- संविधान का निर्माण (Framing the Constitution)
- FAQs on the chapter “संविधान का निर्माण”
- 1. संविधान का निर्माण क्यों आवश्यक था?
- 2. संविधान निर्माण के लिए किसने पहल की?
- 3. संविधान सभा का गठन कैसे हुआ?
- 4. संविधान सभा के प्रमुख सदस्य कौन थे?
- 5. संविधान बनाने की प्रक्रिया कितने समय में पूरी हुई?
- 6. संविधान में कौन-कौन सी प्रमुख विशेषताएँ थीं?
- 7. संविधान का प्रारूप किसने तैयार किया था?
- 8. संविधान सभा ने संविधान को कब अपनाया?
- 9. संविधान में संशोधन का अधिकार किसे प्राप्त था?
- 10. संविधान के लागू होने के बाद के पहले कदम क्या थे?
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- FAQs on the chapter “संविधान का निर्माण”
संविधान का निर्माण (Framing the Constitution)
भारतीय संविधान :-
- भारतीय संविधान विश्व का एकमात्र सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
- भारतीय संविधान को 9 दिसम्बर, 1946 से 28 नवम्बर 1949 के बीच सूत्रबद्ध किया गया। संविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 दिन बैठकों में गए।
- भारतीय संविधान लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिन में बनकर तैयार हुआ। एव इसे बनाने हेतु लगभग 64 लाख का खर्चा किया गया।
- भारतीय संविधान में भारतीय शासन व्यवस्था, राज्य और केंद्र के संबंधों एवं राज्य के मुख्य अंगो के कार्यों का वर्णन किया गया है।
- भारतीय संविधान का निर्माण देश निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण कार्य में से एक था भारतीय संविधान का निर्माण जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे बड़े – बड़े नेताओं द्वारा किया गया था।
उथल पुथल का दौर :-
- भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया इसके निर्माण से पहले के साल काफी उथल – पुथल वाले थे। यह महान आशाओं का क्षण भी था और भीषण मोहभंग का भी।
- लोगों की स्मृति में भारत छोड़ो आन्दोलन, आजादी हिन्द फौज का प्रयास, 1946 में रॉयल इंडियन नेवी का विद्रोह, देश के विभिन्न भागों में मजदूरों और किसानों के आन्दोलन आशाओं के प्रतीक थे तो वही हिन्दू – मुस्लिम के बीच दंगे और देश का बंटवारा भीषण मोहभंग का क्षण था।
- हमारे संविधान ने अतीत और वर्तमान के घावों पर मरहम लगाने, और विभिन्न वर्गो, जातियों व समुदायों में बँटे भारतीयों को एक साझा राजनीतिक प्रयोग में शामिल करने में मदद दी है।
संविधान की मांग :-
- महात्मा गांधी ने 1922 ईस्वी में असहयोग आंदोलन के दौरान मांग की कि भारत का राजनीतिक भाग्य स्वयं भारतीयों द्वारा तय होना चाहिए।
- कानूनी आयोगों और गोलमेज सम्मेलनों की असफलता के कारण भारतीयों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 पारित किया गया।
- कांग्रेस ने 1935 ईस्वी में मांग की कि भारत का संविधान बगैर किसी बाहरी हस्तक्षेप के बनना चाहिए।
- 1938 ईस्वी में जवाहर लाल नेहरू ने 1939 ईस्वी में कांग्रेस कार्यसमिति ने भारतीयों की अपनी संविधान सभा की स्पष्ट रुप से मांग की।
संविधान सभा का गठन :-
- संविधान सभा का गठन केबिनेट मिशन योजना द्वारा सुझाए गए प्रस्ताव के अनुसार 1946 में हुआ था।
- इसके अंतर्गत संविधान सभा के कुल चुने गए सदस्यों की संख्या की संख्या 389 थी। जिसमे से 296 ब्रिटिश भारत एव 93 सदस्य देसी रियासतों से चुने गए।
- सभी राज्यो व देशी रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें दी जानी थी। जिसमें से प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर संविधान सभा के लिए एक सदस्य प्रांतीय विधान सभा के सदस्यों द्वारा चुना जाना था।
- प्रांतों के 296 सदस्यों में से स्थानों पर आवंटन कुछ इस प्रकार था
- सामान्य 213
- मुस्लिम 79 एवं
- सिख 4 थे।
- संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नही हुआ था। बल्कि प्रांतीय विधायिकाओं ने संविधान सभा के सदस्यों को चुना।
