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Chapter-1: लेखन कला और शहरी जीवन

Class 11 इतिहास Chapter 1 लेखन कला और शहरी जीवन

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लेखन कला और शहरी जीवन

अध्याय-1: लेखन कला और शहरी जीवन

मेसोपोटामिया :-

दजला और फरात नदियों के बीच स्थित यह प्रदेश आजकल इराक गणराज्य का हिस्सा है। शहरी जीवन की शुरुआत इसी सभ्यता में होती है। शहरी जीवन की शुरुआत मेसोपोटामिया में हुई। मेसोपोटामिया की सभ्यता अपनी संपन्नता, शहरी जीवन, विशाल एवं समृद्ध साहित्य, गणित और खगोलविद्या के लिए प्रसिद्ध है।

मेसोपोटामिया की ऐतिहासिक जानकारी के प्रमुख स्त्रोत :-

इमारतें, मूर्तियाँ, कब्रें, आभूषण, औजार, मुद्राएँ, मिट्टी की पट्टिकाएं तथा लिखित दस्तावेज हैं।

मेसोपोटामिया की भाषा :-

  • इस सभ्यता में सबसे पहले ‘ सुमेरियन ‘ भाषा, उसके बाद ‘ अक्कदी ‘ भाषा और बाद में ‘ अरामाइक ‘ भाषा बोली जाती थी।
  • 1400 ई . पू . से धीरे – धीरे अरामाइक भाषा का प्रवेश हुआ, यह हिब्रू भाषा से मिलती – जुलती थी और 1000 ई . पू . के बाद यह व्यापक रूप से बोली जाने लगी थी और आज भी इराक के कुछ भागों में बोली जाती है।

मेसोपोटामिया की भौगोलिक स्थित :-

  • यह क्षेत्र आजकल इराक गणराज्य का हिस्सा है।
  • इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था, बाद में इस भाग को बेबीलोनिया कहा जाने लगा।
  • इसके उत्तरी भाग को असीरियाईयों के कब्जा होने के बाद असीरिया कहा जाने लगा।
  • इस सभ्यता में नगरों का निर्माण 3000 ई . पू . में प्रारम्भ हो गया था। उरूक, उर और मारी इसके प्रसिद्ध नगर थे। 
  • यहाँ स्टेपी घास के मैदान हैं अतः पशुपालन खेती की तुलना में आजीविका का अच्छा साधन है। अतः यहाँ कृषि, पशुपालन एवं व्यापार आजीविका के विभिन्न साधन हैं। 
  • यहाँ के लोग औजार बनाने के लिए कॉसे का इस्तेमाल करते थे। यहाँ के उरुक नगर में एक स्त्री का शीर्ष मिला है जो सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया है – वार्का शीर्ष।
  • श्रम विभाजन एवं सामाजिक संगठन शहरी जीवन एवं अर्थव्यवस्था की विशेषता थे।
  • यहाँ खाद्य – संसाधन तो समृद्ध थे परन्तु खनिज – संसाधनों का अभाव था, जिन्हें तुर्की, ईरान अथवा खाड़ी पार देशों से मंगाया जाता था। 
  • यहाँ व्यापार के लिए परिवहन व्यवस्था अच्छी थी जलमार्ग द्वारा। फरात नदी व्यापार के लिए विश्व मार्ग के रुप में प्रसिद्ध थी। 
  • शहरी अर्थव्यवस्था में हिसाब – किताब, लेन – देन, रखने के लिए, यहाँ लेखन कला का विकास हुआ।

मेसोपोटामिया की कृषि और जलवायु :-

दज़ला और फरात नाम की नदियाँ उत्तरी पहाड़ों से निकलकर अपने साथ उपजाउ बारीक मिटटी लाती रही हैं। जब इन नदियों में बाढ़ आती है अथवा जब इनके पानी को सिंचाई के लिए खेतों में ले जाया जाता है तब यह उपजाऊ मिटटी वहाँ जमा हो जाती है।

यहाँ का रेगिस्तानी भाग जो दक्षिण में स्थित है यहाँ भी कृषि की जाती है और फरात नदी जब इन रेगिस्तानों में पहुंचती है तो छोटे – छोटे कई धाराओं में बंटकर नहरों जैसे सिंचाई का कार्य करती है। यहाँ गेंहूँ, जौ, मटर और मसूर की खेती की जाती है।

दक्षिणी मेसोपोटामिया की खेती सबसे ज़्यादा उपज देने वाली हुआ करती थी। हालांकि वहाँ फसल उपजाने के लिए आवश्यक वर्षा की कुछ कमी रहती थी।

स्टेपी क्षेत्र का प्रमुख कार्य पशुपालन था। यहाँ खेती के अलावा भेड़ बकरियाँ स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों और पहाड़ों के ढालों पर पाली जाती थीं।

मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगर :-

  • इस सभ्यता में नगरों का निर्माण 3000 ई . पू . में प्रारम्भ हो गया था। उरूक, उर और मारी इसके प्रसिद्ध नगर थे।
  • यहाँ उर नगर में नगर – नियोजन पद्धति का अभाव था, गलियां टेढ़ी – मेढ़ी एवं संकरी थी। जल– निकास प्रणाली अच्छी नहीं थी। उर वासी घर बनाते समय शकुन – अपशकुन पर विचार करते थे।
  • 2000 ई . पू . के बाद फरात नदी की उर्ध्वधारा पर मारी नगर शाही राजधानी के रूप में फला – फूला। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल पर स्थित था। इसके कारण यह बहुत समृद्ध तथा खुशहाल था। यहाँ जिमरीलियम का राजमहल मिला है तथा एक मंदिर भी मिला है।

लेखन कला :-लेखन कला और शहरी जीवन

मेसोपोटामिया में जो पहली पट्टिकाएँ पाई गईं हैं वे लगभग 3200 ई . पू . की हैं, इन पर सरकण्डे की तीखी नोंक से कीलाकार लिपि द्वारा लिखा जाता था। इन पट्टिकाओं को धूप में सुखा लिया जाता था। 

लेखन प्रणाली की विशेषताएँ :-

  • ध्वनि के लिए कीलाक्षर या किलाकार चिन्ह का प्रयोग किया जाता था वह एक अकेला व्यंजन या स्वर नहीं होता है।
  • अलग अलग ध्वनियों के लिए अलग अलग चिन्ह होते थे जिसके कारण लिपिक को सैकड़ों चिन्ह सीखने पड़ते थे।
  • सुखने से पहले इन्हें गीली पट्टी पर लिखना होता था।
  • लिखने के लिए कुशल व्यक्ति की आवश्यकता होती थी।
  • इसमें भाषा – विशेष की ध्वनियों को एक दृश्य रूप देना होता था।

कीलाकार (क्यूनीफार्म) :-लेखन कला और शहरी जीवन

यह लातिनी शब्द ‘ क्यूनियस ‘, जिसका अर्थ छूटी और फोर्मा जिसका अर्थ ‘ आकार ‘ है, से मिलकर बना है।

काल – गणना :-

  • काल – गणना और गणित की विद्वतापूर्ण परम्परा दुनिया को मेसोपोटामिया की सबसे बड़ी देन है।
  • इस सभ्यता के लोग गुणा – भाग, वर्गमूल, चक्रवृद्धि ब्याज आदि से परिचित थे।
  • काल गणना के लिए यहाँ के लोगों ने एक वर्ष का 12 महीनों में, 1 महीने का 4 हफ्तों में, 1 दिन का 24 घंटों में तथा 1 घंटे का 60 मिनट में विभाजन किया था।

मेसोपोटामिया के शहरों के प्रकार :-

  • वे जो मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए शहर
  • वे जो व्यापार के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए शहर
  • शाही शहर

शहरीकरण / नगरों की बसावट :-लेखन कला और शहरी जीवन

  • शहर और नगर बड़ी संख्या में लोगों के रहने के ही स्थान नहीं होते थे। जब किसी अर्थव्यवस्था में खाद्य उत्पादन के अतिरिक्त अन्य आर्थिक गतिविधियाँ विकसित होने लगती है तब किसी एक स्थान पर जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाता है। इसके फलस्वरूप कस्बे बसने लगते हैं।
  • शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन और तरह – तरह की सेवाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। नगर के लोग आत्मनिर्भर नहीं रहते और उन्हें नगर या गाँव के अन्य लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं के लिए उन पर आश्रित होना पड़ता है। उनमें आपस में लेनदेन होता रहता है। इस प्रकार हम देखते है कि शहरी क्रियाकलाप से गाँव लोग भी जुड़े रहते हैं।

शहरी जीवन का विशेषताएं :-

  • शहरी जीवन में श्रम – विभाजन होता है।
  • विभिन्न कार्य से जुड़े लोग आपस में लेनदेन के माध्यम से जुड़े रहते हैं।
  • शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर, लकड़ी आदि जरूरी चीजें भिन्न – भिन्न जगहों से आती हैं।

मेसोपोटामिया के शहरों में माल की आवाजाही :-

  • मेसोपोटामिया के खाद्य – संसाधन चाहे कितने भी समृद्ध रहे हों, उसके यहाँ खनिज – संसाधनों का अभाव था। दक्षिण के अधिकांश भागों में औजार, मोहरें मुद्राएँ और आभूषण बनाने के लिए पत्थरों की कमी थी।
  • इराकी खजूर और पोपलार के पेड़ों की लकड़ी, गाडियाँ, गाडियों के पहिए या नावें बनाने के लिए कोई खास अच्छी नहीं थी |
  • औजार, पात्र, या गहने बनाने के लिए कोई धातु वहाँ उपलब्ध नहीं थी।
  • मेसोपोटामियाई लोग संभवतः लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी और विभिन्न प्रकार के पत्थरों को तुर्की और ईरान अथवा खाड़ी – पार के देशों से मंगाते थे जिसके लिए वे अपना कपड़ा और कृषि – जन्य उत्पाद काफी मात्रा में उन्हें निर्यात करते थे।

