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अध्याय 4: संस्थाओं का कामकाज

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 संस्थाओं का कामकाज

संस्थाओं का कामकाज

संस्थाओं का कामकाज

संस्थाओं का कामकाज, संस्थाएं किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार होती हैं। ये समाज और सरकार के बीच सेतु का काम करती हैं और लोकतंत्र के सुचारु संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संस्थाओं का मुख्य कार्य नीतियां बनाना, उन्हें लागू करना, और नागरिकों को न्याय प्रदान करना है।

संस्थाओं का महत्व: संस्थाओं का कामकाज

  1. लोकतंत्र को मजबूत बनाना – संस्थाएं लोकतंत्र को संरचना और दिशा प्रदान करती हैं।
  2. कानून और व्यवस्था बनाए रखना – ये संस्थाएं समाज में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती हैं।
  3. जनहित के कार्यों का संचालन – संस्थाएं नागरिकों की समस्याओं को हल करने और उनकी जरूरतों को पूरा करने का कार्य करती हैं।
  4. न्याय प्रदान करना – न्यायपालिका जैसे संस्थान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।

भारत में संस्थाओं का ढांचा :संस्थाओं का कामकाज

भारत में संस्थाओं को तीन मुख्य शाखाओं में विभाजित किया गया है:

  1. विधायिका (Legislature)
  2. कार्यपालिका (Executive)
  3. न्यायपालिका (Judiciary)

1. विधायिका (Legislature)

यह संस्था कानून बनाने का कार्य करती है। भारत में विधायिका के दो स्तर हैं:

  • संसद (Parliament) – यह राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने वाली संस्था है। संसद में दो सदन होते हैं:
    • लोकसभा (निचला सदन)
    • राज्यसभा (ऊपरी सदन)
  • राज्य विधानमंडल – यह राज्य स्तर पर कानून बनाने का कार्य करती है।

कार्य:

  • कानून बनाना और संशोधित करना।
  • सरकार के कामकाज पर नजर रखना।
  • बजट पारित करना।
  • जनता की समस्याओं को उठाना।

2. कार्यपालिका (Executive)

कार्यपालिका उन कानूनों को लागू करने का कार्य करती है, जो विधायिका द्वारा बनाए जाते हैं।

  • राष्ट्रपति – भारत के राष्ट्रपति कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं।
  • प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल – प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल सरकार का वास्तविक कार्यकारी अंग होता है।
  • सरकारी अधिकारी और कर्मचारी – ये नीतियों और योजनाओं को लागू करने में मदद करते हैं।

कार्य:

  • कानूनों को लागू करना।
  • योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करना।
  • प्रशासनिक कार्यों का संचालन।

3. न्यायपालिका (Judiciary)

न्यायपालिका का मुख्य कार्य न्याय प्रदान करना और कानूनों की व्याख्या करना है।

  • सर्वोच्च न्यायालय – यह देश का सर्वोच्च न्यायिक अंग है।
  • उच्च न्यायालय – यह राज्यों में न्याय का उच्चतम स्तर है।
  • निचली अदालतें – ये जिला और स्थानीय स्तर पर न्याय प्रदान करती हैं।

कार्य:

  • विवादों का निपटारा करना।
  • नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
  • संविधान की व्याख्या करना।

लोकतांत्रिक संस्थाओं का कामकाज: संस्थाओं का कामकाज

1. पारदर्शिता और जवाबदेही

लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए संसद में चर्चा और बहस होती है।

2. कानून और नीतियों का निर्माण

विधायिका का कार्य समाज के कल्याण के लिए उचित कानून और नीतियां बनाना है।

3. न्याय का वितरण

न्यायपालिका का कार्य है कि वह संविधान और कानून के अनुसार सभी को न्याय प्रदान करे।

4. प्रशासनिक कार्य

कार्यपालिका का दायित्व है कि वह नीतियों को लागू करे और प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाए।


भारत में संस्थाओं से जुड़ी चुनौतियां: संस्थाओं का कामकाज

1. भ्रष्टाचार

कई संस्थाओं में पारदर्शिता की कमी के कारण भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बन गया है।

2. धीमी प्रक्रिया

न्यायपालिका और प्रशासनिक संस्थाओं की धीमी कार्यप्रणाली के कारण न्याय और सेवाओं में देरी होती है।

3. राजनीतिक हस्तक्षेप

कार्यपालिका और न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव डालने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे संस्थाओं की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

4. संसाधनों की कमी

कई संस्थाओं के पास आवश्यक संसाधनों की कमी है, जिससे उनके कार्यों में बाधा आती है।


