राजनीति का अर्थ
- राजनीति के अर्थों को आज के समय में विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न प्रकार से देखा जाता है।
- राजनेताओं के अनुसार राजनीति जन सेवा है, कुछ के अनुसार यह दावपेंच का जरिया है, कुछ के अनुसार स्वयं के विषय में सोच रहे नेताओं के अनुसार राजनीति का संबंध ‘घोटालों’ से है।
- राजनीति समाज का जरूरी और अखंडनीय भाग है। राजनीतिक संगठन या राजनीतिक दल की अनुपस्थिति में किसी भी समाज का कल्याण नहीं किया जा सकता।
- समाज की विभिन्न जरूरतों और हितों को पूरा करने के लिए आर्थिक, जनजाति जैसी समाजिक संस्थाओं का होना आवश्यकता होता है।
- संस्थाओं के साथ सरकार भी इन सभी क्रियाओं में बराबर की भागीदार होती है।
- सरकार आम नागरिकों के जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। सरकार देश की आर्थिक, शिक्षा, विदेश नीति में बदलाव निर्धारित करती है।
- नागरिकों के पक्ष में लिए गए निर्णय, उसकी स्थिति को अच्छा बना सकते हैं, लेकिन भ्रष्ट सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों से नगरिकों की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
- सरकार के निर्णयों से ही देश का माहौल सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है।
- सरकार की साक्षरता संबंधी नीतियों का प्रभाव देश की युवा पीढ़ी के भविष्य पर सीधा असर होता है।
राजनीति का प्रभाव एवं महत्व
- सरकार के कामों का आम जनता पर पूर्ण असर होता है, संस्थाओं के निर्माण के बाद नागरिक अपनी मांगों के लिए अभियान चलाते हैं।
- सरकार के किसी निर्णय से नाखुश होने की स्थिति में नागरिक विरोध कर अपनी बात को मनवा सकते हैं, वाद-विवाद से मौजूदा सरकार का विश्लेषण किया जाता है।
- इससे देश में फैली अव्यवस्था का निपटारा किया जा सकता है।
- राजनीति का महत्व इस बात के लिए है कि इसके द्वारा समाज के पक्ष में निर्णय लिए जा सकते हैं, इसको लेकर सबकी मानसिकता अलग-अलग होती है।
- जब जनता सामाजिक स्तर पर कोई कार्य या कदम उठाती है, तब ऐसा कहा जाता है कि जनता राजनीति में संलग्न है।
राजनीतिक सिद्धांत की जानकारी
- संवैधानिक दस्तावेजों का निर्माण कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने अपनी सूझ-बूझ से किया, जिनमें अरस्तू, कार्ल मार्क्स, ज्यांजॉक रूसो, महात्मा गांधी और अंबेडकर आदि शामिल हैं।
- रुसो ने कई साल पहले यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता मानव का मौलिक अधिकार है, कार्ल मार्क्स ने बताया की समानता स्वतंत्रता के समान ही जरूरी है।
- महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक- हिन्द स्वराज में, स्वराज की महत्वता बताई, और अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए संरक्षण को सही करार दिया, जिससे भारत का संविधान स्वतंत्रता और समानता के आधार पर बना।
- राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट होता है। देश में व्याप्त कानून, अधिकारों के सार्थक बंटवारे की जांच करता है।
- यह कार्य विचारकों की युक्तियों का विश्लेषण कर किया जाता है।
स्वतंत्रता एवं समानता
- स्वतंत्रता और समानता से संबंधित प्रश्न आज भी उठने लगते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि समानता आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में राजनीतिक समानता की तरह विद्यमान नहीं है, क्योंकि राजनीतिक समानता अधिकारों के रूप में है।
- कुछ क्षेत्रों में आज भी नागरिक असमान शिक्षा के कारण रोजगार पाने में असफल हैं, वहीं कुछ आसानी से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर पा रहे हैं।
- नागरिकों को स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भी, नई व्याख्याओं का सामना करना होता है, जैसे- मौलिक अधिकारों की बार-बार की जाने वाली पुनर्व्याख्या।