परिवहन :-लेखन कला और शहरी जीवन

परिवहन का सबसे आसान और सस्ता साधन जलमार्ग था। मेसोपोटामियाई शहरों के लिए जलमार्ग सबसे प्रमुख साधन होने का कारण था।

मेसोपोटामिया के मंदिर :-

मेसोपोटामिया के कुछ प्रारंभिक मंदिर साधारण घरों की तरह थे अंतर केवल मंदिर की बाहरी दीवारों के कारण था जो कुछ खास अंतराल के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। ‘ उर ‘ (चंद्र) एवं इन्नाना (प्रेम एवं युद्ध की देवी) यहाँ के प्रमुख देवी देवता थे।

  • ये कच्ची ईंटों का बना हुआ होता था।
  • इन मंदिरों में विभिन्न प्रकार के देवी – देवताओं के निवास स्थान थे, जैसे उर जो चंद्र देवता था और इन्नाना जो प्रेम व युद्ध की देवी थी।
  • ये मंदिर ईंटों से बनाए जाते थे और समय के साथ बड़े होते गए। क्योंकि उनके खुले आँगनों के चारों ओर कई कमरे बने होते थे।
  • कुछ प्रारंभिक मंदिर साधारण घरों से अलग किस्म के नहीं होते थे – क्योंकि मंदिर भी किसी देवता का घर ही होता था।
  • मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थीं यही मंदिरों की विशेषता थी।

देवता पूजा :-लेखन कला और शहरी जीवन

  • देवता पूजा का केंद्र बिंदु होता था।
  • लोग देवी – देवता के लिए अन्न, दही, मछली लाते थे।
  • आराध्य देव सैद्धांतिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था।
  • समय आने पर उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया जैसे तेल निकालना, अनाज पीसना, कातना आरै ऊनी कपड़ों को बुनना आदि मंदिरों के पास ही की जाती थी।

मेसोपोटामिया के शासक :-

समय का यह विभाजन सिकंदर के उत्तराधिकारियों द्वारा अपनाया गया और वहाँ से यह रोम तथा इस्लाम की दुनिया में तथा बाद में मध्ययुगीन यूरोप में पहुँचा।

गिल्गेमिश :- उरूक नगर का शासक था, महान योद्धा था, जिसने दूर – दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था।

  • असीरियाई शासक असुर बनिपाल ने बेबिलोनिया से कई मिट्टी की पट्टिकायें मंगवाकर निनवै में एक पुस्तकालय स्थापित किया था।
  • नैबोपोलास्सर ने 625 ई . पू . में बेबिलोनिया को असीरियाई आधिपत्य से मुक्त कराया था।
  • 331 ई . पू . में सिकंदर से पराजित होने तक बेबीलोन दुनिया का एक प्रमुख नगर बना रहा। नैबोनिडस स्वतंत्र बेबीलोन का अंतिम शासक था।

 

Class 11 इतिहास Chapter 1 लेखन कला और शहरी जीवन NCERT Solutions

प्रश्न 1. आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ शहरीकरण के कारण थे?

उत्तर

शहरीकरण तभी संभव हो सकता है जब खेती से इतनी उपजे होती हो कि वह शहर में रहने वाले लोगों का भी पेट भरने में समर्थ हो सके। शहर में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं। अतः जहाँ शहर विकास होता है वहाँ की जमीन | का प्राकृतिक रूप से उपजाऊ होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। क्योंकि ऐसी जमीन ही अधिक-से-अधिक लोगों को खाद्यान्न प्रदान करने में समर्थ हो सकती है। लेकिन केवल प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही शहरीकरण के कारण कदापि नहीं हो सकते हैं। शहरीकरण के अन्य कारक भी हैं;

जैसे—उद्योगों का विकास, उन्नत व्यापार, लेखन कला का विकास, श्रम विभाजन और कुशल परिवहन व्यवस्था आदि।

