- हिंदी व्याकरण: संवाद लेखन
- FAQs on संवाद लेखन
- प्रश्न 1: संवाद लेखन क्या है?
- प्रश्न 2: संवाद लेखन के मुख्य तत्व क्या हैं?
- प्रश्न 3: संवाद लेखन में पात्रों का परिचय कैसे दिया जाता है?
- प्रश्न 4: संवाद लेखन में भाषा की क्या भूमिका होती है?
- प्रश्न 5: प्रभावी संवाद लेखन के लिए क्या करें और क्या न करें?
- प्रश्न 6: संवाद लेखन में हास्य और संवेदना कैसे शामिल करें?
- प्रश्न 7: परीक्षा में संवाद लेखन का प्रश्न कैसे हल करें?
- प्रश्न 8: संवाद लेखन में प्रश्न और उत्तर का संतुलन कैसे बनाए रखें?
- प्रश्न 9: संवाद लेखन में सामान्य गलतियाँ क्या होती हैं?
- प्रश्न 10: संवाद लेखन में रचनात्मकता कैसे दिखाएं?
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- FAQs on संवाद लेखन
हिंदी व्याकरण: संवाद लेखन
संवाद लेखन
संवाद का सामान्य अर्थ बातचीत है। इसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति भाग लेते है। अपने विचारों और भावों को व्यक्त करने के लिए संवाद की सहायता ली जाती है।
जो संवाद जितना सजीव, सामाजिक और रोचक होगा, वह उतना ही अधिक आकर्षक होगा। उसके प्रति लोगों का खिंचाव होगा। अच्छी बातें कौन सुनना नहीं चाहता इसमें कोई भी व्यक्ति अपने विचार सरल ढंग से व्यक्त करने का अभ्यास कर सकता है।
वार्तालाप में व्यक्ति के स्वभाव के अनुसार उसकी अच्छी-बुरी सभी बातों को स्थान दिया जाता है। इससे छात्रों में तर्क करने की शक्ति उत्पत्र होती है। नाटकों में वार्तालाप का उपयोग सबसे अधिक होता है।
इसमें रोचकता, प्रवाह और स्वाभाविकता होनी चाहिए। व्यक्ति, वातावरण और स्थान के अनुसार इसकी भाषा ऐसी होनी चाहिए जो हर तरह से सरल हो। इतना ही नहीं, वार्तालाप संक्षिप्त और मुहावरेदार भी होना चाहिए।
संवाद के अनेक नाम हैं :- वर्तालाप, आलाप, संलाप, कथोपकथन, गुफ्तगू, सम्भाषण इत्यादि।
यह कहानी, उपन्यास, एकांकी, नाटकादि की जान है। इसके माध्यम से पात्रों की सोच, चिन्तन-शैली, तार्किक क्षमता और उसके चरित्र का पता चलता है। नाटकों के संवादों से कथावस्तु का निर्माण होता है।
संवाद के वाक्यों में स्वाभाविकता होनी चाहिए, बनावटीपन नहीं। लम्बे-लम्बे कठिन और उलझे हुए संवाद प्राय बनावटी हुआ करते हैं। अच्छा संवाद-लेखक ही नाटक, रेडियो नाटक, एकांकी तथा कथा-कहानी लिखने में कुशलता हासिल करता है।
भाषा, बोलनेवाले के अनुसार थोड़ी-थोड़ी भिन्न होती है।
उदाहरण के रूप में एक अध्यापक की भाषा छात्र की अपेक्षा ज्यादा संतुलित और सारगर्भित होगी। एक पुलिस अधिकारी की भाषा और अपराधी की भाषा में काफी अन्तर होगा।
इसी तरह दो मित्रों या महिलाओं की भाषा कुछ भिन्न प्रकार की होगी। दो व्यक्ति, जो एक-दूसरे के शत्रु हैं – की भाषा अलग होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि संवाद-लेखन में पात्रों के लिंग, उम्र, कार्य, स्थिति का ध्यान रखना चाहिए।
