11th Sociology

अध्याय-6: सामाजिक संरचना, स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ

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सामाजिक संरचना, स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ

 

सामाजिक संरचना
सामाजिक संरचना, स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ:

सामाजिक संरचना, सामाजिक स्तरीकरण, और सामाजिक प्रक्रियाएँ, समाज से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण विषय हैं: 

  • सामाजिक संरचना
    रेमंड फ़र्थ के मुताबिक, सामाजिक संरचना का मतलब है समाज में मौजूद अलग-अलग समूहों का मिश्रण. सामाजिक संरचना में विभिन्न इकाइयां एक क्रमबद्धता में बंधी होती हैं. भारतीय समाज में सामाजिक संरचना आनुवंशिक सिद्धांतों पर आधारित है 

  • सामाजिक स्तरीकरण
    सामाजिक स्तरीकरण का मतलब है समाज को अलग-अलग इकाइयों में बांटना और उन इकाइयों को उच्चता और निम्नता के क्रम में व्यवस्थित करना. सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया में, समाज के सदस्यों को अलग-अलग स्थितियां, पद, और भूमिकाएं मिलती हैं. सामाजिक स्तरीकरण के आधार अलग-अलग समाजों में अलग-अलग होते हैं. जैसे, किसी समाज में जाति व्यवस्था के आधार पर स्तरीकरण होता है, तो किसी समाज में वर्ग के आधार पर होता है

  • सामाजिक प्रक्रिया
    सामाजिक प्रक्रिया, मानव समूह के जीवन में होने वाले बदलावों से जुड़ी होती है. यह अंतःक्रिया की प्रकृति पर निर्भर करती है. अंतःक्रिया में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, और सामाजिक पहलू शामिल हो सकते हैं

सामाजिक संरचना

  • सामाजिक संरचना’ शब्द के अंतर्गत, समाज संरचनात्मक है।
  • सामाजिक संरचना’ शब्द का इस्तेमाल, सामजिक सम्बन्धों, सामाजिक घटनाओं के निश्चित क्रम हेतु किया जाता है।

समाजीकरण स्तरीकरण

समाजीकरण स्तरीकरण से अर्थ,”समाज में समूहों के मध्य संरचनात्मक असमानताओं के अस्तित्व से है, भौतिक एवं प्रतीकात्मक पुरस्कारों की पहुँच से है।

सामाजिक स्तरीकरण प्रक्रिया

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज उच्चता तथा विविधता के अंतर्गत अनेक समूह में विभाजित हो जाता है।

सामाजिक प्रक्रियाएँ

  • सहयोगी :- संतुलन व एकता में योगदान। उदाहरण प्रतिस्पर्धा
  • असहयोगी :- संतुलन व एकता में बाधा। उदाहरण संघर्ष

सहयोग

  • सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिलकर किया गया कार्य जैसे पारिवारिक कार्यो में हाथ बँटाना, राष्ट्र विपत्ति में जनता का सरकार को साथ देना।
  • सहयोग का विचार मानव व्यवहार की कुछ मान्यताओं पर आधारित है :-
  1. मनुष्य के सहयोग के बिना मानव जाति के लिए अस्तित्व कठिन हो जाएगा। 
  2. जानवरों की दुनिया में भी हम सहयोग के प्रमाण देख सकते हैं।

यांत्रिक एकता

यह संहति का एक रूप है जो बुनियादी रूप से एकरूपता पर आधारित है। इस समाज के अधिकांश सदस्य एक जैसा जीवन व्यतीत करते हैं, कम से कम विशिष्टता अथवा श्रम विभाजन को हमेशा आयु तथा लिंग से जोड़ा जाता है।

सावयवी एकता

यह सामाजिक संहति का वह रूप है जो श्रम विभाजन पर आधारित है तथा जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्यों में सह निर्भरता है। मनुष्य केवल सहयोग के लिए समायोजन तथा सामंजस्य ही नहीं करते हैं बल्कि इस प्रक्रिया में समाज को बदलते भी हैं। जैसे- भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अनुभव के कारण अंग्रेजी भाषा के साथ समायोजन, सामंजस्य तथा सहयोग करना पड़ा था।

अलगाव

इस धारणा का प्रयोग मार्क्स द्वारा श्रमिकों का अपने श्रम तथा उत्पादों पर किसी प्रकार के अधिकार न होने के लिए किया जाता है। इससे श्रमिकों की अपने कार्य के प्रति रूचि समाप्त होने लगती है।

प्रतिस्पर्धा

यह विश्वव्यापी और स्वभाविक क्रिया है जिसमें व्यक्ति दूसरे को नुकसान पहुँचाए बिना आगे बढ़ना चाहता है। यह व्यक्तिगत प्रगति में सहायता करती है। यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।