इन कारकों ने भी शहरीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्राचीन काल में उद्योगों का विकास शहरीकरण की एक अति आवश्यक शर्त उद्योग मात्र शहरों में रहने वाले लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं को ही पूरा नहीं करते, अपितु विभिन्न प्रकार के मजदूरों एवं कारीगरों को आजीविका के साधन भी उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में नगर जीवन और लोगों को एक स्थान पर बसना तभी संभव है, जब विशाल संख्या में लोग अलग-अलग गैर-खाद्यान्न उत्पादक कार्यों में लगे हों । उन्नत व्यापार शहरीकरण का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है। व्यापार के द्वारा ही नगरों में बनने वाला माल ग्रामों में पहुँचता है और ग्रामों से कच्चा माल तथा खाद्यान्न शहरों में पहुँचता है। उदाहरण के लिए, मेसोपोटामिया में अच्छी लकड़ी, ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी, विभिन्न प्रकार के पत्थर आदि तुर्की, ईरान से आयात करते थे। इसके स्थान पर मेसोपोटामिया से कपड़ा तथा कृषि संबंधी उत्पाद अन्य देशों को क्षिर्यात किए जाते थे। शहरी विकास के लिए लेखन कला की अहम् भूमिका रही है। इसका कारण यह है कि हिसाब-किताब की व्यवस्था के बिना व्यापार की किसी प्रकार की प्रगति संभव नहीं है। नि:संदेह लेखन कला के विकास ने मेसोपोटामिया में नगरों के उदय में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

लेखन कला के साथ-साथ शहरीकरण के लिए सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था भी अतिआवश्यक है। व्यापार की प्रगति के लिए शांति और सुरक्षा की स्थापना कुशल प्रशासन द्वारा ही संभव है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि कांस्य युग में जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के उत्पादक मुख्य रूप से शासक वर्ग और मंदिरों पर ही निर्भर होते थे। प्रशासक वर्ग केवल कानून और व्यवस्था का संचालन ही नहीं करते थे, अपितु श्रम विभाजन को भी नियंत्रित करते थे। नि:संदेह श्रम- विभाजन ने ही शहरीकरण की गति को बल दिया। नगरी जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव हो पाता है जब अनेक लोग विभिन्न गैर-खाद्यान्न उत्पादक रोजगारों, उदाहरण के लिए धातुकर्म, मुहर, नक्काशी, प्रशासन, मंदिर सेवा आदि में लगे हुए हों।

ऐसी स्थिति में शहरी अर्थव्यवस्था में सामाजिक संगठन का होना नितांत आवश्यक है। इसका कारण यह है कि शहर के निर्माताओं को अपने-अपने उद्योगों के लिए विभिन्न वस्तुओं की आवश्यकता होती है जिन्हें केवल किसी एक स्थान से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति सभी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कुशल नहीं हो सकता। यही कारण है कि औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास में श्रम विभाजन का पालन अतिआवश्यक हो जाता है। कुशल परिवहन व्यवस्था भी शहरीकरण के लिए अतिआवश्यक होती है। परिवहन व्यवस्था अच्छी होने पर ग्रामों से पर्याप्त मात्रा में अनाज शहरों में भेजा जा सकता है और शहरों में तैयार वस्तुओं को ग्रामों तक पहुँचाया जा सकता है। मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जल संसाधन छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच परिवहन के अच्छे साधन थे। यही कारण है कि उन दिनों फ़रात नदी व्यापार के विश्व-मार्ग का कार्य करती थी । अतः उपरोक्त विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि शहरीकरण के विकास में प्राकृतिक उर्वरता और खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर के साथ-साथ अनेक अन्य कारण भी उत्तरदायी थे।

प्रश्न 2. आपके विचार से निम्नलिखित में से कौन-सी आवश्यक दशाएँ थीं जिनकी वजह से प्रारंभ में शहरीकरण हुआ था और निम्नलिखित में से कौन-कौन सी बातें शहरों के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुई?

(क) अत्यंत उत्पादक खेती

(ख) जल परिवहन

(ग) धातु और पत्थर की कमी

(घ) श्रम विभाजन

(ङ) मुद्राओं का प्रयोग

(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया।

उत्तर

कांस्यकालीन सभ्यताओं के दौरान अनेक शहरों का विकास हुआ। वस्तुत: शहर विशाल जनसंख्या के निवास स्थान होते हैं और इसके अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों के केंद्रबिंदु भी हैं। यही कारण है कि शहर ग्रामों की अपेक्षा अधिक घने और बड़े क्षेत्र में बसे हुए होते हैं।

प्रारंभिक शहरीकरण की आवश्यक दशाएँ:

(क) अत्यंत उत्पादक खेती: नि:संदेह अत्यंत उत्पादक खेती प्रारंभिक शहरीकरण की एक अत्यंत आवश्यक दशा थी। यह निर्विवाद है कि शहरीकरण तभी संभव हो सकता है जब खेती में इतनी उपज होती हो कि वह शहर में रहने वाले लोगों का पेट भरने में समर्थ हो सके। शहरों में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं। अतः कहा जा सकता है कि जिस स्थान पर शहर का विकास होता है, उस स्थान पर ज़मीन का प्राकृतिक स्वरूप उपजाऊ होना अत्यंत आवश्यक है। उदाहरण के लिए, मेसोपोटामिया का शहर के रूप में विकास होना इसका प्रमाण है।

