भारत में मानव पूँजी का निर्माण
भारत में मानव पूँजी निर्माण:
- हमें कार्यों को कुशलतापूर्वक करने के लिए अच्छे प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता होती है।
- किसी शिक्षित व्यक्ति के श्रम-कौशल अशिक्षित व्यक्ति से अधिक होते हैं।
- कोई शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति के अपेक्षा, अधिक आय का सृजन करता है और आर्थिक समृद्धि में उसका योगदान क्रमशः अधिक होता है।
- आर्थिक संवृद्धि का अर्थ देश की वास्तविक राष्ट्रिय आय में वृद्धि से होता है|
शिक्षा के लाभ :
- शिक्षा लोगों को उच्चतम सामाजिक स्थिति और गौरव प्रदान करती है।
- यह किसी व्यक्ति को अपने जीवन में बेहतर विकल्पों का चयन कर पाने के योग्य बनाता है|
- व्यक्ति को समाज में चल रहे परिवर्तनों की बेहतर समझ प्रदान करता है|
- समाज में होने वाले नव परिवर्तनों को बढ़ावा देता है।
- शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नयी प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है।
- शिक्षित लोग शिक्षा के विस्तार की आवश्यकता पर बल देते हैं, क्योंकि यह विकास प्रक्रिया को तेज करती है|
शिक्षित श्रम शक्ति की विशेषताएँ :
शिक्षा समाज में परिवर्तनों और वैज्ञानिक प्रगति को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है- जिससे आविष्कारों और नव परिवर्तनों में सहायता मिलती है। इसीलिए शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाने में सहायक होती है।
मानव पूँजी निर्माण की अवधारणा:
मानव पूँजी : किसी देश में किसी समय विशेष पर पाए जाने वाले कौशल तथा निपुणता के भंडार को मानव पूँजी कहते हैं| जैसे – शिक्षक, डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, बढई आदि|
- भौतिक पूँजी की अवधारणा के आधार पर ही मानव पूँजी के वैचारिक आधार की रचना की गयी है।
- मानव पूँजी की वृद्धि के कारण आर्थिक संवृद्धि होती है।
मानव पूँजी निर्माण के निर्धारक तत्व:
- शिक्षा पर व्यय : एक शिक्षित व्यक्ति का श्रम-कौशल अशिक्षित की अपेक्षा अधिक होता है। इसी कारण वह अपेक्षाकृत अधिक आय अर्जित कर पाता है। दूसरी बात कि शिक्षा से सभी प्रकार के कौशल का सृजन किया जा सकता है| अत: शिक्षा पर व्यय मानव पूँजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है|
- स्वास्थ्य पर व्यय : एक स्वस्थ्य व्यक्ति की उपार्जन क्षमता अस्वस्थ्य व्यक्ति से कहीं अधिक होती है| एक स्वस्थ व्यक्ति अधिक समय तक व्यवधानरहित श्रम की पूर्ति कर सकता है। इसमें एक अन्य दूसरा तथ्य यह है कि स्वास्थ्य पर व्यय से जीवन प्रत्याशा और मृत्यु दर में कमी आती है जिससे किसी देश को संसाधन के रूप में स्वस्थ्य मनुष्य प्राप्त होते है|
- नौकरी के साथ प्रशिक्षण :
- स्थानांतरण
- वयस्कों के लिए अध्ययन का कार्यक्रम :
- सुचना पर व्यय
मानव पूँजी निर्माण के स्रोत:
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
आर्थिक समृद्धि और मानव पूँजी:
मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूँजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की संवृद्धि में सहायता मिल सकती है।
आर्थिक समृद्धि में मानव पूँजी निर्माण की भूमिका :
- मानव पूँजी निर्माण के कारण आर्थिक समृद्धि के भावात्मक तथा भौतिक वातावरण में परिवर्तन होता है|
- लोगों के आचार-व्यवहार तथा उनकी आकांक्षाएँ विकाशशील बनती जाती है|
- मानव पूँजी निर्माण से भावात्मक वातावरण का निर्माण होता है और समृद्धि में सहायक होता है|
- कुशल तथा प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या में वृद्धि होगी साथ-साथ अब और भी उत्तम मानव कौशल जैसे – डॉक्टर, शिक्षक, इंजिनियर और व्यवसायीयों की संख्या में हमारे आस-पास वृद्धि होगी और वे आर्थिक समृद्धि में सहायक होंगे|
