- विचारक, विश्वास और इमारतें (Thinkers, Beliefs, and Buildings)
- FAQs on विचारक, विश्वास और इमारतें
- 1. इस अध्याय का मुख्य विषय क्या है?
- 2. सांची स्तूप का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
- 3. बौद्ध और जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में क्या समानताएँ हैं?
- 4. अध्याय में वेदांत और उपनिषदों का क्या महत्व है?
- 5. महाजनपद काल के दौरान धार्मिक केंद्रों का क्या महत्व था?
- 6. गुफा वास्तुकला और स्तूप निर्माण में क्या अंतर है?
- 7. अध्याय में सांस्कृतिक समन्वय का क्या उल्लेख है?
- 8. तोरण और स्तंभ पर उकेरी गई कलाकृतियाँ क्या दर्शाती हैं?
- 9. बौद्ध धर्म में ‘महायान’ और ‘हीनयान’ के क्या अंतर हैं?
- 10. वास्तुकला और धर्म के बीच संबंध कैसे समझा जाता है?
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- FAQs on विचारक, विश्वास और इमारतें
विचारक, विश्वास और इमारतें (Thinkers, Beliefs, and Buildings)
ई . पू प्रथम सहस्त्राब्दी (एक महत्वपूर्ण काल) :- विचारक, विश्वास और इमारतें
यह काल विश्व के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण माना जाता था। क्योकि इस काल में अनेक चिंतकों को उदय हुआ। जैसे : – बुद्ध, महावीर, प्लेटो, अरस्तु, सुकरात, खुन्ग्त्सी। इन सब विद्वानों ने जीवन के रहस्य को समझने की कोशिश की।
जैन धर्म :-
- संस्थापक :- ऋषभ देव
- प्रमुख सिद्धान्त :- नियतिवाद (अर्थात सब कुछ भाग्य और नियति के अधीन है। एव पहले से ही निश्चित है।)
- जैन शब्द (जिन) शब्द से निकला है जिसका अर्थ है विजेता। जैन धर्म ग्रथो का संकलन अंतिम रूप से 500 ई० के आसपास गुजरात के वल्लभी में हुआ। जैन धर्म भारत के प्राचीन धर्मों में से एक है। जैन धर्म की शिक्षाएं 6वीं सदी ई० पू० से पहले ही भारत में प्रचलन में थी।
- जैन परम्परा के अनुसार महावीर से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे। जिन्हें तीर्थकर कहा जाता है/था। यानी के वे महापुरुष जो कि पुरुष और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचते है।
- महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकर थे। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभ देव थे। जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ जी थे।
तीर्थंकर :-
तीर्थंकर का शाब्दिक अर्थ संसार से पार होने के लिए घाट या तीर्थ का निर्माण करने वाला।
प्रथम तीर्थकर :-
ऋषभ देव (जिन्हें इस धर्म का संस्थापक माना गया है) यह अयोध्या के इक्षवाकु राजवँश से सम्बंधित में इनका प्रतीक चिन्ह – वर्षभ हिन्दू पुराणों में नारायण का अवतार माना गया है।
(ऋषभ देव का पहली बार उलेख ऋषभ वेद से मिलता है)
दूसरा तीर्थकर :-
अजीतनाथ (पहली बार इनका उल्लेख यजुर्वेद से मिलता है)
19 वें तीर्थकर :-
मल्लीनाथ (नेमिनाथ) जो कि वासुदेव कृष्ण के समकालीन भी थे।
नोट :- लेकिन अभी तक प्रथम 22 तीर्थकरो कि ऐतिहासिकता एव प्रमाणिकता को स्वीकार नही किया गया है।
23 तीर्थकर :-
- पार्श्वनाथ (जिन्हें प्रथम ऐतिहासिक तीर्थकर माना जाता है) इनका जन्म महावीर के करीब 250 बर्ष पूर्व काशी राज्य में हुआ।
- पिता का नाम – अश्वसेन
- माता का नाम – वामा
- ग्रह त्याग – 30 वर्ष
- वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति – 84 वे दिन
- इनका प्रतीक चिन्ह – सर्प
- उपाधि – निर्गध
- नोट :- निर्गध का शाब्दिक अर्थ बधन रहित (जिसने सभी बन्धनों को तोड़ दिया हो)
महावीर स्वामी :-
