11th Sociology

अध्याय-3: सामाजिक संस्थाओं को समझना

Table of Contents

सामाजिक संस्थाओं को समझना

सामाजिक संस्थाओं को समझना

सामाजिक संस्थाओं को समझना :

सामाजिक संस्थाओं को समझना , किसी समाज में मौजूद उन समूहों को समझना जो किसी खास काम या मकसद को पूरा करते हैंसामाजिक संस्थाओं के बारे में कुछ और बातेंः 

  • सामाजिक संस्थाएं लोगों को एक साथ लाती हैं और उन्हें एक-दूसरे से जुड़ने में मदद करती हैं। 
  • ये समाज की संरचना और कामकाज को आकार देती हैं। 
  • सामाजिक संस्थाएं लोगों को सामान्य लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करती हैं।  
  • सामाजिक संस्थाएं व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाती हैं और उन्हें मौके भी देती हैं।  
  • सामाजिक संस्थाएं स्थापित होती हैं और कानून या प्रथाओं के मुताबिक काम करती हैं। 
  • सामाजिक संस्थाओं के नियमित कामकाज को समझने के लिए इन नियमों को जानना ज़रूरी होता है।  
  • परिवार, जाति, और जनजाति, भारतीय समाज की प्रमुख सामाजिक संस्थाएं हैं।  
  • परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जहां लोग आपसी सहयोग और समन्वय से रहते हैं।  
  • परिवार में लोग प्यार, स्नेह, और भाईचारा के साथ अपना जीवन जीते हैं। 

 

सामाजिक संस्थाऐ: सामाजिक संस्थाओं को समझना

  • सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक मानकों, आस्थाओं, मूल्यों और समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निर्मित संबंधों की भूमिका के जटिल ताने बाने के रूप में देखा जाता है।
  • सामाजिक संस्थाएँ सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विद्यमान होती है। 

महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाए हैं

अनौपचारिक :-

  • परिवार 
  • विवाह 
  • नातेदारी

औपचारिक :-

  • कानून 
  • शिक्षा

संस्था

संस्था उसे कहा जाता है जो स्थापित या कम से कम कानून या प्रथा द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार कार्य करती है और उसके नियमित तथा निरंतर कार्यचालन को इन नियमों काम जाने बिना समझा नहीं जा सकता। संस्थाएँ व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाती है, साथ ही ये व्यक्तियों को अवसर भी प्रदान करती हैं।

मूल परिवार :सामाजिक संस्थाओं को समझना

मूल परिवार को औद्योगिक समाज की आवश्यकताएँ पूरी करने वाली एक सर्वोत्तम साधन संपन्न इकाई के रूप में देखा जाता है। ऐसे परिवार में घर का एक सदस्य से बाहर कार्य करता है और दूसरा सदस्य घर व बच्चों की देखभाल करता है।

समाजों में परिवार के विभिन्न स्वरूप

विभिन्न समाजों में परिवार के विभिन्न स्वरूप पाए जाते हैं :-

आवास / स्थान के आधार पर :-सामाजिक संस्थाओं को समझना

  • पितृस्थानिक 
  • मातृस्थानिक
  • अधिकार और प्रभाव के आधार पर :-
  • पितृसत्तात्मक 
  • मातृसत्तात्मक
  • वंश के आधार पर :-
  • पितृवंशीय
  • मातृवंशीय
  • जन्म का परिवार और प्रजनन का परिवार। 
  • एकल परिवार और संयुक्त परिवार।

महिला प्रधान घर / परिवार : सामाजिक संस्थाओं को समझना

  • जब पुरूष शहरी क्षेत्रों में चले जाते हैं तो महिलाओं को हल चलाना पड़ता है और खेती के कार्यों का प्रबंध करना पड़ता है। कई बार वे अपने परिवार की एकमात्र भरण – पोषण करने वाली बन जाती हैं। ऐसे परिवारों को महिला प्रधान घर कहा जाता है। 
  • उदाहरण :- उत्तरी आंधप्रदेश में कोलम जनजाती समुदाय।

परिवार लिंगवादी होता है

  • आज भी यही विश्वास है कि लड़का वृद्धावस्था में अभिभावकों की सहायता करेगा और लड़की विवाह करके दूसरे घर चली जाएगीं इस तरह लड़कियों की अपेक्षा की जाती है। कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिलता है। 2001 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार लड़को पर 927 लड़कियाँ हैं। समृद्ध राज्यों जैसे- पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हालात बहुत खराब हैं।
  • परिवार प्रत्यक्ष नातेदारी संबंधों से जुड़े संबंधों से जुड़ते व्यक्तियों का एक समूह है। नातेदारी बंधन व्यक्तियों के बीच के वह सूत्र होते हैं जो या तो विवाह के माध्यम से या वंश परम्परा के माध्यम से रक्त संबंधियों को जोड़ते हैं।