मानव पूँजी सभी पूँजीयों की जननी है :
संसार की सभी पूंजियों का उपभोग मानव ही करता है, और इन पूंजियों का निर्माण भी मानव ही करता है| मानव पूँजी में वृद्धि से भौतिक पूंजियों की उत्पादकता में वृद्धि होती है| जिससे विकास की गति त्वरित होती हैं| एक मनुष्य चाहे तो वह सभी प्रकार के पूंजियों को प्राप्त कर सकता है|
भारत में मानव पूँजी निर्माण की समस्याएँ :
भारत में मानव पूँजी निर्माण में बाधक तत्व निम्नलिखित हैं :
- जनसंख्या में वृद्धि :
- प्रतिभा पलायन
- अपर्याप्त मानव शक्ति का नियोजन
- प्राथमिक क्षेत्र में काम के दौरान प्रशिक्षण की कमी
- निम्न शैक्षिक मानक
भौतिक पूँजी और मानव पूँजी में अंतर:
भौतिक पूँजी | मानव पूँजी |
1. भौतिक पूँजी निर्माण एक आर्थिक और तकनिकी प्रक्रिया है| | 1. मानव पूँजी निर्माण एक सामाजिक प्रक्रिया है| |
2. भौतिक पूँजी में निवेश का निर्णय अपने ज्ञान के आधार लिया जाता है| | 2. मानव पूँजी निर्माण के दौरान व्यक्ति निर्णय लेने में असमर्थ होता है| |
3. भौतिक पूँजी का स्वामित्व उस व्यक्ति के सुविचारित निर्णय का परिणाम होता है| | 3. बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्णय उनके अभिभावक तथा समाज करता है| |
4. भौतिक पूँजी दृश्य होती है| | 4. मानव पूँजी अदृश्य होती है| |
5. भौतिक पूँजी को बेचा जा सकता है| | 5. मानव पूँजी को बेचा नहीं जा सकता है| |
6. भौतिक पूँजी को स्वामी से अलग किया जा सकता है| | 6. मानव पूँजी को स्वामी से अलग नहीं किया जा सकता है| |
7. भौतिक पूँजी से सिर्फ उसका स्वामी लाभान्वित होता है| | 7. मानव पूँजी से उसका स्वामी ही नहीं वरन् सारा समाज लाभांवित होता है। |
पूँजीयों का ह्रास :
भौतिक पूँजी और मानव पूँजी दोनों ही समय के साथ साथ इनके मूल्य में ह्रास होता है |
किसी मशीन के निरंतर प्रयोग से वह घिस जाती है और प्रौद्योगिकीय परिवर्तन उसे पुराना घोषित कर देते हैं। मानव पूँजी में आयु के अनुसार कुछ ह्रास आता है।
शिक्षा पर सार्वजानिक/सरकारी व्यय:
कुल सरकारी व्यय में शिक्षा पर व्यय 7.92 प्रतिशत से बढ़कर 11.7 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार सकल घरेलू उत्पाद में इसका प्रतिशत 0.64 से बढ़कर 3.31 प्रतिशत हो गया है।
भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता:
शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता। इसलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है।
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी सेवाएँ :
भारत में शिक्षा क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तर पर कार्य होता है जो निम्नलिखित है |
- शिक्षा मंत्रालय
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्
स्वास्थ्य क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तरों पर कार्य होता है जो निम्नलिखित है :
- स्वास्थ्य मंत्रालय
- विभिन्न संस्थाओं के स्वास्थ्य विभाग
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद्
भारतीय अर्थव्यस्था का श्रम से ज्ञानाधारित की ओर अग्रसर:
अब भारत में भी श्रम के बल पर अर्थोपार्जन से ऊपर उठकर ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहा है जिसका एक स्पष्ट उदाहरण है सुचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मानव पूँजी का योगदान, इस शक्ति ने सॉफ्टवेर के क्षेत्र में उत्साहवर्धक कार्य हुआ है | ग्रामीण क्षेत्रों में सुचना, प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाएँ अब काफी फल-फूल रही है जो मानव विकास का सूचक है |
भारतीय अर्थव्यवस्था के वे प्रमुख तत्व जो भारत को एक ज्ञानाधारित अर्थव्यवस्था में बदल सकता है |
- कुशल श्रमिकों का विशाल समूह
- सुचारु रूप से कार्य कर रहा लोकतंत्र
- विस्तृत एवं विविधतापूर्ण वैज्ञानिक और
