान होती है । कोई भी दो जातियाँ समान नही होती ।
- सामाजिक अंतःक्रिया पर प्रतिबंध लगाती है , विशेषाधिकार साथ बैठकर भोजन करने पर ।
- भिन्न – भिन्न अधिकार तथा कर्तव्य निर्धारित होते है । जन्म पर आधारित तथा वंशानुगत होता है । श्रम विभाजन में कठोरता दिखाती है तथा विशिष्ट व्यवसाय कछ विशिष्ट जातियों को ही दिये जाते हैं ।
- विवाह पर कठोर प्रतिबंध लगाती है । अंत विवाह के नियम पर बल दिया जाता है ।
परंपरा: भारतीय समाजशास्त्री
परंपरा ‘ शब्द का मूल अर्थ : परंपरा की मजबूत जड़ें भूतकाल में होती हैं और उन्हें कहानियों तथा मिथकों द्वारा कहकर और सुनकर जीवित रखा जाता है ।
डी . पी . मुखर्जी के अनुसार :-भारतीय समाजशास्त्री
- डी . पी . मुखर्जी का मानना था कि भारत की सामाजिक व्यवस्था ही उसका निर्णायक लक्षण है और इसलिए यह आवश्यक है कि सामाजिक परंपरा का अध्ययन हो ।
- मुखर्जी का अध्ययन केवल भूतकाल तक ही सीमित नहीं था बल्कि वह परिवर्तन की संवेदनशील से भी जुड़ा हुआ था ।
- तर्क दिया कि भारतीय संस्कृति व्यक्तिवादी नही है , इसकी दिशा समूह , संप्रदाय तथा जाति के क्रियाकलापों द्वारा निर्धारित होती है ।
जीवंत परंपरा :-भारतीय समाजशास्त्री
परंपरा जिसने अपने आपको भूतकाल से जोड़ने के साथ ही साथ वर्तमान के अनुरूप भी ढाला था और इस प्रकार समय के साथ अपने आपको विकसित करे ।
परिवर्तन
परिवर्तन के तीन सिद्धांत – श्रुति , स्मृति तथा अनुभव ( व्यक्तिगत अनुभव ) क्रांतिकारी सिद्धांत हैं । भारतीय समाज में परिवर्तन का सर्वप्रथम सिद्धांत सामान्यीकृत अनुभव अथवा सामूहिक अनुभव था ।
डी . पी . मुखर्जी के अनुसार :-भारतीय समाजशास्त्री
- डी . पी . मुखर्जी के अनुसार भारतीय संदर्भ में बुद्धि विचार , परिवर्तन के लिए प्रभावशाली शक्ति नहीं है बल्कि अनुभव और प्रेम परिवर्तन के उत्कृष्ट कारक है ।
- संघर्ष तथा विद्रोह सामूहिक अनुभवों के आधार पर कार्य करते हैं । परंपरा का लचीलापन इसका ध्यान रखता है कि संघर्ष का दबाव परंपराओं को बिना तोड़े उनमें परिवर्तन लाए ।
राज्य पर ए . आर . देसाई के विचार
कल्याणकारी राज्य की विशेषताएँ :-भारतीय समाजशास्त्री
- कल्याणकारी राज्य एक सकारात्मक राज्य होता है ।
- कल्याणकारी राज्य केवल न्यूनतम कार्य ही नहीं करता जो कानून तथा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते है ।
- यह हस्तक्षेपीय राज्य होता है और समाज की बेहतरी के लिए सामाजिक नीतियों को लागू करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है ।
- यह एक लोकतांत्रिक राज्य होता है ।
- लोकतंत्र की एक अनिवार्य दशा होती है ।
- औपचारिक लोकतांत्रिक संस्थाओं बहुपार्टी चुनाव विशेषता समझी जाती है ।
- इसकी अर्थव्यवस्था मिश्रित है ।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था है जहाँ निजी पूँजीवादी कंपनियाँ तथा राज्य दोनों साथ – साथ काम करती हैं ।
- कल्याणकारी राज्य न तो पूँजीवादी बाजार को खत्म करता है और न ही यह जनता को निवेश करने से रोकता है ।
कल्याणकारी राज्य के कार्य परीक्षण के आधार :-भारतीय समाजशास्त्री
- यह गरीबी , सामाजिक भेदभाव से मुक्ति तथा अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखता है ।
- यह आय सम्बन्धी असमानताओं को दूर करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाता है ।
- अर्थव्यवस्था को इस प्रकार से परिवर्तित करता है जहाँ पूँजीवादियों की अधिक से अधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाता है ।
- स्थायी विकास के लिए आर्थिक मंदी तथा तेजी से मुक्त व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है ।
- सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराता है ।
कल्याणकारी राज्य के आधार:भारतीय समाजशास्त्री
- अधिकांश आधुनिक पूँजीवादी राज्य अपने नागरीकों को निम्नतम आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा देने में असफल रहे हैं ।
- आर्थिक असमानताओं को कम करने में सफल नहीं हो पायें हैं ।
- बाजार के उतार – चढ़ाव से मुक्त स्थायी विकास करने में असफल रहे हैं ।
- अतिरिक्त धन की उपस्थिति तथ अत्याधिक बेरोजगारी इसकी कुछ अन्य असफलताएँ हैं ।
एम . एन . श्रीनिवास के गाँव संबंधी विचार
एम . एन . श्रीनिवास के लेख :-भारतीय समाजशास्त्री
- गाँव पर श्रीनिवास द्वारा लिखे गए लेख मुख्यतः दो प्रकार के है ।
- सर्वप्रथम , गाँवों में किए गए क्षेत्रीय कार्यो का नृजातीय ब्यौरा ।
- द्वितीय , भारतीय गाँव का सामाजिक विश्लेषण , ऐतिहासिक तथा अवधारणात्मक परिचर्चाएँ ।
गाँव पर लुई ड्यूमां का दृष्टिकोण: भारतीय समाजशास्त्री
- उनका मानना था कि गाँव को एक श्रेणी के रूप में महत्व देना गुमराह करने वाला हो सकता है ।
- लुई का मानना था कि जाति जैसी संस्थाएँ गाँव की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होती है ।
- उनका मानना था कि लोग गाँव को छोड़कर दूसरे गाँव को जा सकते हैं , लेकिन उनकों सामाजिक संस्थाएँ सदैव उनके साथ रहती हैं ।
गाँव का महत्व: भारतीय समाजशास्त्री
- गाँव ग्रामीण शोधकार्यों के स्थल के रूप में भारतीय समाजशास्त्र को लाभान्वित करते हैं ।
- इसने नृजातिय शोधकार्य की पद्धति के महत्व से परिचित कराने का मौका दिया ।
- सामाजिक परिवर्तन के बारे में आँखों देखी जानकारी दी ।
- भारत के आंतरिक हिस्सों में क्या हो रहा था , पूर्ण जानकारी दी ।
- अतः यह कहा जा सकता है कि गाँव के अध्ययन से ही संपूर्ण भारत का विकास हुआ तथा समाजशास्त्रियों को कार्य क्षेत्र मिला ।
अध्याय-10: भारतीय समाजशास्त्री (FAQs)
प्रश्न 1: भारतीय समाजशास्त्र का उद्भव और विकास कैसे हुआ?
