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हिंदी व्याकरण : शब्द शक्ति ( Best Solution )

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हिंदी व्याकरण : शब्द शक्ति

शब्द शक्ति

शब्द शक्ति

शब्द का अर्थ बोध करानेवाली शक्ति ‘शब्द शक्ति’ कहलाती है।

शब्द-शक्ति को संक्षेप में ‘शक्ति’ कहते हैं। इसे ‘वृत्ति’ या ‘व्यापार’ भी कहा जाता है।

शब्द-शक्ति की परिभाषा

काव्य में रस का संचार शब्द-शक्तियों के द्वारा होता हैं। यहाँ शब्दों का विशेष महत्त्व माना गया हैं। काव्य-भाषा में वाक्यों की रचना इस बात की सूचक हैं कि उसमें अनेक प्रकार के शब्दों का प्रयोग प्रकरण, प्रसंग और कवि-आशय के अनुसार हुआ हैं।

कवियों की कृतियों में शब्दों के अनेक अर्थ ढूँढने की प्रथा उचित नहीं कही जा सकती। देखना यह चाहिए कि कवि ने शब्दों का प्रयोग कर जिन अभीष्ट अर्थों को रखना चाहा हैं, उसमें वह कहाँ तक सफल हुआ हैं।

तात्पर्य यह हैं कि ‘शब्द की शक्ति उसके अन्तर्निहित अर्थ को व्यक्त करने का व्यापार हैं।” अर्थ का बोध कराने में ‘शब्द’ कारण हैं और अर्थ का बोध कराने वाले व्यापार को शब्द-शक्ति कहते हैं। आचार्य मम्मट ने व्यापार शब्द का और आचार्य विश्वनाथ ने शक्ति शब्द का प्रयोग किया हैं।

हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य चिन्तामणि ने लिखा है कि 

”जो सुन पड़े सो शब्द है, समुझि परै सो अर्थ” 

अर्थात जो सुनाई पड़े वह शब्द है तथा उसे सुनकर जो समझ में आवे वह उसका अर्थ है। स्पष्ट है कि जो ध्वनि हमें सुनाई पड़ती है वह ‘शब्द’ है, और उस ध्वनि से हम जो संकेत या मतलब ग्रहण करते है वह उसका ‘अर्थ’ है।

शब्द से अर्थ का बोध होता है। अतः शब्द हुआ ‘बोधक’ (बोध करानेवाला) और अर्थ हुआ ‘बोध्य’ (जिसका बोध कराया जाये)।

जितने प्रकार के शब्द होंगे उतने ही प्रकार की शक्तियाँ होंगी। शब्द तीन प्रकार के- वाचक, लक्षक एवं व्यंजक होते हैं तथा इन्हीं के अनुरूप तीन प्रकार के अर्थ- वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ होते हैं। शब्द और अर्थ के अनुरूप ही शब्द की तीन शक्तियाँ – अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना होती हैं।

शब्द अर्थ शक्ति
वाचक/ अभिधेय वाच्यार्थ/ अभिधेयार्थ/ मुख्यार्थ अभिधा
लक्षक/ लाक्षणिक लक्ष्यार्थ लक्षणा
व्यंजक व्यंग्यार्थ/ व्यंजनार्थ व्यंजना

 

वाच्यार्थ कथित होता है, लक्ष्यार्थ लक्षित होता है और व्यंग्यार्थ व्यंजित, ध्वनित, सूचित या प्रतीत होता है। शब्द में अर्थ तीन प्रकार से आता है। अर्थ के जो तीन स्त्रोत हैं उन्हीं के आधार पर शब्द की शक्तियों का नामकरण किया जाता है।

शब्द शक्ति के प्रकार

प्रक्रिया या पद्धति के आधार पर शब्द-शक्ति तीन प्रकार के होते हैं-

  • अभिधा 
  • लक्षणा 
  • व्यंजना

अभिधा 

जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का साक्षात् संकेतित (पहला/मुख्य/प्रसिद्ध/प्रचलित/पूर्वविदित) अर्थ बोध हो, उसे ‘अभिधा’ कहते हैं।

जैसे – ‘बैल खड़ा है।’- इस वाक्य को सुनते ही बैल नामक एक विशेष प्रकार के जीव को हम समझ लेते हैं, उसे आदमी या किताब नहीं समझते।

यहाँ ‘बैल’ वाचक शब्द है जिसका मुख्यार्थ विशेष जीव है। परंपरा, कोश, व्याकरण आदि से यह अर्थ पूर्वविदित (पहले से मालूम) है। यानी शब्द और उसके अर्थ के बीच किसी प्रकार की बाधा नहीं है।

(अभिधा का अर्थ है ‘नाम’।) दूसरे शब्दों में नामवाची अर्थ को बतलानेवाला शक्ति को अभिधा कहते हैं। नाम जाति, गुण, द्रव्य या क्रिया का होता है और ये सभी साक्षात् संकेतित होते हैं। अभिधा को ‘शब्द की प्रथमा शक्ति’ भी कहा जाता है।

उदाहरण – निराला की ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता के आरंभ की ये पंक्तियाँ अभिधा के प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं-

”वह तोड़ती पत्थर।

देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर।”

इन पंक्तियों में कवि, शब्दों से सीधे-सीधे जो अर्थ प्रकट करता है, वही अर्थ कविता का है- कवि ने पत्थर तोड़ती हुई स्त्री को इलाहाबाद के पथ पर देखा।

इस शब्द-शक्ति के द्वारा तीन प्रकार के शब्दों का बोध होता है – रूढ़ शब्द 

(जैसे – कृष्ण), यौगिक शब्द

(जैसे – पाठशाला) एवं योगरूढ़ शब्द (जैसे – जलज)।

अभिधा का महत्त्व 

अलंकारशास्त्रियों के अनुसार काव्य में अभिधा शब्द-शक्ति का विशेष महत्त्व नहीं है। लेकिन अभिधा एकदम से महत्त्वहीन नहीं है। हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य देव का मानना है ”अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन/ अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन।”

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत है ”वास्तव में व्यंग्यार्थ या लक्ष्यार्थ के कारण चमत्कार आता है परन्तु वह चमत्कार होता है वाच्यार्थ में ही। अतः इस वाच्यार्थ को देने वाली अभिधा शक्ति का अपना महत्त्व है।” 

आचार्य शुक्ल अन्यत्र लिखते हैं :- ”जब कविता में कल्पना और सौंदर्यवाद का अतिशय जोर हो जाता तब जीवन की वास्तविकता पर बल देने के लिए काव्य में भी अभिधा शक्ति का महत्त्व बढ़ जाता है।”

अभिधा के प्रकार

‘अभिधा’ शक्ति द्वारा तीन प्रकार के शब्दों का अर्थ – बोध हैं

  • रूढ़ शब्द :- ये शब्द जातिवाचक होते हैं, 

जैसे – घोड़ा, आदि

  • यौगिक शब्द :- इन शब्दों का अर्थ बोध अवयवों (प्रकृति और प्रत्ययों) की शक्ति के द्वारा होता हैं, 

जैसे – दिवाकर, सुधांशु आदि।

  • योगरूढ़ शब्द :- इनका अर्थ-बोध समुदाय और अवयवों की शक्ति से होता हैं; ये शब्द यौगिक होते हुए भी रूढ़ होते हैं।

जैसे – जलज, वारिज आदि। इनका यौगिक अर्थ जल में उत्पत्र वस्तु हैं पर योगरूढ़ अर्थ केवल ‘कमल’ हैं।

लक्षणा

अभिधा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का अर्थ बोध हो, उसे ‘लक्षणा’ कहते हैं।

लक्षणा की शर्ते :- लक्षणा के लिए तीन शर्ते है

  1. मुख्यार्थ में बाधा :- इसमें मुख्य अर्थ या अभिधेय अर्थ लागू नहीं होता है वह बाधित (असंगत) हो जाता है।
  2. मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ में संबंध :- जब मुख्य अर्थ बाधित हो जाता है, पर यह दूसरा अर्थ अनिवार्य रूप से मुख्य अर्थ से संबंधित होता है।
  3.  रूढ़ि या प्रयोजन :- मुख्य अर्थ को छोड़कर उसके दूसरे अर्थ को अपनाने के पीछे या तो कोई रूढ़ि होती है या कोई प्रयोजन।