- संविधान सभा मे कांग्रेस प्रभावशाली थी क्योंकि प्रांतीय चुनावो में कांग्रेस ने सामान्य चुनाव क्षेत्रो में भारी जीत प्राप्त की थी और मुस्लिम लीग को अधिकांश मुस्लिम सीट मिल गई थी।
- लेकिन मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार उचित समझा और एक अन्य संविधान बनाकर पाकिस्तान की मांग को जारी रखा। शुरुआत में समाजवादी भी संविधान सभा से परे रहे क्योंकि वे उसे अंग्रेजो कि बनाई हुई सस्था मानते थे। इन सभी कारणों से संविधान सभा के 82% सदस्य कांग्रेस पार्टी के ही सदस्य थे।
- परन्तु सभी कांग्रेस सदस्य एक मत नही थे। कई निर्णायक मुद्दों पर उनके मत भिन्न होते थे। कई कांग्रेसी समाजवाद से प्रेरित थे तो कई अन्य जमीदारी के हिमायती थे। कुछ साम्प्रदायिक दलों के करीब थे तो कुछ पक्के धर्म निरपेक्ष।
संविधान सभा मे चर्चाएं :-
संविधान सभा मे हुई चर्चाएं जनमत से प्रभावित होती थी जब संविधान सभा मे बहस होती थी तो विभिन्न पक्षो की दलील अख़बारों में भी छापी जाती थी और तमाम प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी। सामूहिक सहभागिता बनाने के लिए जनता के सुझाव भी आमंत्रित किए जाते थे। कई भाषा अल्पसंख्यक अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिए माँग करते थे।
संविधान सभा के मुख्य नेता / मुख्य आवाजें :-
- संविधान सभा में कुल तीन सौ सदस्य थे जिनमें छ : सदस्यों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी इन छ : में से तीन जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद कांग्रेस के सदस्य थे।
- इसके अतिरिक्त विधिवेत्ता बी . आर . अम्बेडकर, के.एम. मुशी और अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर थे।
- संविधान सभा में दो प्रशासनिक अधिकारी भी थे। इनमें से एक बी.एन. राव भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे जबकि दूसरे अधिकारी एस.एन. मुखर्जी थे। इनकी भूमिका मुख्य योजनाकार की थी।
संविधान के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य :-
- संविधान सभा की पहले बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई।
- मुस्लिम लीग ने इसका बहिष्कार किया था।
- डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया।
- दूसरी बैठक – 11 दिसंबर 1946।
- राजेंद्र प्रसाद को सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया।
- तीसरी बैठक – 13 दिसंबर 1946।
- नेहरू जी ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया।
- सदस्य – 389
- अध्यक्ष – डॉ राजेंद्र प्रसाद
- मसौदा समिति के प्रमुख अध्यक्ष – बी आर अम्बेडकर
- संवैधानिक सलाहकार – बीएन राव
- 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव
- पेश किया गया।
- अवधि – 2 महीने 11 महीने 11 दिन
- संविधान पूरा हुआ – 26 नवंबर 1946
- लागू या अधिनियमित – 26 जनवरी 1950
- संविधान सभा का 11 सत्र हुआ, बैठक 165 दिन
- अंतरिम सरकार के प्रमुख – जवाहरलाल नेहर
मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल हुई – 13 अक्टूबर, 1946
उद्देश्य प्रस्ताव :-
- 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने ” उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया। इसमें भारत को “ स्वतंत्र, सम्प्रभु गणराज्य ‘ घोषित किया गया था नागरिकों को न्याय समानता व स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया था और यह वचन दिया गया था कि ” अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्र एवं दमित व अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान किए जाएंगे।
- पं . नेहरू ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की रूपरेखा हमारे बीच होने वाली चर्चा से ही उभरेगी भारतीय संविधान के आदर्श और प्रावधान कहीं और से उठाए गए नहीं हो सकते।
