12th Geography

अध्याय-8: भौगोलिक परिपेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

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भौगोलिक परिपेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

भौगोलिक परिपेक्ष्य

भौगोलिक परिपेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ:

पर्यावरण प्रदूषण :-

भौगोलिक परिपेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ ,पर्यावरण प्रदूषण मानव गतिविधियों के अपशिष्ट उत्पादों से पदार्थों और ऊर्जा की रिहाई है। यह विभिन्न प्रकार का होता है। इस प्रकार, उन्हें मध्यम के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जिसके माध्यम से प्रदूषकों को परिवहन और विसरित किया जाता है।

प्रदूषण के प्रकार :-

  1. जल प्रदूषण 
  2. वायु प्रदुषण 
  3. ध्वनि प्रदूषण
  4. भूमि प्रदुषण

जल प्रदूषण :-

जल प्रदूषण का अर्थ है पानी में अवांछित तथा घातक तत्वों की उपस्तिथि से पानी का दूषित हो जाना, जिससे कि वह पीने योग्य नहीं रहता।

जल प्रदूषण के कारण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  • मानव मल का नदियों, नहरों आदि में विसर्जन।
  • सफाई तथा सीवर का उचित प्रबंध्न न होना।
  • विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपने कचरे तथा गंदे पानी का नदियों, नहरों में विसर्जन।
  • कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले जहरीले रसायनों तथा खादों का पानी में घुलना।
  • नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारम्परिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलू सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन।
  • गंदे नालों,सीवरों के पानी का नदियों मे छोङा जाना।
  • कच्चा पेट्रोल, कुँओं से निकालते समय समुद्र में मिल जाता है जिससे जल प्रदूषित होता है।
  • कुछ कीटनाशक पदार्थ जैसे डीडीटी, बीएचसी आदि के छिड़काव से जल प्रदूषित हो जाता है तथा समुद्री जानवरों एवं मछलियों आदि को हानि पहुँचाता है। अंतत: खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करते हैं।

वायु प्रदूषण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

वायु प्रदूषण अर्थात हवा में ऐसे अवांछित गैसों, धूल के कणों आदि की उपस्थिति, जो लोगों तथा प्रकृति दोनों के लिए खतरे का कारण बन जाए।

दूसरे शब्दों में कहें तो प्रदूषण अर्थात दूषित होना या गन्दा होना। वायु का अवांछित रूप से गन्दा होना अर्थात वायु प्रदूषण है। वायु में ऐसे बाह्य तत्वों की उपस्थिति जो मनुष्य के स्वास्थ्य अथवा कल्याण हेतु हानिकारक हो, ऐसी स्थिति को वायु प्रदूषण कहते हैं।

वायु प्रदूषण के कारण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  • वाहनों से निकलने वाला धुआँ।
  • औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुँआ तथा रसायन।
  • आणविक संयत्रों से निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण।
  • जंगलों में पेड़ पौधें के जलने से, कोयले के जलने से तथा तेल शोधन कारखानों आदि से निकलने वाला धुआँ।
  • ज्वाला मुखी विस्फोट(जलवाष्प, So2)

भूमि प्रदूषण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

भूमि प्रदूषण से अभिप्राय जमीन पर जहरीले, अवांछित और अनुपयोगी पदार्थों के भूमि में विसर्जित करने से है, क्योंकि इससे भूमि का निम्नीकरण होता है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। लोगों की भूमि के प्रति बढ़ती लापरवाही के कारण भूमि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है।

भूमि प्रदूषण के कारण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  • कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग।
  • औद्योगिक इकाईयों, खानों तथा खादानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन।
  • भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन।
  • कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते।
  • प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग, जो जमीन में दबकर नहीं गलती।
  • घरों, होटलों और औद्योगिक इकाईयों द्वारा निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का निपटान, जिसमें प्लास्टिक, कपड़े, लकड़ी, धातु, काँच, सेरामिक, सीमेंट आदि सम्मिलित हैं।

ध्वनि प्रदूषण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को ‘डेसिबल इकाई’ में मापा जाता है।

