- यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति:
- भूमिका
- समाजवाद का उदय: यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- रूसी क्रांति (1917): यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- समाजवादी नीतियां और उनका प्रभाव:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- समाजवाद और रूसी क्रांति का वैश्विक प्रभाव:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- आलोचना और चुनौतियां:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- निष्कर्ष:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Q/A
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- यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति:
यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति:
भूमिका
19वीं और 20वीं सदी के दौरान यूरोप में समाजवाद का उदय और 1917 की रूसी क्रांति विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह समयकाल पूंजीवाद के विरोध, श्रमिक वर्ग के अधिकारों की मांग और समाजवादी विचारधारा के प्रसार के लिए जाना जाता है। समाजवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधनों का नियंत्रण समाज के हाथों में होता है, और इसका उद्देश्य समानता, सामाजिक न्याय, और शोषण का अंत करना है।
समाजवाद का उदय: यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- औद्योगिक क्रांति और पूंजीवाद का प्रभाव:
18वीं और 19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने यूरोप में उत्पादन के तरीकों को बदल दिया। हालांकि इससे उत्पादन में वृद्धि हुई, लेकिन समाज में असमानता भी बढ़ी। मजदूर वर्ग को अत्यधिक शोषण, लंबे कार्य घंटे, कम वेतन और खराब जीवन-स्थिति का सामना करना पड़ा। - समाजवाद की शुरुआत:
समाजवाद का उदय पूंजीवादी व्यवस्था के विकल्प के रूप में हुआ। समाजवादी विचारकों ने तर्क दिया कि संसाधनों और उत्पादन के साधनों का समाज के लाभ के लिए सामूहिक स्वामित्व होना चाहिए। - प्रमुख समाजवादी विचारक:
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स:
कार्ल मार्क्स को समाजवाद का सबसे प्रमुख विचारक माना जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक “द कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो” (1848) में वर्ग संघर्ष की अवधारणा को समझाया। मार्क्स के अनुसार, इतिहास वर्ग संघर्षों का परिणाम है और श्रमिक वर्ग (प्रोलिटेरियट) को पूंजीवादी शोषण से मुक्त करने के लिए क्रांति आवश्यक है। - रॉबर्ट ओवेन:
उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम किया और सहकारी आंदोलन को बढ़ावा दिया। - चार्ल्स फूरियर:
उन्होंने समाजवाद के माध्यम से समाज में सामंजस्य और समानता स्थापित करने का समर्थन किया।
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स:
- समाजवाद का प्रसार:
19वीं सदी में समाजवादी विचारधारा पूरे यूरोप में फैली। मजदूर वर्ग ने अपने अधिकारों के लिए ट्रेड यूनियन और समाजवादी पार्टियों का गठन किया। 1864 में पहली अंतर्राष्ट्रीय (International Workingmen’s Association) का गठन हुआ, जिसने श्रमिक आंदोलन को संगठित किया।
रूसी क्रांति (1917): यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- पृष्ठभूमि:
रूस 20वीं सदी की शुरुआत में एक कृषि प्रधान देश था। अधिकांश भूमि पर जमींदारों का अधिकार था, और किसान गरीब और अशिक्षित थे। औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों को शोषण का सामना करना पड़ रहा था। इसके साथ ही, ज़ार निकोलस II की निरंकुशता और प्रथम विश्व युद्ध ने जनता की समस्याओं को और बढ़ा दिया। - 1905 की क्रांति:
1905 में, रूस में पहली बार जनविद्रोह हुआ, जिसे “ब्लडी संडे” के नाम से जाना जाता है। यह ज़ार की सत्ता के खिलाफ जनता की असंतोष को दर्शाता है। हालांकि, ज़ार ने कुछ सुधारों की घोषणा की, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। - फरवरी क्रांति (1917):
