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अध्याय-9: मनोविज्ञान एवं खेल

Table of Contents

मनोविज्ञान एवं खेल

मनोविज्ञान एवं खेल

मनोविज्ञान एवं खेल:

मनोविज्ञान एवं खेल से जुड़ी जानकारीः
  • खेल मनोविज्ञान, खेलकूद और शारीरिक शिक्षा से जुड़े मनोवैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन है 
  • मनोविज्ञान, मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है 
  • खेल मनोविज्ञान को व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है 
  • खेल मनोविज्ञान की शुरुआत 1890 में नॉर्मन ट्रिपलेट ने की थी 
  • 1925 में कोलमैन ग्रिफ़िथ ने इलिनोइस विश्वविद्यालय में एथलेटिक रिसर्च लेबोरेटरी बनाई
  • व्यायाम मनोविज्ञान और खेल मनोविज्ञान में, मनोवैज्ञानिक कारकों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है. ये कारक खेल, व्यायाम, और अन्य शारीरिक गतिविधियों से जुड़े होते हैं

मनोविज्ञान:-

मनोविज्ञान मानव स्वभाव और उसके व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है।

मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाना प्रकार के व्यवहारा का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है।

खेल का अर्थ: मनोविज्ञान एवं खेल

खेल, कई नियमों एवं रिवाजों द्वारा संचालित होने वाली एक प्रतियोगी गतिविधि है। खेल सामान्य अर्थ में उन गतिविधियों को कहा जाता है, जहाँ प्रतियोगी की शारीरिक क्षमता खेल के परिणाम (जीत या हार) का एकमात्र अथवा प्राथमिक निर्धारक होती है, लेकिन यह शब्द दिमागी खेल (कुछ कार्ड खेलों और बोर्ड खेलों का सामान्य नाम, जिनमें भाग्य का तत्व बहुत थोड़ा या नहीं के बराबर होता है) और मशीनी खेल जैसी गतिविधियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जिसमें मानसिक तीक्ष्णता एवं उपकरण संबंधी गुणवत्ता बड़े तत्त्व होते हैं।

सामान्यतः खेल को एक संगठित, प्रतिस्पर्धात्मक और प्रशिक्षित शारीरिक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें प्रतिबद्धता तथा निष्पक्षता होती है। कुछ देखे जाने वाले खेल इस तरह के गेम से अलग होते है, क्योंकि खेल में उच्च संगठनात्मक स्तर एवं लाभ (जरूरी नहीं कि वह मौद्रिक ही हो) शामिल होता है। उच्चतम स्तर पर अधिकतर खेलों का सही विवरण रखा जाता है और साथ ही उनका अद्यतन भी किया जाता है, जबकि खेल खबरों में विफलताओं और उपलब्धियों की व्यापक रूप से घोषणा की जाती है।

जिन खेलों का निर्णय निजी पसंद के आधार पर किया जाता है, वे सौंदर्य प्रतियोगिताओं और शरीर सौष्ठव कार्यक्रमों जैसे अन्य निर्णयमूलक गतिविधियों से अलग होते हैं, खेल की गतिविधि के प्रदर्शन का प्राथमिक केंद्र मूल्यांकन होता है, न कि प्रतियोगी की शारीरिक विशेषता। (हालाँकि दोनों गतिविधियों में “प्रस्तुति” या “उपस्थिति” भी निर्णायक हो सकती हैं)।

खेल अक्सर केवल मनोरंजन या इसके पीछे आम तथ्य को उजागर करता है कि लोगों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम करने की आवश्यकता है।

इतिहास: मनोविज्ञान एवं खेल

प्राप्त कलाकृतियों और ढाँचों से पता चलता है कि चीन के लोग लगभग 4000 ईसा पूर्व से खेल की गतिविधियों में शामिल थे।ऐसा प्रतीत होता है कि चीन के प्राचीन काल में जिम्नास्टिक एक लोकप्रिय खेल था। तैराकी और मछली पकड़ना जैसे खेलों के साथ कई खेल पूरी तरह से विकसित और नियमबद्ध थे। इनका संकेत फराहों के स्मारकों से मिलता है।मिस्र के अन्य खेलों में भाला फेंक, ऊँची कूद और कुश्ती भी शामिल थी। फारस के प्राचीन खेलों में जौरखानेह (Zourkhaneh) जैसा पारंपरिक ईरानी मार्शल आर्ट का युद्ध कौशल से गहरा संबंध था।अन्य खेलों में फारसी मूल के पोलो और खेल में सवारों का द्वंद्वयुद्ध शामिल हैं।

