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फातिमा शेख: जीवन परिचय !

फातिमा शेख: जीवन परिचय !

फातिमा शेख

फातिमा शेख

फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 और मृत्यु अक्टूबर 1900 के आसपास हुई. फातिमाशेख के भाई उस्मान शेख ज्योतिबा फुले के मित्र थे. ज्योतिबा फुले के पिता गोविंदराव ने जब समाज के दबाव में आकर अपने बेटे (बहू द्वारा) को अछूत लड़कियों को पढ़ाने का काम बंद करने को कहा तो ज्योतिबा ने कहा, वह यह काम बंद नहीं करेंगे. तब गोविंदराव ने गुस्से में आकर उन्हें घर से निकल जाने को कह दिया.

सावित्रीबाई फुले से ऐसी हुई मुलाकात
फातिमाशेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके भाई का नाम उस्मान शेख था, जो ज्योतिबा फुले के मित्र थे। निचली जातियों के लोगों को शिक्षित करने के कारण फातिमा शेख और उनके भाई दोनों को समाज से बाहर निकाल दिया गया था। जिसके बाद दोनों भाई-बहन सावित्रीबाई फुले से मिले। उनके के साथ मिलकर फातिमा शेख ने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

कई लोगों ने किया विरोध

फातिमाशेख ने अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग भी ली थी। इसके बाद वह और सावित्री बाई दोनों लोगों के बीच जाकर महिलाओं बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती थी। इस दौरान कई लोग उनका विरोध भी कर रहे थे, लेकिन कठिनाईयों का सामना करते हुए दोनों ने इस अभियान को जारी रखा। 1856 में सावित्रीबाई जब बीमार पड़ गई तो वह कुछ दिन के लिए अपने पिता के घर चली गईं। उस समय अकेले फातिमा शेख सारा लेखा जोखा देखती थी।

फातिमा ने ली थी टीचर्स ट्रेनिंग

फ़ातिमाशेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग भी ली थी. फ़ातिमाशेख और सावित्री बाई ने लोगों के बीच जाकर उन्हें अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया. इस कार्य में कुछ लोगों ने उनकी सहायता भी की. दूसरी ओर ज़्यादातर लोगों ने उनका विरोध किया. फ़ातिमा शेख का फुले दम्पति के द्वारा किए जा रहे ज़्यादातर कामों में सहयोग रहा.

1856 में सावित्रीबाई जब बीमार पड़ गई तो वह कुछ दिन के लिए अपने पिता के घर चली गईं. वहां से वह ज्योतिबा फुले को पत्र लिखा करती थीं. उन पत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार फ़ातिमा शेख ने उस समय स्कूल के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी उठाई और स्कूल की प्रधानाचार्या भी बनीं.

पुस्तकालय में पढ़ने के लिए किया आमंत्रित 

उस समय जब हमारे पास संसाधनों की कमी थी तब फातिमा शेख ने मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को लेकर आवाज उठाई। हालांकि, ये सब करना आसान नहीं था लेकिन फातिमा शेख ने ये कर दिखाया। फातिमा शेख घर-घर जाकर दलितों और मुस्लिम महिलाओं को स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया करती थी। इस दौरान उन्हें कई प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन अपनी बात पर अड़ी फातिमा शेख ने कभी हार नहीं मानी।
आज अब बहुत कम ही लोग उस्मान शेख और फातिमा शेख के बारे में जानते हैं। कुछ समूहों ने उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश की है। फातिमा शेख का क्या हुआ और उन्होंने कैसे जिंदगी  बिताई इसके बारे में बहुत जानकारियां अभी नहीं मिली हैं, लेकिन अधिक जानकारियां जुटाने की कोशिशें जारी हैं। एक ऐसे समय में जब देश में सांप्रदायिक ताकतें हिंदुओं-मुसलमानों को बांटने में सक्रिय हों, फातिमा शेख के काम का उल्लेख जरूरी हो जाता है। स्त्रीमुक्ति आंदोलन की अहम किरदार रहीं फातिमा पर शोध की जरूरत है। इतिहास के ऐसे मौन बहुत कुछ कहते हैं।

नोट :

हाल ही में लेखक दिलीप मंडल यह दावा किया है कि भारत की पहली महिला मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख का किरदार काल्पनिक है. उनका कहना है कि इस किरदार को उन्होंने ही 15 साल पहले रचा था. लेकिन कई पड़ताल बताती हैं कि फातिमा शेख का एतिहासिक दस्तावेजों में भले ही खासा जिक्र ना हो. उनके होने को खारिज करना इतना आसान ना होगा.

सावित्रीबाई फुले: जीवन परिचय !

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