संस्थाओं की सुधार प्रक्रिया: संस्थाओं का कामकाज

1. पारदर्शिता बढ़ाना

संस्थाओं को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) जैसे कानून लागू किए गए हैं।

2. तकनीकी का उपयोग

डिजिटल तकनीकों के उपयोग से प्रक्रियाओं को तेज और पारदर्शी बनाया जा रहा है।

3. स्वतंत्रता सुनिश्चित करना

संविधान ने न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं की स्वतंत्रता सुनिश्चित की है।

4. नागरिक सहभागिता

जनता को संस्थाओं के कामकाज में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।


निष्कर्ष : संस्थाओं का कामकाज

संस्थाओं का सुचारु संचालन एक मजबूत लोकतंत्र की पहचान है। भारत में विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका जैसी संस्थाएं नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, इनसे जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। पारदर्शिता, जवाबदेही, और कुशलता से ही संस्थाओं को प्रभावी बनाया जा सकता है।

इस प्रकार, संस्थाएं लोकतंत्र के स्तंभ हैं और इनका प्रभावी कामकाज नागरिकों के कल्याण और राष्ट्र के विकास के लिए अनिवार्य है।

 

प्रश्न 1 – अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाए तो आप निम्नलिखित में से कौन- सा फैसला खुद कर सकते हैं?

(क) अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते हैं।

(ख) लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकते हैं।

(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधायक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।

(घ) मंत्रिपरिषद में अपनी पसंद के नेताओं का चयन कर सकते हैं।

उत्तर – दोनों सदनों द्वारा पारित विधायक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।

प्रश्न 2 – निम्नलिखित में कौन राजनीतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है?

(क) जिलाधीश
(ख) गृह मंत्रालय का सचिव
(ग) गृह मंत्री
(घ) पुलिस महानिदेश

उत्तर – गृह मंत्री

प्रश्न 3 – न्यायपालिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन- सा बयान गलत है?

(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।

(ख) अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायपालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है।

(ग) न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है।

(घ) अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।

उत्तर – संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।

प्रश्न 4 – निम्नलिखित राजनीतिक संस्थाओं में से कौन- सी संस्था देश के मौजूदा कानून में संशोधन कर सकती है?

(क) सर्वोच्च न्यायालय
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) संसद

उत्तर – संसद

प्रश्न 5 – उस मंत्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार जारी किया होगा:

(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है।    1. रक्षा मंत्रालय

(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएं सुलभ कराई जाएंगी। 2. कृषि, खाघन्न और

(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूं की कीमतें कम की जाएंगी। 3. स्वास्थ्य मंत्रालय

(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा।  4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय

(ङ) ऊंची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएंगे।    5. संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय

उत्तर –

(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है।  5. संचार और सूचना प्रौद्योगिकी  

(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएं सुलभ कराई जाएंगी। 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय

(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूं की कीमतें कम की जाएंगी। 3. स्वास्थ्य मंत्रालय

(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा।   1. रक्षा मंत्रालय

(ङ) ऊंची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएंगे।   2. कृषि, खाघन्न और

प्रश्न 6. देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से उस राजनीतिक संस्था का नाम बताइए जो निम्नलिखित मामलों में अधिकारों का इस्तेमाल करती है।

(क) सड़क, सिंचाई जैसे बुनियादी ढांचे के विकास और नागरिकों के विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों पर कितना पैसा खर्च किया जाएगा।

(ख) स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने संबंधी कानून बनाने की कमेटी के सुझाव पर विचार – विमर्श करती है।

(ग) दो राज्य सरकारों के बीच कानूनी विवाद पर निर्णय लेती है।

(घ) भूकंप पीड़ितों की राहत के प्रयासों के बारे में सूचना मांगती है।

उत्तर-

(क) विधायिका

(ख) न्यायपालिका

(ग) न्यायपालिका

(घ) कार्यपालिका

प्रश्न 7- भारत का प्रधानमंत्री सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं चुना जाता ? निम्नलिखित चार जवाबों में से सबसे सही को चुनकर अपनी पसंद के पक्ष में कारण दीजिए:

(क) संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता है।

(ख) लोकसभा, प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटा सकती है।

(ग) चूकि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है लिहाजा उसे जनता द्वारा चुने जाने की जरूरत ही नहीं है।

(घ) प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च आएगा।

उत्तर – (ख) लोकसभा, प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटा सकती है।

इस देश में प्रधानमंत्री सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक संस्था है। फिर भी प्रधानमंत्री के लिए कोई प्रत्यक्ष चुनाव नहीं होता। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करते हैं लेकिन राष्ट्रपति अपनी मर्जी से किसी को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं कर सकते। राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या पार्टियों के गठबंधन के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।