- पं . नेहरू जी ने यह प्रस्ताव भी पेश किया था कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज केसरिया, सफेद, ओर गहरे हरे रंग की 3 बराबर चौड़ाई वाली पट्टीयो का तिरंगा झंडा होगा। जिसके बीच मे गहरे नीले रंग का चक्र होगा।
- वल्लभ भाई पटेल मुख्य रूप से पर्दे के पीछे कई महत्वपूर्ण काम कर रहे थे। उन्होंने कई रिपोर्ट के प्रारूप लिखने में खास मदद की ओर कई परस्पर विरोधी विचारो के बीच सहमति पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
- कांग्रेस के इस त्रिगुट के अलावा प्रख्यात विधिवेत्ता ओर अर्थशास्त्री भीम राव अम्बेडकर भी सभा के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यो में से के थे। यद्यपि ब्रिटिश शासन के दौरान अम्बेडकर कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी रहे थे। परंतु स्वतंत्रता के समय महात्मा गांधी की सलाह पर उन्हें केंद्रीय विधि मंत्री का पद संभालने का न्योता दिया गया था। इन भूमिका में उन्होंने संविधान की प्रारुप समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया।
- उनके साथ दो अन्य वकील भी काम कर रहे थे। गुजरात के K.M मुंसी तथा मद्रास के अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर दोनो ने ही संविधान के प्रारूप पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
- अम्बेडकर के पास सभा मे संविधान के प्रारूप को पारित करवाने की जिम्मेदारी थी। इस काम मे लगभग 3 बर्ष लगे और इस दौरान हुई चर्चाओं के मुद्रित रिकार्ड 11/12 भारी भरकम खण्डों में प्रकाशित हुआ।
संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी :-
- संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी को सभा की चर्चाओं पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्याह ( परछाई) दिखाई देता था। 1946 – 1947 ई० के सर्दी में जब संविधान सभा मे चर्चा चल रही थी तो अंग्रेज अभी भी भारत मे थे।
- जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार शासन तो चला रही थी परंतु उसे सारा काम वायसराय तथा लंदन में बैठी ब्रिटिश सरकार की देख – रेख में करना पड़ता था। लाहिड़ी ने अपने साथियों को समझाया कि संविधान सभा अंग्रेजो की बनाई हुई और वह अग्रेजो की योजना को साकार करने का काम कर रही है।
पृथक निर्वाचन की समस्या :-
- 27 अगस्त 1947 ई० को मद्रास के बी० पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिकाए बनाये रखने के पक्ष में एक प्रभावशाली भाषण दिया।
- संविधान सभा में पृथक निर्वाचिका की समस्या पर बहस हुई। मद्रास के बी . पोकर बहादुर ने इसका पक्ष लिया परंतु, ज्यादातर राष्ट्रवादी नेताओ जैसे- आर.वी. धुलेकर, सरकार पटेल, गोविन्द वल्लभ पंत, बेगम ऐजाज रसूल आदि ने इसका कड़ा विरोध किया और इसे देश के लिए घातक बताया।
- सरदार पटेल ने कहा था कि पृथक निर्वाचिका एक ऐसा जहर है जो हमारे देश की पूरी राजनीति में समा चुका है। क्या तुम इस देश मे शांति चाहते हो अगर चाहते हो तो इसे ( पृथक निर्वाचिका) को फौरन छोड़ दो।
- जीबी पंत ने एक बहस में कहा, अलग मतदाता न केवल राष्ट्र के लिए बल्कि अल्पसंख्यकों के लिए भी हानिकारक है। उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक समुदाय का दायित्व था कि वे अल्पसंख्यकों की समस्या को समझें और उनकी आकांक्षाओं के साथ सहानुभूति रखें। अलग मतदाताओं की मांग अल्पसंख्यकों को स्थायी रूप से अलग – थलग कर देगी और उन्हें कमजोर बनाएगी और इसके अलावा यह उन्हें सरकार के भीतर किसी प्रभावी बात से वंचित करेगी।
- अलग – अलग मतदाताओं के खिलाफ ये सभी तर्क राष्ट्र की एकता पर आधारित थे, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक राज्य का नागरिक होता है, और प्रत्येक समूह को राष्ट्र के भीतर आत्मसात होना पड़ता था।
