रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे
रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे
श्रमिक
वे सभी व्यक्ति जो किसी भी आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं|
आर्थिक क्रिया
सकल राष्ट्रिय उत्पाद (GNP) में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को हम आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं|
सकल घरेलु उत्पाद (GDP)
किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य इसका ‘सकल घरेलू उत्पाद’ कहलाता है।
आर्थिक क्रिया एवं उत्पादन क्रिया में अंतर : आर्थिक क्रिया एवं उत्पादन क्रिया में अंतर है ये दोनों एक नहीं है|उत्पादन क्रिया आर्थिक क्रिया का एक भाग है अर्थात उत्पादन क्रिया आर्थिक में शामिल है|
किसी भी उत्पादन क्रिया में हम या तो स्व-नियोजित होते है या भाड़े के मजदूर लगाकर उत्पादन क्रिया को करते है|
मजदूरों के प्रकार
- स्व-नियोजित मजदूर: वे सभी मजदूर जो अपने उद्यम के स्वामी और संचालक हैं, उन्हें स्वनियोजित मजदूर कहा जाता है|
- भाड़े के मजदूर: वे लोग जो भाड़े पर दूसरों का काम करते है तथा अपनी सेवाओं के पुरुस्कार के रूप में मजदूरी/वेतन प्राप्त करते हैं, भाड़े के मजदूर कहलाते है|
भाड़े के मजदूर दो प्रकार के होते हैं|
- नियमित मजदूर : जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यमी नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी (वेतन) देता है, तो वह श्रमिक नियमित मजदूर अथवा नियमित वेतन भोगी कर्मचारी कहलाता है|
- अनियमित मजदूर : ऐसे श्रमिक जिन्हें कोई व्यक्ति या उद्यमी नियमित रूप से काम पर नहीं रखता है, सिर्फ उसे दैनिक मजदूरी पर ही रखता है, अनियमित मजदूर कहलता है|
ऐसे मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ जैसे- भविष्य निधि (Provident Fund), पेंशन (Pension) आदि नहीं मिलता हैं| इनका नाम उद्यम के स्वामियों के स्थायी वेतन सूचियों में नहीं होता हैं|
नियमित मजदुर और अनियमित मजदूर में अंतर :
नियमित मजदुर :
- ये वेतन पर काम करते हैं और इन्हें नियमित रूप से काम पर रखा जाता है|
- इनका नाम स्थायी वेतन सूची में दर्ज होता है|
- इनका प्रतिदिन काम करने का समय निश्चित होता है|
- इन्हें सामाजिक सुरक्षा के सभी सुविधाएँ प्राप्त होती है|जैसे – स्वाथ्य, पेंशन, भविष्य निधि आदि|
- ये मजदूर कुशल होते है|
अनियमित मजदुर :
- ये दैनिक मजदूरी पर काम करते है, और इन्हें नियमित कार्य पर नहीं रखा जाता है|
- इनका नाम स्थायी वेतन सूची में दर्ज नहीं होता है|
- इनका काम करने का समय निश्चित नहीं होता है|
- ऐसे मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ जैसे- भविष्य निधि (Provident Fund), पेंशन (Pension) आदि नहीं मिलता हैं|
श्रम आपूर्ति (Labour Supply) : श्रम आपूर्ति से अभिप्राय श्रम की उस मात्रा से है जिसे मजदूर एक विशेष मजदूरी दर पर स्वेच्छापूर्वक अर्पित करते है|
श्रम बल (Labour Force): श्रम बल से अभिप्राय है श्रमिकों कि उस संख्या से जो वास्तव में काम कर रहे हैं या काम करने के इक्छुक हैं|
कार्यबल (Workforce) : कार्यबल से अभिप्राय काम करने वाले इन व्यक्तियों से है जो वास्तव में कार्य कर रहे हैं न कि काम करने के इच्छुक है|
NCERT SOLUTIONS
अभ्यास (पृष्ठ संख्या 139-140)
प्रश्न 1 श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर- सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को हम आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं।
प्रश्न 2 श्रमिक-जनसंख्या अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर- श्रमिक-जनसंख्या अनुपात यह जानने में सहायक है कि जनसंख्या का कितना अनुपात वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। यह देश के कुल श्रमशक्ति और कुल जनसंख्या के बीच के अनुपात के द्वारा मापा जाता है।
प्रश्न 3 क्या ये भी श्रमिक हैं- एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर, एक जुआरी? क्यों?