- समाज जब नई समस्याओं से जूझता है, तब ये व्याख्याएं की जाती हैं। संविधान में संशोधन किए जाते हैं, जिनसे आई हुई नई समस्याओं का समाधान किया जा सके।
- बदलता दौर आने वाले उन सभी खतरों के लिए समाधान ढूंढ रहा है, जो किसी भी तरह की स्वतंत्रता के विरुद्ध है।
- तकनीक जहां आज के दौर में छोटे समूहों जैसे आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा में काम आई है, वहीं आतंकवादी संगठनों को मजबूत करने में भी सहायक सिद्ध हुई है।
- तकनीकि युग में ऑनलाइन साझा की जा रही जानकारियों का भी सुरक्षित रहना जरूरी है। इसके लिए नागरिक सरकार द्वारा ऐसे नियमों की मांग करते हैं जो उनकी गोपनीयता को बनाए रखें।
राजनीतिक सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार करना
- किसी भी अन्य विषय जैसे गणित की एक निश्चित व्याख्या प्रस्तुत की जा सकती है, लेकिन राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत समानता, न्याय या स्वतंत्रता की कोई एक परिभाषा नहीं दी जा सकती।
- इसका सबंध मनुष्य के साथ बनाए गए संबंधों से होता है, जिसपर हर किसी की अपनी राय होती है।
- जब नागरिक किसी प्रकार के अधिकार का वहन समान भुगतान करके करता है, तो वह ऐसी स्थिति में समान बर्ताव की अपेक्षा करता है।
- ऐसी स्थिति में अपने से अस्वस्थ या विकलांग/वृद्ध वर्ग के साथ होने वाला विशेष बर्ताव किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को न्यायोचित ही लगेगा।
- कभी-कभी परिस्थिति यह भी होती है कि निम्न वर्ग जो अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में भी सक्षम नहीं है, के लिए समानता में निष्पक्षता का होना भी जरूरी है।
- देश में कई अधिकार मात्र औपचारिक बनकर रह गए हैं, जैसे प्राथमिक शिक्षा का अधिकार, क्योंकि असंख्य बच्चे विद्यालय जाकर बुनियादी शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं।
- नागरिक पंक्तिबद्ध होने पर समान अधिकारों की मांग करते हैं, कोई अक्षमता होने पर विशेष प्रावधान की, लेकिन जब बुनियादी जरूरतों की ही कमी हो जाए तब समान अवसरों की बात का कोई मतलब नहीं रह जाता।
- ऐसी परिस्थति में नागरिकों का सभी सुविधाओं को पाने के लिए समर्थ होना आवश्यक हो जाता है, जिसके लिए किसी संस्थान को जिम्मेदारी लेनी होती है।
- समानता प्रसंग से संबंधित होने के कारण अनेक परिभाषाएं लिए हुए है।
राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता
- राजनीतिक सिद्धांत को किसी भी वर्ग के लिए जानना आवश्यक है, इस तरह के विषय शिक्षकों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकार, न्यायधीशों और वकीलों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
- इसकी जानकारी होना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि यह आगे जाकर इससे मत सम्पन्न नागरिक बना जा सकता है।
- सूचनापरक युग में, राय पेश करने से पूर्व संबंधित विषय का जानकार होना बेहद आवश्यक है, यह विचारों को परिपक्व बनाने में सहायक है।
- स्वतंत्रता, समानता से संबंधित मुद्दे नागरिकों के प्रत्यक्ष मुद्दे हैं, जिनसे उन्हें रोजमर्रा के जीवन में दो चार होना पड़ता है, इसका निवारण शीघ्र होना हमारे लिए जरूरी हो जाता है, जिसके विलंब के कारण हम विरोधी स्वर भी अपना लेते हैं।
- राजनीतिक सिद्धांत हमें अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति जानकार बनाता है, जिससे हम सजग नागरिक बन सकें।
- समानता और न्याय से संबंधित सुव्यवस्थित सोच हमें राजनीतिक सिद्धांत से मिलती है, जिससे नागरिक अपने तर्क-वितर्क को स्पष्ट तौर पर रख सकें।
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त के बारे में नीचे लिखे कौन-से कथन सही हैं और कौन-से गलत?