प्राचीन यूनानी काल में कई तरह के खेलों की परंपरा स्थापित हो चुकी थी और ग्रीस की सैन्य संस्कृति और खेलों के विकास ने एक दूसरे को काफी प्रभावित किया। खेल उनकी संस्कृति का एक ऐसा प्रमुख अंग बन गया कि यूनान ने ओलिंपिक खेलों का आयोजन किया, जो प्राचीन समय में हर चार साल पर पेलोपोनेसस के एक छोटे से गाँव में ओलंपिया नाम से आयोजित किये जाते थे।

प्राचीन ओलंपिक्स से वर्तमान सदी तक खेल आयोजित किये जाते रहे हैं और उनका विनियमन भी होता रहा है। औद्योगिकीकरण की वजह से विकसित और विकासशील देशों के नागरिकों के अवकाश का समय भी बढ़ा है, जिससे नागरिकों को खेल समारोहों में भाग लेने और दर्शक के रूप में मैदानों तक पहुँचने, एथलेटिक गतिविधियों में अधिक से अधिक भागीदारी करने और उनकी पहुँच बढ़ी है। मास मीडिया और वैश्विक संचार माध्यमों के प्रसार से ये प्रवृत्तियाँ जारी रहीं।

व्यवसायिकता की प्रधानता हुई, जिससे खेलों की लोकप्रियता में वृद्धि हुई, क्योंकि खेल प्रशंसकों ने रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से व्यावसायिक खिलाड़ियों के खेल का बेहतरीन आनंद लेना शुरू किया। इसके अलावा व्यायाम और खेल में शौकिया भागीदारी का आनंद लेने का रिवाज भी बढ़ा।

नई सदी में, नए खेल, प्रतियोगिता के शारीरिक पहलू से आगे जाकर मानसिक या मनोवैज्ञानिक पहलू को बढ़ावा दे रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक खेल संगठन दिन पर दिन लोकप्रिय होते जा रहे हैं।

क्रियाएं, जहाँ परिणाम गतिविधि पर निर्णय से निर्धारित होता है, उन्हें प्रदर्शन या प्रतिस्पर्धा माना जाता है।

खेल भावना: मनोविज्ञान एवं खेल

खेल भावना एक दृष्टिकोण है, जो ईमानदारीपूर्वक खेलने, टीम के साथियों और विरोधियों के प्रति शिष्टाचार बरतने, नैतिक व्यवहार और सत्यनिष्ठा दिखाने तथा जीत या हार में बड़प्पन के प्रदर्शन की प्रेरणा देता है।

खेल भावना एक आकांक्षा या लोकाचार को अभिव्यक्त करती है कि गतिविधि का आनंद खुद गतिविधि ही उठाये। खेल पत्रकार ग्रांटलैंड राइस का प्रसिद्ध कथन है कि “यह अहम नहीं है कि तुम हारे या जीते, अहम यह है कि तुमने खेल कैसा खेला”, आधुनिक ओलिंपिक भावना की अभिव्यक्ति इसके संस्थापक पियरे डी कॉबिरटीन ने इस प्रकार की है कि “सबसे महत्वपूर्ण बात है।..जीतना नहीं, बल्कि इसमें हिस्सा लेना” ये इस भावना की विशिष्ट अभिव्यक्ति हैं।

खेल में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और जानबूझकर आक्रामक हिंसा के बीच की रेखा को पार करने से ही हिंसा पैदा होती है। एथलीट, कोच, प्रशंसक, कभी अभिभावक कभी-कभी गुमराह वफादारी, प्रभुत्व, क्रोध, या उत्सव के तौर पर लोगों और संपत्ति को हिंसा की भेंट चढ़ा देते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में हुड़दंग और गुंडागर्दी आम बात हो गयी है और यह एक बड़ी समस्या बन गयी है।