- संविधान नागरिकता और अधिकार प्रदान करेगा, बदले में नागरिकों को राज्य के प्रति अपनी वफादारी की पेशकश करनी थी। समुदायों को सांस्कृतिक संस्थाओं के रूप में मान्यता दी जा सकती है और राजनीतिक रूप से सभी समुदायों के सदस्य राज्य के सदस्य के बराबर हैं।
- 1949 तक, संविधान सभा के अधिकांश मुस्लिम सदस्यों को अलग – अलग मतदाताओं के खिलाफ सहमति दी गई और इसे हटा दिया गया।
- मुसलमानों को यह सुनिश्चित करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने की आवश्यकता थी कि उनकी राजनीतिक व्यवस्था में निर्णायक आवाज़ हो।
आदिवासी और उनके अधिकार :-
- आदिवासी, जयपाल सिंह, एक आदिवासी, ने इतिहास के माध्यम से आदिवासी के शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने आगे कहा कि जनजातियों की रक्षा करने और प्रावधान करने की आवश्यकता है जो उन्हें सामान्य आबादी के स्तर पर आने में मदद करेंगे।
- जयपाल सिंह ने कहा, उन्हें मुख्यधारा में एकीकृत करने के लिए शारीरिक और भावनात्मक दूरी को तोड़ने की जरूरत है। उन्होंने विधायिका में सीट के आरक्षण पर जोर दिया, क्योंकि यह उनकी मांगों को आवाज देने में मदद करता है और लोग इसे सुनने के लिए मजबूर होंगे।
हमारे देश के दलित वर्गों के लिए संविधान में प्रावधान :-
- दलित वर्ग हमारे देश की 20-25% आबादी बनाते हैं, इसलिए वे अल्पसंख्यक नहीं हैं लेकिन उन्हें लगातार हाशिए का सामना करना पड़ा है।
- दलित वर्गों के सदस्यों को व्यवस्थित रूप से हाशिए पर जाने का सामना करना पड़ा। सार्वजनिक स्थानों तक उनकी पहुंच नहीं थी, उन्हें विकृत सामाजिक और नैतिक आदेशों के माध्यम से दबा दिया गया था। दलित वर्गों की शिक्षा तक कोई पहुँच नहीं थी और प्रशासन में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं थी।
- दलित वर्गों के सदस्यों ने अस्पृश्यता की समस्या पर जोर दिया जिसे सुरक्षा और संरक्षण के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता था। इसे पूरी तरह से दूर करने के लिए इन लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने और समाज में व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है।
- संविधान सभा ने एक प्रावधान किया कि अस्पृश्यता को समाप्त किया, हिंदू मंदिरों को सभी जातियों और विधायिका में सीटों के लिए खोल दिया गया, सरकारी कार्यालयों में नौकरियां निम्न जातियों के लिए आरक्षित की गईं। कई लोगों ने माना कि सामाजिक भेदभाव को समाज के भीतर के दृष्टिकोण में बदलाव के माध्यम से ही हल किया जा सकता है।
राज्य की शक्तियाँ :-
- केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार के विभाजन के मुद्दे पर तीव्र बहस हुई।
- संविधान ने विषय की तीन सूचियाँ प्रदान की अर्थात
- केंद्रीय सूची – केंद्रीय सरकार इस पर कानून बना सकती है।
- राज्य सूची, राज्य सरकार इस पर कानून बना सकती है।
- समवर्ती सूची दोनों संघ और राज्य सरकार सूचीबद्ध वस्तुओं पर कानून बना सकती है।
- अधिक मद केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध हैं। भारत – केंद्रीय में सरकार को और अधिक शक्तिशाली बनाया जाता है ताकि वह शांति, सुरक्षा सुनिश्चित कर सके, और महत्वपूर्ण हितों के मामले में समन्वय स्थापित कर सके और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पूरे देश के लिए बात कर सके।
- हालाँकि कुछ कर जैसे कि भूमि और संपत्ति कर, बिक्री कर और बोतलबंद शराब पर कर राज्य द्वारा अपने दम पर वसूले और वसूले जा सकते हैं।
केंद्र और राज्य की शक्तियों पर संथानम का दृष्टिकोण :-
- के संथानम ने कहा कि राज्य को मजबूत बनाने के लिए न केवल राज्य बल्कि केंद्र को भी सत्ता में लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र जिम्मेदारी से आगे बढ़ता है तो यह ठीक से काम नहीं कर सकता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि राज्य को कुछ शक्तियां हस्तांतरित की जाएं।