(ख) जल परिवहन: जल परिवहन भी शहरीकरण के लिए अत्यंत उत्पादक खेती से कम आवश्यक दशा नहीं थी। प्रारंभिक काल में बोझा ढोने वाले पशुओं की पीठ पर लादकर व बैलगाड़ियों में भरकर शहरों में कृषि उत्पाद को ले जाना सरल नहीं था। इन माध्यमों से परिवहन में अत्यधिक समय लगता था। इनकी अपेक्षाकृत कांस्यकालीन सभ्यताओं में जल परिवहन, खाद्यान्न एवं अन्य सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का एक सस्ता एवं सुरक्षित साधन था। खाद्यान्न व अन्य सामान से भरी नौकाएँ नदी की धारा के साथ चलती थीं। परिणामतः उन पर कोई अतिरिक्त व्यय नहीं करना पड़ता था। प्राचीन मेसोपोटामिया की नहरें तथा प्राकृतिक जल धाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच परिवहन के अच्छे साधनों के रूप में कार्य करती थीं। यही कारण था कि जल परिवहन मेसोपोटामिया में प्रारंभिक शहरीकरण के विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ।

(ग) धातु और पत्थर की कमी: धातु और पत्थर की कमी ने भी मेसोपोटामिया में प्रारंभिक शहरीकरण को बलदिया। नि:संदेह उन्नत व्यापार की अवस्था शहरीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। इसके अतिरिक्त व्यापार के द्वारा ही नगरों में बनने वाला माल ग्रामों में पहुँचता है और ग्रामों से कच्चा माल तथा खाद्यान्न शहरों में आता है। मेसोपोटामिया खाद्य संसाधनों की दृष्टि से संपन्न थी, किंतु वहाँ खनिज पदार्थों की कमी थी। दक्षिणी मेसोपोटामिया के अधिकांश भागों में औज़ार, मोहरें और आभूषण आदि बनाने के लिए अच्छे पत्थरों तथा गाड़ियों के पहिए अथवा नावें बनाने के लिए अच्छी लकड़ी का अभाव था । इसी तरह औजार, बर्तन तथा आभूषण बनाने के लिए अच्छी धातु भी उपलब्ध नहीं थी । अतः ये वस्तुएँ व्यापार के द्वारा ही प्राप्त की जाती थीं। इसके साथ ही मेसोपोटामिया से कपड़ा और कृषि संबंधी उत्पादों को अन्य देशों के लिए निर्यात किए जाते थे। मेसोपोटामिया में अच्छी लकड़ी, ताँबा, राँगा, सोना, चाँदी, सीपी, विभिन्न प्रकार के पत्थर आदि तुर्की, ईरान तथा खाड़ी के अन्य देशों से आयात किए जाते थे।

शहर के विकास के फलस्वरूप उत्पन्न देशाएँ:-

(घ) श्रम विभाजन: नगर जीवन और लोगों का एक स्थान पर बसना तभी संभव होता है, जब अनेक लोग विभिन्न गैर-खाद्यान्न उत्पादक रोजगारों; जैसे- धातुकर्म, मुहर, नक्काशी, प्रशासन, मंदिर सेवा आदि में लगे हों। शहर के विनिर्माताओं को अपने-अपने उद्योगों के लिए ईंधन, धातु, अनेक प्रकार के पत्थर की आवश्यकता होती है। इन चीजों को केवल एक स्थान से प्राप्त करना असंभव है। इसी प्रकार कोई एक व्यक्ति सभी प्रकार की वस्तुओं के निर्माण में कुशल नहीं हो सकता है। परिणामतः औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास में श्रम विभाजन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वस्तुतः शहरीकरण की प्रक्रिया से श्रम विभाजन को भी बल मिलता है।

(ङ) मुद्राओं का प्रयोग: शहरीकरण के विकास के कारण मुद्राओं के प्रचलन को बल मिला। नि:संदेह मुद्राओं के प्रचलन ने साहूकारों, विभिन्न व्यवसायियों, व्यापार तथा सरकार के काम को सरल बना दिया। हम जानते हैं कि प्राचीन काल में शहरों का लेन-देन अवैयक्तिक रूप से होता था। जिन लोगों से लेन-देन होता था, वे सामान्यतया एक-दूसरे से अपरिचित होते थे। अतः संदेशों, दस्तावेजों और सामान के गट्टरों को भेजते समय मुहर लगाना अनिवार्य समझा जाता था।

(च) राजाओं की सैन्य शक्ति जिसने श्रम को अनिवार्य बना दिया: शहरीकरण की प्रक्रिया ने राजाओं की सैन्य शक्ति की आधारशिला रखी। हम जानते हैं कि शहरीकरण और औद्योगीकरण तथा व्यापारिक विकास में घनिष्ठ संबंध है। व्यापार के विकास के लिए शांति और सुरक्षा अति आवश्यक है जोकि किसी शक्तिशाली केंद्र द्वारा ही प्रदान की जा सकती है। परिणामतः शहरीकरण के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की देखभाल तथा श्रम-विभाजन पर नियंत्रण अति आवश्यक हो गया। इसके फलस्वरूप राजा की सैन्य- शक्ति में भी वृद्धि होने लगी । उदाहरण के लिए, यदि मेसोपोटामिया को शहरीकरण हुआ तो वहाँ एक कुशल और शक्तिशाली केंद्र शासक का भी उदय हुआ।

 

प्रश्न 3. यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए खतरा थे?