शारीरिक कला: मनोविज्ञान एवं खेल

खेल की कला के साथ कई समानताएं हैं। आइस स्केटिंग व ताई ची और उदाहरण के लिए डाँस स्पोर्ट, ऐसे खेल हैं जो कलात्मक नजरिये के करीब होते हैं। इसी प्रकार, कलात्मक जिमनास्टिक, शरीर सौष्ठव, पार्कआवर, प्रदर्शन कला, योग, बेसबॉल, ड्रेसेज, पाक कला जैसी गतिविधियों में खेल और कला दोनों के तत्त्व दिखते हैं। शायद इसका सबसे अच्छा उदाहरण बुल फाइटिंग (साँडों से लड़ना) है, जिनकी खबरें समाचार पत्रों के कला पन्नों में छापी जाती हैं।

वस्तुत: कुछ स्थितियों में खेल, कला के इतने करीब होता है कि वह संभवत: खेल की प्रकृति से संबंधित हो जाता है। उपर्युक्त “खेल” की परिभाषा एक गतिविधि का विचार व्यक्त करती है, जो सामान्य प्रयोजनों के लिए नहीं होती, उदाहरण के लिए दौड़ना केवल कहीं पहुंचने के लिए नहीं होता, बल्कि अपने लिए दौड़ना है, जैसे कि हम दौड़ने में सक्षम हैं।

यह सौंदर्य मूल्यबोध के आम विचार के करीब है, जो वस्तु के सामान्य उपयोग से निकले विशुद्ध कार्यकारी मूल्य से ऊपर है। जैसे, सौंदर्यबोध वाली मनभावन कार वह नहीं है जो ए से बी को मिलती है, बल्कि जो अनुग्रह, शिष्टता और करिश्में से हमें प्रभावित करती है।

उसी तरह, उँची कूद जैसे खेल के प्रदर्शन में सिर्फ बाधाओं से बचने या नदियों को पार करने की गतिविधि हमें प्रभावित नहीं करती। इसमें दिखी योग्यता, कौशल और शैली से हम प्रभावित होते हैं।

कला और खेल के बीच संभवतः स्पष्ट संपर्क प्राचीन ग्रीस के समय से है, जब जिमनास्टिक और कालिस्थेनिक्स (calisthenics) ने प्रतिभागियों द्वारा प्रदर्शित शारीरिक गठन, शक्ति और ‘एरेट’ सौंदर्य की सराहना शुरू की। कौशल के रूप में ‘कला’ आधुनिक अर्थ प्राचीन ग्रीक शब्द ‘arete से संबंधित है। इस दौर में कला और खेल की निकटता ओलंपिक खेलों के जरिये दिखी, जैसा कि हमने खेल और कलात्मक उपलब्धियों दोनों के समारोहों, कविता, मूर्तिकला और वास्तुकला में देखा है।

तकनीक: मनोविज्ञान एवं खेल

खेल में प्रौद्योगिकी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, चाहे उसका किसी एथलीट के स्वास्थ्य के लिए उपयोग किया जाये या एथलीट्स की तकनीक या उपकरण की विशेषताओं के रूप में।

उपकरण चूंकि खेल और अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए हैं, इसलिए बेहतर उपकरणों की जरूरत बढ़ी है। नई तकनीक के प्रयोग से गोल्फ क्लब, फुटबॉल हेलमेट, बेसबॉल के बल्ले, फुटबॉल की गेंद, हॉकी, स्केट्स और अन्य उपकरणों में उल्लेखनीय बदलाव देखे गये हैं।

स्वास्थ्य पोषण से लेकर चोटों के इलाज तक, समय के साथ मानव शरीर के ज्ञान में बढोत्तरी होने के कारण एक खिलाड़ी की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। एथलीट अब ज्यादा उम्र का होने के बावजूद खेलने में सक्षम हैं, उनके चोट जल्दी ठीक हो रहे हैं और पिछली पीढ़ियों के एथलीटों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित हो रहे हैं।

अनुदेश प्रौद्योगिकी के विकास ने खेलों में अनुसंधान के लिए नये अवसर पैदा किये हैं। अब खेल के पहलुओं का विश्लेषण संभव है, जिन्हें पहले पहुँच से बाहर समझा जाता था। गति के चित्र लेने से लेकर खिलाड़ी की गति या उन्नत कंप्यूटर सिमुलेशन को पकड़ने से मॉडल भौतिक स्थितियों को कैद करने में सक्षम होने के कारण एथलीट के क्रियाकलापों को समझने और उनमें सुधार करने की क्षमता पैदा हुई है।