- फिर के, संथानम ने कहा कि राज्यों को उचित वित्तीय प्रावधान दिए जाने चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें और उन्हें मामूली खर्च के लिए केंद्र पर निर्भर रहने की आवश्यकता न हो, यदि सही तरीके से आवंटन नहीं किया गया तो संथानम और कई अन्य लोगों ने अंधेरे भविष्य की भविष्यवाणी की। उन्होंने आगे कहा कि प्रांत केंद्र के खिलाफ विद्रोह कर सकता है और केंद्र टूट जाएगा, क्योंकि अत्यधिक शक्ति संविधान में केंद्रीकृत है।
मजबूत सरकार की आवश्यकता :-
- विभाजन की घटनाओं से मजबूत सरकार की आवश्यकता को और मजबूती मिली। कई नेताओं जैसे जवाहरलाल नेहरू, बीआर अंबेडकर, गोपालस्वामी अय्यंर आदि ने मजबूत केंद्र की वकालत की।
- विभाजन से पहले कांग्रेस ने प्रांतों को काफी स्वायत्तता देने पर सहमति व्यक्त की थी। इस पर मुस्लिम लीग को संतुष्ट करने पर सहमति हुई। लेकिन विभाजन के बाद, कोई राजनीतिक दबाव नहीं था और विभाजन के बाद की आवाज ने केंद्रीयकृत शक्ति को और बढ़ावा दिया।
राष्ट्र की भाषा :-
- संविधान सभा में राष्ट्रभाषा के मुद्दों पर महीनों से तीव्र बहस हुई। भाषा एक भावनात्मक मुद्दा था और यह विशेष क्षेत्र की संस्कृति और विरासत से संबंधित था।
- 1930 के दशक तक, कांग्रेस और महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया। हिंदी भाषा को समझना आसान था और भारत के बड़े हिस्से के बीच एक लोकप्रिय भाषा थी। विविध संस्कृति और भाषा के मेल से हिंदी का विकास हुआ।
- हिंदी भाषा मुख्य रूप से हिंदी और उर्दू से बनी थी, लेकिन इसमें दूसरी भाषा के शब्द भी थे। लेकिन दुर्भाग्य से, भाषा भी सांप्रदायिक राजनीति से पीड़ित हुई।
- धीरे – धीरे हिंदी और उर्दू अलग होने लगी। हिंदी ने संस्कृत के अधिक शब्दों का उपयोग करना शुरू कर दिया, इसी तरह उर्दू और अधिक दृढ़ हो गई। फिर भी, महात्मा गांधी ने हिंदी में अपना विश्वास बनाए रखा। उन्होंने महसूस किया कि हिंदी सभी भारतीयों के लिए एक समग्र भाषा थी।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की दलील :-
- आर . वी . धुलेकर, संविधान सभा के सदस्य ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और भाषा बनाने के लिए एक मजबूत दलील दी जिसमें संविधान बनाया जाना चाहिए। इस दलील का प्रबल विरोध हुआ।
- असेंबली की भाषा समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें उसने यह तय करने की कोशिश की कि देवनागरी लिपि में हिंदी एक आधिकारिक भाषा होगी लेकिन हिंदी दुनिया के लिए संक्रमण एक क्रमिक प्रक्रिया होगी और स्वतंत्रता के बाद शुरुआती 15 वर्षों तक, अंग्रेजी को आधिकारिक के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।
- प्रांत के भीतर आधिकारिक कार्यों के लिए प्रांतों को एक भाषा चुनने की अनुमति थी।
- उसने हिंदी को लोगों की भाषा के रूप में स्वीकार किया था लेकिन भाषा बदली जा रही है। उर्दू और क्षेत्रीय भाषाओं के शब्द हटा दिए गए। यह कदम हिंदी के समावेशी और समग्र चरित्र को मिटा देता है, और इसके कारण, विभिन्न भाषा समूहों के लोगों के मन में चिंताएं और भय विकसित होता है।
- कई सदस्यों ने महसूस किया कि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के मुद्दे को सावधानी से व्यवहार किया जाना चाहिए और आक्रामक कार्यकाल और भाषण केवल गैर – हिंदी भाषी लोगों में भय पैदा करेगा और इस मुद्दे को और जटिल करेगा। विभिन्न हितधारकों के बीच आपसी समझ होनी चाहिए।
हिंदी के प्रभुत्व का डर :-
- संविधान सभा के सदस्य एसजी दुर्गाबाई ने कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी के खिलाफ तीव्र विरोध है।
- भाषा के संबंध में विवाद के प्रादुर्भाव के बाद, प्रतिद्वंद्वी में एक डर है कि हिंदी प्रांतीय भाषा के लिए विरोधी है और यह प्रांतीय भाषा और इसके साथ जुड़ी सांस्कृतिक विरासत की जड़ को काटती है।
FAQs on the chapter “संविधान का निर्माण”
1. संविधान का निर्माण क्यों आवश्यक था?
