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अध्याय 4: भारत में खाद्य सुरक्षा

भारत में खाद्य सुरक्षा

भारत में खाद्य सुरक्षा

भारत में खाद्य सुरक्षा (Class 9th, सामाजिक विज्ञान)

भारत में खाद्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य है कि सभी लोगों को, हर समय, पर्याप्त, सुरक्षित और पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध हो। यह भोजन उनकी सक्रिय और स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक होता है। भारत जैसे देश में, जहाँ कृषि एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है, खाद्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।


खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता

भारत में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता कई कारणों से है:

  1. भुखमरी और कुपोषण
    • भारत में बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है।
    • भोजन की कमी के कारण लोग कुपोषण और भुखमरी से ग्रस्त हैं।
  2. आबादी में वृद्धि
    • भारत की बढ़ती आबादी खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि कर रही है।
    • पर्याप्त भोजन उपलब्ध न होने से संकट उत्पन्न हो सकता है।
  3. प्राकृतिक आपदाएँ
    • बाढ़, सूखा, चक्रवात और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ फसल उत्पादन को प्रभावित करती हैं।
    • इससे खाद्य संकट उत्पन्न हो सकता है।
  4. आर्थिक असमानता
    • गरीब और अमीर के बीच बढ़ती खाई के कारण गरीब तबके के लिए भोजन खरीदना मुश्किल हो जाता है।

खाद्य सुरक्षा के घटक

खाद्य सुरक्षा को तीन प्रमुख घटकों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. उपलब्धता
    • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थों का उत्पादन और भंडारण आवश्यक है।
    • कृषि उत्पादन, आयात, और भंडारण की कुशल प्रणाली से यह सुनिश्चित किया जा सकता है।
  2. पहुंच
    • हर व्यक्ति को भोजन तक पहुंच होनी चाहिए।
    • यह आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक कारकों पर निर्भर करता है।
  3. पोषण
    • भोजन केवल उपलब्ध और सुलभ होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह पोषणयुक्त भी होना चाहिए।
    • संतुलित आहार शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करता है।

भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थिति

हरित क्रांति और खाद्य सुरक्षा

हरित क्रांति ने भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • 1960 के दशक में, भारत खाद्य संकट का सामना कर रहा था।
  • हरित क्रांति के माध्यम से उन्नत बीज, रासायनिक खाद और सिंचाई के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • इससे भारत आत्मनिर्भर बन गया।

खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013

भारत सरकार ने 2013 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया।

  • यह कानून हर व्यक्ति को सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराने की गारंटी देता है।
  • इसमें निम्नलिखित प्रावधान हैं:
    1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से अनाज का वितरण।
    2. गरीब परिवारों को सब्सिडी दरों पर चावल, गेहूं और अन्य अनाज उपलब्ध कराना।
    3. गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पोषणयुक्त आहार।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)

PDS भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

कार्यप्रणाली

  • सरकार किसानों से अनाज खरीदती है और इसे भंडारित करती है।
  • राशन की दुकानों के माध्यम से गरीब और जरूरतमंद लोगों को कम कीमत पर अनाज वितरित किया जाता है।

लाभ

  • गरीब परिवारों को सस्ती दरों पर अनाज मिलता है।
  • कुपोषण और भुखमरी को कम करने में मदद मिलती है।
  • कृषि उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध होता है।

चुनौतियाँ

  • भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन।
  • गुणवत्ता की समस्या।
  • खाद्यान्न का रिसाव और बर्बादी।

भारत में खाद्य सुरक्षा की समस्याएँ

  1. गरीबी और असमानता
    • बड़ी संख्या में लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं।
    • उनकी क्रय शक्ति सीमित होती है।
  2. भंडारण की कमी
    • पर्याप्त गोदामों की अनुपस्थिति में अनाज खराब हो जाता है।
    • इसका असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ता है।
  3. कृषि पर निर्भरता
    • भारत की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है।
    • फसल उत्पादन पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव पड़ता है।
  4. पोषण की कमी
    • भोजन की उपलब्धता के बावजूद पोषण स्तर कम है।
    • संतुलित आहार की कमी कुपोषण का कारण बनती है।
  5. जनसंख्या का दबाव
    • बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य पदार्थों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
    • यह उत्पादन और आपूर्ति पर दबाव डालती है।

खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी उपाय

  1. कृषि सुधार
    • सरकार ने उन्नत बीज, खाद और सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराईं।
    • कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सब्सिडी और ऋण प्रदान किया।
  2. भंडारण और वितरण प्रणाली
    • भंडारण के लिए नई गोदामों का निर्माण।
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करना।
  3. पोषण कार्यक्रम
    • मिड-डे मील योजना के तहत स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना।
    • गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए विशेष पोषण कार्यक्रम।
  4. खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
    • गरीब और जरूरतमंदों के लिए सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।