अगर किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं होता तो राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करता है जिसे सदन में बहुमत हासिल होने की संभावना होती है। मंत्री को नियुक्त करने के बाद राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर दूसरे मंत्रियों को नियुक्त करते हैं। मंत्री अमूमन उसी पार्टी या गठबंधन के होते हैं जिसे लोकसभा में बहुमत हासिल हो। प्रधानमंत्री मंत्रियों के चयन के लिए स्वतंत्र होता है। बशर्ते वे संसद के सदस्य हों।

प्रश्न 8 – तीन दोस्त एक ऐसी फिल्म देखने गए जिसमें हीरो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनता है और राज्य में बहुत से बदलाव लाता है। इमरान ने कहा कि देश को इसी चीज की जरूरत है। रिजवान ने कहा कि इस तरह का, बिना संस्थाओं वाला एक व्यक्ति का राज खतरनाक है। शंकर ने कहा कि यह तो एक कल्पना है। कोई भी मंत्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसी फिल्मों के बारे में आपकी क्या राय है?

उत्तर – इस तरह की फ़िल्म मुख्यत: वास्तविक नहीं होती हैं, यहां पर रिजवान ने जो कहा वह सही है। कोई भी लोकतांत्रिक संस्थाओं वाला एक व्यक्ति का राज खतरनाक साबित होगा देश के लिए। लोकतांत्रिक सरकार के संस्थाओं के लिए तीन संस्था बनाई गई है – कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका।

प्रश्न 9 – एक शिक्षिका छात्रों की संसद की योजना की तैयारी कर रही थी। उसने दो छात्राओं से अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की भूमिका करने को कहा। उसने उन्हें विकल्प भी दिया। यदि वे चाहे तो राज्यसभा में बहुमत प्राप्त दल की नेता हो सकती थी और अगर चाहे तो लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की। अगर आपको यह विकल्प दिया गया तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?

उत्तर – अगर मुझे ये विकल्प दिया जाएगा तो मैं लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल को चुनना पसंद करूंगी। क्योंकि बाद में लोकसभा का नेता ही प्रधानमंत्री बनता है। राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या पार्टियों के गठबंधन के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। अगर किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं होता तो राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करता है जिसे सदन में बहुमत हासिल होने की संभावना होती है।

प्रश्न 10 – आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्यार्थियों की न्यायपालिका की भूमिका पर अलग-अलग प्रतिक्रिया थी। इनमें से कौन-सी प्रतिक्रिया, न्यायालय की भूमिका को सही तरह से समझती है?

(क) श्रीनिवास का तर्क है कि क्योंकि चूकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है लिहाजा वह स्वतंत्र नहीं है।

(ख) अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन करने का निर्देश दिया।

(गविजय का मानना है कि न्यायपालिका न तो स्वतंत्र है और ना ही किसी के अनुसार चलने वाली है। बल्कि वह विरोधी समूह के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय ने इस आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया।

आपकी राय में कौन – सा विचार सबसे सही है?

उत्तर – मेरी राय में अंजैया का विचार सबसे सही लगा क्योंकि उसने न्यायपालिका स्वतंत्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन करने का निर्देश  दिया।

भारत की न्यायपालिका दुनिया की सबसे अधिक प्रभावशाली न्यायपालिकाओं में से एक है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या का अधिकार है। उन्हें लगता है कि विधायिका का कोई कानूनी कार्यपालिका की कोई कार्यवाही संविधान के खिलाफ है तो वह केंद्र और राज्य स्तर पर ऐसे कानूनी कार्यवाही को अमान्य घोषित कर सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका के अधिकार और स्वतंत्रता उसे मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में काम करने की क्षमता प्रदान करते हैं। नागरिकों को संविधान से मिले अपने अधिकारों के उल्लंघन के मामले में इंसाफ पाने के लिए अदालतों में जाने का अधिकार है।

हाल के वर्षों में अदालतों ने सार्वजनिक हित और मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए विभिन्न फैसले और निर्देश दिए हैं। सरकार की कार्यवाही उसे जनहित को ठेस पहुंचने की स्थिति में कोई भी अदालत जा सकता है इसे जनहित याचिका कहते हैं। अदालत ने सरकार को निर्णय करने की शक्ति के दुरुपयोग से रोकने के लिए हस्तक्षेप करती हैं। वे सरकारी अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण से रोकती हैं।

अध्याय 5: लोकतांत्रिक अधिकार

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