संविधान का निर्माण इसलिए आवश्यक था क्योंकि भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद एक ऐसा मजबूत और स्थिर शासन ढांचा चाहिए था, जो विविधता और विभिन्न धार्मिक, जातीय, और सांस्कृतिक समूहों के बीच संतुलन बना सके। इसके साथ ही यह भी आवश्यक था कि संविधान भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल हो, ताकि देश का विकास और एकता सुनिश्चित हो सके।
2. संविधान निर्माण के लिए किसने पहल की?
संविधान के निर्माण के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और इसके नेता, विशेषकर पंडित नेहरू, ने पहल की। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही भारतीय नेताओं ने संविधान की आवश्यकता को महसूस किया। अंततः 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा का गठन हुआ, जिसमें भारतीय संविधान को तैयार करने का कार्य सौंपा गया।
3. संविधान सभा का गठन कैसे हुआ?
संविधान सभा का गठन 1946 में हुआ था। इसमें कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 296 सदस्य भारतीय प्रांतों से चुने गए थे, जबकि 93 सदस्य राज्यसभा से थे। यह सभा ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र भारत के लिए एक नया संविधान तैयार करने के उद्देश्य से बनाई गई थी।
4. संविधान सभा के प्रमुख सदस्य कौन थे?
संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद (पहले राष्ट्रपति), पंडित नेहरू, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (संविधान सभा के मुख्य वास्तुकार), सैयद महमूद, सरदार वल्लभभाई पटेल और जीवी मावलंकर। इन नेताओं ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
5. संविधान बनाने की प्रक्रिया कितने समय में पूरी हुई?
संविधान का निर्माण 2 वर्षों, 11 महीनों और 18 दिनों में पूरा हुआ। संविधान सभा ने 9 दिसंबर 1946 को बैठक शुरू की, और 26 नवंबर 1949 को संविधान को मंजूरी दी गई। संविधान लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ।
6. संविधान में कौन-कौन सी प्रमुख विशेषताएँ थीं?
भारतीय संविधान में कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ थीं:
- समाजवादी तत्व: समाजवादी दृष्टिकोण को संविधान में स्थान दिया गया, जैसे सार्वजनिक कल्याण और समानता।
- धार्मिक स्वतंत्रता: प्रत्येक नागरिक को अपनी धार्मिक आस्था पर विश्वास रखने की स्वतंत्रता दी गई।
- संघीय ढाँचा: भारत में केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया।
- नागरिक अधिकार: संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों का विशेष उल्लेख किया गया, जैसे स्वतंत्रता, समानता और व्यक्तिगत सुरक्षा।
7. संविधान का प्रारूप किसने तैयार किया था?
संविधान का प्रारूप डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की अध्यक्षता में बनी एक विशेष समिति ने तैयार किया था। उन्होंने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों को तैयार किया, जो भारतीय समाज की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए समावेशी और न्यायपूर्ण थे।
8. संविधान सभा ने संविधान को कब अपनाया?
संविधान सभा ने संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया। हालांकि, यह संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जो भारतीय गणराज्य के गठन के दिन के रूप में मनाया जाता है।
9. संविधान में संशोधन का अधिकार किसे प्राप्त था?
संविधान में संशोधन का अधिकार भारतीय संसद को प्राप्त था। भारतीय संविधान एक लचीला संविधान था, जिसमें विभिन्न समयों में बदलाव के लिए संशोधन की प्रक्रिया दी गई थी। संशोधन के लिए संसद का दो-तिहाई बहुमत आवश्यक था।
10. संविधान के लागू होने के बाद के पहले कदम क्या थे?
संविधान लागू होने के बाद सबसे पहला कदम भारतीय गणराज्य की स्थिरता के लिए था। इसके अंतर्गत चुनाव प्रक्रिया की स्थापना, राज्य और केंद्र के बीच सत्ता का वितरण, और नागरिक अधिकारों की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। इसके अलावा, पहले सामान्य चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई।