12th Polity

Chapter-6: लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (B2)

Table of Contents

 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (The Crisis of Democratic Order)

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट ” कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो आधुनिक लोकतंत्रों के समक्ष उभर रही विभिन्न चुनौतियों का विश्लेषण करता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था की संकल्पना जनता के अधिकार, समानता, और स्वतंत्रता पर आधारित होती है, लेकिन वर्तमान समय में यह प्रणाली कई आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना कर रही है। इस अध्याय में लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों पर पड़ने वाले संकटों और उसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाली जटिलताओं का अध्ययन किया जाता है।

लोकतंत्र का मूल आधार निष्पक्ष चुनाव, सत्ता में पारदर्शिता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और कानून का शासन है। हालांकि, आज इन सिद्धांतों पर विभिन्न कारणों से संकट उत्पन्न हो रहा है। वैश्वीकरण, आर्थिक असमानता, सांप्रदायिक तनाव, और राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसी समस्याओं ने लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर किया है। कुछ देशों में राजनेता सत्ता पर बने रहने के लिए लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जिससे जनता का विश्वास राजनीतिक व्यवस्था में कम हो रहा है। इसी प्रकार, लोकतंत्र के मूल स्तंभों जैसे स्वतंत्र मीडिया और न्यायपालिका पर भी दबाव बनाया जाता है, जिससे वे अपना कार्य स्वतंत्र रूप से नहीं कर पाते।

इसके अलावा, आर्थिक असमानता और बेरोजगारी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के संकट के मुख्य कारण हैं। जब समाज में आर्थिक संसाधनों का असमान वितरण होता है, तो इससे जनता में असंतोष उत्पन्न होता है। आर्थिक समस्याएँ केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि संपूर्ण राजनीतिक संरचना को प्रभावित करती हैं। इसके परिणामस्वरूप, लोकतांत्रिक व्यवस्था में शक्ति संतुलन बिगड़ने लगता है और यह आम जनता के अधिकारों को सीमित करने का माध्यम बन जाता है।

आज के डिजिटल युग में फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने भी लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा कर दिया है। यह माध्यम कई बार नकारात्मक भावनाओं को फैलाने का काम करता है, जिससे समाज में असहिष्णुता और ध्रुवीकरण बढ़ता है।

“लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट” अध्याय विद्यार्थियों को यह समझने का अवसर देता है कि कैसे वर्तमान समय में लोकतंत्र के समक्ष अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं और इनसे उबरने के लिए कैसे लोकतंत्र में सुधार और जन-जागृति आवश्यक है। यह अध्याय लोकतंत्र की महत्ता और उसकी चुनौतियों पर गहराई से विचार करने का अवसर प्रदान करता है, ताकि विद्यार्थी लोकतंत्र के सशक्तिकरण और उसके संरक्षण के प्रति सजग हो सकें।

 

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लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

1. लोकतांत्रिक व्यवस्था के संकट से क्या तात्पर्य है?

लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट उन चुनौतियों और समस्याओं को दर्शाता है जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों जैसे समानता, स्वतंत्रता, और पारदर्शिता को कमजोर करती हैं। ये चुनौतियाँ राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक स्तर पर उत्पन्न होती हैं, जिनमें सत्ता का केंद्रीकरण, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण, और चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर संदेह जैसी समस्याएँ प्रमुख हैं।

2. क्या कारण हैं जो लोकतंत्र को संकट में डालते हैं?

लोकतंत्र के संकट के कई कारण होते हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार, सत्ता का दुरुपयोग, राजनीतिक ध्रुवीकरण, और आर्थिक असमानता। इसके अलावा, वैश्वीकरण के प्रभाव, फेक न्यूज़, और जनसंख्या में बढ़ती असंतोष की भावना भी लोकतंत्र को कमजोर करती है। कुछ सरकारें सत्ता में बने रहने के लिए स्वतंत्र मीडिया और न्यायपालिका पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करती हैं, जिससे लोकतांत्रिक संतुलन में कमी आती है।

3. फेक न्यूज़ का लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?

