संसाधन के रूप में लोग
संसाधन के रूप में लोग
संसाधन के रूप में लोग, मनुष्य को किसी भी देश का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों का सही और कुशल उपयोग तभी संभव है जब वहाँ रहने वाले लोग शिक्षित, कुशल और जागरूक हों। मनुष्य न केवल संसाधनों का उपयोग करता है बल्कि उनका सृजन और प्रबंधन भी करता है। इस प्रकार, लोग एक उत्पादक संसाधन के रूप में कार्य करते हैं।
जनसंख्या: संसाधन के रूप में
मनुष्य की संख्या, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और उत्पादकता किसी देश की समृद्धि और विकास को प्रभावित करती है।
1. जनसंख्या का गुणात्मक पहलू
जनसंख्या की गुणवत्ता उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल पर निर्भर करती है।
- शिक्षा: शिक्षा लोगों को सशक्त बनाती है और उन्हें संसाधनों का बेहतर उपयोग करना सिखाती है।
- स्वास्थ्य: स्वस्थ व्यक्ति अधिक उत्पादक और कुशल होते हैं।
- कौशल: प्रशिक्षित और कुशल लोग अपने कार्यों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकते हैं।
2. जनसंख्या का मात्रात्मक पहलू
देश की जनसंख्या का आकार और घनत्व भी विकास को प्रभावित करता है। अधिक जनसंख्या का मतलब है अधिक श्रमशक्ति, लेकिन इसके लिए बुनियादी संसाधनों जैसे भोजन, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता होती है।
जनसंख्या की भूमिका
- उत्पादन में योगदान
- कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्र आदि में मानव संसाधन का योगदान महत्वपूर्ण होता है।
- लोग अपनी क्षमता और कौशल का उपयोग करके वस्त्र, मशीनें और अन्य उत्पाद बनाते हैं।
- प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
- लोग प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते हैं और उनका सही उपयोग सुनिश्चित करते हैं।
- उदाहरण के लिए, पानी, भूमि और खनिजों का सही तरीके से उपयोग करना।
- प्रौद्योगिकी का विकास
- प्रौद्योगिकी का आविष्कार और विकास मानव मस्तिष्क का ही परिणाम है।
- तकनीकी विकास से संसाधनों का कुशल उपयोग संभव हो पाता है।
जनसंख्या की गुणवत्ता बढ़ाने के उपाय
- शिक्षा का प्रसार
- शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य और सुलभ होनी चाहिए।
- तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार
- सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना आवश्यक है।
- पोषण, स्वच्छता और स्वास्थ्य जागरूकता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
- रोज़गार के अवसर
- बेरोज़गारी को कम करने के लिए स्वरोज़गार और लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
- जनसंख्या नियंत्रण
- परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरूकता कार्यक्रम आवश्यक हैं।
- जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
मानव संसाधन विकास
मानव संसाधन विकास का अर्थ है शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और उत्पादकता के माध्यम से मानव क्षमता को बढ़ाना।
- शिक्षा और प्रशिक्षण
- शिक्षा मानव को अधिक उत्पादक और कुशल बनाती है।
- कौशल विकास के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है।
- स्वास्थ्य सेवाएँ
- स्वस्थ लोग अधिक समय तक काम कर सकते हैं और उनकी उत्पादकता भी अधिक होती है।
- सामाजिक विकास
- सामाजिक समानता और महिलाओं का सशक्तिकरण मानव संसाधन को मजबूत बनाता है।
भारत में जनसंख्या की स्थिति
भारत दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में से एक है।
- सकारात्मक प्रभाव:
- भारत की युवा जनसंख्या (Demographic Dividend) देश के विकास में सहायक है।
- बड़ी श्रमशक्ति और कुशल कार्यबल का निर्माण।
- नकारात्मक प्रभाव:
- संसाधनों पर दबाव।
- बेरोज़गारी और गरीबी की समस्या।
- शहरीकरण और पर्यावरणीय समस्याएँ।
मानव संसाधन का महत्व
- आर्थिक विकास
- उत्पादक मानव संसाधन देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाते हैं।
- सामाजिक प्रगति
- शिक्षित और जागरूक नागरिक समाज में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा
- कुशल और प्रशिक्षित मानव संसाधन वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होते हैं।
चुनौतियाँ
- अशिक्षा
- देश में अभी भी साक्षरता दर में सुधार की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
- ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।
- बेरोज़गारी
- रोजगार के अवसरों की कमी एक बड़ी चुनौती है।
- जनसंख्या वृद्धि
- जनसंख्या का तेजी से बढ़ना संसाधनों पर दबाव डालता है।
समाधान
- सरकारी योजनाएँ
- शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को बढ़ावा देने वाली योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन।
- जनजागरूकता
- जनसंख्या नियंत्रण, स्वच्छता और शिक्षा के लिए जागरूकता अभियान।
- महिलाओं का सशक्तिकरण
- महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के लिए विशेष कार्यक्रम।
निष्कर्ष
मनुष्य किसी भी देश का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। यदि लोग शिक्षित, स्वस्थ और कुशल हों, तो वे देश को समृद्धि और विकास की ओर ले जा सकते हैं। मानव संसाधन का सही विकास और प्रबंधन किसी भी राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक है। संसाधन के रूप में लोग केवल एक साधन नहीं हैं, बल्कि वे संसाधनों का सृजन और संरक्षण करने वाले मुख्य आधार भी हैं।
अध्याय 2: संसाधन के रूप में लोग
प्रश्न 1– ‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – ‘संसाधन के रूप में लोग’ वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में किसी देश के कार्यरत लोगों का वर्णन करने का एक तरीका है। उत्पादक पहलू की दृष्टि से जनसंख्या पर विचार करना सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उनके योगदान की क्षमता पर बल देता है। दूसरे संसाधनों की भांति ही जनसंख्या भी एक संसाधन है जिसे संसाधन कहते हैं।
प्रश्न 2 – मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर – भूमि और भौतिक पूंजी जैसे अन संसाधनों का कुशल उपयोग किया है। इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की उसी से ये देश धनी/ विकसित बने। मानव संसाधन अन्य संसाधनों से अच्छा माना जाता है। क्योंकि मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूंजी का उपयोग कर सकता है।
प्रश्न 3– मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर – मानव पूंजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के द्वारा) भौतिक पूंजी की भाति प्रतिफल प्रदान करता है। शिक्षा एक महत्वपूर्ण आगत था। इसने उसके लिए नए छितिज खोले, नयी आकांक्षाएं दी और जीवन के मूल्य विकसित किए। यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समिति में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्य-क्षमता बढ़ाती है। अधिक शिक्षित या बेहतर प्रशिक्षित लोगों की उच्च उत्पादकता के कारण होने वाली अधिक आय और साथ ही अधिक स्वस्थ लोगों की उच्च उत्पादकता के रूप में इसे प्रत्यक्षत: देखा जा सकता है। शिक्षा के ही कारण समाज का आर्थिक और सामाजिक विकास होता है। शिक्षा विज्ञान और तकनीक के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 4 – मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर – मानव पूंजी निर्माण में उच्च आय से न केवल अधिक शिक्षित और अधिक स्वास्थ्य लोगों को लाभ होता है बल्कि समाज को भी अप्रत्यक्ष तरीके से लाभ होता है, क्योंकि अधिक शिक्षित या अधिक स्वस्थ जनसंख्या का लाभ उन लोगों तक भी पहुंचता है जो स्वयं प्रत्यक्ष रूप से उतने शिक्षित नहीं है या उतनी स्वास्थ्य सेवाएं उन्हें प्रदान नहीं की गई हैं।
प्रश्न 5 – किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर – किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। ऐसा कोई भी अस्वस्थ स्त्री/ पुरुष संगठन के संग्रम विकास में अपने योगदान को अधिकतम करने में समक्ष नहीं होगा। वास्तव में, स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है। हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पौष्टिक सेवा तक इनकी पहुंच को बेहतर बनाना है। भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रको में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए अपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारिक संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।
प्रश्न 6 – प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएं संचालित की जाती हैं?