संवाद-लेखन में इन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए कि वाक्य-रचना सजीव हो शैली सरल और भाषा बोधगम्य हो। उसमें कठिन शब्दों का प्रयोग कम-से-कम हो। संवाद के वाक्य बड़े न हों संक्षिप्त और प्रभावशाली हों। मुहावरेदार भाषा काफी रोचक होती है। अतएव, यथास्थान उनका प्रयोग हो।
संवाद-लेखन की परिभाषा
- दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच हुए वार्तालाप या सम्भाषण को संवाद कहते हैं।
- दो व्यक्तियों की बातचीत को ‘वार्तालाप’ अथवा ‘संभाषण’ अथवा ‘संवाद’ कहते हैं।
अच्छी संवाद-रचना के लिए बातों का ध्यान
- संवाद छोटे, सहज तथा स्वाभाविक हों।
- संवादों में रोचकता एवं सरसता हो।
- इनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और बोलचाल के निकट हो। उसमें क्लिष्ट तथा अप्रचलित शब्दों का प्रयोग न हो।
- संवाद पात्रों की सामाजिक स्थिति के अनुकूल हों। अनपढ़ या ग्रामीण पात्रों और शिक्षित पात्रों के संवादों में अंतर रहना चाहिए।
- संवाद जिस विषय या स्थिति के सम्बन्ध में हों, उसे क्रमश स्पष्ट करने वाले हों।
- प्रसंग के अनुसार संवादों में व्यंग्य-विनोद का समावेश होना चाहिए।
- यथास्थान मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से संवादों में सजीवता आ जाती है।
अच्छे संवाद-लेखन की विशेषताएँ
- संवाद में प्रवाह, क्रम और तर्कसम्मत विचार होना चाहिए।
- संवाद देश, काल, व्यक्ति और विषय के अनुसार लिखा होना चाहिए।
- संवाद सरल भाषा में लिखा होना चाहिए।
- संवाद में जीवन की जितनी अधिक स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही अधिक सजीव, रोचक और मनोरंजक होगा।
- संवाद का आरम्भ और अन्त रोचक हो।
संवाद लेखन के उदाहरण
- हामिद और दुकानदार का संवाद
हामिद :- यह चिमटा कितने का है?
दुकानदार :- यह तुम्हारे काम का नहीं है जी।
हामिद :- बिकाऊ है कि नहीं?
दुकानदार :- बिकाऊ नहीं है और यहाँ क्यों लाद लाये है?
हामिद :- तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है?
दुकानदार :- छे पैसे लगेंगे।
हामिद :- ठीक बताओ।
दुकानदार :- ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो तो लो, नहीं तो चलते बनो।
हामिद :- तीन पैसे लोगे?
- पड़ोसी और अँगनू काका का संवाद
पड़ोसी :- यह पिल्ला कब पाला, अँगनू काका?
अँगनू काका :- अरे भैया, मैंने काहे को पाला। यहाँ अपने ही पेट का ठिकाना नहीं। रात में न जाने कहाँ से आ गया!
पड़ोसी :- तुम इसे पाल लो, काका।
अँगनू काका :- भैया की बातें !इसे पालकर करेंगे क्या?
पड़ोसी :- तुम्हारी कोठरी ताका करेगा।
अँगनू काका :- कोठरी में कौन खजाना गड़ा है, जो ताकेगा।
- रोगी और वैद्य
रोगी :- (औषधालय में प्रवेश करते हुए) वैद्यजी, नमस्कार!
वैद्य :- नमस्कार! आइए, पधारिए! कहिए, क्या हाल है?