उत्तर- एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर और एक जुआरी श्रमिक नहीं हैं क्योंकि ये आर्थिक क्रियाओं में कोई योगदान नहीं देते हैं।
प्रश्न 4 इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है-
- नाई की दुकान का मालिक।
- एक मोची।
- मदर डेयरी का कोषपाल।
- ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक।
- परिवहन कंपनी का संचालक।
- निर्माण मजदूर।
उत्तर-
- मदर डेयरी का कोषपाल।
स्पष्टीकरण-
इन समूह में मदर डेयरी का कोषपाल सबसे अलग है क्योंकि कोषपाल नियमित वेतनभोगी नौकरी कर रहा है।
प्रश्न 5 नए उभरते रोजगार मुख्यतः ___________ क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/ विनिर्माण)
उत्तर- नए उभरते रोजगार मुख्यतः सेवा क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं।
प्रश्न 6 चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को _____________ क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/ अनौपचारिक)
उत्तर- चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को अनौपचारिक क्षेत्रक कहा जाता है।
प्रश्न 7 राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों?
उत्तर- राज को श्रमिक माना जा सकता है क्योंकि वह अपने खेत की उत्पादकता में योगदान दे रहा है।
प्रश्न 8 शहरी महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएँ अधिक काम करती दिखाई देती हैं। क्यों?
उत्तर- भारत में शहरी क्षेत्रों में केवल 14 प्रतिशत महिलाएँ ही किसी आर्थिक कार्य में व्यस्त हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 30 प्रतिशत महिलाएँ आर्थिक कार्यों में लगी हुई हैं। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिशत इसलिए कम है क्योंक वहाँ पर पुरुष पर्याप्त रूप से उच्च आय अर्जित करने में सफल रहते हैं और वे परिवार की महिलाओं को घर से बाहर रोजगार प्राप्त करने को प्राय: निरुत्साहित करते हैं। शहरी महिलाएँ घरेलू कामकाज में ही व्यस्त रहती हैं और महिलाओं द्वारा परिवार के लिए किए गए अनेक कार्यों को आर्थिक या उत्पादन कार्य ही नहीं माना जाता।
प्रश्न 9 मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ-साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है? क्यों?
उत्तर- मीना को एक श्रमिक माना जा सकता है, क्योंकि वह उत्पादन गतिविधि में शामिल है और सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देती है।
प्रश्न 10 यहाँ किसे असंगत माना जाएगा-
- किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला।
- राजमिस्त्री।
- किसी मेकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक।
- जूते पॉलिश करने वाला लड़का
उत्तर-
- जूते पॉलिश करने वाला लड़का।
स्पष्टीकरण-
यद्यपि उपर्युक्त सभी श्रमिक हैं, क्योंकि ये सभी आर्थिक क्रियाकलाप में संलग्न हैं, फिर भी चारों लोगों में (d) जूते पॉलिश करने वाला लड़का असंगत है क्योंकि प्रथम तीनों किराए के श्रमिक हैं जबकि जूते पॉलिश करने वाला स्वनियोजित है।
प्रश्न 11 निम्न सारणी में 1972-73 में भारत के श्रमबल का वितरण दिखाया गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रमबल के वितरण के स्वरुप के कारण बताइए। ध्यान रहे कि ये आँकड़ें 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
निवास स्थान | श्रमबल एक करोड़ में | ||
पुरुष | महिलाएँ | कुल योग | |
ग्रामीण | 12.5 | 6.9 | 419.5 |
शहरी | 3.2 | 0.7 | 3.9 |
उत्तर-