खेल में मनोविज्ञान का क्या महत्व: मनोविज्ञान एवं खेल

खेल मनोविज्ञान में ही हम खिलाड़ी के व्यवहार की जानकारी प्राप्त करते है कि जिस प्रकार प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ी किस -किस मानसिक परेशानी से जुझ रहे होते है। व किस प्रकार खिलाडियों की मानसिक परेशानी को हम दूर करते है।

खेल मनोविज्ञान:-

खेल मनोविज्ञान वह क्षेत्र है जो मनोविज्ञान तथ्यों,  सीखने के सिद्धांतों,  प्रदर्शन और खेलकूद में मानवीय व्यवहार के संबंधों में लागू होता है।

खेल मनोविज्ञान का महत्त्व:-

  • प्रदर्शन में सुधार:-

खेल मनोविज्ञान एथलीटों या खिलाड़ियों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए आत्मविश्वास में सुधार करने में सहायता करता है। खेल मनोविज्ञान का ज्ञान खिलाड़ियों वैज्ञानिक तरीकें से उनकें व्यवहार में परिवर्तन कर उनके प्रदर्शन और व्यक्तित्व में सुधार करता है।

  • प्रेरणा और प्रतिक्रिया:-

उचित प्रेरणा और प्रतिक्रिया खिलाड़ियों कें प्रदर्शन को बढ़ाती है, यह खिलाड़ियों को परामर्श देती है कि वह प्रदर्शन में सुधार किस प्रकार ला सकते है। यह खेल मनोविज्ञान द्वारा निर्देशित किया जाता है।

  • अच्छें खिलाड़ियों के चुनाव में सहायक:-

खेल मनोविज्ञान प्रशिक्षकों को अच्छे खिलाड़ियों के चुनाव में मदद करता है। इस ज्ञान के द्वारा उन्हें खिलाड़ियों के व्यवहार को समझाने में मदद मिलती है, इसके साथ वह उन्हें अच्छे तरीके से प्रशिक्षित कर सकते है।

अभ्यास का नियम: मनोविज्ञान एवं खेल

ह नियम इस बात पर बल देता है कि सही अभ्यास ही एक व्यक्ति को पूर्ण बनाता है। एक व्यक्ति एक ही कौशल का बार-बार अभ्यास करने से कौशल में प्रवीन हो जाता है। यह नियम उपयोग एवं अनुपयोग के नियम जैसा है। इसमें अभ्यास तथा दोहराव के नियम समाहित है। हम सीखते हैं और उपयोग के द्वारा संजोते हैं तथा अनुप्रयोग के द्वारा भूल जाते हैं।

सीखने के गौण नियमःमनोविज्ञान एवं खेल

  • निकटता का नियम
  • समीकरण का नियम
  • संबंध का नियम
  • अभिवृति का नियम
  • प्राथमिकता का नियम

वृद्धि:-

वृद्धि का अर्थ है आकार, भार, लम्बाई, चौड़ाई आदि में बढ़ोतरीविकास : विकास का अर्थ शरीर में गुणात्मक परिर्वतन है जैसे बच्चे की कार्यकुशलता,  कार्यक्षमता और व्यवहार में प्रगति।

विकास एवं वृद्धि की विभिन्न अवस्थाएं:-

  • शैशवावस्था – 0 से 5 वर्ष
  • बाल्यावस्था – 6 से 9 वर्ष
  • बचपन – 19 से 12 वर्ष
  • किशोरावस्था – 12 से 18 वर्ष
  • वयस्कता – 18 वर्ष से

वृद्धि और विकास में अन्तर:-मनोविज्ञान एवं खेल

  • वृद्धि:-
  • वृद्धि परिणात्मक है।
  • वृद्धि के अंतर्गत शरीर के अंग,  जैसे मस्तिष्क, वजन, लम्बाई, आकार, आकृति आते हैं।
  • वृद्धि को देखा और महसूस किया जा सकता है।
  • वृद्धि के साथ – साथ यह आवश्यक नहीं कि विकास भी हो।
  • विकास:-
  • विकास परिणात्मक के साथ – साथ गुणात्मक भी है।
  • विकास में शारीरिक परिवर्तनों के साथ – साथ सामाजिक तथा भावनात्मक परिवर्तन समाहित है।
  • विकास केवल परिपक्व व्यवहार के द्वारा मापा जा सकता है और वह अदृश्य है।
  • विकास बिना वृद्धि के भी संभव है।

किशोरावस्था:-

वह अवस्था है,  जिसमें मनुष्य बाल्यावस्था से परिपक्व अवस्था की ओर बढ़ता है।

किशोरावस्था की दों विकासात्मक विशेषता: मनोविज्ञान एवं खेल

शारीरिक विशेषताएँ:-

  • इस अवस्था में ऊँचाई वजन और हड्डियों में वृद्धि लगभग पूरी हो जाती है।
  • धैर्य काफी हद तक विकसित हो जाता है।
  • मांसपेशियों में समन्वय चरम सीमा पर पहुँच जाता है ।
  • लड़कियों में मासिक धर्म तथा लड़कों में स्वप्न दोष शुरू हो जाता है।

मानसिक विशेषताएँ:-

  • किशोरों में शारीरिक तथा मानसिक वृद्धि साथ-साथ होती है।
  • इस अवस्था में, आलोचना करने की योग्यता, निर्णय लेने की योग्यता, नए-नए विचारों और आदर्शों को ढूँढने की योग्यता का विकास होता है।
  • इस अवस्था में मानसिक तनाव, कुंठा तथा चिन्ता बढ़ने लगती है। उनकी उच्च आकांक्षाएं होती है।
  • कभी-कभी उनका व्यवहार आक्रामक हो जाता है।

किशोरों की समस्याएं:-

  • उदासी
  • कम आत्मसम्मान
  • विवाह पूर्ण यौन सम्बंधी समस्याएं
  • नशीली दवाओं का दुरूपयोग
  • अपराधिक और सामाजिक गतिविधि

किशोरावस्था की समस्याओं के समाधान:-

  • माता पिता की सहानुभूति और उदार रवैया या व्यवहार। 
  • घर और स्कूल में स्वस्थ वातावरण।
  • किशोर मनोविज्ञान का समुचित ज्ञान।
  • उचित यौन शिक्षा।
  • सही दिशा में ऊर्जा का प्रवाह।

बाल्यावस्था की किन्हीं दो विकासात्मक: मनोविज्ञान एवं खेल

शारीरिक विकास:

  • इस अवस्था में एक बच्चे की वृद्धि धीमी, स्थिर और एक समान रहती है।
  • बच्चा अपने आत्म-सम्मान के प्रति सचेत हो जाता हैं।
  • दूध के दाँत गिरने शुरू हो जाते हैं और स्थायी दाँत आने शुरू हो जाते हैं।
  • इस अवधि के दौरान लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में वृद्धि अधिक होती हैं।

बौद्धिक विकास

  • इस अवधि के दौरान बच्चे नए अनुभव प्राप्त करते हैं और उन्हें व्यवहार में लाते हैं।
  • उनके मानसिक ज्ञान में बढ़ोतरी होती है।
  • इस अवस्था में, उनकी गामक कौशलों को सीखने की योग्यता बहुत अच्छी हो जाती है।
  • वे समान आयु के लड़के व लड़कियों के साथ खेलते हैं।

प्लैट्यू या स्थिरांक को काबू पाने के तरीकों

  1. रूचि विकसित करना
  2. प्रतियोगिताओं में कमी

समुचित आराम एवं आरोग्य प्राप्ति

  • रूचि विकसित करना:-

स्थिरांक को काबू करने के लिए प्रशिक्षण में रूचि एवं मनोरंजन को विकसित करना। यह गतिविधि प्रदर्शन के लिए आनन्द एवं खुशी प्रदान करती है।

  • प्रतियोगिताओं में कमी:-

प्लैट्यू को रोकने के लिए ज्यादा प्रतिस्पर्धा करने से परहेज किया जाना चाहिए एवं बराबर स्तर के विरोधियों के साथ प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए।

  • समुचित आराम एवं आरोग्य प्राप्ति:-

स्थिरांक पर काबू पाने के लिए समुचित आराम जरूरी है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह बहुत लंबा नहीं होना चाहिए।

भावनाओं की अवधारणाओं की व्याख्या

भावनाएं आतंरिक या बाहरी घटनाओं की प्रतिक्रिया करने की योग्यता है यह जीव के लिए विशेष महत्त्व रखती है। यह प्रतिक्रियाएं मौखिक, शारीरिक, व्यवहारिक और प्राकृतिक तंत्र से जुड़ी हो सकती हैं। भावनाएं सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती हैं जैसे खुशी बनाम उदासी, क्रोध बनाम डर विश्वास बनाम अंधविश्वास आश्चर्य बनाम अपेक्षा।

FAQs on मनोविज्ञान एवं खेल (Psychology and Sports)

1. मनोविज्ञान और खेल का आपस में क्या संबंध है?