रूढ़ि 

कहते हैं प्रयोग-प्रवाह, प्रसिद्ध को। अर्थात वैसा बोलने का चलन है, तरीका है। किसी बात को कहने की जो प्रथा हो जाती है, वह ‘रूढ़ि’ कहलाती है।

जैसे – ”मुझे देखते ही वह नौ दो ग्यारह हो गया।”- इस वाक्य में ‘नौ दो ग्यारह होना’ (मुहावरा) का अर्थ है – ‘भाग जाना।’ इसके बदले में यदि कोई कहे कि ‘मुझे देखते ही वह दस बीस चालीस हो गया।’ या‘ मुझे देखते ही वह ग्यारह दो नौ हो गया।’ तो इसका कोई अर्थ नहीं होगा क्योंकि ऐसी कोई रूढ़ि नहीं है। यानी भागने की रूढ़ि अर्थात प्रसिद्ध नौ दो ग्यारह में ही है।

प्रयोजन 

कहते है अभिप्राय या मतलब को। अर्थात हमारे मन में कोई ऐसा अभिप्राय है जो प्रयुक्त शब्द से व्यक्त नहीं हो रहा है तब उसके लिए दूसरा शब्द प्रयोग कर अपना अभिप्राय प्रकट करते हैं। जैसे हम किसी को अतिशय मूर्ख कहना चाहते हैं तो ”तुम मूर्ख हो।” कह देने से मूर्खता की अतिशयता प्रकट नहीं होती, लेकिन यदि हम कहे कि ”तुम बैल हो।” तो इसका अर्थ है कि तुम अतिशय मूर्ख (बुद्धिमान) हो। यहाँ ‘बैल’ शब्द का प्रयोग मूर्खता की अतिशयता बताने के प्रयोजन से किया गया है।

लक्षणा के भेद

लक्षणा के भेद कारण के आधार पर लक्षणा के दो भेद हैं-

  • रूढ़ा लक्षणा
  • प्रयोजनवती लक्षणा
  1. रूढ़ा लक्षणा :- जहाँ रूढ़ि के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध हो, वहाँ ‘रूढ़ा लक्षणा’ होती है।

उदाहरण 

  • गद्यात्मक उदाहरण :- ”आप तो एकदम राजा हरिश्चन्द्र है” का लक्ष्यार्थ है आप हरिश्चन्द्र के समान सत्यवादी हैं। सत्यवादी व्यक्ति को राजा हरिश्चन्द्र कहना रूढ़ि है।
  • पद्यबद्ध उदाहरण :- ‘आगि बड़वाग्नि ते बड़ी है आगि पेट की’ (तुलसी) का मुख्यार्थ है- बड़वाग्नि यानी समुद्र में लगने वाली आग से बड़ी पेट की आग होती है। पेट में आग नहीं, भूख लगती है इसलिए मुख्यार्थ की बाधा है। लक्ष्यार्थ है तीव्र और कठिन भूख को व्यक्त करना जो पेट की आग के जरिये किया गया है। तीव्र और कठिन भूख के लिए ‘पेट में आग लगना’ कहना रूढ़ि है।
  1. प्रयोजनवती लक्षणा :- जहाँ प्रयोजन के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध हो, वहाँ ‘प्रयोजनवती लक्षणा’ होती है।

उदाहरण

  • ”शिवाजी सिंह है”:- यदि हम कहें कि शिवाजी सिंह हैं। तो सिंह शब्द के मुख्यार्थ (विशेष जीव) में बाधा पड़ जाती है। हम सब जानते है कि शिवाजी आदमी थे, सिंह नहीं लेकिन यहाँ शिवाजी के लिए सिंह शब्द का प्रयोग विशेष प्रयोजन के लिए किया गया है। शिवाजी को वीर या साहसी बताने के लिए सिंह शब्द का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार ‘सिंह’ शब्द का ‘वीर’ या ‘साहसी’ अर्थ लक्ष्यार्थ है।