- वर्ष 1972-73 में भारत में कुल श्रमबल की संख्या 423.4 करोड़ थी, जिसमें 419.5 करोड़ ग्रामीण श्रमबल और शहरी श्रमबलों की संख्या 3.9 करोड़ थी। यह ग्रामीण श्रमबलों की बड़ी भागीदारी जिसमें कुल श्रमिकों की संख्या का 83 प्रतिशत शामिल है जबकि शहरी श्रमिकों के 17 प्रतिशत भागीदारी को दर्शाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में लगी हुई थी।
- ग्रामीण श्रमबलों में पुरूष श्रमिकों का 64 प्रतिशत और महिला श्रमिकों की 36 प्रतिशत संख्या शामिल है। इसके विपरीत, शहरी श्रमबल में पुरूष श्रमिकों की संख्या का लगभग 82 प्रतिशत तथा महिला श्रमिकों की संख्या का 18 प्रतिशत शामिल है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए महिलाओं के लिए उपलब्ध अवसरों की कमी के कारण ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में पुरूषों की भागीदारी महिलाओं की तुलना में अधिक है। इसके अलावा, प्रायः कई परिवार महिला सदस्यों को नौकरी करने के लिए हतोत्साहित करते हैं और परिणामस्वरूप, महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों तक ही सीमित रखा गया था।
- ग्रामीण महिला श्रमबल के साथ शहरी श्रमबल की तुलना करते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या का 36 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 18 प्रतिशत श्रमबल का निर्माण करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में, अधिकतर जनसंख्या कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगे हुए थे। कृषि क्षेत्र की उत्पादकता निम्न होने के कारण उनकी आय कम थी जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक गरीबी उत्पन्न हुई। इस प्रकार उपर्युक्त आँकड़ों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि 30 वर्ष पहले भारतीय अर्थव्यवस्था निम्न उत्पादकता, तीव्र बेरोजगारी, व्यापक गरीबी, कृषि क्षेत्र में छुपी हुई बेरोजगारी तथा श्रमबल में महिलाओं की कम भागीदारी दर की समस्या से ग्रस्त थी।
प्रश्न 12 इस सारणी में 1999-2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रमबल का अनुमान लगा सकते हैं?
क्षेत्र | अनुमनित जनसंख्या (करोड़ में) | श्रमिक जनसंख्या अनुपात | श्रमिकों की अनुमानित संख्या (करोड़ में) |
ग्रामीण | 71.88 | 41.9 | 71.88×41.9100=30.1271.88×41.9100=30.12 |
शहरी | 28.52 | 33.7 | ? |
योग | 100.40 | 39.5 | ? |
उत्तर-
क्षेत्र | अनुमनित जनसंख्या (करोड़ में) | श्रमिक जनसंख्या अनुपात | श्रमिकों की अनुमानित संख्या (करोड़ में) |
ग्रामीण | 71.88 | 41.9 | 71.88×41.9100=30.1271.88×41.9100=30.12 |
शहरी | 28.52 | 33.7 | 28.52×33.7100=9.6128.52×33.7100=9.61 |
योग | 100.40 | 39.5 | 100.40×39.5100=39.66 |
ग्रामीण क्षेत्र में कुल कार्यबल = 30.12
करोड़ शहरी क्षेत्र में कुल कार्यबल = 961 करोड़
कुल कार्यबल =39.66 करोड़
प्रश्न 13 शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?
उत्तर-
- शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक होते हैं क्योंकि-
- नियमित वेतनभोगी कर्मचारी पेशेवर कुशल श्रमिक होते हैं तथा उनके पास शैक्षणिक योग्यता होती हैं। इन कौशलों को प्रशिक्षण और शिक्षा के माध्यम से प्राप्त किया जाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों तक निवेश, आधारिक संरचना, और ग्रामीण साक्षरता दर की कमी के कारण नहीं पहुँचाया जा सकता है।
- बड़े बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ आधारिक संरचनाओं, बैंकिंग, परिवहन, संचार जैसे आधुनिक सुविधाओं की उपलब्धता के कारण शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है जो नौकरी की सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
प्रश्न 14 नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?