उत्तर

मेसोपोटामिया का इतिहास इस बात का गवाह है कि इसके पश्चिमी मरुस्थल से यायावर समूहों के कई झुंड इसके उपजाऊ एवं संपन्न मुख्य भूमि प्रदेश में आते रहते थे। ये पशुचारक गर्मी के मौसम में अपनी भेड़-बकरियों को इस उपजाऊ क्षेत्र के बोए हुए खेतों में ले जाते थे। अनेक बार ये यायावर समूह गड़रियों, फसल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में इस उपजाऊ प्रदेश में आते थे और स्थायी रूप से इसे ही अपना निवास स्थान बना लेते थे। ये खानाबदोश, अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आमीनियन जाति के लोग ही थे।पशुचारक अपने पशुओं तथा उनके उत्पादों, जैसे-पनीर, चमड़ा, मांस आदि के बदले अनाज और धातु के औजार आदि लेते थे।

 

बाड़े में रखे जाने वाले पशुओं के गोबर से बनी खाद भूमि को उपजाऊ बनाती थी, इसलिए यह खाद किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती थी। किंतु यदा-कदा किसानों और पशुचारकों अथवा गड़रियों के बीच झगड़े भी हो जाते थे। प्रायः ऐसा होता था कि पशुचारक अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों के बीच से निकालकर ले जाते थे। परिणामतः किसानों की फसल को हानि पहुँचती थी । यहाँ तक कि कई बार खेतों में खड़ी फसल बरबाद हो जाती थी । मारी के अभिलेखों से जाहिर होता है कि सिंचाई वाले क्षेत्रों में पशुचारकों के आगमन पर नज़र रखी जाती थी। नि:संदेह चरवाहे कभी उपयोगी साबित हो सकते थे तो कभी हानिकारक भी। यदि शहरी लोगों के साथ पशुचारकों का संबंध दोस्ताना नहीं होता तो वे आवागमन के प्रमुख रास्तों को भी हानि पहुँचा सकते थे। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी खानाबदोश पशुचारक लूटमार की गतिविधियों में भी लिप्त हो जाते थे। यहाँ तक कि वे किसानों के गाँवों पर हमला कर देते थे और उनका इकट्ठा किया गया अनाज आदि लूटकर ले जाते थे।उपलब्ध साक्ष्यों से यह भी जाहिर है कि ये यायावर पशुचारक घास के मैदानों में अथवा सड़क के किनारे तंबुओं में रहा करते थे।

वे प्रायः राहजनी के कार्यों में लिप्त रहते थे। मारी राज्य में कृषक व पशुचारक दोनों निवास करते थे। फिर भी मारी नगर के राजा इन पशुचारक समूहों की गतिविधियों के प्रति अत्यधिक सावधान थे। पशुचारकों को राज्य में चलने-फिरने की तो अनुमति थी, किंतु उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाती थी। इस प्रकार मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों व संस्कृतियों के लिए खुली थी। नि:संदेह, विभिन्न जातियों तथा समुदायों के लोगों के आपसी मेलजोल से वहाँ की सभ्यता में जीवन-शक्ति उत्पन्न हो गई थी।

प्रश्न 4. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?

उत्तर

सुमेरियाई लोग बहु-देवतावादी थे। प्रत्येक ग्राम का और प्रत्येक शहर का अपना देवता होता था। नि:संदेह उनके देवी-देवताओं की संख्या विशाल थी और उनमें से अधिकांशतः प्रकृति की शक्तियों के प्रतिनिधि थे। उदाहरण के लिए, इन्नाना- प्रेम और युद्ध की देवी थी, तो ‘उर’ चंद्र देवता था। ये सुमेर के लोकप्रिय देवी-देवता थे। इसके अतिरिक्त एनलिल सुमेर में पूजे जाने वाले देवताओं में सर्वप्रमुख था। इस देवता को मानवता का स्वामी और राजाओं का राजा माना जाता था। विभिन्न देवी-देवताओं के निवास के लिए बनाया गया मंदिर उनके घर होते थे। प्रारंभ में मंदिरों का निर्माण विशेष योजना के आधार पर किया जाता था।