प्रतियोगिता

  • एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत दो या अधिक व्यक्तियों का एक ही वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया प्रयास है।
  • हमारे समाज में वस्तुओं की संख्या कम होती है और प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण रखने में असमर्थ रहता है। अर्थात जब वस्तुओं की संख्या कम हो और उसको प्राप्त करने वालों की संख्या अधिक हो तो प्रतियोगिता प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। आर्थिक, सामाजिक धार्मिक, राजनितिक अर्थात प्रत्येक क्षेत्र प्रतियोगिता के ऊपर ही आधारित है। 

फेयर चाइल्ड के अनुसार प्रतियोगिता

सीमित वस्तुओं के उपभोग या अधिकार के लिए किये जाने वाले प्रयत्नों को कहते हैं।

पूँजीवाद

  • वह आर्थिक व्यवस्था, जहाँ पर उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत अधिकार होता है, जिसे बाजार व्यवस्था में लाभ कमानें के लिए प्रयोग किया जाता है जहाँ श्रमिकों द्वारा श्रम किया जाता है।
  • आधुनिक पूँजीवाद समाज जिस प्रकार कार्य करते हैं वहाँ दोनों (व्यक्तिगत तथा प्रतियोगिता) का एक साथ विकास सहज है। 

पूँजीवाद की मौलिक मान्यताएँ

  • व्यापार का विस्तार 
  • श्रम विभाजन – कार्य का विशिष्टीकरण, जिसकी सहायता से अलग – अलग रोजगार उत्पादन प्रणाली से जुड़े होते है। 
  • विशेषीकारण 
  • बढ़ती उत्पादकता 

संघर्ष

हितों में टकराहट को संघर्ष कहते हैं। संघर्ष किसी भी समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सदैव रहा है संसाधनों की कमी समाज में संघर्ष उत्पन्न करती है क्योंकि संसाधनो को पाने तथा उस पर कब्जा करने के लिए प्रत्येक समूह संघर्ष करता है।

संघर्ष प्रकार

  • नस्ली संघर्ष 
  • वर्ग संघर्ष 
  • जाति संघर्ष 
  • राजनितिक संघर्ष 
  • अन्तराष्ट्रीय संघर्ष 
  • निजी संघर्ष

परहितवाद

बिना किसी लाभ के दूसरों के हित के लिए काम करना परहितवाद कहलाता है।

मुक्त व्यापार / उदारवाद

वह राजनैतिक तथा आर्थिक नजरिया, जो इस सिद्धांत पर आधारित है कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में अहस्तक्षेप नीति अपनाई जाए तथा बाजार एंव संपत्ति मालिकों को पूरी छूट दे दी जाए।

सामाजिक बाध्यता

हम जिस समूह अथवा समाज के भाग होते हैं वह हमारे व्यवहार पर प्रभाव छोड़ते हैं। दुर्खाइम के अनुसार सामाजिक बाध्यता सामाजिक तथ्य का एक विशिष्ट लक्षण है। 

सहयोग तथा संघर्ष में अंतर

सहयोग संघर्ष
1. सहयोग अर्थात साथ देना। 1. संघर्ष शब्द का अर्थ है हितों में टकराव अर्थात सहयोग करना। 
2. अवैयक्तिक होता है।  2. व्यक्तिगत होता है। 
3. निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। 3. अनिरंतर प्रक्रिया है।
4. अहिंसक रूप है।  4. हिंसक रूप है। 
5. सामाजिक नियमों का पालन होता है। 5. सामाजिक नियमों का पालन नहीं होता।

परार्थवाद

किसी भी स्वार्थीता या आत्म- रूचि के बिना दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए अभिनय का सिद्धांत।

मानकशुन्यता

दुर्खाइम के लिए, एक सामाजिक स्थिति जहाँ मानदंडों के मार्गदर्शन के मानदंड तोड़ने सामाजिक संयम या मार्गदर्शन के बिना व्यक्तियों को छोड़कर।

प्रमुख विचारधारा

  • साझा विचार या विश्वास जो प्रमुख समूहों के हितों को न्याससंगत बनाने के लिए काम करते हैं। ऐसी विचारधारा उन सभी समाजों में पाई जाती है। जिनमें वे व्यवस्थित और समूह के बीच असमानताओं की असमानता रखते हैं।
  • विचारधारा की अवधारण शक्ति के साथ निकटता से जुडती है, क्योंकि वैचारिक प्रणाली समूह की भिन्न शक्ति को वैध बनाने के लिए काम करती है।

व्यक्तिगतता

सिद्धांत या सोचने के तरीके जो समूह के बजाए स्वायत्त व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

 

FAQs on: समाज में सामाजिक संरचना, स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ


1. सामाजिक संरचना क्या है? यह समाज के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

सामाजिक संरचना से तात्पर्य समाज में मौजूद विभिन्न समूहों, संस्थाओं, और व्यक्तियों के बीच संबंधों के संगठनात्मक ढांचे से है। यह समाज के कार्यों को नियमित और व्यवस्थित करने में मदद करती है।
महत्व:

  • यह समाज में स्थिरता बनाए रखती है।
  • विभिन्न समूहों और संस्थाओं के बीच भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करती है।
  • समाज में एकरूपता और सह-अस्तित्व सुनिश्चित करती है।

2. सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ क्या है? इसके मुख्य आधार क्या हैं?