रोगी :- पहले से बहुत अच्छा हूँ। बुखार उतर गया है, केवल खाँसी रह गयी है।
वैद्य :- घबराइए नहीं। खाँसी भी दूर हो जायेगी। आज दूसरी दवा देता हूँ। आप जल्द अच्छे हो जायेंगे।
रोगी :- आप ठीक कहते हैं। शरीर दुबला हो गया है। चला भी नहीं जाता और बिछावन पर पड़े-पड़े तंग आ गया हूँ।
वैद्य :- चिंता की कोई बात नहीं। सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं। कुछ दिन और आराम कीजिए। सब ठीक हो जायेगा।
रोगी :- कृपया खाने को बतायें। अब तो थोड़ी-थोड़ी भूख भी लगती है।
वैद्य :- फल खूब खाइए। जरा खट्टे फलों से परहेज रखिए, इनसे खाँसी बढ़ जाती है। दूध, खिचड़ी और मूँग की दाल आप खा सकते हैं।
रोगी :- बहुत अच्छा! आजकल गर्मी का मौसम है प्यास बहुत लगती है। क्या शरबत पी सकता हूँ ?
वैद्य :- शरबत के स्थान पर दूध अच्छा रहेगा। पानी भी आपको अधिक पीना चाहिए।
रोगी :- अच्छा, धन्यवाद! कल फिर आऊँगा।
वैद्य :- अच्छा, नमस्कार।
- माँ-बेटे के बीच संवाद
बेटा :- माँ, ओ माँ !
माँ :- अरे, आ गए बेटा !
बेटा :- हाँ माँ ……. ।
माँ :- आज स्कूल से आने में काफी देर लगा दी……. ।
बेटा :- हाँ माँ, आज विश्व पर्यावरण-दिवस जो था।
माँ :- तो क्या कोई विशेष कार्यक्रम था तेरे स्कूल में ?
बेटा :- हाँ माँ, आज हमारे स्कूल में ‘तरुमित्रा’ के फादर आए हुए थे।
माँ :- तब तो जरूर उन्होंने पेड़-पौधों के बारे में विशेष जानकारी दी होगी।
बेटा :- हाँ, उन्होंने जानकारी भी दी और हम छात्रों के हाथों पौधे भी लगवाए।
माँ :- तुमने कौन-सा पौधा लगाया ?
बेटा :- मैंने अर्जुन का पौधा लगाया, माँ।
माँ :- बहुत खूब।
बेटा :- जानती हो माँ, शिक्षक बता रहे थे कि यह पौधा ह्रदय-रोग में काम आता है।
माँ :- वह कैसे ?
बेटा :- इसकी छाल और पत्ते से ह्रदय-रोग की दवा बनती है।
माँ :- पेड़-पौधों के बारे में शिक्षक ने और क्याक्या बताया ?
बेटा :- उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं। वे हमें ऑक्सीजन देते हैं। इन्हें अपने आस-पास लगाने चाहिए।
माँ :- अच्छा, अब मेरा राजा बेटा, हाथ-पाँव धोकर भोजन करेगा।
बेटा :- ठीक है, माँ।
- गुरुघंटाल और मस्तीलाल के बीच संवाद
गुरुघंटाल :- आओ, आओ मस्ती, कहो, क्या हाल-चाल है ?
मस्तीलाल :- ठीक कहाँ है गुरु ! आजकल बड़ा ही परेशान रह रहा हूँ।
गुरुघंटाल :- किस बात की परेशानी ?
मस्तीलाल :- बाल-बच्चों के भविष्य की चिन्ता सता रही है।
गुरुघंटाल :- क्या हुआ उन्हें ? सब कुछ ठीक-ठाक तो है न ?
मस्तीलाल :- ठीक क्या खाक रहेगा गुरु ! इस बार फिर मेरे दोनों बेटे इंटर फैल हो गए।
गुरुघंटाल :- मैं तो कहता हूँ, छोड़ दे दोनों को पढ़ाना-लिखाना। बना दे उन्हें नेता। राजनीति में सब चलता है।
मस्तीलाल :- समझ में नहीं आता कि किस पार्टी के आला-कमान से बात करूँ।
गुरुघंटाल :- इसमें समझने की क्या बात है- उगते सूरज को देख और दिशा तय कर।
मस्तीलाल :- तुम ठीक कहते हो गुरु, अब भाजपा-लोजपा में भी वो बात नहीं रही। आज ही जाता हूँ दिल्ली और….