ध्वनि प्रदूषण का कारण :-

  • शहरों एवं गाँवों में किसी भी त्योहार व उत्सव में, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकरों का अनियंत्रित इस्तेमाल/प्रयोग।
  • अनियंत्रित वाहनों के विस्तार के कारण उनके इंजन एवं हार्न के कारण।
  • औद्योगिक क्षेत्रों में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर सायरन, हॉर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर।
  • जनरेटरों एवं डीजल पम्पों आदि से ध्वनि प्रदूषण।

अम्लीय वर्षा :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

वायु प्रदूषण के कारण वातावरण में मौजूद अवांछित तत्व वर्षा के जल में मिलकर नीचे आते हैं। इससे अम्लीय पदार्थ अधिक होते हैं, इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।

धूम्र कोहरा :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

वातावरण में मौजूद धुआँ एवं धूल के कण जब सामान्य रूप में बनने वाले कोहरे में मिल जाते हैं तो इसे धूम्र कोहरा कहते हैं यह स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसान देह होता है।

भारत में ‘ नगरीय अपशिष्ट निपटान एक गम्भीर समस्या :-

  • तेजी से बढ़ती जनसंख्या तथा उसके लिए अपर्यापत सुविधाएँ तथा विभिन्न स्त्रोतों द्वार अपशिष्ट की मात्रा में वृद्धि। 
  • कारखानों, विद्युत गृहों तथा भवन निर्माण तथा विध्वंस से भारी मात्रा में निकली राख या मलबा। 
  • अपशिष्ट / कचरे का पूर्णतः निपटान न होना। बिना एकत्र किये छोड़ना आदि। 
  • पर्याप्त स्थान की वामी।
  • पर्याप्त जागरूकता के अभाव में पुनर्चक्रण नहीं हो पाता। 

नगरों में अवशिष्ट निपटान संबंधी प्रमुख समस्याएँ :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  1. अपशिष्ट के पृथककरण की समस्या :- नगरों में अभी भी सभी प्रकार के ठोस अपशिष्ट एक साथ इकट्ठे किये जाते हैं जैसे कि धातु – शीशा सब्जियों के छिलके कागज आदि। जिससे इनको उचित तरीके से निपटाने में बाधा आती है।
  2. भराव स्थल की समस्या :- महानगरों में कूड़ा डालने के लिये स्थान की कमी महसूस की जाने लगी है। पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं है। सड़कों पर कूड़ा डाला जाता है।
  3. पुनर्चक्रण की समस्या :- पृथक्करण न होने एवं पर्याप्त जागरूकता के अभाव में अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं हो पाता।

विकासशील देशो में शहरों की प्रमुख समस्याएँ :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  • अवशिष्ट निपटान की समस्या
  • जनसंख्या विस्फोट की समस्या
  • स्लम बस्तियों की समस्या ( तीनों बिन्दुओं का विस्तार करें )।

भारत में गंदी बस्तियों की समस्याएँ :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  • इन बस्तियों में रहने वाले लोग ग्रामीण पिछड़े इलाकों से प्रवासित होकर रोजगार की तलाश में आते हैं।
  • यहाँ अच्छे मकानों का मिलना कठिन है।
  • ये बस्तियाँ रेलवे लाइन, सडक के साथ पार्क या अन्य खाली पड़ी सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करके बसायी जाती है।
  • खुली हवा, स्वच्छ पेयजल, शौच सुविधाओं, प्रकाश का सर्वथा अभाव होता है।
  • कम वेतन / मजदूरी प्राप्त करने के कारण जीवन स्तर अति निम्न होता है।
  • कुपोषण के कारण बीमारियों की संभावना बनी रहती है।
  • नशा व अपराध के कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।
  • चिकित्सा सुविधाओं का अभाव।

भू – निम्नीकरण :-

भू – निम्नीकरण से तात्पर्य भूमि की उत्पादकता में अल्प समय के लिये या स्थायी रूप से कमी आ जाना है।