24 वे तीर्थकर एव अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी जिन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना गया है।
- जन्म – 599/540 ई० पु० कुंडग्राम (वज्जि संघ, वैशाली गणराज्य)
- पिता – सिद्धार्थ
- माता – त्रिशला (जो लिच्छवी शासक चेतक की बहन थी)
- कुल – ज्ञातृ कुल (सिद्धार्थ ज्ञातृ कुल के प्रधान थे)
- स्वय का नाम – वर्धमान
- पुत्री – प्रियदर्शना (श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार)
- ज्ञान प्राप्ति – बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे ‘साल वृक्ष’ के नीचे भगवान महावीर को ‘कैवल्य ज्ञान’ की प्राप्ति हुई थी।
- जिन – इन्द्रियों का विजेता
- प्रथम उपदेश (स्थान) – विपुलाचल पहाड़ी राजगृह के मेधपुर में।
- प्रथम शिष्य – जामालि (महावीर का दामाद)
- प्रथम शिष्या – चन्दना (चम्पनरेश, अंगनरेश की पुत्री)
- उपदेश की भाषा – प्राकृत
- अनुयायी शासक – बिम्बिसार, आजातशत्रु, उदायिन, चंद्रगुप्त मौर्य, अमोधवंश
- दक्षिण के अनुयायी वंश – गंगवंश, राष्ट्रकुट वंश, कदववंशु, चालुक्य वंश
- महावीर के अन्य नाम – वीर, अतिवीर, सन्मति
- महावीर का प्रतीक चिन्ह – सिंह
- 72 बर्ष की आयु में पावा (विहार) महावीर स्वामी का निवार्ण हो गया।
- जैन धर्म के उत्तरधान सूत्र के अनुसार महावीर का जन्म पहले ऋषभदत्त की पत्नी देवनन्दा के गर्भ से होने वाला था लेकिन देवताओ को यह स्वीकार नही था कि तीर्थकर का जन्म किसी ब्राह्मण परिवार में हो अतः इंद्र भगवान ने इन्हें त्रिशला के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया।
जैन धर्म की शाखाएं :-
- श्वेताम्बर : इस शाखा के लोग श्वेत वस्त्र धारण करते है।
- दिगम्बर : इस शाखा के लोग वस्त्र नहीं पहनतें एवं नग्न रहते हैं।
जैन साधु और साध्वी के 5 व्रत :-
- अहिंसा – हत्या ना करना.
- सत्य – झूठ ना बोलना.
- अस्तेय – चोरी ना करना.
- अपरिग्रह – धन इकट्ठा ना करना.
- ब्रह्मचर्य – ब्रह्मचर्य का पालन करना.
- नोट :- 23 वे तीर्थकर तक ये चार थे। कालांतर में (बाद में) महावीर ने इसमें पाँचवा सिद्धांत जोड़ दिया – (ब्रह्मचर्य)
प्रसिद्ध जैन तीर्थ :-
- वे पर्वत जिन पर प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थित है।
- सम्मेदशिखर (झारखण्ड)
- शत्रुजय (गुजरात)
- गिरनार (गुजरात)
प्रमुख जैन गुफाएं :-
- उदयगिरि एव खंडगिरि (उड़ीसा)
- एलोरा (महाराष्ट्र)
प्रमुख जैन मंदिर :-
- श्रवलबेलगोला (कर्नाटक)
- पालीताणा (गुजरात)
- रणकपुर (राजस्थान)
- देलवाड़ा (राजस्थान)
- पावा (बिहार)
- महावीर का जैन मंदिर (राजस्थान)
जैन दर्शन की अवधारणा :-
- जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है।
- यह माना जाता है कि पत्थर, चट्टानों, और जल में भी जीवन होता है। जीवो के प्रति अहिंसा खासकर इंसानो, जानवरो, पेड़, पौधों, कीड़े – मकोड़ो को न मारना जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है।
- जैन अहिंसा के सिध्दांत ने सम्पूर्ण भारतीय चिंतन परम्परा को प्रभावित किया।
- जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से भी संभव हो पाता है।
बौद्ध धर्म :-
- बौद्ध धर्म एक प्राचीन और महान धर्म है जो कि भारत से निकला है।
- महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की |
- बौद्ध धर्म की स्थापना लगभग 6वीं शताब्दी ई० पु० में हुई।
- इसाई और इस्लाम धर्म के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है |
- इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोग चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत से हैं।
महात्मा बुद्ध :-