- दो छात्राओं के बीच संवाद
पूजा :- अभी तक सर नहीं आए।
कोमल :- इतनी जल्दी आते ही कब हैं ?
पूजा :- रोज 10 मिनट लेट कर देते हैं।
कोमल :- और आते ही शुरू हो जाते हैं- मेरी हर लाईन में क्वेश्चन होता है, बिल्कुल C.B.S.E. के पैटर्न पर…….
(दोनों हँस पड़ती हैं)
पूजा :- अच्छा ही है। हमें भी कुछ गुफ्तगू का रोज-व-रोज अवसर मिल ही जाता है।
कोमल :- अच्छा, यह बताओ, तुम्हें मि. Y कैसे लगते हैं ?
पूजा :- बहुत ही अच्छे। पढ़ाने लगते हैं तो तुरंत नींद आने लगती है।
(ठहाका)
कोमल :- मैं यह पूछ रही हूँ कि उनके Style आई मीन पढ़ाने की शैली कैसी है ? उनकी बात दिमाग में अँटती भी हैं कि नहीं ?
पूजा :- दिमाग में अँटे कहाँ से, पढ़ाते ही क्या हैं, दिमाग चाटते रहते हैं।
कोमल :- सर के बारे में ऐसा न कहो।
पूजा :- तो क्या केवल उनकी तरह गाल बजाती फिरूँ कि मैं बड़ा विद्वान हूँ, मेरे पढ़ाए छात्र-छात्राएँ ऊँचे-ऊँचे पदों पर हैं; तुमलोग समय का महत्त्व नहीं देती हो आज भी सोसायटी में लड़कियों का स्थान काफी निम्न है, आदि-आदि……. ।
कोमल :- चुप, वे आ रहे हैं। …… ।
- दो मित्रों के बीच संवाद
पहला :- सुप्रभात, मित्र सुप्रभात !
दूसरा :- सुप्रभात ! सुबह-सुबह पान खाए हो, क्या बात है ?
पहला :- बात क्या रहेगी, उधर मनोज की दुकान-तरफ गया था……
दूसरा :- आजकल बड़ी बैठकी हो रही उस चौराहे पर ! लगता है, सत्तू बाँधकर पीछे पड़े हो उस पर।
पहला :- क्या करें मित्र, समझ में नहीं आता, मेरा सारा वार ही खाली हो जाता है।
दूसरा :- तुम गलत करते ही हो। आखिर क्या बिगाड़ा है उसने जो इस तरह उसे परेशान करना चाहते हो ?
पहला :- परेशान करना ……. ! मैंने तो उसे भिखमंगा बना डालने की कसम खा रखी है, जीते जी छोड़ूँगा नहीं।
दूसरा :- लोग बड़ी निन्दा करते हैं तेरी।
पहला :- करने दो, लेकिन मैं छोड़ूँगा नहीं। उसे यहाँ से जाना ही होगा।
दूसरा :- यह भ्रम है तेरा, भ्रम। वह अकेले थोड़े है। उसके साथ आरयन मैन भी तो है।
पहला :- वह तो वक्त ही बताएगा कि …….
FAQs on संवाद लेखन
प्रश्न 1: संवाद लेखन क्या है?
उत्तर:
संवाद लेखन एक ऐसा लेखन कला है जिसमें दो या अधिक पात्रों के बीच वार्तालाप को लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह लेखन पात्रों के भाव, विचार, और प्रतिक्रियाओं को स्पष्ट करने का एक तरीका है। संवाद लेखन में बातचीत को रोचक और प्रासंगिक बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 2: संवाद लेखन के मुख्य तत्व क्या हैं?