 

  • ”लड़का शेर है”:- यदि हम कहें कि ‘लड़का शेर है।’ तो इसका लक्ष्यार्थ है ‘लड़का निडर है।’ यहाँ पर शेर का सामान्य अर्थ अभीष्ट नहीं है। लड़के को निडर बताने के प्रयोजन से उसके लिए शेर शब्द का प्रयोग किया गया है।

अभिधा और लक्षणा में अंतर

अभिधा और लक्षणा में अंतर इस प्रकार हैं

  • अभिधा और लक्षणा दोनों शब्द-शक्तियाँ हैं। दोनों से शब्दों के अर्थ का बोध होता है, पर अभिधा से शब्द के मुख्यार्थ का बोध होता है, 

किन्तु लक्षणा से मुख्यार्थ का बोध नहीं होता, बल्कि मुख्यार्थ से संबंधित अन्य अर्थ (लक्ष्यार्थ) का बोध होता है।

अभिधा का उदाहरण

‘बैल खड़ा है।’- इस वाक्य में बैल शब्द सुनते ही ‘पशु विशेष’ का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। 

लक्षणा का उदाहरण

‘सुनील बैल है।’- सुनील को बैल कहने में मुख्यार्थ की बाधा है, क्योंकि कोई आदमी बैल नहीं हो सकता। बैल में जड़ता, बुद्धिहीनता आदि धर्म होते हैं। सुनील में भी बुद्धिहीनता है, इसलिए सादृश्य संबंध से बैल का लक्ष्यार्थ किया गया- बुद्धिहीन। बुद्धिहीनता का बोध हुआ लक्षणा के द्वारा। इसलिए इस वाक्य में लक्षणा है।

  • अभिधा शब्द-शक्ति तत्काल अपने मुख्यार्थ का बोध करा देती है, पर लक्षणा शब्द-शक्ति अपने लक्ष्यार्थ का बोध तत्काल नहीं करा पाती है। लक्षणा के लिए तीन बातों का होना नितांत आवश्यक है- मुख्यार्थ में बाधा, मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ में संबंध तथा रूढ़ि या प्रयोजन। इस त्रयी के अभाव में लक्षणा की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन अभिधा की जा सकती है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति शब्द की सबसे साधारण शक्ति है। इस शब्द-शक्ति का काव्य में कोई विशेष स्थान नहीं है, क्योंकि वाच्य (अभिधेय) शब्द में कोई चमत्कार नहीं रहता।

लक्षक (लाक्षणिक) शब्द में चमत्कार रहता है, इसलिए इसकी काव्य में अधिक उपयोगिता है।

अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना में अंतर

अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना के बीच अंतर इस प्रकार हैं-

  • अभिधा किसी शब्द के केवल उसी अर्थ को बतलाती है जो पहले से निश्चित और व्यवहार में प्रसिद्ध हो। यह अर्थ भाषा सीखते समय हमें बताया जाता है। शब्दकोश या व्याकरण से हम इस अर्थ को जानते हैं। किन्तु लक्षणा और व्यंजना से हम शब्दों के जो अर्थ निकालते हैं वे पहले से जाने हुए नहीं होते।

लक्षणा से हम शब्दों से ऐसा अर्थ निकालते हैं, जो शब्दों से सामान्यतः नहीं लिया जाता। पर यह अर्थ सदैव मुख्यार्थ से संबंधित ही होगा। 

व्यंजना के द्वारा हम शब्दों से ऐसा अर्थ भी निकालते हैं जो उनके मुख्यार्थ से संबंधित न हों।

दूसरे शब्दों में एक बात के भीतर जो दूसरी बात छिपी रहती है उसे व्यंजना शक्ति के द्वारा निकालते हैं।