(क) राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों पर चर्चा करते हैं जिनके आधार पर राजनीतिक संस्थाएँ बनती हैं।
(ख) राजनीतिक सिद्धान्त विभिन्न धर्मों के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं।
(ग) ये समानता और स्वतन्तत्रा जैसी अवधारणाओं के अर्थ की व्याख्या करते हैं।
(घ) ये राजनीतिक दलों के प्रदर्शन की भविष्यवाणी करते हैं।
उत्तर-
(क) सही, (ख) गलत, (ग) सही, (घ) गलत।
प्रश्न 2.
‘राजनीति उस सबसे बढ़कर है, जो राजनेता करते हैं।’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर-
‘राजनीति उस सबसे बढ़कर है, जो राजनेता करते हैं।’ हम इस कथन से सहमत हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनीति का सम्बन्ध किसी भी तरीके से निजी स्वार्थ साधने के धन्धे से जुड़ गया है। राजनीति किसी भी समाज का महत्त्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, राजनीति ने हमें साँप की कुण्डली की तरह जकड़ रखा है और इससे जूझने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है।” राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढाँचे के बिना कोई भी समाज जिन्दा नहीं रह सकता। जो समाज अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहता है, उसके लिए अपने सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं और हितों का ध्यान रखना अनिवार्य होता है। परिवार, जनजाति और आर्थिक संस्थाओं जैसी अनेक सामाजिक संस्थाएँ लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता करने के लिए पनपी हैं। ऐसी संस्थाएँ हमें साथ रहने के उपाय खोजने और एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने में सहायता करती हैं। इन संस्थाओं के साथ सरकारें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
प्रश्न 3.
लोकतन्त्र के सफल संचालन के लिए नागरिकों को जागरूक होना जरूरी है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
लोकतान्त्रिक राज्य में नागरिक के रूप में, हम किसी संगीत कार्यक्रम के श्रोता जैसे होते हैं। हम गीत और लय की व्याख्या करने वाले मुख्य कलाकार नहीं होते। लेकिन हम कार्यक्रम तय करते हैं, प्रस्तुति का रसास्वादन करते हैं और नए अनुरोध करते हैं। संगीतकार तब और बेहतर प्रदर्शन करते हैं। जब उन्हें श्रोताओं के जानकार और क्रददान होने का पता रहता है। इसी तरह जागरूक नागरिक भी लोकतन्त्र के सफल संचालन के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 4.
राजनीतिक सिद्धान्त को अध्ययन हमारे लिए किन रूपों में उपयोगी है? ऐसे चार तरीकों की पहचान करें जिनमें राजनीतिक सिद्धान्त हमारे लिए उपयोगी हों?
उत्तर-
राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन हमारे लिए अग्रलिखित रूपों में उपयोगी है-
1. अधिकार सम्पन्न नागरिक – हम सभी मत देने और अन्य मामलों के फैसले करने के लिए अधिकार सम्पन्न नागरिक हैं। दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए राजनीतिक सिद्धान्तों की जानकारी हमारे लिए उपयोगी होती है।
2. पीड़ा निवारण हेतु – हम समाज में रहकर अपने से भिन्न लोगों से पूर्वाग्रह रखते हैं, चाहे वे अलग जाति के हों, अलग धर्म के अथवा लिंग या वर्ग के। यदि हम उत्पीड़न अनुभव करते हैं, तो हम पीड़ा का निवारण चाहते हैं और यह राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन करने से ही दूर होती है।
3. विचारों और भावनाओं का परीक्षण – राजनीतिक सिद्धान्त हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचारों और भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है। थोड़ा अधिक सतर्कता से देखने पर हम अपने विचारों और भावनाओं के प्रति उदार होते जाते हैं।
4. सही गलत की पहचान – छात्र के रूप में हम बहस और भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। हमारी अपनी राय होती है, क्या सही है क्या गलत, क्या उचित है क्या अनुचित, पर यह हम नहीं जानते कि वे तर्क-संगत हैं या नहीं। यही बात हमें राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन से पता चलती है।
प्रश्न 5.