उत्तर- जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यम नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी देता है, तो वह श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी कहलाता है। भारत में नियमित वेतनभोगी रोजगारधारियों में पुरुष अधिक अनुपात में लगे हुए हैं। देश के 18 प्रतिशत पुरुष नियमित वेतनभोगी हैं और इस वर्ग में केवल 6 प्रतिशत ही महिलाएँ हैं। महिलाओं की इस कम सहभागिता का एक कारण कौशल स्तर में अन्तर हो सकता है। नियमित वेतनभागी वाले कार्यों में अपेक्षाकृत उच्च कौशल और शिक्षा के उच्च स्तर की आवश्यकता होती है। सम्भवत: इस अभाव के कारण ही अधिक अनुपात में महिलाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहे हैं।
प्रश्न 15 भारत में श्रमबल के क्षेत्रकवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।
उत्तर- अर्थव्यवस्था को तीन प्रमुख क्षेत्रकों अर्थात प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रक में बाँटा गया है जिन्हें सामूहिक रूप से अर्थव्यवस्था के व्यावसायिक संरचना के रूप में जाना जाता है। भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का स्रोत प्राथमिक क्षेत्रक ही है। द्वितीयक क्षेत्रक केवल लगभग 24 प्रतिशत श्रमबल को नियोजित कर रहा है। लगभग 27 प्रतिशत श्रमिक सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं। लगभग 16 प्रतिशत ग्रामीण श्रमिक ही विनिर्माण उद्योगों, निर्माण और अन्य क्षेत्रों में लगे हुए है। केवल 17 प्रतिशत ग्रामीण श्रमिकों को सेवा क्षेत्र से ही रोजगार मिलता है। किंतु, शहरी क्षेत्रकों में कृषि और खनन रोजगार के प्रमुख स्रोत नहीं हैं, जहाँ अधिकांश लोग सेवा क्षेत्रक में कार्यरत हैं। 60 प्रतिशत शहरी श्रमिक सेवा क्षेत्रक में हैं। लगभग 30 प्रतिशत शहरी श्रमिक द्वितीयक क्षेत्रक में नियोजित हैं। यद्यपि प्राथमिक क्षेत्रक में पुरुष और महिला दोनों ही प्रकार के श्रमिक संकेंद्रित हैं, पर वहाँ महिलाओँ का संकेन्द्रण बहुत अधिक है। इस प्राथमिक क्षेत्रक में लगभग 63 प्रतिशत महिलाएँ कार्यरत हैं- जबकि इस क्षेत्र में काम कर रहे पुरुषों की संख्या आधे से कम है। पुरुषों को द्वितीयक और सेवा क्षेत्रक दोनों में ही रोजगार के अवसर प्राप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 16 1970 से अब तक विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया है। टिप्पणी करें।
उत्तर- भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में बसा है एवं कृषि और उससे सम्बन्धित क्रियाओं पर निर्भर है। भारत में विकास योजनाओं का ध्येय कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात को कम करना रहा है। लेकिन कृषि श्रम का गैर-कृषि श्रम के रूप में खिसकाव अपर्याप्त रहा है। वर्ष 1972-73 में प्राथमिक क्षेत्रक में 74 प्रतिशत श्रमबल लगा था, वहीं 1999-2000 ई० में यह अनुपात घटकर 60 प्रतिशत रह गया। द्वितीयक तथा सेवा क्षेत्रक में यह प्रतिशत क्रमशः 11 से बढ़कर 16 तथा 15 से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया है। परन्तु राष्ट्र की विशालता एवं भौतिक प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में उक्त बदलाव नगण्य दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 17 क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे?