- बौद्ध धर्म के संस्थापक = महात्मा बुद्ध
- पूरा नाम = गौतम बुद्ध
- बचपन का नाम = सिद्धार्थ
- जन्म = 563 ई . पू
- जन्म स्थान = लुम्बिनी, नेपाल
- पिता का नाम = शुशोधन
- माँ का नाम = मायादेवी (बुद्ध के जन्म के 7 दिन बाद इनकी मृत्यु हुई)
- सौतेली माँ = प्रजापति गौतमी (जिन्होंने इनका लालन – पोषण किया)
- वंश = शाक्य वंश
- पत्नी = यशोधरा
- पुत्र का नाम = राहुल
- गोत्र = गौतम
- राज्य का नाम = शाक्य गणराज्य
- राजधानी = कपिलवस्तु
- ज्ञान प्राप्ति = निरंजना / पुनपुन: नदी के किनारे वट व्रक्ष के नीचे उरन्वेला (बोधगया) नामक स्थान पर
शाक्य वंश के होने के कारण शाक्यमुनि व गौतम गोत्र के होने के कारण गौतम बुद्ध कहलाये।
- प्रथम उपदेश = सारनाथ, काशी अथवा वाराणसी के १० किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया जाता है।
- प्रथम शिष्य = तपस्सु एव भल्लीनाथ नामक बंजारे या वणिक को गया में।
- प्रधान शिष्य = उपालि
- प्रिय शिष्य = आनंद
- प्रथम शिष्या = मौसी, प्रजापति गौतमी (आंनद के कहने पर प्रथम महिला अनुयायी)
- उपदेश की भाषा = पाली
- सर्वाधिक उपदेश देने का स्थान = श्रावस्ती
- बुद्ध के अनुयायी शासक = बिम्बिसार, आजातशत्रु, प्रसेनजित, उदायिन, प्रधोत, अवन्तिपुत्र
- बौद्ध धर्म को आश्रय देने वाले शासक = अशोक, हर्षवर्धन, कनिष्क, मिनेण्डर
- बुद्ध के जीवन काल से संबन्धित जीवन स्थान = लुम्बिनी, सारनाथ, कपिलवस्तु, बौद्धगया, कुशीनगर, कुशीनारा
- अष्ट महास्थान = लुम्बिनी, सारनाथ, गया, कुशीनगर, श्रावस्ती, राजगृह, वैशाली, स्कास्य
- अंतिम उपदेश = कुशीनगर में 120 साल के समुद्र को
- मृत्यु = कुशीनगर में हिरणवती नदी के किनारे 483 ई० पु०
- नोट :- बौद्ध धर्म मे मोक्ष को निर्वाण कहा गया है। निर्वाण का शाब्दिक अर्थ होता है दीपक का बुझ जाना। महात्मा बुद्ध की मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा गया है और मृत्यु के पश्चात महात्मा बुद्ध को अजिताभ कहा गया है।
- बौद्ध त्रिरत्न = बुद्ध, धम्म, संघ
- दर्शन = अनीश्वरवादी पुनर्जन्म में विश्वास
- पंचस्कंद = रूप, वेदना, संज्ञा, विज्ञान, संस्कार
निर्वाण :-
निर्वाण का शाब्दिक अर्थ होता है दीपक का बुझ जाना या ठंडा पड़ जाना। आर्थात वह अवस्था जब चित्त की मलिनता समाप्त हो जाती तथा तृषणाओ एव दुःखो का अंत हो जाता है।
बुद्ध द्वारा देखे गए 4 दृश्य :-
- बूढा व्यक्ति
- एक बीमार व्यक्ति
- एक लाश
- एक सन्यासी
बुद्ध की शिक्षाएं :-
- बुद्ध की शिक्षाएं त्रिपिटक में संकलित हैं।
- त्रिपिटक को तीन टोकरियाँ भी कहा जाता है।
त्रिपिटकः
- सुत्त पिटक = बुद्ध की शिक्षाए एव बौद्ध धर्म का एनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है।
- विनय पिटक = दार्शनिक सिद्धांतों का संग्रह या दर्शन से जुड़े विषय।
- अभिधम्म पिटक = संघसंबंधि नियमो दैनिक आचार – विचार व विधि निषेध का संग्रह/संघ या बौद्ध मठो में रहने वाले लोगो के लिए नियमो का संग्रह था।
- घोर तपस्या और विषयासक्ति के बीच मध्यममार्ग अपनाकर मनुष्य दुनिया के दुखों से मुक्ति पा सकता है।
- भगवान का होना अप्रासंगिक।
- यह दुनिया अनित्य है और लगातार बदल रही है।
- इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है।
- समाज का निर्माण इंसानों ने किया है।
- बुद्ध ” तुम सब अपने लिए खुद ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हे खुद ही अपनी मुक्ति का रास्ता ढूंढना है।
- इस दुनिया में दुःख ही दुःख है और दुःख का कारण है इच्छा / लोभ और लालच।
बोद्ध धर्म तेजी से क्यों फ़ैल गया ?