क्या एक अच्छा/प्रभावपूर्ण तर्क दूसरों को आपकी बात सुनने के लिए बाध्य कर सकता है?
उत्तर-
तर्क-संगत ढंग से बहस करने और प्रभावी तरीके से सम्प्रेषण करने से हम दूसरों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य कर सकते हैं। ये सम्प्रेषण कौशल वैश्विक सूचना व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण गुण साबित होते हैं।
प्रश्न 6.
क्या राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ना, गणित पढ़ने के समान है। अपने उत्तर के पक्ष में कारण दीजिए।
उत्तर-
हाँ, राजनीतिक सिद्धान्तं पढ़ना गणित पढ़ने के समान है। जिस प्रकार प्रत्येक गणित पढ़ने वाला व्यक्ति गणितज्ञ या इंजीनियर नहीं बनता परन्तु जीवन में गणित अवश्य उपयोग में आता रहता है। इसी प्रकार राजनीतिक सिद्धान्त भी जीवन में बहुपयोगी होते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
मनुष्य किन मामलों में अन्य प्राणियों से अद्वितीय होता है?
उत्तर-
मनुष्य दो मामलों में अद्वितीय है-प्रथम उसके पास विवेक होता है, दूसरे उसके पास भाषा का प्रयोग और एक-दूसरे से संवाद करने की क्षमता होती है।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सिद्धान्त क्या बताते हैं?
उत्तर–
राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों को व्यवस्थित रूप से प्रतिबिम्बित करते हैं। जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।
प्रश्न 3.
प्लेटो किसका शिष्य था?
उत्तर–
पाश्चात्य विचारक प्लेटो सुकरात का शिष्य था।
प्रश्न 4.
‘दि रिपब्लिक किसकी रचना है?
उत्तर-
‘दि रिपब्लिक’ प्लेटो की रचना है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त हमारे जीवन में क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर-
राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों को व्यवस्थित रूप से प्रतितिम्बित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है। यह स्वतन्त्रता, समानता, न्याय, लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है। यह कानून को राज, अधिकारों का बँटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जाँच करता है। यह इस काम को विभिन्न विचारकों द्वारा इन अवधारणाओं के बचाव में विकसित युक्तियों की जाँच-पड़ताल के माध्यम से करता है। हालाँकि रूसो, माक्र्स या गांधी जी राजनेता नहीं बन पाए लेकिन उनके विचारों ने हर जगह पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजनेताओं को प्रभावित किया। साथ ही ऐसे बहुत से समकालीन विचारक हैं, जो अपने समय में लोकतन्त्र या स्वतन्तत्रा के बचाव के लिए उनसे प्रेरणा लेते हैं। विभिन्न तर्को की जाँच-पड़ताल के अलावा राजनीतिक सिद्धान्तकार मानव के नवीन राजनीतिक अनुभवों की छानबीन करते हैं और भावी रुझानों तथा सम्भावनाओं को चिह्नित भी करते हैं।
दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त का विषय-क्षेत्र और उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मनुष्य दो मामलों में अद्वितीय है-उसके पास विवेक होता है और उसमें गतिविधियों द्वारा उसे व्यक्त करने की योग्यता होती है। मनुष्य के पास भाषा का प्रयोग और एक-दूसरे से संवाद करने की क्षमता भी होती है। अन्य प्राणियों से अलग मनुष्य अपनी अन्तरतम भावनाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त कर सकता है; वह जिन्हें अच्छा और वांछनीय मानता है, अपने उन विचारों को वह दूसरों के साथ बाँट सकता है और उन पर चर्चा कर सकता है। राजनीतिक सिद्धान्त की जड़े मानव अस्मिता के इन जुड़वाँ पहलुओं में होती है। यह कुछ विशिष्ट बुनियादी प्रश्नों का विश्लेषण करता है; जैसेसमाज को किस प्रकार संगठित होना चाहिए? हमें सरकार की आवश्यकता क्यों है? सरकार का सर्वश्रेष्ठ रूप कौन-सा है? क्या कानून व्यक्ति की आजादी को सीमित करता है? राजसत्ता की अपने नागरिकों के प्रति क्या देनदारी होती है? नागरिक के रूप में एक-दूसरे के प्रति हमारी क्या देनदारी होती है?