भूमि निम्नीकरण की समस्या के कारण :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  1. अति सिंचाई :- इसके कारण देश में उत्तरी मैदानों में लवणीय व क्षारीय क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। सिंचाई मृदा की संरचना को बदल देती है। इनके अतिरिक्ति उर्वरक, कीटनाशी भी मृदा के प्राकृतिक, भौतिक रासायनिक व जैविक गुणों को नष्ट करके मृदा को बेकार कर देते हैं।
  2. औद्योगिक अपशिष्ट :- उद्योगों द्वारा निकला अपशिष्ट जल को दूषित कर देता है और फिर दूषित जल से की गई सिंचाई मृदा के गुणों को नष्ट कर देती है।
  3. नगरीय अपशिष्ट :- नगरों से निकला कूड़ा – करकट भूमि का निम्नीकरण करता है और नगरों से निकला जलमल व अपशिष्ट के विषैले रासायनिक पदार्थ आस – पास के क्षेत्रों की मृदा में मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं।
  4. चिमनियों का धुआं :- कारखानों व अन्य स्रोतों की चिमनियों से निकलने वाली गैसीय व कणिकीय प्रदूषकों को हवा दूर तक उड़ा ले जाती है और ये प्रदूषक मृदा में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं।
  5. अम्ल वर्षा :- कारखानों से निकलने वाली गंधक अम्लीय वर्षा का कारण है। इससे मृदा में अम्लता बढ़ती है। कोयले की खानो, मोटर वाहनो, ताप बिजली घरों से भारी मात्रा में निकले प्रदूषण मृदा व वायु को प्रदूषित करते हैं।

भू निम्नीकरण को रोकने के उपाय :-भौगोलिक परिपेक्ष्य

  • किसान रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग उचित मात्रा में करें।
  • नगरीय / औद्योगिक गंदे पानी को उपचारित करके पुनः उपयोग में लाया जाये।
  • सड़ी – गली सब्जी व फल, पशु मलमूत्र को उचित प्रौद्योगिकी द्वारा बहुमूल्य खाद में परिवर्तित किया जाये।
  • बस्तियों के आस – पास खुले में शौच पर प्रतिबन्ध लगे।
  • प्लास्टिक से बनी वस्तुओं पर प्रतिबन्ध लगे।
  • कूड़ा – कचरा निश्चित स्थान पर ही डाला जाये ताकि उसका यथासम्भव निपटान हो सके।
  • वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाये।

भारत के जलाशयों को उद्योग किस प्रकार प्रदूषित करते हैं ?

  • उद्योग अनेक अवांछित उत्पाद पैदा करते हैं। जिनमें औद्योगिक कचरा, प्रदूषित अपशिष्ट जल, जहरीली गैसें, रासायनिक अवशेषः अनेक भारी धातुएँ, धुल धुआँ आदि शामिल है।
  • अधिकतर औद्योगिक कचरे को बहते जल में या झीलों आदि में विसर्जित कर दिया जाता है। परिणाम स्वरूप रासायनिक तत्व जलाशयों, नदियों आदि में पहुँच जाते हैं।
  • सर्वाधिक जल प्रदूषण उद्योग चमड़ा लुगदी व कागज, वस्त्र तथा रसायन है।

FAQs on “भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ”

1. प्रश्न: भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में प्रमुख मुद्दों और समस्याओं को परिभाषित करें।

उत्तर:
भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में प्रमुख मुद्दे और समस्याएँ वे हैं जो पर्यावरण, समाज और संसाधनों के उपयोग से संबंधित हैं। इसमें भूमि का अपर्याप्त उपयोग, जल संकट, वनों की कटाई, मृदा अपरदन, शहरीकरण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। ये समस्याएँ मानव और प्राकृतिक गतिविधियों के बीच असंतुलन के कारण उत्पन्न होती हैं।


2. प्रश्न: भूमि उपयोग में असमानता क्या है और यह क्यों होती है?

उत्तर:
भूमि उपयोग में असमानता तब होती है जब भूमि का उपयुक्त उपयोग नहीं किया जाता है। इसके कारणों में अतिक्रमण, कृषि योग्य भूमि का अनावश्यक शहरीकरण, औद्योगिकरण, और भूमि के गलत प्रबंधन शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप मृदा अपरदन, जल-भराव, और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।


3. प्रश्न: जल संकट को भौगोलिक दृष्टि से कैसे समझा जा सकता है?