उत्तर- पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है। नीचे दिए गए चार्ट से इसे समझा जा सकता है।
1950 के दशक में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 3.6 प्रतिशत थी और 2010 में इसमें 8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। 1950 के दशक में रोजगार सृजन 0.39 प्रतिशत था और 1960 तथा 1990 के बीच विकास की यही वृद्धि दर बनी रही। लेकिन 2010 के दूसरे छमाही में, रोजगार सृजन काफी कम हुआ। इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि देश में उत्पन्न रोजगार भारत में सकल घरेलू उत्पाद के विकास के अनुरूप है। इसका कारण यह है कि सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का कारण आधुनिक और बेहतर तकनीक का इस्तेमाल होता है जो मशीनों के लिए श्रम प्रतिस्थापित करते हैं। यह औद्योगिक और तृतीयक क्षेत्रों में नए रोजगार के अवसर पैदा करने में विफल रहा। इस प्रकार, औद्योगिक और तृतीयक क्षेत्र कृषि क्षेत्र से अतिरिक्त श्रम को शामिल करने में असफल रहे। परिणामस्वरूप, कृषि क्षेत्र में छुपी हुई बेरोजगारी, निम्न उत्पादकता तथा गरीबी व्याप्त रही। इसके अलावा, भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने केवल शिक्षित और विशेष श्रमबल के लिए रोजगार प्रदान किया है। इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का लक्ष्य बड़े रोजगार के अवसर पैदा करने के बजाय बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करके उच्च उत्पादन स्तर हासिल करना है। इस प्रकार, भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है।
प्रश्न 18 क्या औपचारिक क्षेत्रक में ही रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बसाइए।
उत्तर- सार्वजनिक क्षेत्रक की सभी इकाइयाँ एवं 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक की इकाइयाँ औपचारिक क्षेत्रक माने जाते हैं। इन इकाइयों में काम करने वाले को औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी इकाइयाँ और उनमें कार्य कर रहे श्रमिक, अनौपचारिक श्रमिक कहलाते हैं। औपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के लाभ मिलते हैं। इनकी आमदनी भी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों से अधिक होती है। इसके विपरीत अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की आय नियमित नहीं होती है तथा उनके काम में भी निश्चितता एवं नियमितता नहीं होती। किन्तु दोनों ही क्षेत्रक रोजगार देते हैं, अत: दोनों को ही विकास आवश्यक है। साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र को नियमित एवं नियन्त्रित करना भी आवश्यक है।
प्रश्न 19 विक्टर को दिन में केवल दो घंटे काम मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?
उत्तर- हाँ, विक्टर बेरोजगार है, क्योंकि वह अपनी पूर्ण क्षमता के अनुरूप काम नहीं कर रहा है। एक नियोजित व्यक्ति रोज 6-8 घंटे काम करता है। विक्टर पार्ट टाइम नौकरी कर सकता है, जैसे कि अखबार बेचना, रेस्तरां में काम करना, कोरियर बाँटना।
प्रश्न 20 क्या आप गाँव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम-पंचायत को सलाह देने को कहा जाए तो आप गाँव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रियाकलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।
उत्तर- ग्रामवासी होन के नाते मैं ग्राम पंचायत को गाँव की उन्नति के लिए निम्नलिखित सुझाव दूंगा-
- ग्राम पंचायत आधारित संरचना के विकास पर समुचित ध्यान दे। नालियाँ, पुलियाएँ व सड़क बनवाएँ। इससे रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होंगे।
- वह गाँव में कुटीर उद्योगों के विकास पर बल दे। इससे खाली समय में लोगों को रोजगार मिलेगा।
- गाँवों में सार्वजनिक निर्माण कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार वित्तीय सहायता उपलब्ध कराए।
- ग्रामीणों के लिए रोजगार सुनिश्चित किया जाए।
- बेसहारा बुजुर्गों, विधवा महिलाओं और अनाथ बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराए।
- ग्राम पंचायत देखे कि गाँव का प्रत्येक बच्चा पढ़ने के लिए पाठशाला जाता है।
- ग्राम पंचायत गाँव में बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराए।
प्रश्न 21 अनियत दिहाड़ी मजदूर कौन होते हैं?
उत्तर- अनियत दिहाड़ी मजदूर उन मजदूरों को कहते हैं जो पूरे वर्ष काम नहीं करते हैं। वे कुछ महीने काम कर पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं। अनियत मजदूरों को नियोक्ताओं द्वारा नियमित आधार पर नहीं रखा जाता है। वे आमतौर पर अकुशल श्रमिक होते हैं। उदाहरण के लिए, एक निर्माण स्थल पर काम कर रहा श्रमिक।
प्रश्न 22 आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?
उत्तर- भारत में श्रमबल को औपचारिक तथा अनौपचारिक दो वर्गों में विभाजित किया गया है। सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों तथा 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को औपचारिक श्रमिक हो जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी उद्यम और उनमें काम कर रहे श्रमिकों को अनौपचारिक श्रमिक हो जाएगा। किसान, मोची, छोटे दुकानदार अनौपचारिक क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिक हैं।
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