  • अभिधा शक्ति शब्द की सबसे सामान्य शक्ति है। इसके द्वारा व्यक्त अर्थ में चमत्कार नहीं रहता है। दूसरी ओर लक्षणा और व्यंजना के अर्थ में विलक्षणता रहती है, इसलिए काव्य में जितना महत्त्व लक्षणा और व्यंजना का है, उतना अभिधा का नहीं।

व्यंजना का काव्यशास्त्र (साहित्यशास्त्र) में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। भले ही वैयाकरण, नैयायिक, मीमांसक, वेदांती आदि अभिधा के महत्त्व से संतुष्ट हो जाये, पर काव्यशास्त्र तो रसप्रधान है, रसास्वादन के बिना, सहृदय की तृप्ति नहीं होती और उस रसाभिव्यक्ति के लिए व्यंजना शक्ति की सत्ता नितांत आवश्यक है।

  • अभिधा और लक्षणा का व्यापार केवल शब्दों में होता है, किन्तु व्यंजना का व्यापार शब्द और अर्थ दोनों में।
  • वाचक और लक्षक तो केवल शब्द होते हैं, किन्तु व्यंजक केवल शब्द ही नहीं अपितु वक्ता, श्रोता, देश, काल, चेष्टा प्रकरण आदि भी व्यंजक होते हैं।

हिंदी व्याकरण: शब्द शक्ति पर 10 विस्तृत FAQs


1. शब्द शक्ति क्या है?

उत्तर:
शब्द शक्ति का तात्पर्य शब्दों की वह क्षमता है, जिसके माध्यम से वे अपने अर्थ, भाव और संदर्भ को व्यक्त करते हैं। यह हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो शब्दों के उपयोग से पाठकों या श्रोताओं पर प्रभाव डालने की क्षमता को समझाता है। शब्द शक्ति तीन प्रकार की होती है:

  • अभिधा: शब्द का मुख्य या प्राथमिक अर्थ।
  • लक्षणा: शब्द का वह अर्थ जो मुख्य अर्थ के अतिरिक्त, किसी विशेष स्थिति या संदर्भ में निकलता है।
  • व्यंजना: शब्द का वह अर्थ जो भावनात्मक, सांकेतिक या परोक्ष रूप से समझा जाता है।

2. अभिधा, लक्षणा और व्यंजना में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • अभिधा: जब शब्द अपने मूल और सामान्य अर्थ में प्रयुक्त होता है।
    उदाहरण: “सूर्य पूर्व से निकलता है।”
  • लक्षणा: जब शब्द का मुख्य अर्थ व्यावहारिक या संदर्भ के कारण अप्रासंगिक हो जाता है और एक नया अर्थ ग्रहण करता है।
    उदाहरण: “गांव में गंगा आई है।” (यहां गंगा का अर्थ बाढ़ है।)
  • व्यंजना: जब शब्द अपने मुख्य अर्थ के साथ-साथ छिपे हुए अर्थ को भी व्यक्त करता है।
    उदाहरण: “उसके चेहरे पर चांदनी सी चमक थी।” (चांदनी चेहरे की सुंदरता और सुखदता व्यक्त कर रही है।)

3. अभिधा का उपयोग कहाँ और कैसे होता है?

उत्तर:
अभिधा का उपयोग तब होता है जब किसी वाक्य में शब्द अपने मूल और प्रत्यक्ष अर्थ को व्यक्त करता है। इसे सरल और स्पष्ट व्याकरणिक संरचना में समझाया जाता है।
उदाहरण:

  • “बच्चा स्कूल गया।”
    यहां “स्कूल” का अर्थ सामान्य शिक्षा स्थल है।

4. लक्षणा शब्द शक्ति को कैसे पहचानें?