उत्तर:
संवाद लेखन के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं:
- पात्र: संवाद में शामिल व्यक्तियों का वर्णन।
- परिस्थिति: संवाद किस संदर्भ में हो रहा है।
- भाषा: पात्रों की भाषा उनकी पृष्ठभूमि और स्वभाव के अनुसार होनी चाहिए।
- लय: संवाद में सहजता और प्रवाह।
- संक्षिप्तता: संवाद का संक्षिप्त और प्रभावी होना।
प्रश्न 3: संवाद लेखन में पात्रों का परिचय कैसे दिया जाता है?
उत्तर:
पात्रों का परिचय संवाद के प्रारंभ में या वार्तालाप के दौरान संकेतों के माध्यम से दिया जाता है। उदाहरण के लिए:
- “मोहित (हंसते हुए): क्या आपने नई फिल्म देखी?”
- “समीरा (गंभीर होकर): मुझे नहीं लगता कि यह सही होगा।”
प्रश्न 4: संवाद लेखन में भाषा की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
संवाद लेखन में भाषा संवाद की प्रभावशीलता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पात्रों की भाषा उनकी उम्र, शिक्षा, संस्कृति और भावना के अनुसार होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, बच्चों का संवाद सरल और खेल-भावना से युक्त होता है, जबकि शिक्षकों का संवाद औपचारिक और ज्ञानवर्धक हो सकता है।
प्रश्न 5: प्रभावी संवाद लेखन के लिए क्या करें और क्या न करें?
उत्तर:
क्या करें:
- संवाद को परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिक रखें।
- पात्रों के स्वभाव और भूमिका के अनुसार भाषा का चयन करें।
- छोटे और सरल वाक्यों का प्रयोग करें।
क्या न करें: - अनावश्यक लंबी बातचीत से बचें।
- संवाद को बहुत जटिल या असंबद्ध न बनाएं।
- सभी पात्रों को समान भाषा शैली न दें।
प्रश्न 6: संवाद लेखन में हास्य और संवेदना कैसे शामिल करें?
उत्तर:
हास्य और संवेदना संवाद में पात्रों के संवादों और उनकी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से जोड़े जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, हास्य के लिए चुटीले या हल्के फुल्के संवाद, और संवेदना के लिए भावुक शब्दों और वातावरण का उपयोग करें।
प्रश्न 7: परीक्षा में संवाद लेखन का प्रश्न कैसे हल करें?
उत्तर:
परीक्षा में संवाद लेखन करते समय ध्यान रखें:
- दिए गए विषय को ध्यान से पढ़ें।
- पात्रों और परिस्थिति की पहचान करें।
- वार्तालाप को रोचक और संक्षिप्त बनाएं।
- व्याकरण और विराम चिह्नों का सही प्रयोग करें।
- संवाद का एक सकारात्मक निष्कर्ष दें।
प्रश्न 8: संवाद लेखन में प्रश्न और उत्तर का संतुलन कैसे बनाए रखें?
उत्तर:
प्रत्येक पात्र को संवाद में बराबर योगदान देना चाहिए। एक पात्र को केवल सवाल पूछने या जवाब देने तक सीमित न रखें। बातचीत में दोनों पक्षों की प्रतिक्रियाएँ और भावनाएँ स्पष्ट होनी चाहिए।
प्रश्न 9: संवाद लेखन में सामान्य गलतियाँ क्या होती हैं?
उत्तर:
- पात्रों की भाषा शैली का सही चयन न करना।
- संवाद को असंयोजित और अव्यवस्थित बनाना।
- संवाद में विषय से भटकना।
- अनावश्यक रूप से संवाद को लंबा खींचना।
- व्याकरण और विराम चिह्नों की गलतियाँ।
प्रश्न 10: संवाद लेखन में रचनात्मकता कैसे दिखाएं?
उत्तर:
- संवाद को वास्तविक जीवन की बातचीत के करीब रखें।
- संवाद में अप्रत्याशित मोड़ या रोचक प्रश्न जोड़ें।
- पात्रों के बीच विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करें।
- वार्तालाप को संवादी भाषा और प्रासंगिक उदाहरणों के साथ सजाएँ।
- पाठक को सोचने पर मजबूर करने वाला निष्कर्ष दें।