- बौद्ध धर्म बहुत साधारण था।
- इसमें जाति प्रथा नहीं थी।
- कोई भी इसे आसानी से अपना सकता था।
- सबके साथ समान व्यवहार किया जाता था।
- ऊंच नीच का भेदभाव ना था।
- वर्ण व्यवस्था पर हमला किया।
- ब्राह्मणीय नियमो का विरोध किया।
- महिलाओ को भी संघ में शामिल किया जाने लगा।
- महिलाओ को पुरुषों के जितने अधिकार दिए।
- बौद्ध धर्म उदर एवम् लोकतांत्रिक था।
- ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को नहीं माना।
- बौद्ध संघ के नियम ज्यादा कठोर नहीं थे।
- कठोर तप का विरोध करके मध्यम मार्ग अपनाने की बात।
हीनयान व महायान में अंतर :-
हीनयान महायान
- हीनयान में अर्हत के आदर्शों को स्वीकार किया गया है।महायान में बोधिसत्व का आदर्श स्वीकार।
- बुद्ध महान व्यक्ति के रूप में स्वीकार।बोधिसत्व :- दुसरो के परोपकार के लिए
- प्रयत्नशील रहते हैं और तब तक निर्वाण प्राप्त
- नही करते जब तक औरों को भी मार्ग
- नही दिख देते। सामान्य मनुष्य से इनकी
- भिन्न्ता यह है कि इनमें दस उच्चतम गुणो
- की परिकष्टता होती है जिन्हें परामिता कहते हैं।
- परम्परागत बोद्ध धर्म।परिवर्तित रूप
बौद्ध धर्म व जैन धर्म में समानताए :-
- निवर्ति मार्ग एव त्याग को महत्व।
- वेदो की प्रमाणिकता के खण्डन के कारण दोनों की गणना नस्तिक परंपरा की गई।
- ईश्वर सृष्टि के रचयिता के रूप में अस्वीकार।
- कर्म एव पुनर्जन्म का सिद्धांत।
- आचरण के सिद्धांतों को महत्व।
- सामाजिक समानता का आदर्श।
- जन्म के स्थान पर कर्म पर आधारित।
- वर्णव्यवस्था को नष्ट करने का प्रयास।
बौद्ध धर्म व जैन धर्म में अंतर :-
- जैन धर्म मे कठोर त्याग को प्रधानता जबकि बौद्ध धर्म मे मध्य मार्ग।
- जैन धर्म शाश्वत एव नित्य आत्मा में विश्वास करता है जबकि बौद्ध धर्म अनात्मवाद है।
- जैन धर्म के अनुसार निर्वाण के लक्ष्य की प्राप्ति देह समाप्ति के बाद ही संभव है जबकि बौद्ध धर्म के अनुसार ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही वह लक्ष्य सम्भव है।
- जैन धर्म मे बौद्ध धर्म की अपेक्षा हिंसा को अधिक महत्व दिया गया है।
स्तूप :-
स्तूप का शाब्दिक अर्थ है – ‘ किसी वस्तु का ढेर ‘। स्तूप का विकास ही संभवतः मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ, जिसका निर्माण मृतक की चिता के ऊपर अथवा मृतक की चुनी हुई अस्थियों के रखने के लिए किया जाता था। गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं, जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन तथा निर्वाण से सम्बन्धित स्थानों पर भी स्तूपों का निर्माण हुआ।
साँची का स्तूप :-
- साँची भोपाल में एक जगह का नाम है और यह मध्यप्रदेश में स्थित है।
- साँची में एक प्राचीन स्तूप है, जो की अपनी सुन्दरता के लिए काफी प्रसिद्ध है।