- प्रौद्योगिकीय आधारभूत संरचनाएँ
मानव पूँजी और मानव विकास में अंतर:
आधार | मानव पूँजी निर्माण | मानव विकास |
अर्थ | मानव पूँजी निर्माण से अर्थ है जैसे हम भौतिक पूँजी में भविष्य में उच्च लाभ, उच्च उत्पादकता और आय के रूप में, पाने के लिए करते हैं वैसे ही मानव पूँजी ने निवेश करने से हैं। | मानव विकास से अर्थ मानव के समग्र विकास से है जिसमे उनके अस्तित्व का आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक पहलू शामिल है। |
शिक्षा और स्वास्थ्य | मानव पूँजी और स्वास्थ्य को श्रम उत्पादकता बढ़ाने का एक साधन मानता हैं | मानव विकास इस विचार पर आधारित है की शिक्षा और स्वास्थ्य मानव कल्याण के अभिन्न अंग है क्योंकि ये मानव जीवन की गुणवत्ता को बढ़ते हैं। |
मनुष्य | मानव पूँजी मनुष्य को एक साध्य का साधन समझती हैं। साध्य है, उत्पादकता में वृद्धि। | मानव विकास मनुष्यों को अपने आय में एक साध्य समझता है। |
व्यापकता | मानव पूँजी एक संकीर्ण अवधारण है। | मानव विकास एक व्यापक अवधारणा है। |
NCERT SOLUTIONS अभ्यास (पृष्ठ संख्या 100)
प्रश्न 1 किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या होते हैं?
उत्तर- एक देश में मानव पूँजी निर्माण के दो प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-
- शिक्षा में निवेश।
- कार्य के दौरान प्रशिक्षण।
प्रश्न 2 किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के दो सूचक क्या होंगे?
उत्तर- किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के दो सूचक निम्नलिखित हैं-
- व्यस्क साक्षरता दर: यह 15 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में साक्षरों का प्रतिशत दर दर्शाता है।
- युवा साक्षरता दर: यह 15 से 24 आयु वर्ग की जनसंख्या का प्रतिशत दर को दर्शाता है जो पढ़ और लिख सकते हैं।
प्रश्न 3 भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय विषमताएँ क्यों दिखाई दे रही हैं?
उत्तर- भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ जनसंख्या का एक विशाल वर्ग निर्धनता रेखा से नीचे जीवन बिता रहा है, वे लोग बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं पर पर्याप्त व्यय नहीं कर सकते। अधिकांश जनता, उच्च शिक्षा का भार वहन नहीं कर पाती। जब बुनियादी शिक्षा को नागरिकों को अधिकार मान लिया जाता है, तो यह अनिवार्य हो जाता है कि सभी नागरिकों को सरकार ये सुविधाएँ नि:शुल्क प्रदान करे। आर्थिक विषमर्ताओं के साथ-साथ शैक्षिक उपलब्धियों के क्षेत्र में भी व्यापक असमानताएँ देखने को मिलती हैं, उदाहरण के लिए साक्षरता दर जहाँ हिमाचल प्रदेश में 83.78%, मिजोरम में 91.58%, केरल में 93.91% और दिल्ली में 86.34% है, वहीं आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में 67.66%, झारखण्ड में 67.63%, जम्मू-कश्मीर में 68.74% और तमिलनाडु में 80.33% है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक विषमताएँ विद्यमान हैं।
प्रश्न 4 मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास के भेद को स्पष्ट करें।
उत्तर- मानव पूँजी बढ़ी हुई उत्पादकता का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक अर्जित योग्यता है और समझ-बूझ से किए गए निवेशगत निर्णयों का परिणाम है, जो भविष्य में आय के स्रोतों में वृद्धि की अपेक्षा से किए जाते हैं। मानव विकास इस विचार पर आधारित है कि शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों मनुष्यों के कल्याण के लिए अभिन्न हैं, क्योंकि जब लोगों के पास पढ़ने और लिखने तथा दीर्घायु तथा स्वस्थ जीवन की योग्यता होगी, तभी वे इन मूल्यों का मापन करने में सक्षम होंगे जिनको वे महत्व देते हैं।
प्रश्न 5 मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास किस प्रकार से अधिक व्यापक है?