वैवाहिक नातेदार / विवाहमूलक: सामाजिक संस्थाओं को समझना

रक्त के माध्यम से बने नातेदारों को समरक्त नातेदार / रक्तमूलक नातेदार और विवाह के माध्यम से बने नातेदारों को वैवाहिक नातेदार / विवाहमूलक नातेदार कहते हैं।

विवाह संस्था

विवाह को दो वयस्क ( रुत्री / पुरुष ) व्यक्तियों के बीच लैगिक संबंधों की सामाजिक स्वीकृति और अनुमोदन के रूप में परिभाषित किया जाता है।

विवाह के विभिन्न स्वरूप

  • एक विवाह :- 

यह विवाह एक व्यक्ति को एक समय में एक ही साथी रखने तक अनुमति देता है।

  • बहु विवाह :-

यह विवाह एक व्यक्ति को एक समय में एक से अधिक साथी रखने तक अनुमती देता है।

  • बहु – पत्नी विवाह (एक की अनेक पत्नियाँ)
  • बहु – पति विवाह (एक पत्नी के अनेक पति)

अंतर्विवाह

  • इस विवाह में व्यक्ति उसी सांस्कृतिक समूह में विवाह करता है जिसका वह पहले से ही सदस्य है। 
  • उदाहरण :- जाति।

बहिर्विवाह

  • इस विवाह में व्यक्ति अपने समूह से बाहर विवाह करता है। 
  • उदाहरण :- गोत्र, जाति और नस्ल।

कार्य और आर्थिक जीवन :सामाजिक संस्थाओं को समझना

कार्य को शारीरिक और मानसिक परिश्रमों के द्वारा किए जाने वाले ऐसे सवैतनिक या अवैतनिक कार्यों के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जिनका उद्देश्य मानव की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना है।

आधुनिक समाजों की अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

आधुनिक समाजों की अर्थव्यवस्था की अनेक महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं :-

  • अत्याधिक जटिल श्रम में विभाजन।
  • कार्य के स्थान में परिवर्तन।
  • औद्योगिक प्रौद्योगिकी में विकास।
  • पूँजीपति उद्योगपतियों के कारखाने।
  • विशिष्ट कार्य के अनुसार वेतन।
  • प्रबंधक द्वारा कार्यों का निरीक्षण।
  • श्रमिक की उत्पादकता बढ़ाना और अनुशासन बनाए रखना। 
  • परस्पर अर्थव्यवस्था का असीमित विस्तार।

कार्य रूपांतरण: सामाजिक संस्थाओं को समझना

  • औद्योगिक प्रक्रियाएँ सरल संक्रियाओं में विभाजित। 
  • थोक उत्पादन के लिए थोक बाजारों की आवश्यकता। 
  • उत्पादन की प्रक्रिया में नव परिवर्तन, स्वचालित उत्पादन की कड़ियों का निर्माण। 
  • उदार उत्पादन और कार्य विकेंद्रीकरण।

राजनीति संस्थाओं का सरोकार समाज के दो महत्वपूर्ण पहलू 

राजनीति संस्थाओं का सरोकार समाज के दो महत्वपूर्ण पहलू है।

  • शक्ति :-

शक्ति व्यक्तियों सा समूहों द्वारा दूसरों के विरोध करने के बावजूद अपनी इच्छा पूरी करने की योग्यता है।

  • सत्ता :-

शक्ति का उपयोग सत्ता के माध्यम से किया जाता है। सत्ता शक्ति का वह रूप है जिसे वैध होने के रूप में स्वीकार किया जाता है।

  • राज्यविहीन समाज :-

राज्यविहीन समाज ऐसा समाज जिसमें सरकार की औपचारिक संस्थाओं का अभाव हो।

  • राज्य की संकल्पना :-

राज्य की संकल्पना राज्य वहाँ विद्यमान होता है जहाँ सरकार का एक राजनीतिक तंत्र एक निश्चित क्षेत्र पर शासन करता है।

आधुनिक राज्य प्रभुसत्ता, नागरिकता और अवसर राष्ट्रवादी विचारों द्वारा परिभाषित है :

प्रभुसत्ता : सामाजिक संस्थाओं को समझना

प्रभुसत्ता का अभिप्राय एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र पर एक राज्य के अविवादित शासन से है।

  • उदाहरण :-
  • नागरिकता के अधिकार :-
  1. नागरिक अधिकार : भाषण और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार। 
  2. राजनीतिक अधिकार : चुनाव में शामिल होने का अधिकार। 
  3. सामाजिक अधिकार : स्वास्थ्य लाभ, समाज कल्याण, बेरोजगारी भत्ता और न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के अधिकारी।