- साँची का यह प्राचीन स्तूप महान सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था।
- इस स्तूप का निर्माणकार्य तीसरी शताब्दी ई० पू० से शुरू हुआ।
साँची के स्तूप का संरक्षण :-
- 19वीं सदी के यूरोपियों में साँची के स्तूप को लेकर काफी दिलचस्पी थी। क्योकि साँची का स्तूप बेहद सुंदर एवं आकर्षक था।
- फ्रांस के लोगो ने साँची के पूर्वी तोरणद्वार (जो की काफी सुंदर था) को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए तोरणद्वार को फ्रांस ले जाने की मांग शाहजहाँ बेगम से की।
- ऐसी ही कोशिश अंग्रेज लोगों ने भी की। लेकिन बेगम नहीं चाहती थी की साँची के स्तूप का यह तोरणद्वार कहीं और जाए, तो बेगम ने अंग्रेजों को और फ्रांसीसियों को बेहद सावधानीपूर्वक तरीके से बनाई गयी एक प्लास्टर प्रतिकृति (copy) थमा दी, और वे लोग संतुष्ट हो गए।
- भोपाल की बेगमों का स्तूप के संरक्षण में बेहद योगदान रहा है, शाहजहाँ बेगम और सुलतान जहां बेगम ने स्तूप के संरक्षण के लिए बहुत से कार्य किये। रख रखाव के लिए धन दान किया।
- संग्रहालय (museums) बनाने के लिए दान दिया। जॉन मार्शल नें बहुत सी पुस्तकें लिखी, और उनके प्रकाशन के लिए भी बेग़मों ने दान दिया।
यज्ञ और विवाद
यज्ञ :-
- वैदिक परम्परा की जानकारी हमें ऋग्वेद से मिलती है।
- ऋग्वेद के अंदर अग्नि, इंद्र, सोम, आदि देवताओं को पूजा जाता है।
- यज्ञ के समय लोग मवेशी, बेटे, स्वास्थ्य, और लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करते हैं।
- शुरू शुरू में यज्ञ सामूहिक रूप से किये जाते थे। बाद में घर के मालिक खुद यज्ञ करवाने लगे।
- राजसूये और अश्वमेध यज्ञों का नाम है ये यज्ञ राजा या सरदार द्वारा करवाया जाता था।
वाद – विवाद और चर्चाएँ :-
- महावीर तथा बुद्ध ने यज्ञों पर सवाल उठाए थे।
- शिक्षक का कार्य होता था एक स्थान से दूसरे स्थान धूम – धूमकर अपने ज्ञान, दर्शन से विश्व को जागरूक बनाए।
- शिक्षक सामान्य लोगो में तर्क – वितर्क करते थे।
- चर्चाएँ झोपड़ी, उपवनों में होती थी।
- ऐसे उपबनो में घुमक्कड़ मनीषी ठहरते थे।
- ऐसे में इन शिक्षको के अनुयायी बनते चले गए।
स्तूप की संरचना (बनावट)
- स्तूप को संस्कृत भाषा में टीला भी कहा जाता है।
- स्तूप का जन्म एक गोलार्ध लिए हुए मिटटी के टीले से हुआ।
- इसे बाद में अंड कहा गया।
- धीरे धीरे इसकी बनावट में बदलाव होने लगा।
- अंड के उपर एक हर्मिका होती थी।
- यह छज्जे जैसा ढांचा देवताओं का घर समझा जाता था।
- हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था, जिसे यष्टि कहते थे जिस पर अक्सर एक छत्री लगी होती थी।
- टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी। तोरणद्वार स्तूपों की सुन्दरता को बढ़ाते हैं।
- उपासक पूर्वी तोरणद्वार से प्रवेश करके स्तूप की परिक्रमा करते थे।
स्तूप कैसे बनाये गए ?