उत्तर – विभिन्न क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रकों – प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक में वर्गीकृत किया गया है। प्राथमिक क्षेत्रक के अंतर्गत कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गी पालन, और खनन एवं उत्खनन शामिल हैं। द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण शामिल हैं। तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा ,स्वास्थ्य, पर्यटन सेवाएं इत्यादि शामिल किए जाते हैं। इस क्षेत्रक में क्रियाकलाप के फलस्वरुप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रियाकलाप राष्ट्रीय आय में मूल्यवर्धन करते हैं। यह क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं कहलाती हैं। आर्थिक क्रियाओं के दो भाग होते हैं – बाजार क्रियाएं और गैर बाजार क्रियाएं इन क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु या सेवाओं का उत्पादन शामिल है। गैर बाजार क्रियाओं से अभिप्राय स्व – उपभोग के लिए उत्पादन है।
प्रश्न 7– आर्थिक और गैर – क्रियाओं में क्या अंतर है?
उत्तर – आर्थिक क्रियाएं –
- आर्थिक क्रियाएं व्यक्तिगत आय को बढ़ावा देती है।
- अर्थव्यवस्था की तीनों क्षेत्रों में होने वाली आर्थिक क्रियाओं का कार्य करती है।
- यह आर्थिक रूप से समृद्ध होता है।
- अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति बनाने में सहायता करती है।
गैर – आर्थिक क्रियाएं
1 . ये व्यक्तिगत आय को कम करने का काम करता है।
2. कृषि में वृद्धि दर को बढ़ावा देता है।
3. ये आर्थिक रूप से समृद्धि नहीं होता है।
4. ये गैर-आयाम के क्रियाओं में सम्मिलित होती है।
प्रश्न 8 – महिलाएं क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर – इतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से परिवार में महिलाओं और पुरुषों के बीच श्रम का विभाजन होता है। आमतौर पर महिलाएं घर के कामकाज देखती है और पुरुष खेतों में काम करते हैं। महिलाएं खाना पकाती है, बर्तन साफ करती है, कपड़े धोती है, घर की सफाई करती है, और अपने बच्चों की देखभाल करती है। वहीं पुरुष खेतों में काम करते हैं। उपज को बाजार में बेचते हैं और परिवार के लिए धन कमाते हैं। महिलाओं को पालन-पोषण के लिए जो सेवाएं प्रदान करती है उसके लिए उसे कोई भुगतान नहीं किया जाता। उनकी सेवाओं को राष्ट्रीय आय में नहीं जोड़ा जाता। कुछ महिलाएं मछली बेच कर आय कमाती थी। इस तरह महिलाओं को उनकी सेवाओं के लिए तब भुगतान किया जाता है, जब वे श्रम बाजार में प्रवेश करती हैं। महिलाओं के पास बहुत कम शिक्षा और निम्न कौशल स्तर है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम परिश्रमिक दिया जाता है। अधिकतर महिलाएं वहां काम करती हैं जहां नौकरी की सुरक्षा नहीं होती तथा कानूनी सुरक्षा का अभाव है। अनियमित रोजगार और निर्माण क्षेत्र की विशेषताएं हैं। इस क्षेत्र में प्रसूति अवकाश, शिशु देखभाल और अन्य सामाजिक स्वतंत्र सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती तथापि उच्च शिक्षा और कौशल वाली महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन मिलता है।
प्रश्न 9– ‘बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर – रोजगारी उस समय विद्यमान कही जाती है जब प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोजगार नहीं पा सकें। उसे बेरोजगारी कहते हैं। भारत के संदर्भ में ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी है। तथापि, ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी की प्रकृति में अंतर है। बेरोजगारी से जन शक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। युवाओं में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती। बेरोजगारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोजगारी की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 10 – प्रच्छन्न और मौसमी बेरोजगारी में क्या अंतर है?