खाद्य सुरक्षा के लिए वैकल्पिक उपाय

  1. कृषि में तकनीकी विकास
    • जैव प्रौद्योगिकी और उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग।
    • सूखा प्रतिरोधी और अधिक उत्पादन देने वाले बीजों का विकास।
  2. सतत कृषि
    • पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना।
    • रसायनों का कम उपयोग और जैविक खेती को बढ़ावा देना।
  3. खाद्य भंडारण और प्रबंधन
    • आधुनिक भंडारण सुविधाओं का विकास।
    • खाद्यान्न की बर्बादी को रोकने के उपाय।
  4. स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा
    • लोगों को पोषण और संतुलित आहार के महत्व के बारे में शिक्षित करना।
    • कुपोषण और भुखमरी के खिलाफ जागरूकता फैलाना।

निष्कर्ष

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। हालाँकि सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। खाद्य सुरक्षा न केवल भूख मिटाने का मुद्दा है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी पक्षों – सरकार, किसान, उद्योग और नागरिकों – का सामूहिक प्रयास आवश्यक है। इससे ही भारत एक स्वस्थ और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकेगा।

Importent FAQs

प्रश्न 1 – भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?

उत्तर – भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बफर स्टॉक बनाया गया। बफर स्टॉक में अनाज गेहूं और चावल आदि को सरकार द्वारा खरीद कर रखा जाता है, ताकि खराब मौसम में या फिर आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2 – कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?

उत्तर – भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है, परंतु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में निम्नलिखित शामिल है: भूमिहीन जो थोड़ी बहुत भूमि पर निर्भर है, पारंपारिक दस्तकार , पारंपरिक सेवाएं प्रदान करने वाले लोग, अपना छोटा – मोटा काम करने वाले कामगार और निराश्रित तथा भिखारी। शहरी क्षेत्रों में खाद की दृष्टि से असुरक्षित व परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्राय: कम वेतन वाले व्यवसाय और अनियत श्रम – बाजार में काम करते हैं।

ये कामगार अधिकतर मौसमी कार्यों में लगे हैं और उनको इतनी कम मजदूरी दी जाती है कि वह मात्र जीवित रह सकते हैं। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्ग काया तो भूमिका आधार कमजोर होता है या फिर उनकी भूमि की उत्पादकता बहुत कम होती है खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित हो जाते हैं। कुपोषण से सबसे अधिक महिलाएं प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 3 – भारत में कौन से राज्य खाद्य सुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?

उत्तर – उत्तर प्रदेश (पूर्वी और दक्षिण – पूर्वी हिस्से), बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की सर्वाधिक संख्या है।

प्रश्न 4 – क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया ?

उत्तर – स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय नीति- निर्माताओं ने खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के सभी उपाय किए। भारत ने कृषि में एक नई रणनीति अपनाई, जिसकी परिणीति हरित क्रांति में हुई, विशेषकर गेहूं और चावल के उत्पादन में। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जुलाई 1968 में गेहूं क्रांति शीर्षक से विशेष डाक टिकट जारी कर किसी के क्षेत्र में हरित क्रांति को प्रभावशाली प्रगति को अधिकृत रूप से दर्ज किया। गेहूं की सफलता के बाद चावल के क्षेत्र में सफलता की ओर बढ़ती हुई बरहाल अनाज की उपज में वृद्धि समाना अधिक नहीं थी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक वृद्धि हुई।

44.01 और 30.21 टन क्रमश: 2015- 16 में है। 2015-16 में कुल अनाजों का उत्पादन 252.2 2 करोड़ टन है। वर्ष 2016-17 में कुल अनाजों का उत्पादन 275,68 करोड़ टन है। गेहूं के उत्पादन में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई जोकि 26.87 और 17.69 करोड़ टन क्रमश: 2015-16 में है। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि जोकि 15.75 एवं 12.51 करोड़ टन क्रमश: 2015-16 में है।

प्रश्न 5 – भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है व्याख्या कीजिए?

उत्तर – भारत में गरीबी अधिक है, आदिवासी और सुदूर-क्षेत्र, प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होने वाले क्षेत्र आदि में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की संख्या आनुपातिक रूप से बहुत अधिक है।

प्रश्न 6 – जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?

