12th Polity

Chapter 2: दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) B1

दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) अध्याय का मुख्य उद्देश्य शीत युद्ध (Cold War) की समाप्ति के साथ वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में आए परिवर्तन को समझाना है। यह अध्याय 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुए विश्व घटनाक्रमों का विश्लेषण करता है, जिसमें सोवियत संघ का विघटन, शीत युद्ध का अंत और एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय शामिल हैं।

Table of Contents

शीत युद्ध की पृष्ठभूमि

शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शुरू हुआ एक भू-राजनीतिक संघर्ष था, जो मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और सोवियत संघ (USSR) के बीच चला। यह संघर्ष सैन्य युद्ध के रूप में न होकर विचारधारा, राजनीति, और सैन्य प्रभाव में प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ थी। अमेरिका पूंजीवादी लोकतंत्र का समर्थक था, जबकि सोवियत संघ साम्यवाद और राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता था। यह द्विध्रुवीयता लगभग चार दशकों तक वैश्विक राजनीति पर हावी रही।

सोवियत संघ का विघटन

1980 के दशक के अंत तक सोवियत संघ आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा था। मिखाइल गोर्बाचेव के नेतृत्व में ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) जैसे सुधारों ने सोवियत संघ की संरचना को बदलने का प्रयास किया। हालांकि, इन सुधारों ने व्यवस्था को स्थिर करने के बजाय इसे कमजोर कर दिया।
1991 में सोवियत संघ के 15 गणराज्यों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, जिससे इस विशाल साम्राज्य का विघटन हुआ। इसके साथ ही विश्व राजनीति में द्विध्रुवीयता का अंत हो गया और एकध्रुवीय व्यवस्था में अमेरिका प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा।

द्विध्रुवीयता के अंत के प्रभाव

  1. राजनीतिक प्रभाव:
    द्विध्रुवीयता के अंत के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति संतुलन बदल गया। अमेरिका ने एक प्रमुख शक्ति के रूप में नेतृत्व संभाला, और इसे एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था के रूप में देखा गया। कई देशों ने लोकतंत्र और उदारवादी आर्थिक नीतियों को अपनाया।
  2. आर्थिक प्रभाव:
    शीत युद्ध के दौरान समाजवादी और साम्यवादी नीतियों का अनुसरण करने वाले कई देश अब बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर मुड़ने लगे। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस और अन्य स्वतंत्र गणराज्यों ने निजीकरण और उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की।
  3. सुरक्षा और सैन्य प्रभाव:
    शीत युद्ध के दौरान बनी सैन्य गुट, जैसे नाटो (NATO) और वारसॉ पैक्ट, का पुनर्मूल्यांकन किया गया। वारसॉ पैक्ट का अंत हो गया, लेकिन नाटो ने अपनी ताकत बरकरार रखी और बाद में विस्तार भी किया। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों में बदलाव आया।
  4. वैचारिक प्रभाव:
    साम्यवाद के पतन ने पूंजीवाद और लोकतंत्र को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया। यह समय वैश्वीकरण (Globalization) और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका में वृद्धि का भी था।

आधुनिक वैश्विक परिदृश्य

द्विध्रुवीयता के समाप्त होने के बाद एक नई वैश्विक व्यवस्था उभरी, जिसमें अमेरिका के साथ-साथ अन्य शक्ति केंद्र, जैसे यूरोपीय संघ, चीन और भारत, प्रमुख भूमिका निभाने लगे। वर्तमान समय में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर कदम बढ़ते दिखते हैं, जहां विभिन्न देश क्षेत्रीय और वैश्विक समस्याओं को हल करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

निष्कर्ष

“दो ध्रुवीयता का अंत” अध्याय केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति कैसे परिवर्तित होती है और नए शक्ति केंद्र कैसे उभरते हैं। शीत युद्ध की समाप्ति ने न केवल विश्व व्यवस्था को बदला बल्कि इसने नए संघर्षों और सहयोग के अवसर भी उत्पन्न किए। इस अध्याय को समझना छात्रों को 21वीं सदी की राजनीति और अर्थव्यवस्था की जटिलताओं को गहराई से समझने में मदद करता है​

 

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IMPORTENT FAQs ON “दो ध्रुवीयता का अंत”

1. शीत युद्ध का मुख्य कारण क्या था?

शीत युद्ध का मुख्य कारण विचारधारात्मक और भू-राजनीतिक संघर्ष था। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुआ, जहां अमेरिका पूंजीवाद और लोकतंत्र का समर्थन करता था, जबकि सोवियत संघ साम्यवाद और राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता था। इन दोनों महाशक्तियों के बीच वैश्विक प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ ने शीत युद्ध को जन्म दिया।

2. सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण क्या थे?

सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण थे:

  • मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा लागू की गई ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) नीतियां।
  • आर्थिक संकट और सैन्य खर्चों की बढ़ती लागत।
  • 15 गणराज्यों में बढ़ती स्वतंत्रता की मांग।
  • शीत युद्ध के तनाव और बाहरी दबाव।

3. द्विध्रुवीयता के अंत से विश्व राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?

  • राजनीतिक प्रभाव: एकध्रुवीयता का उदय, जिसमें अमेरिका प्रमुख शक्ति बन गया।
  • आर्थिक प्रभाव: वैश्विक अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया तेज हुई।
  • सुरक्षा प्रभाव: नाटो ने अपनी ताकत बनाए रखी, जबकि वारसॉ पैक्ट भंग हो गया।
  • वैचारिक प्रभाव: साम्यवाद का पतन और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रसार।

4. क्या शीत युद्ध के बाद पूरी तरह से शांति स्थापित हो गई?

नहीं, शीत युद्ध के बाद भी विश्व में संघर्ष और तनाव जारी रहे। एकध्रुवीयता के बावजूद, नए क्षेत्रीय संघर्ष, जैसे मध्य पूर्व में युद्ध और आतंकवाद, उभर कर सामने आए। साथ ही, चीन और रूस जैसे उभरते शक्ति केंद्रों ने एक नई बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर संकेत दिया।

5. क्या द्विध्रुवीयता का अंत वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में सहायक था?

हाँ, द्विध्रुवीयता के अंत ने वैश्वीकरण को तेज किया। विश्व अर्थव्यवस्था में व्यापार, तकनीकी प्रगति, और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका बढ़ी। इसके साथ ही, शीत युद्ध के दौरान अलग-थलग रहे देशों ने वैश्विक बाजार में प्रवेश किया।

6. शीत युद्ध और द्विध्रुवीयता का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

भारत ने शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) में शामिल होकर स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। द्विध्रुवीयता के अंत ने भारत को वैश्विक मंच पर नई आर्थिक और राजनीतिक साझेदारियों का अवसर दिया, जिससे आर्थिक उदारीकरण और विदेश नीति में विविधता आई।

7. वर्तमान समय में विश्व व्यवस्था द्विध्रुवीय, एकध्रुवीय या बहुध्रुवीय है?

वर्तमान समय में विश्व व्यवस्था बहुध्रुवीय मानी जा रही है। अमेरिका के साथ-साथ चीन, रूस, यूरोपीय संघ, और भारत जैसे देश वैश्विक शक्ति केंद्र बनकर उभर रहे हैं।

8. शीत युद्ध के अंत के बाद नाटो का क्या हुआ?

शीत युद्ध के बाद, नाटो (NATO) ने अपनी ताकत बरकरार रखी और विस्तार किया। कई पूर्व सोवियत संघ के देशों और वारसॉ पैक्ट के सदस्यों ने नाटो की सदस्यता ली। नाटो आज भी वैश्विक सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

9. सोवियत संघ के विघटन का रूस पर क्या प्रभाव पड़ा?

सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया। हालांकि, उसे आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

10. “दो ध्रुवीयता का अंत” का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?

इस अध्याय का अध्ययन छात्रों को वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य को समझने में मदद करता है। यह शीत युद्ध की समाप्ति के कारणों, उसके प्रभाव, और नई विश्व व्यवस्था के गठन को गहराई से समझने का अवसर प्रदान करता है।

11. क्या शीत युद्ध के दौरान कोई बड़ा सैन्य युद्ध हुआ?

नहीं, शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ ने प्रत्यक्ष सैन्य युद्ध नहीं लड़ा। इसे “ठंडा युद्ध” इसलिए कहा गया क्योंकि यह वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष था, जिसमें कोरिया, वियतनाम, और अफगानिस्तान जैसे प्रॉक्सी युद्ध शामिल थे।

12. शीत युद्ध के बाद उभरी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियाँ कौन-सी थीं?

  • वैश्विक आतंकवाद का उदय।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट।
  • क्षेत्रीय संघर्ष, जैसे मध्य पूर्व और अफ्रीका में।
  • चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता व्यापारिक और सैन्य तनाव।

13. क्या सोवियत संघ का पतन पूर्वी यूरोप के देशों पर भी प्रभाव डाला?

हाँ, सोवियत संघ के पतन ने पूर्वी यूरोप के देशों को साम्यवाद से मुक्त कर दिया। ये देश धीरे-धीरे लोकतंत्र और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़े और कई देशों ने यूरोपीय संघ और नाटो की सदस्यता ली।

यह अध्याय छात्रों को 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक घटनाओं में से एक को समझने का मौका देता है, जो आज की विश्व व्यवस्था को आकार देने में सहायक है.

Chapter 3: सत्ता के समकालीन केंद्र (Contemporary Centers of Power)

 

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