सामाजिक स्तरीकरण समाज के सदस्यों को उनके आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक स्थिति के आधार पर विभाजित करने की प्रक्रिया है।
मुख्य आधार:

  • आर्थिक स्थिति (धन और संसाधन)
  • सामाजिक स्थिति (सम्मान और प्रतिष्ठा)
  • शक्ति (राजनीतिक और प्रशासनिक नियंत्रण)
  • जाति, वर्ग, लिंग जैसे सामाजिक मानदंड

3. जाति और वर्ग में क्या अंतर है?

जाति और वर्ग सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख रूप हैं।

  • जाति: जन्म के आधार पर निर्धारित होती है और इसमें परिवर्तन करना मुश्किल होता है।
  • वर्ग: व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, शिक्षा और कार्य के आधार पर बदल सकता है।

4. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) क्या है? यह कैसे संभव होती है?

सामाजिक गतिशीलता समाज के एक वर्ग या स्तर से दूसरे में स्थानांतरित होने की प्रक्रिया है।
प्रकार:

  • ऊर्ध्व गतिशीलता: निम्न वर्ग से उच्च वर्ग में जाना।
  • अधो गतिशीलता: उच्च वर्ग से निम्न वर्ग में जाना।
    संभव होने के कारक:
  • शिक्षा, रोजगार, और आर्थिक सुधार।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव।

5. सामाजिक प्रक्रियाएँ क्या होती हैं? इनके उदाहरण दीजिए।

सामाजिक प्रक्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जिनके माध्यम से समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ संबंध स्थापित करते हैं।
उदाहरण:

  • सहयोग (Cooperation): समाज के सदस्यों का मिलकर कार्य करना।
  • प्रतिस्पर्धा (Competition): सीमित संसाधनों के लिए संघर्ष।
  • संघर्ष (Conflict): असहमति या टकराव।

6. सहयोग और प्रतिस्पर्धा में क्या अंतर है?

  • सहयोग: इसमें समाज के लोग एक साथ कार्य करते हैं और उद्देश्य सामूहिक लाभ होता है।
  • प्रतिस्पर्धा: इसमें लोग व्यक्तिगत लाभ के लिए सीमित संसाधनों के लिए संघर्ष करते हैं।

7. समाज में संघर्ष का क्या महत्व है?

संघर्ष समाज में असहमति और टकराव की स्थिति है, लेकिन यह विकास और बदलाव का माध्यम भी बनता है।
महत्व:

  • यह सामाजिक असमानता को उजागर करता है।
  • बदलाव और सुधार की प्रक्रिया को प्रेरित करता है।
  • नए सामाजिक नियमों और संरचनाओं को जन्म देता है।

8. सामाजिक नियंत्रण क्या है? इसके प्रकार क्या हैं?

सामाजिक नियंत्रण वे नियम और प्रक्रियाएँ हैं जिनके माध्यम से समाज के सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है।
प्रकार:

  • औपचारिक नियंत्रण: कानून, पुलिस, और अदालत।
  • अनौपचारिक नियंत्रण: परंपरा, नैतिकता, और परिवार।

9. समाज में असमानता के मुख्य कारण क्या हैं?

सामाजिक असमानता समाज में संसाधनों और अवसरों के असमान वितरण का परिणाम है।
मुख्य कारण:

  • जाति, वर्ग, और लिंग आधारित भेदभाव।
  • आर्थिक असमानता।
  • शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी।

10. भारत में सामाजिक संरचना पर वैश्वीकरण का क्या प्रभाव पड़ा है?

वैश्वीकरण ने भारतीय सामाजिक संरचना में कई बदलाव किए हैं।
प्रभाव:

  • आर्थिक अवसरों में वृद्धि, लेकिन असमानता भी बढ़ी।
  • सांस्कृतिक विविधता में वृद्धि।
  • पारंपरिक सामाजिक मानदंडों और मूल्यों में कमी।
  • जाति और वर्ग की सीमाएँ कमजोर पड़ीं, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुईं।

अध्याय-7: ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन

 

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