उत्तर – किसी प्राकृतिक आपदा जैसे, सूखे के कारण खाद्य की कुल उपज में गिरावट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्र में खाद्य की कमी हो जाती है खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। कुछ लोग ऊंची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते। अगर यह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लंबे समय तक बनी रहती है तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है। अकाल के दौरान बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं। जो भुखमरी तथा विवश होकर दूषित जल और भोजन के प्रयोग से फैलने वाली बीमारियों तथा भुखमरी से उत्पन्न कमजोरी से रोगों के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट के कारण होती है।

उदाहरण – भारत में जो सबसे भयानक अकाल पड़ा था, वह 1943 का बंगाल का अकाल था। इस अकाल में भारत के बंगाल प्रांत में 30 लाख लोग मारे गए थे।

प्रश्न 7 – मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए?

उत्तर – भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है। भुखमरी के दीर्घकालिक और मौसमी आयाम होते हैं। मौसमी भुखमरी फसल उपजाने और काटने के चक्र से संबंधित है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। जैसे बरसात के मौसम में अनी निर्माण श्रमिक को कम काम रहता है इस तरह की भुखमरी तब होती है जब कोई व्यक्ति पूरे वर्ष काम पाने में असमर्थ रहता है।

दीर्घकालिक भुखमरी मात्र एवं / गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।

प्रश्न 8 – गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्ही दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर- सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत सरकार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम है। प्रारंभ में यह प्रणाली सबके लिए थी और निर्धनों और गैर निर्धनों के बीच कोई भेद नहीं किया जाता था। बाद के वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक दक्ष और अधिक लक्षित बनाने के लिए संशोधित किया गया था। इसका लक्ष्य दूरदराज और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुंचाना था।

सरकार की ओर से शुरू की गई दो योजनाएं निम्नलिखित है 

अंत्योदय अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना।

ये योजनाएं क्रमश: गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब और दीन वरिष्ठ नागरिक समूहों पर लक्षित हैं। इन दोनों योजनाओं का संचालन सर्वाधिक वितरण प्रणाली के वर्तमान में नेटवर्क से जोड़ दिया गया है। इन वर्षों के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली मूल्यों को स्थिर बनाने और सामर्थ्य अनुसार यूट्यूब पर उपभोक्ताओं को खाद्य उपलब्ध कराने की सरकार की नीति में सर्वाधिक प्रभावी साधन सिद्ध हुई है।

अंत्योदय अन्न योजना दिसंबर 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। संबंधित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों ने गरीबी रेखा से नीचे के गरीब परिवारों को सर्वेक्षण के द्वारा चुना। ₹2 प्रति किलोग्राम गेहूं और ₹3 प्रति किलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता प्राप्त दर्पण प्रत्येक पात्र परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अनाज की यह मात्रा अप्रैल 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दी गई। जून 2003 और अगस्त 2004 में इसमें 50 50 लाख अतिरिक्त बीपीएल परिवार दो बार जोड़े गए। इससे यह योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।

प्रश्न 9 – सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?

उत्तर – सरकार बफर स्टॉक इसलिए बनाती है ताकि कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया जा सकें। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं। यह खराब मौसम में या फिर आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में भी मदद करता है।

प्रश्न 10 – टिप्पणी लिखें :

  • न्यूनतम समर्थित कीमत
  • बफर स्टॉक
  • निर्गम कीमत
  • उचित दर की दुकान

उत्तर – (क) न्यूनतम समर्थित कीमत – किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है।

(ख) बफर स्टॉक – बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिक प्राप्त अनाज गेहूं और चावल का भंडार है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्य में किसानों से गेहूं और चावल खरीदना है।

(ग) निर्गम कीमत – ऐसा कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं।

(घ) उचित दर की दुकान – अधिकांश क्षेत्रों, गांव, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं। देश भर में लगभग 5.5 लाख राशन की दुकानें हैं। राशन की दुकानों में जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है। चीनी खाद्य और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है।

प्रश्न 11 – राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएं हैं?

उत्तर – 1.अधिक लाभ कमाना।

2. खुले बाजार में अनाज को बेचना।

3. लोगों को बेकार अनाज देना।

4. अनाज का वजन कम करके देना।

5. अपनी मनमानी करना।

6. ज्यादा समय तक रखने से अनाजों का सड़ जाना।

7. अत्यधिक मात्रा में चूहे द्वारा अनाजों का बर्बाद करना।

प्रश्न 12– खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।

उत्तर – भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियां भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सहकारी निर्धन लोगों को खाद्य की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खुलती हैं।

उदाहरण – तमिलनाडु में 94 सत दुकानें सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं।

दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियों उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।

इसने देश में श्वेत क्रांति ला दी है। देश के विभिन्न भागों में कार्य सहकारी समितियों के और उनके अनेक उदाहरण हैं। जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराई है।

 

अध्याय 3 :निर्धनता एक चुनौती

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