12th Polity

Chapter 1- राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ (Challenges of Nation-Building) B2

Table of Contents

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ: एक परिचय

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी प्राथमिकता राष्ट्र निर्माण की थी। यह न केवल एक राजनीतिक कार्य था, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत जटिल प्रक्रिया थी। 1947 में देश का विभाजन, सांप्रदायिक हिंसा, और लाखों शरणार्थियों का पुनर्वास इस कार्य को और भी चुनौतीपूर्ण बना देते थे।

चुनौतियों की प्रकृति
देश के सामने मुख्य तीन प्रकार की चुनौतियाँ थीं:

  1. राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखना:
    विविधताओं से भरे देश में भाषाई, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय मतभेदों के बीच एकता स्थापित करना एक बड़ा कार्य था। विभाजन के कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था, और कई क्षेत्रों में अलगाववादी प्रवृत्तियां देखने को मिलीं।
  2. लोकतंत्र की स्थापना:
    स्वतंत्रता के बाद भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में संगठित करना एक ऐतिहासिक प्रयास था। लेकिन जनता को लोकतांत्रिक मूल्यों से परिचित कराना, संस्थाओं को स्थिर करना, और राजनैतिक स्थायित्व लाना कठिन कार्य था।
  3. आर्थिक पुनर्निर्माण और विकास:
    ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह से शोषित और कमजोर हो चुकी थी। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और आधारभूत संरचना की कमी जैसी समस्याओं ने इसे और जटिल बना दिया।

सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता में एकता का प्रयास
भारत ने एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान को अपनाकर यह दिखाया कि विविधताओं के बावजूद राष्ट्र एक साथ रह सकता है। संविधान सभा ने संघीय ढांचे और मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया, जिससे नागरिकों में समानता और न्याय की भावना पैदा हुई।

विभाजन और पुनर्वास के प्रभाव
भारत के विभाजन ने देश को गहरे घाव दिए। लाखों शरणार्थियों का पुनर्वास, उनकी आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी।

राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका
पंडित नेहरू और सरदार पटेल जैसे नेताओं ने इन चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संभालने का प्रयास किया। जहां नेहरू ने आधुनिकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और समाजवाद पर जोर दिया, वहीं पटेल ने रियासतों के एकीकरण और प्रशासनिक स्थायित्व में अहम भूमिका निभाई।

इन चुनौतियों से जूझते हुए भारत ने एक सशक्त लोकतंत्र, विविधताओं में एकता, और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए, जो आज भी राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणा देते हैं।

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

Importent FAQs related to the topic राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ


1. स्वतंत्र भारत में राष्ट्र निर्माण की सबसे प्रमुख चुनौतियाँ क्या थीं?

भारत को स्वतंत्रता के समय तीन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रखना: विविध भाषाओं, धर्मों, और जातियों के देश में सांप्रदायिक एकता को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण था।
  • लोकतंत्र की स्थापना: एक स्थिर लोकतांत्रिक शासन स्थापित करना।
  • आर्थिक विकास और पुनर्निर्माण: विभाजन के कारण शरणार्थियों का पुनर्वास, गरीबी उन्मूलन, और औद्योगिक विकास।

2. 1947 में भारत विभाजन ने राष्ट्र निर्माण को कैसे प्रभावित किया?

भारत विभाजन ने सांप्रदायिक हिंसा, बड़े पैमाने पर शरणार्थी संकट और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया।

  • पाकिस्तान के निर्माण ने क्षेत्रीय अखंडता पर प्रश्न खड़ा किया।
  • विभाजन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा ने सांप्रदायिक एकता की भावना को कमजोर किया।

3. रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका क्या थी?

सरदार पटेल को “लौह पुरुष” कहा जाता है, जिन्होंने 500 से अधिक रियासतों को भारतीय संघ में जोड़ा।

  • पटेल ने साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाई।
  • हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी समस्याग्रस्त रियासतों को भारत में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

4. संविधान निर्माण राष्ट्र निर्माण के लिए कैसे महत्वपूर्ण था?

भारतीय संविधान ने देश को एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था प्रदान की।

  • संविधान में मौलिक अधिकार और संघीय ढांचा, राष्ट्रीय एकता और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित किए गए।
  • यह विभाजन के बाद के सांप्रदायिक तनाव को शांत करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने में सहायक हुआ।

5. कांग्रेस प्रणाली और एक-दलीय प्रभुत्व राष्ट्र निर्माण में कैसे सहायक रहे?

नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक-दलीय शासन स्थापित किया।

  • इससे राजनीतिक स्थिरता मिली।
  • यह प्रणाली नई नीतियों के निर्माण और लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने में सहायक रही।

6. शीत युद्ध का राष्ट्र निर्माण पर क्या प्रभाव पड़ा?

शीत युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई।

  • इसने भारत को आर्थिक और सैन्य सहायता प्राप्त करने में मदद की।
  • भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई।

7. भारत के आर्थिक विकास में नियोजित अर्थव्यवस्था की क्या भूमिका थी?

भारत ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता दी।

  • हरित क्रांति और औद्योगिक विकास से आत्मनिर्भरता बढ़ी।
  • आर्थिक असमानता कम करने के लिए भूमि सुधार और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम लागू किए गए।

8. भारत की विदेश नीति का राष्ट्र निर्माण में क्या योगदान है?

  • नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति ने भारत को वैश्विक शांति और विकास में भाग लेने की अनुमति दी।
  • पड़ोसी देशों के साथ संबंध स्थापित करने और औपनिवेशिक विरासत को दूर करने में मदद मिली।

9. क्षेत्रीय आकांक्षाओं का समाधान राष्ट्र निर्माण के लिए क्यों आवश्यक था?

अनेक राज्यों में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ अलगाववाद की ओर बढ़ने लगीं।

  • भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन (1956) किया गया।
  • इन आकांक्षाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से हल किया गया।

10. आज के संदर्भ में राष्ट्र निर्माण की क्या चुनौतियाँ हैं?

  • सामाजिक असमानता: जातीय और लैंगिक भेदभाव।
  • आर्थिक असमानता: ग्रामीण-शहरी विभाजन।
  • सांप्रदायिकता और अलगाववाद: सांप्रदायिक तनाव और उग्रवाद।
  • वैश्वीकरण का प्रभाव: पारंपरिक मूल्यों का क्षरण और आर्थिक अस्थिरता।

Also Visit eStudyzone for English Medium