मनोविज्ञान खेल प्रदर्शन, मानसिक तैयारी और खिलाड़ियों के व्यवहार को समझने और सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह खिलाड़ियों की आत्मविश्वास बढ़ाने, तनाव प्रबंधन, ध्यान केंद्रित करने और टीम वर्क सुधारने में मदद करता है।

2. खेल मनोविज्ञान क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?

खेल मनोविज्ञान एक विशेष शाखा है जो खिलाड़ियों के मानसिक और भावनात्मक पहलुओं का अध्ययन करती है। इसका उद्देश्य खेल प्रदर्शन को बेहतर बनाना, प्रेरणा बढ़ाना, और खिलाड़ियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाना है।

3. तनाव और चिंता को कैसे प्रबंधित किया जा सकता है?

खिलाड़ियों को तनाव और चिंता प्रबंधित करने के लिए ध्यान केंद्रित करना, सकारात्मक सोच अपनाना, गहरी सांस लेने के अभ्यास और योग जैसी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। मनोवैज्ञानिक सहायता भी प्रभावी होती है।

4. प्रेरणा खेलों में कैसे काम करती है?

प्रेरणा खिलाड़ियों को उनके लक्ष्य तक पहुंचने के लिए ऊर्जा और दिशा प्रदान करती है। इसे आंतरिक (आत्म-संतुष्टि) और बाहरी (पुरस्कार, मान्यता) रूपों में विभाजित किया जा सकता है। प्रशिक्षक प्रेरक तकनीकों का उपयोग करके इसे प्रोत्साहित कर सकते हैं।

5. खेलों में ध्यान केंद्रित करने के लिए कौन-कौन सी रणनीतियाँ उपयोगी हैं?

ध्यान केंद्रित करने के लिए खिलाड़ी ध्यान अभ्यास, मानसिक छवि निर्माण, ध्यान विचलित करने वाले तत्वों को पहचानने और सकारात्मक स्व-चर्चा का सहारा ले सकते हैं। नियमित अभ्यास ध्यान केंद्रित रखने में मदद करता है।

6. टीम वर्क और मनोविज्ञान का खेलों में क्या महत्व है?

टीम वर्क खेल के परिणाम को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण पहलू है। मनोविज्ञान टीम सदस्यों के बीच संचार, आपसी विश्वास और सहयोग को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे प्रदर्शन में सुधार होता है।

7. खेलों में आत्मविश्वास को बढ़ाने के तरीके क्या हैं?

आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए खिलाड़ी को अपने कौशल में महारत हासिल करनी चाहिए, सकारात्मक आत्म-चर्चा करनी चाहिए, और छोटे-छोटे लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहिए। प्रशिक्षकों और साथियों से समर्थन भी आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है।

8. खेल मनोवैज्ञानिक की भूमिका क्या होती है?

खेल मनोवैज्ञानिक खिलाड़ियों और टीमों को मानसिक चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है। वह मानसिक तैयारी, प्रदर्शन के दौरान चिंता प्रबंधन और खेल के बाद आत्म-विश्लेषण में सहायता करता है।

9. खेल में मानसिक दृढ़ता कैसे विकसित की जा सकती है?

मानसिक दृढ़ता विकसित करने के लिए खिलाड़ी को नियमित रूप से सकारात्मक सोच, ध्यान तकनीकों, और कठिन परिस्थितियों का सामना करने का अभ्यास करना चाहिए। यह मानसिक लचीलापन और आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है।

10. क्या खेल मनोविज्ञान केवल पेशेवर खिलाड़ियों के लिए है?

नहीं, खेल मनोविज्ञान हर स्तर के खिलाड़ियों के लिए उपयोगी है। चाहे वे शौकिया खिलाड़ी हों, स्कूल के छात्र हों, या पेशेवर खिलाड़ी, यह उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को सुधारने में मदद कर सकता है।

 

अध्याय-10: खेलकूद में प्रशिक्षण और डोपिंग

 

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