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अध्याय-5: योग

योग ,आसन तथा  प्राणायाम

योग

परिचय -योग

योग एक प्राचीन भारतीय विद्या है जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बढ़ावा देती है। यह शब्द संस्कृत के “युज” से लिया गया है, जिसका अर्थ है जोड़ना या एक करना। योग का उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनाना है। यह न केवल व्यायाम का एक रूप है, बल्कि जीवन जीने की कला भी है। आज योग विश्व भर में लोकप्रिय हो चुका है, और इसे संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मान्यता दी है।

योग का अर्थ

योग का शाब्दिक अर्थ है “मिलन”। यह शरीर और मन के बीच, व्यक्ति और प्रकृति के बीच, तथा आत्मा और परमात्मा के बीच संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया है। योग के माध्यम से व्यक्ति आत्म-जागरूकता प्राप्त करता है और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है। यह ध्यान, आसन, प्राणायाम और नैतिक नियमों का समन्वय है।

योग का इतिहास

योग की उत्पत्ति भारत में हजारों वर्ष पहले हुई थी। इसका उल्लेख सबसे पहले वेदों में मिलता है, जो प्राचीनतम भारतीय ग्रंथ हैं। ऋग्वेद में योग के कुछ संकेत मिलते हैं, लेकिन इसका व्यवस्थित रूप पतंजलि के “योग सूत्र” में देखने को मिलता है। पतंजलि को योग का जनक माना जाता है, जिन्होंने अष्टांग योग की अवधारणा प्रस्तुत की। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि योग का अभ्यास ध्यान और आत्म-संयम के लिए करते थे। सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक साक्ष्यों में भी योग मुद्राओं के चित्र मिले हैं।

मध्यकाल में योग का विकास हठ योग और भक्ति योग के रूप में हुआ। आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो, और बी.के.एस. अयंगर जैसे योगियों ने इसे विश्व स्तर पर प्रसिद्ध किया।

योग के प्रकार

योग के कई प्रकार हैं, जो विभिन्न उद्देश्यों और विधियों पर आधारित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  1. हठ योग: यह शारीरिक आसनों और प्राणायाम पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य शरीर को शुद्ध और मजबूत करना है।
  2. राज योग: पतंजलि का अष्टांग योग इस श्रेणी में आता है। यह मन को नियंत्रित करने और आत्म-साक्षात्कार पर जोर देता है।
  3. कर्म योग: यह निःस्वार्थ कर्म करने की कला सिखाता है, जैसा कि भगवद्गीता में वर्णित है।
  4. भक्ति योग: यह ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम पर आधारित है।
  5. ज्ञान योग: यह आत्म-ज्ञान और तर्क के माध्यम से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग है।
  6. कुंडलिनी योग: यह शरीर में सुप्त ऊर्जा को जागृत करने पर केंद्रित है।

पतंजलि का अष्टांग योग

पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जो जीवन को संतुलित करने का मार्ग दिखाते हैं। ये अंग हैं:

  1. यम: सामाजिक नियम जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
  2. नियम: व्यक्तिगत अनुशासन जैसे शौच (स्वच्छता), संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान।
  3. आसन: शारीरिक मुद्राएँ जो शरीर को स्वस्थ और लचीला बनाती हैं।
  4. प्राणायाम: श्वास पर नियंत्रण, जो जीवन ऊर्जा को संतुलित करता है।
  5. प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर मन को भीतर केंद्रित करना।
  6. धारणा: मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना।
  7. ध्यान: गहरी एकाग्रता की अवस्था।
  8. समाधि: आत्मा का परमात्मा से मिलन, पूर्ण शांति की स्थिति।

योग के लाभ

योग के नियमित अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक लाभ प्राप्त होते हैं। कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  1. शारीरिक लाभ:
    • शरीर में लचीलापन और शक्ति बढ़ती है।
    • रक्त संचार और पाचन तंत्र में सुधार होता है।
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।
    • मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूती मिलती है।
    • अनिद्रा और थकान जैसी समस्याएँ दूर होती हैं।
  2. मानसिक लाभ:
    • तनाव और चिंता कम होती है।
    • एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
    • भावनात्मक संतुलन बनता है।
    • आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  3. आध्यात्मिक लाभ:
    • आत्म-जागरूकता और शांति का अनुभव होता है।
    • जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।
    • व्यक्ति अपने उद्देश्य को समझ पाता है।

प्रमुख योग आसन

कक्षा 11 के पाठ्यक्रम में कुछ सामान्य योग आसनों का उल्लेख होता है। इनमें से कुछ हैं:

  1. ताड़ासन: यह खड़े होकर किया जाने वाला आसन है जो शरीर की लंबाई और संतुलन बढ़ाता है।
  2. वृक्षासन: एक पैर पर संतुलन बनाकर किया जाता है, जो एकाग्रता बढ़ाता है।
  3. भुजंगासन: पेट के बल लेटकर किया जाने वाला आसन, जो रीढ़ को मजबूत करता है।
  4. पश्चिमोत्तानासन: आगे झुककर किया जाता है, जो पीठ और पैरों की मांसपेशियों को लचीला बनाता है।
  5. शवासन: विश्राम की मुद्रा, जो तनाव को कम करती है।

प्राणायाम और इसके प्रकार

प्राणायाम श्वास पर नियंत्रण की कला है। यह शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है और मन को शांत करता है। इसके प्रमुख प्रकार हैं:

  1. अनुलोम-विलोम: नाक के एक छिद्र से साँस लेना और दूसरे से छोड़ना।
  2. कपालभाति: तेजी से साँस छोड़ने की प्रक्रिया, जो फेफड़ों को शुद्ध करती है।
  3. भस्त्रिका: तेज और गहरी साँस लेना और छोड़ना, जो ऊर्जा बढ़ाती है।
  4. शीतली: जीभ को मोड़कर साँस लेना, जो शरीर को ठंडक देता है।

योग का महत्व

आधुनिक जीवनशैली में योग का विशेष महत्व है। बढ़ते तनाव, मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों के कारण लोग योग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह न केवल बीमारियों से बचाता है, बल्कि व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। स्कूलों में योग को शामिल करने से छात्रों में अनुशासन और एकाग्रता बढ़ती है। यह पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है, क्योंकि योग प्रकृति के साथ सामंजस्य सिखाता है।

योग और स्वास्थ्य

योग का स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। यह शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी योग को स्वस्थ जीवन का आधार मानता है। यह जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अवसाद को नियंत्रित करने में सहायक है।

निष्कर्ष

योग एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को पूर्ण स्वास्थ्य और शांति की ओर ले जाती है। यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। कक्षा 11 के छात्रों के लिए योग को समझना और इसका अभ्यास करना न केवल शारीरिक विकास के लिए, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन के लिए भी आवश्यक है। नियमित योग अभ्यास से छात्र अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और भविष्य में स्वस्थ नागरिक बन सकते हैं।

कर्म संन्यास योग पर 10 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

  1. कर्म संन्यास योग किस विषय पर आधारित है?

    • यह अध्याय कर्म और संन्यास के बीच संबंध को समझाने पर केंद्रित है, जिसमें श्रीकृष्ण कर्मयोग को श्रेष्ठ बताते हैं।

  2. श्रीकृष्ण के अनुसार कर्म और संन्यास में क्या अंतर है?

    • संन्यास में व्यक्ति समस्त कर्मों का त्याग कर देता है, जबकि कर्मयोग में वह फल की आसक्ति त्यागकर निस्वार्थ भाव से कर्म करता है।

  3. भगवद्गीता में किसे श्रेष्ठ बताया गया है—कर्मयोगी या संन्यासी?

    • श्रीकृष्ण ने कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया है क्योंकि यह आत्म-साक्षात्कार के लिए अधिक व्यावहारिक मार्ग है।

  4. कर्मयोग की क्या विशेषता है?

    • इसमें व्यक्ति फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करता है और ईश्वर को समर्पित भाव रखता है।

  5. कर्मयोगी कैसा व्यक्ति होता है?

    • जो मोह और द्वेष से मुक्त होकर समभाव में स्थित रहता है और सभी कर्म ईश्वर को अर्पण करता है।

  6. कर्मयोग का अंतिम लक्ष्य क्या है?

    • आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की प्राप्ति।

  7. कर्म संन्यास योग का प्रमुख संदेश क्या है?

    • मनुष्य को निष्काम भाव से कर्म करते हुए ईश्वर को समर्पित रहना चाहिए।

  8. श्रीकृष्ण ने किसे सच्चा संन्यासी कहा है?

    • जो राग-द्वेष से मुक्त होकर निष्काम कर्म करता है, वही सच्चा संन्यासी है।

  9. ज्ञानयोग और कर्मयोग में क्या संबंध है?

    • ज्ञानयोग में आत्मज्ञान की प्रधानता होती है, जबकि कर्मयोग में कर्म के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया जाता है।

  10. इस अध्याय से हमें क्या सीख मिलती है?

  • निःस्वार्थ कर्म करना, फल की आसक्ति त्यागना, और आत्मा के परमात्मा से एकत्व का बोध करना।

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अध्याय-6: शारीरिक क्रियाएँ तथा नेतृत्व प्रशिक्षण

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