मंदिर का केंद्रीय कक्ष देवी-देवता के प्रतिमा कक्ष से जुड़ा होता था। इसके अतिरिक्त मंदिरों के दोनों तरफ़ गलियारा होता था। परंतु बाद के काल में मंदिरों का निर्माण घर की योजनानुसार होने लगा। इसके अंतर्गत एक खुले आँगन के चारों ओर अनेक कमरे बनाए जाते थे। देवी-देवता की मूर्ति के दर्शन सीधे नहीं होते थे। वहाँ तक पहुँचने के लिए आँगनों, बाहरी कक्षों और तिरछे अक्षों से होकर गुजरना पड़ता था। इसके अतिरिक्त सभी मंदिर एक जैसे बने होते थे। अतः वे घर जैसे दिखते थे। इसमें कोई शक नहीं है कि मंदिर मानव जीवन से जुड़ी लगभग सभी गतिविधियों के केंद्रबिंदु थे।

इतिहास गवाह है कि सुमेरिया के नगर राज्यों पर ऐसे सरदारों अथवा राजाओं ने शासन किया, जो पुजारी भी थे। संदर्भित काल में राजस्व पुजारियों के कामकाज से जुड़ा हुआ था। इसका अर्थ यह है कि एक ही व्यक्ति पुजारी एवं शासक दोनों रूपों में कार्य करता था। इस प्रकार मंदिर पूजा-स्थल के साथ-साथ प्रमुख पुजारी और शासक का निवास-स्थल भी था। इसके अतिरिक्त, मंदिर सार्वजनिक जीवन का केंद्रबिंदु भी था। सार्वजनिक जीवन से संबंधित कार्यों का मार्गदर्शन मंदिर से ही किया जाता था।

मंदिर में गोदाम, कारखाने तथा कारीगरों के बड़े-बड़े निवास सम्मिलित थे। मंदिर व्यवस्थापक, व्यापारियों

के नियोक्ता, आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों के पालक आदि के रूप में भी कार्य करता था। इन्हीं मंदिरों में जादू-टोने से बीमारियाँ ठीक की जाती थीं। इसी स्थान पर लिखाई – पढ़ाई का कार्य संपन्न होता था। साथ-साथ ज्योतिष जानने वाले इसे प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करते थे। इस प्रकार मंदिर धार्मिक जीवन और सामाजिक जीवन के केंद्रबिंदु होने के कारण आकार-प्रकार और क्रियाकलाप के दृष्टिकोण से घर जैसे ही होते थे।

प्रश्न 5. शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्त्व में आई? आपके विचार से उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं?

उत्तर

मेसोपोटामिया में कालांतर में अनेक भव्य नगरों का निर्माण हुआ जिनमें उरुक, लांगाश, बेबीलोन व मारी प्रमुख नगर थे। दक्षिणी मेसोपोटामिया में लगभग 5000 ई०पू० के आस-पास आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप नयी-नयी बस्तियाँ स्थापित होने लगी थीं। इन बस्तियों में से कुछ बस्तियों ने प्राचीन शहरों का रूप धारण कर लिया था। इन शहरों की स्थिति के अनुसार निम्नलिखित विशेषताएँ भी थीं:-

  • मंदिर के चारों तरफ विकसित शहर
  • व्यापारिक केंद्रों के आसपास विकसित शहर
  • शाही शहर

मेसोपोटामिया के तत्कालीन देहातों में जमीन और पानी के लिए बार-बार लड़ाइयाँ होती रहती थीं। जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक लड़ाई चलती थीं, जो मुखिया लड़ाई में जीत जाते थे, वे अपने साथियों एवं अनुयायियों में लूट का माल बाँटकर उन्हें खुश कर देते थे और पराजित लोगों को बंदी बनाकर अपने साथ ले जाते थे। जिन्हें वे कालांतर में अपने चौकीदार या नौकर बना लेते थे। वे इस प्रकार अपना वर्चस्व बढ़ा लेते थे। युद्ध में विजयी होने वाला मुखिया स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं बने रहते थे।

उनका स्थान दूसरे नेता भी ले लिया करते थे। कालांतर में इस प्रक्रिया में बदलाव तब आया जब इन नेताओं ने समुदायों के कल्याण की तरफ अधिक ध्यान देना प्रारंभ किया। परिणामस्वरूप नयी-नयी संस्थाएँ वे परिपाटियाँ स्थापित हो गईं। विजेता मुखिया ने मंदिर में देवताओं की मूर्तियों पर कीमती भेटें चढ़ाना शुरू कर दिया। इससे समुदाय के मंदिरों की सुंदरता बढ़ गई। एनमर्कर से जुड़ी कविताएँ व्यक्त करती हैं कि इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाया तथा उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। पारस्परिक हितों को सुदृढ़ करने वाले विकास के एक ऐसे दौर की कल्पना कर सकते हैं।

 