उत्तर:
जल संकट का मतलब पानी की मांग और आपूर्ति में असंतुलन है। भौगोलिक दृष्टि से, यह समस्याएँ भूजल का अत्यधिक उपयोग, जल निकायों का प्रदूषण, अनियमित वर्षा और शहरीकरण के कारण होती हैं। जल संकट कृषि, उद्योग, और घरेलू उपयोग को प्रभावित करता है और जल प्रबंधन की आवश्यकता को बढ़ाता है।


4. प्रश्न: मृदा अपरदन (Soil Erosion) और इसके कारण क्या हैं?

उत्तर:
मृदा अपरदन वह प्रक्रिया है जिसमें हवा, पानी और अन्य प्राकृतिक कारणों से मिट्टी का कटाव होता है। इसके प्रमुख कारणों में वनों की कटाई, अत्यधिक चराई, जल-निकासी की खराब व्यवस्था और कृषि योग्य भूमि का दुरुपयोग शामिल है। इससे कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


5. प्रश्न: वनों की कटाई और इसके पर्यावरणीय प्रभावों को समझाएँ।

उत्तर:
वनों की कटाई का अर्थ है पेड़ों को बड़े पैमाने पर काटना। इसके कारण जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का ह्रास, भूमि कटाव और जल चक्र में गड़बड़ी होती है। वनों की कटाई का मुख्य कारण शहरीकरण, कृषि विस्तार और लकड़ी का व्यापार है। यह पर्यावरणीय संतुलन के लिए गंभीर समस्या है।


6. प्रश्न: शहरीकरण के भौगोलिक प्रभाव क्या हैं?

उत्तर:
शहरीकरण का अर्थ है ग्रामीण क्षेत्रों का शहरों में बदलना। इसके भौगोलिक प्रभावों में भूमि का अत्यधिक उपयोग, जल निकासी की समस्या, शहरी बस्तियों का अनियोजित विस्तार, वायु और जल प्रदूषण, और हरित क्षेत्र का ह्रास शामिल हैं।


7. प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव क्या हैं?

उत्तर:
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है। इसके प्रभावों में ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र स्तर का बढ़ना, अनियमित मौसम, कृषि उत्पादन में गिरावट, और जैव विविधता का ह्रास शामिल हैं। यह एक वैश्विक समस्या है जिसे सस्टेनेबल प्रयासों से हल किया जा सकता है।


8. प्रश्न: प्रदूषण की समस्या और इसके प्रकार क्या हैं?

उत्तर:
प्रदूषण वह स्थिति है जिसमें पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। इसके प्रमुख प्रकार हैं:

  • वायु प्रदूषण: उद्योगों और वाहनों से उत्सर्जन।
  • जल प्रदूषण: नदियों और झीलों में कचरे का निष्कासन।
  • ध्वनि प्रदूषण: शहरी क्षेत्रों में अत्यधिक ध्वनि।
  • मृदा प्रदूषण: कृषि में रसायनों का अत्यधिक उपयोग।

9. प्रश्न: भूजल संसाधनों का दोहन क्यों होता है, और इसके परिणाम क्या हैं?

उत्तर:
भूजल संसाधनों का दोहन बढ़ती जनसंख्या, कृषि और औद्योगिक जरूरतों के कारण होता है। इसके परिणामस्वरूप जल स्तर में गिरावट, जल की गुणवत्ता में कमी, और पारिस्थितिक संतुलन का ह्रास होता है। इसे रोकने के लिए सतत जल प्रबंधन आवश्यक है।


10. प्रश्न: भूगोल और पर्यावरण के अंतर्संबंध को स्पष्ट करें।

उत्तर:
भूगोल और पर्यावरण एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। भूगोल में पृथ्वी की सतह, प्राकृतिक संसाधनों और मानवीय गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। पर्यावरण इन तत्वों के बीच अंतःक्रिया का अध्ययन करता है। किसी भी क्षेत्र के भौगोलिक कारक जैसे जलवायु, स्थलाकृति और भूमि उपयोग पर्यावरण की स्थिति को प्रभावित करते हैं।

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