- स्तूपो की वेदिकाओं और स्तंभो पर मिले अभिलेखो से इन्हे बनाने और सजाने के लिए दिये गए दान का पता चलता है। कुछ दान राजाओ के द्वारा दिये गए थे (जैसे सातवाहन वंश के राजा) तो कुछ दान शिल्पकारों और व्यपारियो की श्रेणियों द्वारा दिये गए।
- उदहारण के लिए साँची के एक तोरण द्वार का हिस्सा हाथी दांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया था।
- सेकड़ो महिलाओ और पुरुषो ने दान के अभिलेखों में अपना नाम बताया है। कभी – कभी वे अपने गाँव या शहर का नाम बताते और कभी – कभी आपना पेशा (व्यपार) आजीविका साधन और रिश्तेदारों के नाम भी बताते।
- इन इमारतों को बनाने में भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान दिया। साँची और भरहुत के प्रारंभिक स्तूप बिना अलकर्ण के है। सिवाये इसमे उनमे पत्थर की वेदिकाये और तोरण द्वार है।
अमरावती का स्तूप :-
इस स्तूप में अवशेषों के रूप में मूर्तियाँ, पत्थर मिले जो कि बाद मे अलग – अलग जगह ले गए।
- बंगाल
- मद्रास
- लंदन
- अंग्रेज अफसरों के बागों में अमरावती की मूर्तियां पाई गई है।
अमरावती का स्तूप नष्ट क्यों हुआ ?
- अमरावती का स्तूप, साँची के स्तूप के जैसा ही एक सुंदर स्तूप था। अमरावती का स्तूप आंध्रप्रदेश में था।
- 1854 में आंध्रप्रदेश के कमिशनर ने अमरावती की यात्रा की।
- उन्होंने वहाँ जाकर बहुत से पत्थर और मूर्तियाँ जमा की और उन्हें मद्रास ले गए।
- उन्होंने बताया की अमरावती का स्तूप बोद्धो का सबसे शानदार स्तूप था।
- 1850 में अमरावती के पत्थर अलग अलग जगहों पर ले जाए जा रहे थे।
- कुछ पत्थर कलकत्ता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल पहुचे।
- कुछ पत्थर मद्रास पहुचे। कुछ पत्थर लन्दन पहुचे। कई मूर्तियों को अंग्रेजी अफसरों ने अपने बागों में लगवाया।
- हर नया अधिकारी अमरावती से मूर्ती उठा कर ले जाता था और कहता था की हमसे पहले भी अधिकारी मूर्ती लेकर गए है हमें मत रोको।
एक अलग सोच के व्यक्ति – एच. एच कॉल :-
पुरातत्ववेदता एच. एच कॉल उन मुट्ठी भर लोगो मे से एक जो अलग सोचते थे। उन्होने लिखा इस देश की प्राचीन कलाकृतियों को लूट होने देना मुझे आत्मघाती और असमर्थनीय नीति लगती है। वे मानते थे कि संग्राहलयो में मूर्तियों की प्लास्टर कृतियाँ रखी जानी चाहिए जबकि असली कृतियाँ खोज की जगह पर ही रखी जानी चाहिए। दुर्भाग्य से कॉल अधिकारियों को अमरावती पर इस बात के लिए राजी नही कर पाए लेकिन खोज की जगह पर ही सरक्षण की बात को साँची के लिए मान लिया गया।
पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय :-
- हिन्दू धर्म सबसे प्राचीनतम धर्म में से एक है।
- इसमें वैष्णव और शैव परम्परा शामिल है।
- वैष्णव – जो विष्णु भगवान् को मुख्य देवता मानते है।
- शैव – जो शिव भगवान् को मुख्य देवता मानते है।
- वैष्णववाद में कई अवतारों को महत्त्व दिया जाता है।
- ऐसा माना जाता है की जब संसार में पाप बढ़ता है तो भगवान् अलग अलग अवतारों में संसार की रक्षा करने आते है।
- इस परंपरा में दस अवतारों की कल्पना की गयी है
- मूर्तिपूजा की जाती है।
- शिव भगवान को उनके प्रतीक लिंग के रूप में दर्शाया जाता है।
मंदिरों का निर्माण :-
- प्रारम्भ में मंदिर एक चौकोर कमरे की तरह होते थे जिसे गर्भगृह कहा जाता था।
- इनमे एक दरवाजा होता था जिसमें पूजा करने के लिए अंदर जा सकते थे।
- मूर्ति की पूजा की जाती थीं।
- फिर बाद के समय में गर्भगृह के ऊपर एक ढांचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।
- मंदिर की दीवारों पर चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे।
- फिर धीरे धीरे मंदिरों को बनाए जाने वाले तरीके विकसित होते गए अब मंदिरों में विशाल सभास्थल, ऊंची दीवार बनाई जाने लग।
- प्रारम्भ में कुछ मदिरों को पहाड़ों को काटकर गुफा की तरह बनाया गया था।