जिसमें मुखिया लोगों ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे वे आवश्यकता पड़ने पर तुरंत अपनी सेना इकट्ठी कर सकें। एक अनुमान के अनुसार एक मंदिर को बनाने के लिए 1500 आदमियों को पाँच साल तक प्रतिदिन 10 घंटे काम में लगे रहना पड़ता था । उपरोक्त आधारों से पता चला है कि नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च या संभ्रांत वर्ग भी उत्पन्न हो । चुका था और धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा इसी वर्ग के हाथों में केंद्रित था। इसकी पुष्टि उस शहर में राजाओं व रानियों की कब्रों व समाधियों से खुदाई के दौरान प्राप्त बहुमूल्य चीजों; जैसे- आभूषण, सोने के पात्र, सफ़ेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्ययंत्र, सोने के सजावटी खंजरों आदि से हुई है।

कानूनी दस्तावेजों (विवाह, उत्तराधिकार आदि के मामलों से संबंधित) से पता चलता है कि मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार को ही आदर्श माना जाता था। हमें विवाह आदि से संबंधित प्रक्रियाओं की भी जानकारी मिली है। विवाह करने की इच्छा की घोषणा की जाती थी। और वधू के माता-पिता विवाह के लिए अपनी अनुमति व सहमति प्रदान करते थे। वर पक्ष के लोग वधू पक्ष को कुछ उपहार देते थे। विवाह की

रस्म आदि के बाद दोनों पक्ष एक-दूसरे को उपहार देते थे और बैठकर भोजन करते थे। भोजन आदि के बाद मंदिर में जाकर भेंट चढ़ाते थे। जब नववधू को उसकी सास लेने आती थी, तब वधू को उसके पिता द्वारा उत्तराधिकार के रूप में उसका हिस्सा दे दिया जाता था। पिता का घर, जानवर, खेत आदि पैतृक संपत्ति उसके पुत्रों को मिलते थे। सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था के अभाव में राज्य का कामकाज सुचारु ढंग से चलाना कठिन हो जाता था। अतः मेसोपोटामिया के शासकों ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था नींव रखी। ऐसी प्रबंध व्यवस्था के कारण ही उस राज्य में शांति व सुव्यवस्था बनी रही जो मेसोपोटामिया के विकास के लिए आवश्यक था।

प्रश्न 6. किन पुरानी कहानियों से हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक मिलती है?

उत्तर

हमें मेसोपोटामिया की सभ्यता की झलक बाइबल के प्रथम भाग ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के कई संदर्भों में देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ (Book of Genesis) में ‘शिमार’ (Shimar) का उल्लेख है जिसका तात्पर्य सुमेर ईंटों से बने शहर की भूमि से है। यूरोपवासी इस भूमि को अपने पूर्वजों की भूमि मानते हैं और जब इस क्षेत्र में पुरातत्त्वीय खोज की शुरुआत हुई तो ओल्ड टेस्टामेंट को अक्षरशः सिद्ध करने का प्रयास किया गया। सन् 1873 में ब्रिटिश समाचार-पत्र ने ब्रिटिश म्यूजियम द्वारा प्रारंभ किए गए खोज अभियान का खर्च उठाया जिसके अंतर्गत मेसोपोटामिया में एक ऐसी पट्टिका (Tablet) की खोज की जानी थी जिस पर बाइबल में उल्लिखित जलप्लावन (Flood) की कहानी अंकित थी।

बाइबल के अनुसार, यह जलप्लावन पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन को नष्ट करने वाला था। किंतु परमेश्वर ने जलप्लावन के बाद भी जीवन को पृथ्वी पर सुरक्षित रखने के लिए नोआ (Naoh) नाम के एक मनुष्य को चुना। नोआ ने एक बहुत विशाल नाव बनाई और उसमें सभी जीव-जंतुओं का एक-एक जोड़ा रख लिया और जब जलप्लावन हुआ तो बाकी सब कुछ नष्ट हो गया, पर नाव में रखे सभी जोड़े सुरक्षित बच गए। ऐसी ही एक कहानी मेसोपोटामिया के परंपरागत साहित्य में भी मिलती है। इस कहानी के मुख्य पात्र को ‘जिउसुद्र’ (Ziusudra) या ‘उतनापिष्टिम’ (Utnapishtim) कहा जाता था। 1960 के दशक में ओल्ड टेस्टामेंट की कहानियाँ अक्षरशः सही नहीं पाई गईं, लेकिन ये इतिहास में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के अतीत को अपने ढंग से अभिव्यक्त करती हैं।

 

धीरे-धीरे पुरातात्त्विक तकनीकें अधिकाधिक उन्नत और परिष्कृत होती गईं। यहाँ तक कि आम लोगों के जीवन की भी परिकल्पना की जाने लगी। बाइबल कहानियों की अक्षरशः सच्चाई को प्रमाणित करने का कार्य गौण हो गया। ऐसी ही जलप्लावन की घटना का उल्लेख छायावादी कवि ‘जयशंकर प्रसाद जी ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में वर्णित किया है। इस जलप्लावन में शेष जीवित प्राणियों में मनु-श्रद्धा व इड़ा को दिखाया गया है। उनके द्वारा सृष्टि की रचना का काम पुनः शुरू हो गया था।

Chapter -2: तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

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