फेक न्यूज़ का प्रसार समाज में गलत जानकारी और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है। यह लोगों की विचारधाराओं और चुनावी निर्णयों को प्रभावित कर सकता है। फेक न्यूज़ के माध्यम से किसी मुद्दे पर लोगों का ध्यान भटकाया जा सकता है, जिससे लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया और पारदर्शिता को खतरा होता है। इसके कारण समाज में असहिष्णुता और हिंसा बढ़ सकती है।

4. आर्थिक असमानता का लोकतांत्रिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव है?

आर्थिक असमानता लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है। जब संसाधनों का वितरण असमान होता है, तो अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती है, जिससे सामाजिक असंतोष और असमानता उत्पन्न होती है। गरीब तबके के लोग अपने अधिकारों और प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष करते हैं, जबकि शक्तिशाली वर्ग अपने प्रभाव का दुरुपयोग करके नीति निर्माण को प्रभावित कर सकता है।

5. क्या सोशल मीडिया लोकतंत्र को प्रभावित करता है?

हां, सोशल मीडिया लोकतंत्र को प्रभावित करता है। यह एक सशक्त माध्यम है जो जनता की राय को बनाता है और सरकार पर निगरानी रखने का कार्य करता है। हालांकि, इसके दुरुपयोग से भी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि फेक न्यूज़, हेट स्पीच, और गलत जानकारी का प्रसार। इन कारणों से समाज में असहमति और ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।

6. राजनीतिक ध्रुवीकरण लोकतंत्र के लिए किस प्रकार चुनौती बन सकता है?

राजनीतिक ध्रुवीकरण से समाज में गहरी खाई उत्पन्न होती है। जब विभिन्न राजनीतिक दल और उनके समर्थक अत्यधिक ध्रुवीकृत हो जाते हैं, तो यह नीतिगत सहमति और स्थिरता में बाधा डालता है। इससे निर्णय-प्रक्रिया प्रभावित होती है, और लोकतंत्र में विश्वास कम हो सकता है, जो प्रणाली के लिए दीर्घकालिक संकट उत्पन्न करता है।

7. लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्यों महत्वपूर्ण है?

न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक प्रमुख स्तंभ है, जो कानून के शासन और निष्पक्षता को सुनिश्चित करती है। यदि न्यायपालिका पर राजनीतिक या आर्थिक दबाव होता है, तो यह निर्णय प्रक्रिया में पक्षपात और अन्याय को जन्म दे सकता है। स्वतंत्र न्यायपालिका सरकार के दुरुपयोग और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

8. क्या वैश्वीकरण ने लोकतंत्र को संकट में डाला है?

वैश्वीकरण ने लोकतंत्र को कई तरीकों से चुनौती दी है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने आर्थिक असमानता को बढ़ावा दिया है, जिससे लोकतांत्रिक समाज में असंतोष उत्पन्न हुआ है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी सरकारों पर प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता पर असर पड़ता है। वैश्वीकरण ने सांस्कृतिक और आर्थिक असमानताओं को बढ़ाया है, जो स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र के लिए समस्याएँ उत्पन्न करती हैं।

9. लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका क्या है, और यह किस प्रकार संकट में है?

मीडिया लोकतंत्र में चौथे स्तंभ के रूप में कार्य करता है, जो जनता को जानकारी प्रदान करता है और सरकार की गतिविधियों पर निगरानी रखता है। हालांकि, कई जगहों पर मीडिया पर नियंत्रण और सेंसरशिप बढ़ रहे हैं। कॉर्पोरेट स्वामित्व और सरकार का दबाव मीडिया की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकते हैं, जिससे लोकतांत्रिक पारदर्शिता और जवाबदेही में कमी आती है।

10. लोकतंत्र को संकट से उबारने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?

लोकतंत्र को संकट से उबारने के लिए पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया, स्वतंत्र न्यायपालिका, और एक मजबूत नागरिक समाज आवश्यक हैं। इसके अलावा, मीडिया की स्वतंत्रता और फेक न्यूज़ के खिलाफ सख्त कानूनों की भी आवश्यकता है। जनता को शिक्षित करने और उनकी भागीदारी को बढ़ावा देने से भी लोकतंत्र को मजबूती मिल सकती है। आर्थिक असमानता को कम करने, रोजगार बढ़ाने, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को लागू करने से भी लोकतंत्र की स्थिरता में सुधार किया जा सकता है।

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