उत्तर:
लक्षणा का उपयोग तब होता है जब शब्द अपने मुख्य अर्थ से हटकर संदर्भ या व्यावहारिक स्थिति के आधार पर नया अर्थ ग्रहण करता है।
लक्षणा को पहचानने के लिए ध्यान दें:

  • मुख्य अर्थ अप्रासंगिक हो गया हो।
  • संदर्भ आधारित नया अर्थ निकल रहा हो।
    उदाहरण:
    “लकड़ी का दिल बहुत कठोर है।” (यहां ‘दिल’ का अर्थ लकड़ी का मध्य भाग है।)

5. व्यंजना में छिपे अर्थ को समझने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर:
व्यंजना में छिपे अर्थ को समझने के लिए इन बातों पर ध्यान दें:

  1. संदर्भ और भावनात्मक स्थिति।
  2. सांकेतिक अर्थ, जो मुख्य अर्थ के अतिरिक्त है।
  3. शब्दों के पीछे छिपा साहित्यिक, सांस्कृतिक या सामाजिक संदर्भ।
    उदाहरण:
    “वह अपने आंसुओं में पूरा सागर छिपा कर बैठा था।” (सागर यहां गहरे दुःख का प्रतीक है।)

6. अभिधा, लक्षणा और व्यंजना का साहित्य में महत्व क्या है?

उत्तर:

  • अभिधा: साहित्य में सीधा और स्पष्ट संवाद के लिए प्रयोग होती है।
  • लक्षणा: पाठक को अप्रत्यक्ष अर्थ समझने के लिए प्रेरित करती है।
  • व्यंजना: काव्य और गद्य में गहराई, सौंदर्य और भावनात्मक प्रभाव को बढ़ाती है।
    उदाहरण:
    कवि तुलसीदास की पंक्तियों में “राम” का उपयोग कई बार अभिधा (राम का व्यक्तित्व), लक्षणा (मर्यादा पुरुषोत्तम के प्रतीक), और व्यंजना (ईश्वर का सर्वव्यापी स्वरूप) में होता है।

7. क्या शब्द शक्ति केवल साहित्य के लिए ही महत्वपूर्ण है?

उत्तर:
नहीं, शब्द शक्ति का महत्व केवल साहित्य तक सीमित नहीं है। यह भाषण, लेखन, संवाद, और भाषाई कौशल के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  • पत्रकारिता में लक्षणा और व्यंजना का प्रयोग।
  • विज्ञापन में व्यंजना का उपयोग।
  • सामान्य वार्तालाप में अभिधा का उपयोग।

8. काव्य में व्यंजना का प्रयोग कैसे किया जाता है?

उत्तर:
काव्य में व्यंजना का प्रयोग भावनाओं को गहराई से व्यक्त करने और पाठक के मन में छिपे अर्थों को जगाने के लिए किया जाता है।
उदाहरण:
“तारों की छांव में बैठा मन, जैसे शांत झील में लहरें।”
यहां “तारों की छांव” का अर्थ है एक शांतिपूर्ण और रात्रि की सुखद अनुभूति।


9. लक्षणा और व्यंजना का उपयोग समझने में छात्रों को क्या कठिनाइयां होती हैं?

उत्तर:

  • संदर्भ को सही ढंग से समझना।
  • मुख्य और अप्रत्यक्ष अर्थ में भेद करना।
  • साहित्यिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की कमी।
  • छिपे हुए भावनात्मक अर्थों को पहचानने में असमर्थता।
    इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए अभ्यास, उदाहरणों का अध्ययन, और साहित्यिक पाठों का विश्लेषण उपयोगी हो सकता है।

10. शब्द शक्ति का अध्ययन करने का सही तरीका क्या है?

उत्तर:

  1. शब्द शक्ति के तीनों प्रकारों का सिद्धांत समझें।
  2. विभिन्न उदाहरणों का अभ्यास करें।
  3. साहित्यिक ग्रंथों और कविताओं का विश्लेषण करें।
  4. संदर्भ के अनुसार शब्दों के अर्थ और प्रभाव का अध्ययन करें।
  5. अभ्यास के माध्यम से शब्दों के सांकेतिक, अप्रत्यक्ष और भावनात्मक अर्थ को समझने का प्रयास करें।

निष्कर्ष

शब्द शक्ति हिंदी व्याकरण और साहित्य दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। यह न केवल भाषा को समझने में सहायक है बल्कि इसे प्रभावी और भावनात्मक रूप से समृद्ध भी बनाता है।

 

हिंदी व्याकरण : शब्द ( Best Solution )

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