उत्तर: भारतीय समाजशास्त्र का उद्भव 19वीं शताब्दी में हुआ। इसके विकास में उपनिवेशवाद, जाति व्यवस्था, ग्रामीण समाज, और धार्मिक विविधताओं का अध्ययन मुख्य भूमिका निभाता है। प्रारंभिक समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाज की जटिल संरचनाओं को समझने के लिए यूरोपीय समाजशास्त्र के सिद्धांतों को भारतीय संदर्भ में लागू किया।
प्रश्न 2: डॉ. बी.आर. आंबेडकर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
उत्तर: डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने जाति व्यवस्था, सामाजिक समानता, और दलित अधिकारों पर व्यापक अध्ययन किया। उन्होंने जाति के उन्मूलन और शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उनकी पुस्तक “एनिहिलेशन ऑफ कास्ट” भारतीय समाजशास्त्र में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
प्रश्न 3: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज का अध्ययन कैसे किया?
उत्तर: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज में “जाति”, “संस्कृतिकरण” और “डॉमिनेंट कास्ट” जैसे अवधारणाओं पर काम किया। उन्होंने मैसूर के रामपुरा गांव का गहन अध्ययन किया और भारतीय ग्रामीण समाज की संरचना पर प्रकाश डाला।
प्रश्न 4: जी.एस. घुर्ये को “भारतीय समाजशास्त्र का पिता” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: जी.एस. घुर्ये ने जाति, जनजातियों, और भारतीय संस्कृति पर व्यापक शोध किया। उन्होंने जाति व्यवस्था की सामाजिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक जड़ों को समझाया। उनके काम में भारतीय समाज की बहुआयामी संरचना का अध्ययन शामिल है।
प्रश्न 5: धर्म और समाज पर भारतीय समाजशास्त्रियों का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर: भारतीय समाजशास्त्रियों ने धर्म को समाज की संरचना और कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने धार्मिक संस्थाओं और परंपराओं के सामाजिक प्रभाव का अध्ययन किया। डॉ. राधाकृष्णन और योगेंद्र सिंह जैसे समाजशास्त्रियों ने धर्म की भूमिका पर गहन विश्लेषण किया।
प्रश्न 6: भारतीय समाजशास्त्र में ग्रामीण समाज का महत्व क्यों है?
उत्तर: भारतीय समाज मुख्य रूप से कृषि आधारित है। भारतीय समाजशास्त्रियों ने ग्रामीण समाज की संरचना, जाति व्यवस्था, पंचायती राज व्यवस्था, और सामाजिक परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया। यह अध्ययन भारतीय समाज को समझने का आधार प्रदान करता है।
प्रश्न 7: जाति व्यवस्था पर भारतीय समाजशास्त्रियों का क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर: जाति व्यवस्था भारतीय समाज की विशिष्ट विशेषता है। भारतीय समाजशास्त्रियों ने इसे ऐतिहासिक, सामाजिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया। उन्होंने इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर भी चर्चा की।
प्रश्न 8: समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के बीच क्या संबंध है?
उत्तर: समाजशास्त्र और मानवशास्त्र दोनों समाज और संस्कृति का अध्ययन करते हैं। भारतीय संदर्भ में, समाजशास्त्रियों ने जाति, धर्म, और सामाजिक संरचना पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि मानवशास्त्रियों ने जनजातीय और आदिवासी समाजों का अध्ययन किया।
प्रश्न 9: भारतीय समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन का क्या महत्व है?
उत्तर: सामाजिक परिवर्तन भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा है। समाजशास्त्रियों ने सामाजिक आंदोलन, आर्थिक विकास, और तकनीकी प्रगति के प्रभावों का अध्ययन किया है। उन्होंने समझाया कि कैसे परंपरा और आधुनिकता के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।
प्रश्न 10: भारतीय समाजशास्त्र के अध्ययन के क्या लाभ हैं?
उत्तर: भारतीय समाजशास्त्र हमें जाति, धर्म, ग्रामीण और शहरी समाज, और सामाजिक असमानताओं को समझने में मदद करता है। यह समाज में मौजूद समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान की दिशा में मार्गदर्शन करता है।