- फरवरी 1917 में, ज़ार निकोलस II को सत्ता से हटाया गया।
- अस्थायी सरकार (प्रोविजनल गवर्नमेंट) का गठन किया गया।
- लेकिन अस्थायी सरकार जनता की समस्याओं को हल करने में विफल रही।
- अक्टूबर क्रांति (1917):
- अक्टूबर 1917 में, व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने सत्ता पर कब्जा कर लिया।
- इस क्रांति को मार्क्सवादी विचारधारा के तहत संगठित किया गया था।
- बोल्शेविकों ने भूमि का पुनर्वितरण, श्रमिकों के अधिकार, और समाजवादी आर्थिक नीतियों को लागू किया।
समाजवादी नीतियां और उनका प्रभाव:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- भूमि सुधार:
रूसी क्रांति के बाद, भूमि जमींदारों से छीनकर किसानों में बांटी गई। इससे किसानों की स्थिति में सुधार हुआ। - उद्योगों का राष्ट्रीयकरण:
बोल्शेविक सरकार ने उद्योगों को निजी मालिकों से लेकर सरकारी नियंत्रण में ले लिया। - योजना आधारित अर्थव्यवस्था:
सोवियत संघ ने पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया, जिसका उद्देश्य उत्पादन बढ़ाना और देश को आत्मनिर्भर बनाना था। - शिक्षा और स्वास्थ्य:
समाजवादी सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाया। - सामाजिक समानता:
समाजवादी नीतियों का उद्देश्य सामाजिक वर्गों के बीच असमानता को कम करना था।
समाजवाद और रूसी क्रांति का वैश्विक प्रभाव:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- विश्व श्रमिक आंदोलन:
रूसी क्रांति ने विश्व भर के श्रमिक आंदोलनों को प्रेरित किया। कई देशों में साम्यवादी पार्टियों का गठन हुआ। - साम्यवाद बनाम पूंजीवाद:
रूसी क्रांति के बाद, विश्व में साम्यवाद और पूंजीवाद के बीच संघर्ष गहराया। यह संघर्ष शीत युद्ध (Cold War) के रूप में देखा गया। - औपनिवेशिक देशों में प्रभाव:
समाजवादी विचारधारा ने औपनिवेशिक देशों में स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया। भारत में भी समाजवादी और साम्यवादी विचारों का प्रभाव स्वतंत्रता आंदोलन पर पड़ा। - वैश्विक राजनीति में बदलाव:
रूसी क्रांति ने विश्व राजनीति में समाजवादी विचारधारा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया।
आलोचना और चुनौतियां:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन:
सोवियत संघ में समाजवादी नीतियों को लागू करते समय व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित किया गया। - सत्तावाद का उदय:
समाजवादी सरकार में सत्ता का केंद्रीकरण हुआ और असंतोष को दबाने के लिए बल प्रयोग किया गया। - आर्थिक समस्याएं:
समाजवादी नीतियों के कारण उत्पादन और संसाधनों के उपयोग में अक्षम्यताएं उत्पन्न हुईं। - वैश्विक प्रतिस्पर्धा:
पूंजीवादी देशों के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण समाजवादी देशों को अपने सिद्धांतों में लचीलापन लाना पड़ा।
निष्कर्ष:यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
यूरोप में समाजवाद का उदय और रूसी क्रांति ने इतिहास को एक नया मोड़ दिया। इन घटनाओं ने समाज में समानता और न्याय की अवधारणा को बढ़ावा दिया। हालांकि, इनका प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही रहा। समाजवाद ने यह सिद्ध किया कि सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समाप्त करना संभव है, लेकिन इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ कि किसी भी प्रणाली में सुधार और संतुलन आवश्यक है।
यह घटनाएं आज भी समाज और राजनीति में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं और एक अधिक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं।
यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Q/A
प्रश्न -1 रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1950 से पहले कैसे थे?