उत्तर- मानव पूंजी का विचार मानव को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादकता में वृद्धि का है। इस मतानुसार शिक्षा और निवेश पर किया गया निवेश अनुत्पादक है, अगर उसमें वस्तुओं और सेवाओं के निर्गत में वृद्धि न हो। मानव विकास का संबंध इस बात से है कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा मानव भलाई का अंग है। मानव विकास वह अवसर प्रदान करता है जिससे वे उपयोगिता प्राप्त करने में चयन कर सकें। मानव विकास के परिप्रेक्ष्य में मानव स्वयं साध्य भी है। भले ही शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता में सुधार न हो किंतु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्द्धन तो होना ही चाहिए। प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य उसके लिए आवश्यक हैं। संक्षेप में मानव पूंजी की अवधारणा का संबंध मानव की उत्पादकता से है जबकि मानव विकास की अवधारणा का संबंध मानव कल्याण से है। दोनों अवधारणाओं में शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन निवेश का लक्ष्य अलग-अलग है। मानव विकास से मानवीय उत्पादकता में स्वतः वृद्धि हो । जाएगी। अत: मानव विकास, मानन पूँजी की तुलना में अधिक व्यापक है।
प्रश्न 6 मानव पूँजी के निर्माण में किन कारकों का योगदान रहता है?
उत्तर- मानव पूँजी के निर्माण में निम्नलिखित कारकों का योगदान रहता है-
- शिक्षा: यह न केवल व्यक्ति की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है बल्कि नवीन प्रद्योगिकी को आत्मसात् करने क्षमता भी विकसित करती है। यह वर्तमान आर्थिक स्थिति को सुधारता है तथा देश के भविष्य की संभावनाओं में सुधार करता है।
- स्वास्थ्य: स्वास्थ्य पर किया गया गया व्यय देश की श्रमबल की क्षमता, दक्षता और उत्पादकता को बढ़ाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति अधिक समय तक व्यवधानरहित श्रम की पूर्ति कर सकता है। अच्छे स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से न केवल जीवन प्रत्याशा बढ़ती है बल्कि जीवन स्तर में भी सुधार लाती है। इसमें स्वच्छ पेयजल,उत्तम स्वच्छता सुविधाएँ तथा बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ आदि का प्रावधान है।
- प्रशिक्षण: कार्य प्रशिक्षण पर किया गया व्यय मानव पूँजी का स्रोत है जिसमें श्रम उत्पादकता में वृद्धि से हुए लाभ कहीं अधिक होते हैं। कार्य-स्थल पर प्रशिक्षण एक प्रशिक्षु के लिए अधिक प्रभावी प्रशिक्षण है जो उसे यह तकनीकी कौशल प्रदान करता है कि वास्तविक कार्य-स्थल पर कैसे कार्य करना है।
- प्रवसन: व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/ पलायन करते हैं। प्रवसन की स्थिति में परिवहन की लागत और उच्चतर निर्वाह लागत के साथ एक अनजाने सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में रहने की मानसिक लागत भी शामिल है। चूंकि नए स्थान उनकी कमाई प्रवास से जुड़ी सभी लागतों से कहीं अधिक होती है, इसलिए प्रवसन पर व्यय भी मानवीय पूँजी निर्माण का स्रोत है।
- सूचना: मानव पूँजी के निर्धारण में रोजगार, वेतन तथा प्रवेश से संबंधित सूचनाओं की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह जानकारी मानव पूँजी में निवेश करने से प्राप्त मानव पूँजी के भंडार का सदुपयोग करने की दृष्टि से बहुत अधिक उपयोगी होती है। इसीलिए श्रम बाजार तथा अन्य सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने पर किया गया व्यय भी मानव पूँजी निर्माण का स्रोत है।
प्रश्न 7 सरकारी संस्थाएँ भारत में किस प्रकार स्कूल एवं अस्पताल की सुविधाएँ उपलब्ध करवाती है?