राजनीतिक सिद्धान्त इस तरह के प्रश्नों की जाँच करता है और राजनीतिक जीवन को अनुप्राणित करने वाले स्वतन्त्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों के विषय में सुव्यवस्थित रूप में विचार करता है। यह इनके और अन्य सम्बद्ध अवधारणाओं के अर्थ और महत्त्व की विवेचना भी करता है। यह अतीत और वर्तमान के कुछ प्रमुख राजनीतिक चिन्तकों को केन्द्र में रखकर इन अवधारणाओं की वर्तमान परिभाषाओं को स्पष्ट करता है। यह विद्यालय, दुकान, बस, ट्रेन या सरकारी कार्यालय जैसे दैनिक जीवन से जुड़ी संस्थाओं में स्वतन्त्रता या समानता के विस्तार की वास्तविकता की जाँच भी करता है। और आगे जाकर, यह देखता है कि वर्तमान परिभाषाएँ कितनी उपयुक्त हैं और कैसे वर्तमान संस्थाओं (सरकार, नौकरशाही) और नीतियों के अनुपालन को अधिक लोकतान्त्रिक बनाने के लिए उनका परिमार्जन किया जा सकता है। राजनीतिक सिद्धान्त का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्कसंगत ढंग से सोचने और सामयिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आँकने का प्रशिक्षण देना है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राजनीति क्या है? आधुनिक सन्दर्भो में तर्कपूर्ण ढंग से समझाइए।
उत्तर-
भारतीय समाज में लोग राजनीति के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं। राजनेता और चुनाव लड़ने वाले लोग अथवा राजनीतिक पदाधिकारी कह सकते हैं कि राजनीति एक प्रकार की जनसेवा है। राजनीति से जुड़े अन्य लोग राजनीति को दावँ-पेंच मानते हैं तथा आवश्यकताओं और महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के कुचक्र में फंसे रहते हैं। कई अन्य के लिए राजनीति वही है, जो राजनेता करते हैं। अगर वे राजनेताओं को दल-बदल करते, झूठे वायदे और बढ़-चढ़े दावे करते, समाज के विभिन्न वर्गों से जोड़-तोड़ करते, निजी या सामूहिक स्वार्थों में निष्ठुरता से रत और घृणित रूप में हिंसा पर उतारू होता देखते हैं तो वे राजनीति का सम्बन्ध ‘घोटालों से जोड़ने लगते हैं। इस तरह की सोच इतनी प्रचलित है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जब हम हर सम्भव तरीके से अपने स्वार्थ को साधने में लगे लोगों देखते हैं, तो हम कहते हैं कि वे राजनीति कर रहे हैं।
यदि हम एक क्रिकेटर को टीम में बने रहने के लिए जोड़-तोड़ करते या किसी सहपाठी को अपने पिता की हैसियत का उपयोग करते अथवी कार्यालय में किसी सहकर्मी को बिना सोचे-समझे बॉस की हाँ में हाँ मिलाते देखते हैं, तो हम कहते हैं कि वह ‘गन्दी राजनीति कर रहा है। स्वार्थपरता के ऐसे कार्यों से मोहभंग होने पर हम राजनीति से विरक्त हो जाते हैं। हम कहने लगते हैं-“मुझे राजनीति में रुचि नहीं है या मैं राजनीति से दूर रहता हूँ।” केवल साधारण लोग ही राजनीति से निराश नहीं हैं। बल्कि इससे लाभ प्राप्त करने वाले और विभिन्न दलों को चन्दा देने वाले व्यवसायी और उद्यमी भी अपनी मुसीबतों के लिए आये दिन राजनीति को ही कोसते रहते हैं।
प्रतिदिन हमारा सामना राजनीति की इसी प्रकार की परस्पर विरोधी छवियों से होता रहता है। क्या राजनीति अवांछनीय गतिविधि है, जिससे हमें अलग रहना चाहिए, और पीछा छुड़ाना चाहिए? या यह इतनी उपयोगी गतिविधि है कि विकसित विश्व बनाने के लिए हमें इसमें निश्चित ही शामिल होना चाहिए?