उत्तर – प्रच्छन्न बेरोजगारी –
भारत के संदर्भ में ग्रामीण और नगरीय क्षेत्र में बेरोजगारी है। तथापि, ग्रामीण और नगरीय क्षेत्र में बेरोजगारी की प्राप्ति में अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी और प्रच्छन्न बेरोजगारी है नगरी क्षेत्र में अधिकांश शिक्षित बेरोजगारी है।
प्रच्छन्न बेरोजगारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूखंड होता है, जहां उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्राय: कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में 5 लोगों की आवश्यकता होती है,लेकिन उसमें 8 लोग लगे होते हैं। इनमें तीन लोग अतिरिक्त हैं। यह तीनों इसी खेती पर काम करते है जिस पर 5 लोग काम करते है। इन तीनों द्वारा किए गए अंशदान 5 लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोतरी नहीं करता। अगर 3 लोगों को हटा दिया जाए तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। खेत में 5 लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार होते हैं।
मौसमी रोजगारी –
मौसमी बेरोजगारी तब होती है जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई, कटाई, निराई और गहाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।
प्रश्न 11 – शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर – शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोजगारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक, स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी अनेक युवक रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर युवकों में बेरोजगारी अधिक तेजी से बढ़ी है। एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आई है कि कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति के अधिकत्य के साथ ही कुछ अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी विद्यमान है। एक और तकनीकी का अहेता प्राप्त लोगों के बीच बेरोजगारी है, तो दूसरी ओर आर्थिक समृद्धि के लिए आवश्यक तकनीक कौशल की कमी भी है। भारत में बेरोजगारी की दर निम्न है। संख्या में निम्न आय और निम्न उत्पादकता वाले लोगों की गिनती नियोजित लोगों में की जाती है। पूरे वर्ष काम करते प्रतीत होते हैं, लेकिन उनकी क्षमता और आय के हिसाब से यह उनके लिए पर्याप्त नहीं है। वह काम तो कर रहे हैं पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह काम उन पर थोपे हुए हैं।
प्रश्न 12– आपके विचार से भारत किस क्षेत्रक में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर – भारत कृषि के क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर दे सकती है। कृषि महाविद्यालय में कृषि से संबंधित पढ़ाई करवा कर किसी इंजीनियरिंग की योग्यता प्राप्त कर लेने से खेतों की उपज में वृद्धि की जा सकती है। इस तरह गांव में एग्रो इंजीनियरिंग का एक नया काम सज्जित हुआ और वही उसकी पूर्ति हुई। गांव में सिलाई का प्रशिक्षण दिलाकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना। इस तरह से भारत कृषि और सिलाई के क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर देने का काम कर सकता है।
प्रश्न 13 – क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारों की समस्या दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर – शिक्षा के क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
- शिक्षा से संबंधित नए-नए रोजगारों को बढ़ावा देना चाहिए।
- सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
- कृषि श्रमिकों के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना।
प्रश्न 14 – क्या आप कुछ ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं। जहां पहले रोजगार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत हो गया?
उत्तर – हां, पहले गांवों में सड़क, अस्पताल, बाजार, बिजली, स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं थी। लेकिन आज ये सभी सुविधाएं आसानी से उपलब्ध है। कृषि से संबंधित सरकार ने भी कई सारी योजनाएं लागू की और उन्हें कृषि के लिए बढ़ावा दिया। आज स्कूल, कॉलेज, बाजार में रोजगार के सर्वाधिक अवसर हैं जहां पर पुरुष और महिला दोनों काम करके अपनी जीविका का निर्वाह कर सकते हैं।
प्रश्न 15 – किस पूंजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं- भूमि, श्रम, भौतिक पूंजी और मानव पूंजी? क्यों?
उत्तर – मानव पूंजी ही सबसे अच्छी पूंजी मानी जाती है। वास्तव में, मानव पूंजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक होता है। मानव पूंजी के उत्पादकता के कारण होने वाले अधिक आय और साथ ही अधिक स्वस्थ लोगों की उच्च उत्पादकता के रूप में इसे प्रत्यक्षत: देखा जा सकता है।