उत्तर- भारत में शिक्षा क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी परिषद् आती हैं। स्वास्थ्य क्षेत्रक के अंतर्गत संघ और राज्य स्तरों पर स्वास्थ्य मंत्रालय और विभिन्न संस्थाओं के स्वास्थ्य विभाग तथा भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् आदि कार्य कर रही हैं।
प्रश्न 8 शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण आगत माना जाता है। क्यों?
उत्तर- राष्ट्र-निर्माण के लिए शिक्षा का महत्त्वपूर्ण आगत है, क्योंकि-
- शिक्षा से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं।
- शिक्षा व्यक्ति के साथ-साथ पूरे समाज को लाभान्वित करती है।
- शिक्षा से मामव की क्षमता का संवर्द्धन होता है।
- शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
- शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है।
- देश के सभी क्षेत्रों के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती है।
- शिक्षित मनुष्य आर्थिक-सामाजिक विकास में जयादा योगदान देता है।
- शिक्षा अनुसंधान दृष्टिकोण को विकसित करती है।
- शिक्षा से देश के निवासियों के सांस्कृतिक स्तर को प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न 9 पूँजी निर्माण के निम्नलिखित स्रोतों पर चर्चा कीजिए-
- स्वास्थ्य आधारिक संरचना।‘
- प्रवसन पर व्यय।
उत्तर-
- स्वास्थ्य का अर्थ पूर्ण शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति है। इसमें निवारक और उपचारात्मक दवाएं, स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति और साफ़-सफाई आदि शामिल है। स्वास्थ्य क्षेत्र में किया गया निवेश मानव पूँजी निर्माण का एक अच्छा स्रोत है जो स्वस्थ श्रम उपलब्ध कराता है।
- व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/ पलायन करते हैं। प्रवसन की स्थिति में परिवहन की लागत और उच्चतर निर्वाह लागत के साथ एक अनजाने सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में रहने की मानसिक लागत भी शामिल है। चूंकि नए स्थान उनकी कमाई प्रवास से जुड़ी सभी लागतों से कहीं अधिक होती है, इसलिए प्रवसन पर व्यय भी मानवीय पूँजी निर्माण का स्रोत है।
प्रश्न 10 मानव संसाधनों के प्रभावी प्रयोग के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय संबंधी जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता का निरूपण करें।
उत्तर- शिक्षा में निवेश को मानव पूंजी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य में निवेश, कार्य के दौरान प्रशिक्षण, प्रबंधन तथा सूचना आदि में निवेश मानव पूंजी के निर्माण के अन्य स्रोत हैं। व्यक्ति अपनी आय को बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है। उसी प्रकार स्वास्थ्य पर व्यय से स्वस्थ श्रमिकों की आपूर्ति बढ़ती है और इस कारण उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। बचाव, निदान, स्वच्छ पेयजल, दवाइयों पर व्यय तथा सफाई पर किया गया व्यय आदि स्वास्थ्य व्यय के उदाहरण हैं। जनसामान्य को इन सबकी जानकारी होना आवश्यक है तभी वह इन सुविधाओं का भरपूर लाभ उठा सकता है।
प्रश्न 11 मानव पूँजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर- मानव पूँजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में इस प्रकार सहायक है-
- उत्पादकता में वृद्धि: कुशल और स्वस्थ मजदूर वस्तु आगत तथा पूँजी के प्रभावी उपयोग करते हैं जो उत्पादकता बढ़ाता है और विकास की दर को तेज करता है।
- नव परिवर्तन: एक शिक्षित व्यक्ति के पास आविष्कारों और नव परिवर्तनों को समझ पाने की क्षमता होती है जिससे वे अधिक कुशल और उत्पादक हो सकते हैं तथा यह आर्थिक विकास में सहायक होती है।
- उच्च भागीदारी दर: यदि अधिक लोग शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से कार्य करने में सक्षम हो गए, तो इससे लोगों की भागीदारी दर में वृद्धि होगी जो आर्थिक विकास और संवृद्धि की प्रक्रिया की गति देगा।
प्रश्न 12 विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ-साथ विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति पायी गई है। टिप्पणी करें।
उत्तर- शिक्षा मामेव पूँजी निर्माण का मुख्य स्रोत है। शिक्षा से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं। एक शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति की तुलना में पर्यावरण को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकता है। शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।देश के सभी क्षेत्रों के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती है। शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है। शिक्षा से नई तकनीक को स्वीकार करने की योग्यता आती है। अधिक आय उपार्जन हेतु साक्षर मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास कर सकता है। इन सब कारकों से व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है। आम आदमी की आय बढ़ने से उच्च एवं निम्न आय वर्ग की दूरी घटने लगती है। इस प्रकार शिक्षा में विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति पाई जाती है। दूसरे शब्दों में, शैक्षिक सुधार आर्थिक व सामाजिक विषमताओं में कमी लाता है।