धर्म

इमाइल दुर्खीम के अनुसार ” धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित अनेक विश्वासों और व्यवहारों की एक ऐसी संगठित व्यवस्था है जो व्यक्तियों को एक नैतिक समुदाय की भावना में बाँधती है जो उसी प्रकार विश्वासों और व्यवहारों को अभिव्यक्त करते हैं। 

शिक्षा 

  • शिक्षा सपूर्ण जीवन चलने वाली प्रक्रिया है जिसमे सीखने की औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की संस्थाएँ शामिल हैं।
  • शिक्षा स्तरीकरण के मुख्य अभिकर्त्ता के रूप में कार्य करती है :- 
  1. सामाजिक – आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर विभिन्न प्रकार के विद्यालयों में जाते हैं। 
  2. विद्यालयी शिक्षा, संभ्रांत और सामान्य के बीच विद्यमान भेद को और अधिक गहरा करती है। 
  3. विशेषाधिकार प्राप्त विद्यालयों में जाने वाले बच्चों में आत्मविश्वास आ जाता है जबकि इससे वंचित बच्चे इसके विपरीत भाव का अनुभव कर सकते हैं। 
  4. ऐसे और अनेक बच्चे है जो विद्यालय नहीं जा सकते या विद्यालय जाना बीच में ही छोड़ देते हैं।

शिक्षा के प्रकार

  • औपचारिक शिक्षा :- स्कूल, कालेज, शिक्षण संस्थान।
  • अनौपचारिक शिक्षा :- घर, पड़ोस, पार्क, समाज।

नागरिक

उस सदस्यता से जुड़े अधिकार और कर्तव्यों दोनों के साथ एक रानीतिक समुदाय का एक सदस्य।

श्रम विभाजन

  • सभी समाजों में श्रम विभाजन का कुछ प्राथमिकता रूप है।
  • इसमें कार्य, कार्यों की विशेषज्ञता शामिल है।
  • विभिन्न व्यवसायों को एक उत्पादन प्रणाली के भीतरी संयुक्त किया जाता है। 
  • औद्योगिकीकरण के विकास के साथ, श्रम का विभाजन किसी भी प्रकार के उत्पादन प्रणाली की तुलना में अधिक जटिल हो जाता है। 
  • आधुनिक दुनिया में श्रम विभाजन का रूप अंतराष्ट्रीय है। 
  • लिंग को समाज के बुनियादी सिद्यांत के रूप में देखा जाता है। 
  • व्यवहार के बारे में सामाजिक अपेक्षाएं प्रत्येक लिंग के सदस्यों के लिए उचित मानी जाती है।

अनुभवजन्य जाँच

सामाजिक अध्ययन के किसी दिए गए क्षेत्र में वास्तविक जांच की गई।

अंतविवाह

जब विवाह एक विशिष्ट जाती वर्ग या आदिवासी समूह के भीतर होता है।

बाह्य विवाह

जब विवाह समबंध समबंधो के एक निश्चित समूह के बाहर होता है।

विचारधारा

  • साझा विचार या मान्यताएँ जो प्रमुख समूहों के हितों को न्यायसंगत साबित करने के लिए काम करते है।
  • विचारधारा उन सभी समाजों में पाई जाती है। जिनमें समूहों के बीच व्यवस्थित और अंतनिर्हित असमानताएं होती हैं।
  • विचारधारा की अवधारणा शक्ति के साथ निकटतता से जुड़ती है, क्योकि वैचारिक प्रणाली समूह की भिन्न शक्ति को वैध बनाने के लिए काम करती है।

वैधता

एक विश्वास जिसमे एक विशेष राजनीतिक आदेश सिर्फ सत्ता से वैधता प्राप्त है।

एकलविवाह

जब एक समय में एक स्त्री / पुरूष का एक ही पति अथवा एक पत्नी होती है।

बहुविवाह

एक समय में एक स्त्री अथवा पुरुष के एक से अधिक पति / पत्नी पाए जाते है।

बहुपति विवाह

जब एक से अधिक व्यक्ति एक महिला से विवाहित है।

बहुपत्नी विवाह

जब एक व्यक्ति से एक से अधिक महिला विवाहित होती है।

सेवा क्षेत्र

व्यापार उद्योग जैसे विनिर्मित सामानों की बजाय सेवाओं के उत्पादन से संबधित उद्योग।

राज्य समाज

एक समाज जिसमें सरकार का औपचारिक तंत्र है।

सामाजिक संस्थाओं को समझने से संबंधित 10 विस्तृत FAQs

1. सामाजिक संस्था क्या है?