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनीति का सम्बन्ध किसी भी तरीके से निजी स्वार्थ साधने के धन्धे से जुड़ गया है। हमें यह समझना चाहिए कि राजनीति किसी भी समाज का महत्त्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढाँचे के बगैर कोई भी समाज जीवित नहीं रहू सकता। जो समाज अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहता है, उसके लिए अपने सदस्यों की विविध जरूरतों और हितों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। परिवार, जनजाति और आर्थिक संस्थाओं जैसी अनेक सामाजिक संस्थाएँ लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता करने के विकसित हुई हैं। ऐसी संस्थाएँ हमें साथ रहने के उपाय खोजने और एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों को स्वीकार करने में सहायता करती हैं। इन संस्थाओं के साथ सरकारें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। सरकारें कैसे बनती हैं और कैसे कार्य करती हैं, यह राजनीति में दर्शाने वाली महत्त्वपूर्ण बातें हैं।
लेकिन राजनीति सरकार के कार्य-कलापों तक ही सीमित नहीं होती है। वास्तव में, सरकारें जो भी कार्य करती हैं वह प्रासंगिक होता है क्योंकि वह कार्य लोगों के जीवन को भिन्न-भिन्न तरीकों से प्रभावित करता है। हम देखते हैं कि सरकारें हमारी आर्थिक नीति, विदेश नीति और शिक्षा नीति को निर्धारित करती हैं। ये नीतियाँ लोगों के जीवन को उन्नत करने में सहायता कर सकती हैं, लेकिन एक अकुशल और भ्रष्ट सरकार लोगों के जीवन और सुरक्षा को संकट में भी डाल सकती है। अगर सत्तारूढ़ सरकार जातीय और साम्प्रदायिक संघर्ष को बढ़ावा देती है तो बाजार और स्कूल बन्द हो जाते हैं। इससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, हम अत्यन्त आवश्यक वस्तुएँ भी नहीं खरीद सकते, बीमार लोग अस्पताल नहीं पहुँच सकते, स्कूल की समय-सारणी भी प्रभावित हो जाती है, पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता। दूसरी ओर, सरकार अगर साक्षरता और रोजगार बढ़ाने की नीतियाँ बनाती हैं, तो हमें अच्छे स्कूल में जाने और बेहतर रोजगार पाने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
चूंकि सरकार की कार्यवाहियों का जनसामान्य पर गहरा असर पड़ता है, जनता सरकार के कामों में रुचि लेती है। जब जनता सरकार की नीतियों से असहमत होती है तो उसका विरोध करती है और वर्तमान कानून को बदलने के लिए अपनी सरकारों को राजी करने के लिए प्रदर्शन आयोजित करती है। निष्कर्ष यह है कि राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं। इस बारे में हमारी दृष्टि अलग-अलग होती है। इसमें समाज में चलने वाली बहुविध वार्ताएँ शामिल हैं, जिनके माध्यम से सामूहिक निर्णय किए जाते हैं। एक स्तर से इन वार्ताओं में सरकारों के कार्य और इन कार्यों का जनता से जुड़ा होना शामिल होता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सरकारें कैसे बनती हैं और कैसे कार्य करती हैं, यह स्पष्ट होता है
(क) राजनीति से
(ख) दर्शन से
(ग) इतिहास से
(घ) भूगोल से
उत्तर-
(क) राजनीति से।
प्रश्न 2.
आधुनिककाल में सर्वप्रथम यह किसने सिद्ध किया कि स्वतन्त्रता मानव मात्र का मौलिक अधिकार है।
(क) रूसो
(ख) अरस्तू
(ग) गांधी
(घ) जवाहरलाल नेहरू
उत्तर-
(क) रूसो।
प्रश्न 3.
‘हिन्द स्वराज किसकी रचना है?
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) महात्मा गांधी
(ग) स्वराज पॉल
(घ) अरस्तू।
उत्तर-
(ख) महात्मा गांधी।
अंग्रेजी में इण्टरनेट का उपयोग करने वालों को कहा जाता है।
(क) नेटिजन
(ख) सिटीजन
(ग) इंटरनेटी
(घ) नेटीवैल
उत्तर-
(क) नेटिजन।