प्रश्न 13 किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण करें।
उत्तर- किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की निम्नलिखित भूमिका है-
- ज्ञान तथा कौशल: यह लोगों को आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करता है जो उनकी उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है। यह रोजगार तथा आय अर्जन के अवसर प्रदान करता है।
- आधुनिक पद्धतियों की स्वीकार्यता: एक शिक्षित व्यक्ति नई आधुनिक तकनीकों को अपनाने में सक्षम है जो एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के विकास को गति प्रदान करता है।
- असमानता को समाप्त करना: असमानता समाप्त करने लिए शिक्षा एक प्रभावशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है। यह देश के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के उपार्जन क्षमता को बढ़ाता है जो आर्थिक असमानता को कम करता है।
- नव परिवर्तन: एक शिक्षित व्यक्ति के पास आविष्कारों और नव परिवर्तनों को समझ पाने की क्षमता होती है जिससे वे अधिक कुशल और उत्पादक हो सकते हैं तथा यह आर्थिक विकास में सहायक होती है।
- उच्च भागीदारी दर: यदि अधिक लोग शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से कार्य करने में सक्षम हो गए, तो इससे लोगों की भागीदारी दर में वृद्धि होगी जो आर्थिक विकास और संवृद्धि की प्रक्रिया की गति देगा।
प्रश्न 14 समझाइए कि शिक्षा में निवेश आर्थिक संवृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर- व्यक्ति अपनी भावी आय बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है। एक साक्षर व्यक्ति को श्रम-कौशल एक निरक्षर की तुलना में अधिक होता है। शिक्षा न केवल श्रम की उत्पादकता को बढ़ाती है। बल्कि यह साथ-ही-साथ परिवर्तन को प्रोत्साहित कर नवीन प्रौद्योगिकी को आत्मसात करने की क्षमता भी विकसित करती है। शिक्षा समाज में परिवर्तनों एवं वैज्ञानिक प्रगति को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है जिससे आविष्कारों एवं नव-परिवर्तनों में सहायता मिलती है। शिक्षित एवं कुशल श्रमिक भौतिक साधनों का प्रयोग करके ज्यादा और उच्च गुणवत्ता का उत्पादन करके आर्थिक संवृद्धि को जन्म देते हैं। इस प्रकार शिक्षा में निवेश से आर्थिक संवृद्धि में भी बढ़ोत्तरी होती है।
प्रश्न 15 किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान प्रशिक्षण क्यों आवश्यक होता है?
उत्तर- एक प्रशिक्षु के लिए कार्य-स्थल पर प्रशिक्षण सबसे अधिक प्रभावी होता है, जो उसे तकनीकी कौशल प्रदान करता है कि वास्तविक कार्य स्थल पर कैसे कार्य करना है। फर्म के अपने कार्य स्थान पर ही पहले से काम को जानने वाले कुशलकर्मी कर्मचारियों को काम सिखा सकते हैं या कर्मचारियों को किसी अन्य संसथान में प्रशिक्षण पाने के लिए भेजा जाता है। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि-
- इससे कर्मचारियों के दक्षता तथा मनोबल में सुधार होता है।
- यह व्यक्ति को संस्था के मूल्यों, मानदंडों तथा मानकों को अवशोषित करने में सक्षम बनाता है।
- यह कच्चे माल के बेहतर उपयोग को सरल बनाता है।
प्रश्न 16 मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर- मानव पूँजी एवं आर्थिक संवृद्धि एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूंजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की संवृद्धि में सहायता मिल सकती है।
प्रश्न 17 भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता पर चर्चा करें।
उत्तर- शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को हमेशा उपेक्षित किया गया है। यदि किसी राष्ट्र के आर्थिक संवृद्धि को गति प्रदान करना है तो महिलाओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता है क्योंकि-
- महिलाओं की सामाजिक और नैतिक स्थिति में सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण है।
- यह अनुकूल प्रजनन दर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल को स्त्री शिक्षा के साथ बढ़ाया जा सकता है।
- एक शिक्षित महिला अच्छे नैतिक मूल्यों को लागू कर सकती है और अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकती है।
प्रश्न 18 शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में सरकार के विविध प्रकार के हस्तक्षेपों के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर- शिक्षा एवं स्वास्थ्य आधारिक संरचना के मुख्य बिन्दु हैं। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ निजी क्षेत्र द्वारा भी उपलब्ध कराई जाती हैं और सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा भी। शिक्षा का उच्च स्तर जहाँ कौशल व तकनीकी को विकसित करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है वहीं पौष्टिक, प्रदूषण रहित, स्वच्छ व स्वस्थ जीवन श्रम की उत्पादकता में वृद्धि करके राष्ट्रीय आय को संवर्धित करता है। हम जानते हैं कि एक स्वस्थ व साक्षर व्यक्ति एक अस्वस्थ व निरक्षर व्यक्ति की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक कार्य कर सकता है, एक अच्छा प्रबंधनै दुर्लभ राष्ट्रीय संसायधनों के अधिक अच्छे उपयोग को संभव बना सकता है और इस प्रकार राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में सहायक हो सकता है। इस प्रकार शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश मानव पूंजी के अच्छे स्रोत हैं और राष्ट्रीय उत्पादकता बढ़ाने में भी सहायक हैं। निजी क्षेत्र लाभ-आधारित होता है और निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली शैक्षिक व स्वास्थ्य सुविधाएँ अत्यधिक महँगी होती हैं और समाज के सामान्य वर्ग की पहुँच से परे होती हैं। इन सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है। इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं
- निजी क्षेत्र की एकाधिकारात्मक प्रवृत्ति को रोकना।
- निजी क्षेत्र द्वारा शोषण को रोकना।
- सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
- विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों की रोकथाम करना।
- संतुलित आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
प्रश्न 19 भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर- भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
- जनसंख्या में वृद्धि: तीव्र गति से बढ़ती आबादी सीमित संसाधनों पर दबाव डालती है जिससे प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधनों की कमी हो जाती है।
- निम्न गुणवत्ता: मानव पूँजी को गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। लेकिन शिक्षा प्रदान करने के लिए, बहुत से शिक्षा संस्थान स्थापित किए गए हैं जो शिक्षा और कौशल की निम्न गुणवत्ता प्रदान करते हैं। स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में यही होता है।
- बुद्धिजीवियों का प्रवसन: व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/ पलायन करते हैं।अत्यधिक कुशल श्रम के प्रवसन के कारण आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- अयोग्य श्रमशक्ति नियोजन: भारत में उचित श्रमशक्ति के नियोजन का अभाव है। बढ़ती श्रमशक्ति के मांग-आपूर्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं किया गया है। इसलिए, यह मानव कौशल का अपव्यय और त्रुटिपूर्ण आवंटन करता है।
प्रश्न 20 क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले। शुल्कों की संरचना निर्धारित करनी चाहिए? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर- हम जानते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य की देखभाल निजी तथा सामाजिक लाभों को उत्पन्न करती है। इसी कारण इन सेवाओं के बाजार में निजी और सार्वजनिक संस्थाओं को अस्तित्व है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से नहीं बदला जा सकता। इसीलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है तथा निजी क्षेत्रों के लिए शुल्कों की संरचना निर्धारित करना भी आवश्यक है। मान लीजिए, जब भी किसी बच्चे को किसी स्कूल या फिर स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र में भर्ती कर दिया जाता है, जहाँ बच्चे को आवश्यक सुविधाएँ नहीं प्रदान की जा रही हों तब ऐसी स्थिति में किसी दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण कर देने पर भी पर्याप्त मात्रा में धन का व्यय हो चुका होगा। यही नहीं, इन सेवाओं के व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को सेवाओं की गुणवत्ताओं और लागतों के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती। इन परिस्थितियों में शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही संस्थाएँ एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं और शोषण करने लगती हैं। इस समय सरकार की भूमिका यह होनी चाहिए कि वह निजी सेवा प्रदायकों को उचित मानकों के अनुसार सेवाएँ देने और उनकी उचित कीमत लेने को बाध्य करे।