उत्तर – बीसवीं सदी की शुरुआत में रूस की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ था। रूसी साम्राज्य की लगभग 85% जनता आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थी। सामाजिक स्तर पर मजदूर बाटे हुए थे। कुछ मजदूर अपने मूल गांव के साथ अभी भी गहरे संबंध बनाए हुए थे। बहुत सारे मजदूर स्थायी रूप से शहरों में ही बस चुके थे। उनके बीच योग्यता और दक्षता के स्तर पर भी काफी फर्क था। फैक्ट्री में मजदूरों औरतों की संख्या 31% थी। लेकिन उन्हें पुरुष मजदूरों के मुकाबले कम वेतन था। मर्दों की तनख्वाह के मुकाबले आधे से तीन-चौथाई था। मजदूरों के बीच मौजूद फासला उनके पहनावे और व्यवहार में भी साफ दिखाई देता था।
कुछ मजदूरों ने बेरोजगारी या आर्थिक संकट के समय एक-दूसरे की मदद करने के लिए संगठन बना लिए थे। लेकिन ऐसे संगठन बहुत कम थे। शहर में कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को कम वेतन दिया जाता था। उनकी आय कम होने के कारण उनके सामाजिक जीवन को चलाने के लिए काफी नहीं था। कारखाने में मजदूरों को 15 घंटे काम करना पड़ता था।
प्रश्न 2 – 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थे?
उत्तर – 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले निम्न स्तरों पर भिन्न थी।
रूसी साम्राज्य की लगभग 85% जनता आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थी। यूरोप के किसी भी देश में खेती पर आश्रित जनता का प्रतिशत इतना नहीं था। उदाहरण – के तौर पर, फ्रांस और जर्मनी में खेती पर निर्भर आबादी 40 से प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी।
रूसी साम्राज्य के किसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ बाजार के लिए भी पैदावार करते थे। रूसी किसान यूरोप के बाकी किसानों के मुकाबले एक और लिहाजा से भी भिन्न थे। यहां के किसान समय-समय पर सारी जमीन को अपने कम्यून को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की जरूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बांटता था। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान ब्रिटेन के किसान ना केवल नवाबों का सम्मान करते थे बल्कि उन्होंने नवाबों को बचाने के लिए बकायदा लड़ाइयां भी लड़ी। इसके विपरीत रूस के किसान चाहते थे कि नवाबों की जमीन छीन कर किसानों के बीच बांट दी जाए। बहुधा वह लगान भी नहीं छुपाते थे।
प्रश्न 3 – 1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर – 1917 में जार का शासन निम्नलिखित कारणों से खत्म हो गया –
इस युद्ध को शुरू-शुरू में रूसीयों का काफी समर्थन मिला। जनता ने जार का साथ दिया। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध लंबा खींचता गया, जार ने ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा।
- जार ने अपनी खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए राजनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। जिसके कारण जनता में असंतोष उत्पन्न हो गया था। प्रथम विश्व युद्ध के ‘ पूर्वी मोर्चे’ पर चल रही लड़ाई ‘ पश्चिमी मोर्चे’ की लड़ाई से भिन्न थी। पश्चिम में सैनिक पूर्वी फ्रांस की सीमा पर बनी खाइयों से लड़ाई लड़ रहे थे जबकि पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफी बड़ा फासला तय कर लिया था। इस मोर्चे पर बहुत सारे सैनिक मौत के मुंह में जा चुके थे।
- पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फसलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहां टिक ही ना सके।
- खाद्य पदार्थ की संकट काफी बढ़ गई थी। इस कारण से भी जार शासन को आलोकप्रिय बना दिया। 2 मार्च को जार गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर हो गया और इस तरह से निरकुशता का अंत हो गया।
प्रश्न – 4 दो सूचियां बनाइए: एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभाव को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रांति के प्रमुख घटनाओं और प्रभाव को दर्ज कीजिए।
उत्तर – फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभाव –
- 22 फरवरी को दाएं तट पर स्थित एक फैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फैक्ट्री के मजदूरों के समर्थन में 50 फैक्ट्रियों के मजदूरों ने भी हड़ताल का ऐलान कर दिया।
- 24 और 25 तारीख को वह फिर इकट्ठा होने लगे। इसको देखते हुए सरकार ने उन पर नजर रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया।
- रविवार 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया।
- 26 तारीख को प्रदर्शनकारी बहुत बड़ी संख्या में बाएं तट के इलाके में इकट्ठा हो गए।
- 27 तारीख को उन्होंने पुलिस मुख्यालय पर हमला करके उन्हें तहस-नहस कर दिया। रोटी, तनख्वाह, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते भारी संख्या में लोग सड़कों पर जमा हो गए।
- 2 मार्च को जार ने गद्दी छोड़ दी। जार के शासन का इस तरह से अंत हो गया।
अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभाव –
(i) 16 अक्टूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्जा करने के लिए राजी कर लिया।
(ii) 24 अक्टूबर को विद्रोह शुरू हो गया। संकट की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री केरेस्की सैनिक टुकड़ियों को इकट्ठा करने शहर से बाहर चले गए। दो बोल्शेविक अखबारों के दफ्तरों पर घेरा डाल दिया। टेलीफोन और टेलीग्राफ दफ्तरों पर नियंत्रण प्राप्त करने और विंटर पैलेस की रक्षा करने के लिए सरकार समर्थन सैनिकों को रवाना कर दिया गया। आरेरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस बमबारी शुरू कर दी। नेवा के रास्ते से आगे बढ़ते हुए विभिन्न सैनिक ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया। शाम ढलते-ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ चुका था।
(iii) दिसंबर तक मास्को – पेत्रोग्राद इलाकों पर बोल्शेविक का नियंत्रण स्थापित हो चुका था। फरवरी क्रांति के कारण राजवंश का अंत हुआ। अक्टूबर में क्रांति के बाद बोल्शेविको ने सत्ता पर अपना नियंत्रण कर लिया और इस तरह से रूस में साम्यवादी दौर का आरंभ हुआ।
प्रश्न 5 – बोल्शेविको ने अक्टूबर क्रांति के फौरन बाद कौन – कौन से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर – बोल्शेविको ने उद्योगों और बैंकों के राष्ट्रीयकरण को जारी रखा। शासन के लिए केंद्रीकृत नियोजन की व्यवस्था लागू की गई।
- निजी संपत्ति को खत्म कर दिया गया।
- किसानों को उस जमीन पर खेती करने की छूट दे दी गई जिसका समाजीकरण किया जा चुका था।
- सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई गई।
- मजदूरों के लिए आदर्श रिहायशी मकान बनाए गए।
प्रश्न 6- निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए :
- कुलक।
- ड्यूमा।
- 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार।
- उदारवादी।
- स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर – कुलक – रूस में बड़े किसानों को कुलक कहा जाता था। कुलकों को खेतों में अनाज उगाने एवं उसको इकट्ठा करने के साथ-साथ निरीक्षण का भी काम करते थे।
ड्यूमा – प्रथम ड्यूमा 75 दिनों के अंदर स्थगित कर दिया गया था। निर्वाचित परामर्शी संसद को ड्यूमा कहते हैं।
1900 से 1930 के बीच महिला कामगार – महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम मजदूरी दी जाती थी। 22 फरवरी 1971 को महिलाओं ने हड़ताल की। इस दिन को ‘ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है।
उदारवादी – उदारवादी रूस में सामाजिक परिवर्तन के पक्ष में थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए। वो पुरुषों को वोट देने के मत में थे लेकिन महिलाओं के वोट देने के अधिकार विरुद्ध थे। उनका मानना था कि सिर्फ पुरुषों को ही वोट देने का अधिकार होना चाहिए। उदारवादी लोगों के अधिकारों की रक्षा के समर्थन में थे।
स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम – सामूहिक खेत करने के लिए उन्हें बाध्य किया जाता था। छोटे-छोटे खेतों को जोड़कर एक विशाल जमीन को बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा था। छोटे जमीन के टुकड़ों को इकट्ठा करके एक बड़ी जमीन जमा कर लिया गया और इसी को स्तालिन का सामूहिकीकरण की प्रक्रिया कहा गया।