12th Econimics

अध्याय-3: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा
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अध्याय-3: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा

उदारीकरण; निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरणः स्वतंत्र भारत में समाजवादी तथा पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुणों को सम्मिलित करते हुए मिश्रित आर्थिक ढांचे को स्वीकार किया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था की अक्षम प्रबंधन ने 1980 के दशक तक वित्तीय संकट उत्पन्न कर दिया। सरकारी नीतियों और प्रशासन के […]

अध्याय-4: भारत में मानव पूँजी का निर्माण   
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अध्याय-4: भारत में मानव पूँजी का निर्माण   

भारत में मानव पूँजी का निर्माण      भारत में मानव पूँजी निर्माण: हमें कार्यों को कुशलतापूर्वक करने के लिए अच्छे प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता होती है। किसी शिक्षित व्यक्ति के श्रम-कौशल अशिक्षित व्यक्ति से अधिक होते हैं। कोई शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति के अपेक्षा, अधिक आय का सृजन […]

अध्याय-5: ग्रामीण विकास (भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास)
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अध्याय-5: ग्रामीण विकास (भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास)

ग्रामीण विकास (भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास) ग्रामीण विकास ग्रामीण विकास से अभिप्राय उस क्रमबद्ध योजना से है जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर तथा आर्थिक व सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जाती है। ग्रामीण विकास के मुख्य तत्व भूमि के प्रति इकाई कृषि उत्पादकता को बढ़ाना कृषि विपणन […]

अध्याय-6: रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे
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अध्याय-6: रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे

रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे   रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारिकरण एवं अन्य मुद्दे श्रमिक वे सभी व्यक्ति जो किसी भी आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं| आर्थिक क्रिया सकल राष्ट्रिय उत्पाद (GNP) में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को हम आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं|  सकल घरेलु उत्पाद (GDP) किसी […]