सामाजिक संस्थाएं समाज के उन संगठित और व्यवस्थित ढांचों को कहते हैं जो विभिन्न सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित की गई हैं। ये संस्थाएं मानव व्यवहार को नियंत्रित करने, सामाजिक मानदंडों को बनाए रखने, और समाज के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करने में मदद करती हैं। जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, और अर्थव्यवस्था सामाजिक संस्थाओं के प्रमुख उदाहरण हैं।


2. सामाजिक संस्थाओं का महत्व क्या है?

सामाजिक संस्थाएं समाज में अनुशासन और संगठन बनाए रखने में मदद करती हैं। ये व्यक्ति की सामाजिककरण प्रक्रिया में सहायक होती हैं, सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संसाधन प्रदान करती हैं, और समाज में स्थिरता और निरंतरता बनाए रखने का कार्य करती हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा संस्थाएं ज्ञान का प्रसार करती हैं, जबकि परिवार समाज की आधारभूत इकाई के रूप में कार्य करता है।


3. सामाजिक संस्थाओं के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?

सामाजिक संस्थाओं को उनके उद्देश्यों और कार्यों के आधार पर विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे:

  • परिवार: प्राथमिक सामाजिक इकाई।
  • शिक्षा: औपचारिक और अनौपचारिक रूप से ज्ञान का आदान-प्रदान।
  • धर्म: आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन।
  • आर्थिक संस्थाएं: उत्पादन, वितरण, और उपभोग के लिए।
  • राजनीतिक संस्थाएं: शक्ति और शासन का संगठन।

4. परिवार सामाजिक संस्था के रूप में क्यों महत्वपूर्ण है?

परिवार व्यक्ति की पहली सामाजिक संस्था होती है, जहां सामाजिककरण की प्रक्रिया शुरू होती है। यह बच्चों को नैतिकता, संस्कार, और परंपराओं से परिचित कराता है। परिवार भावनात्मक समर्थन प्रदान करता है और समाज के ढांचे को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।


5. शिक्षा का सामाजिक संस्थाओं में क्या योगदान है?

शिक्षा एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था है, जो ज्ञान, कौशल, और मूल्यों को प्रसारित करती है। यह व्यक्ति को समाज के अन्य सदस्यों के साथ संवाद करने और समायोजित होने के लिए तैयार करती है। साथ ही, शिक्षा समाज में समानता और प्रगति को बढ़ावा देती है।


6. सामाजिक संस्थाएं कैसे विकसित होती हैं?

सामाजिक संस्थाएं समाज की बदलती जरूरतों और परिस्थितियों के अनुसार विकसित होती हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगिक क्रांति के बाद आर्थिक और शैक्षिक संस्थाओं में बड़े बदलाव हुए। डिजिटल युग में नई तकनीकी संस्थाएं उभर रही हैं, जो पारंपरिक संस्थाओं को चुनौती दे रही हैं।


7. सामाजिक संस्थाओं के पतन का क्या प्रभाव होता है?

यदि सामाजिक संस्थाएं कमजोर या अप्रभावी हो जाती हैं, तो समाज में अराजकता, असमानता, और अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, शिक्षा संस्थाओं की कमजोरी के कारण अशिक्षा और बेरोजगारी बढ़ सकती है, जो समाज के विकास में बाधा डालती है।


8. धर्म एक सामाजिक संस्था के रूप में कैसे कार्य करता है?

धर्म एक सामाजिक संस्था है जो नैतिकता, सामूहिक विश्वास, और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह समाज में सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने और व्यक्तियों के लिए आध्यात्मिक संतुष्टि का स्रोत बनने का कार्य करती है। हालांकि, कभी-कभी धार्मिक कट्टरता समाज में विभाजन का कारण भी बन सकती है।


9. राजनीतिक संस्थाओं का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

राजनीतिक संस्थाएं समाज में शासन और शक्ति का संचालन करती हैं। ये संस्थाएं कानून और व्यवस्था बनाए रखने, न्याय प्रदान करने, और समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नीतियां बनाने में मदद करती हैं। एक सुदृढ़ राजनीतिक व्यवस्था समाज की प्रगति सुनिश्चित करती है।


10. क्या सामाजिक संस्थाएं स्थिर होती हैं या बदलती रहती हैं?

सामाजिक संस्थाएं स्थिर दिख सकती हैं, लेकिन वास्तव में ये समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं। जैसे-जैसे समाज प्रगति करता है, संस्थाओं के उद्देश्य, ढांचे और कार्यों में परिवर्तन होते रहते हैं। उदाहरण के लिए, आधुनिक युग में डिजिटल मीडिया ने पारंपरिक मीडिया संस्थाओं को चुनौती दी है।

अध्याय-4: संस्कृति तथा समाजीकरण

 

Also Visit eStudyzone for English Medium Study Material