12th Polity

Chapter-5: कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना(B2)

        कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना (The Congress System: Challenges and Restoration)

  कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना

कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना” (The Congress System: Challenges and Restoration) भारत की राजनीतिक प्रणाली में एक अहम विषय है, जो भारतीय लोकतंत्र के शुरुआती दशकों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। आजादी के बाद भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की पकड़ बहुत मजबूत थी, जिसे ‘कांग्रेस प्रणाली’ के नाम से जाना गया। इस व्यवस्था की शुरुआत और इसके पीछे के कारणों को समझने के लिए स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में हुए राजनीतिक और सामाजिक घटनाक्रम को देखना होगा।

कांग्रेस प्रणाली को समझने के लिए सबसे पहले भारत की आजादी के बाद के समाजशास्त्रीय और राजनीतिक संदर्भ को समझना जरूरी है। इस समय कांग्रेस पार्टी का प्रभाव व्यापक था, और यह केवल एक पार्टी नहीं, बल्कि एक विविधतापूर्ण राजनीतिक संगठन था, जिसमें विभिन्न विचारधाराओं और सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व था। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धांतों को अपनाया और भारतीय समाज के अलग-अलग वर्गों का समर्थन पाने में सफल रही। इसने कांग्रेस को एक व्यापक जनसमर्थन वाला संगठन बना दिया, जिससे कि यह पूरे देश में प्रभावी और मजबूत पार्टी बनी रही​।

हालांकि, कांग्रेस प्रणाली का यह एकाधिकार लंबे समय तक नहीं चल सका और 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन चुनौतियों में आंतरिक संघर्ष, क्षेत्रीय पार्टियों का उदय और विभिन्न सामाजिक समूहों की बढ़ती आकांक्षाएँ शामिल थीं। इसके परिणामस्वरूप अन्य राजनीतिक पार्टियों का उभार हुआ, और विपक्षी दलों ने कांग्रेस की एकाधिकारवादी स्थिति को चुनौती दी। 1967 के चुनावों में कई राज्यों में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा, जो यह संकेत था कि अब भारत में बहुदलीय प्रणाली के लिए जगह बन रही थी​।

इस कालखंड में कांग्रेस प्रणाली के पुनर्स्थापना का प्रयास किया गया, विशेष रूप से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में। इंदिरा गांधी ने पार्टी में कई सुधार किए और अपने मजबूत नेतृत्व से कांग्रेस की स्थिति को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। हालाँकि, उनका यह पुनर्स्थापना प्रयास विवादों और आलोचनाओं के साथ भी जुड़ा रहा, जिसमें आपातकाल का समय विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस तरह कांग्रेस प्रणाली भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण दौर को दर्शाती है, जिसमें एक सशक्त पार्टी ने न केवल नेतृत्व किया बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूत किया, साथ ही इसके सामने आने वाली चुनौतियों ने भारतीय लोकतंत्र को परिपक्व और विविधतापूर्ण बनाने में योगदान दिया​।

इस विषय का अध्ययन भारतीय लोकतंत्र की विकास यात्रा को समझने में सहायक है, और यह दर्शाता है कि किस प्रकार एक पार्टी के वर्चस्व को धीरे-धीरे एक प्रतिस्पर्धात्मक बहुदलीय प्रणाली में बदलते देखा गया।

  कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना

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Some  Importent FAQs of the Chapter

1. कांग्रेस प्रणाली क्या है, और इसका विकास कैसे हुआ?

“कांग्रेस प्रणाली” भारत में आजादी के बाद से लेकर 1960 के दशक के अंत तक का एक राजनीतिक दौर है, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एकाधिकार रहा। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, बल्कि आजादी के बाद लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता बनाए रखी। यह प्रणाली एक पार्टी द्वारा सत्ता में बने रहने और समावेशी राजनीति का आदर्श मानी जाती थी, जिसमें पार्टी विभिन्न विचारधाराओं और समाज के सभी वर्गों को अपने में समाहित करती थी। इसमें आंतरिक मतभेद होते हुए भी कांग्रेस ने एक राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा। इस प्रणाली की शुरुआत और स्थिरता का श्रेय नेहरू के नेतृत्व और कांग्रेस के भीतर विविधता को दिया जाता है​।

2. कांग्रेस प्रणाली को किन मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

कांग्रेस प्रणाली को कई प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें मुख्य रूप से क्षेत्रीय पार्टियों का उभार, कांग्रेस पार्टी के भीतर मतभेद, समाज के विभिन्न वर्गों की अलग-अलग अपेक्षाएँ, और आंतरिक संगठनात्मक कमजोरियाँ शामिल थीं। 1967 के आम चुनाव कांग्रेस प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए, जब कई राज्यों में कांग्रेस ने सत्ता खो दी। इसके अतिरिक्त, युवा और अन्य समाजिक वर्गों की बढ़ती अपेक्षाओं ने भी कांग्रेस प्रणाली पर दबाव डाला। इन चुनौतियों ने भारतीय लोकतंत्र में बहुदलीय प्रणाली की संभावनाओं को जन्म दिया।

3. इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली की पुनर्स्थापना कैसे की?

इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रणाली की पुनर्स्थापना के लिए अनेक कदम उठाए, जिनमें समाजवादी नीतियाँ, गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ, और एक सशक्त नेतृत्व शैली शामिल थी। इंदिरा गांधी ने पार्टी की पुरानी संरचनाओं को कमजोर किया और अपने समर्थकों का एक नया आधार तैयार किया। उन्होंने केंद्र सरकार की सत्ता को सशक्त किया और कांग्रेस पार्टी में व्यक्तिगत नियंत्रण को बढ़ावा दिया। हालाँकि, इस पुनर्स्थापना के दौरान आपातकाल लागू करने का निर्णय उनकी राजनीति पर भारी पड़ा और उनके नेतृत्व की लोकतांत्रिकता पर सवाल उठाए गए​।

4. कांग्रेस प्रणाली का भारतीय लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ा?

कांग्रेस प्रणाली ने भारतीय लोकतंत्र को एक स्थायित्व प्रदान किया, जिसमें सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण और लोकतांत्रिक आदर्शों की स्थापना संभव हो सकी। कांग्रेस प्रणाली ने विविधता का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय एकता को बनाए रखा। यह प्रणाली भारतीय राजनीति में बहुसांस्कृतिकता का प्रतीक बनी। इसके साथ ही, कांग्रेस प्रणाली ने स्थानीय राजनीति को स्थायित्व प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय नेताओं को स्थान देने का प्रयास किया। इसके बावजूद, कांग्रेस प्रणाली का एक बड़ा दोष था कि इसने एकाधिकारवादी दृष्टिकोण को जन्म दिया और लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा को सीमित कर दिया​।

5. कांग्रेस प्रणाली के विघटन के प्रमुख कारण क्या थे?

कांग्रेस प्रणाली का विघटन कई कारणों से हुआ। एक कारण पार्टी में आंतरिक मतभेद और नेतृत्व के प्रति बढ़ती असंतुष्टि थी। इसके अलावा, क्षेत्रीय पार्टियों का उदय और राज्यों में कांग्रेस की लगातार हार ने इस प्रणाली की शक्ति को कमजोर किया। सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ और बढ़ती महंगाई के कारण आम जनता का विश्वास कम हुआ, और परिणामस्वरूप राजनीतिक विरोधियों को प्रोत्साहन मिला। इसके अलावा, 1970 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किए गए विवादास्पद फैसले, जैसे कि आपातकाल, ने इस प्रणाली की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े किए​।

6. क्या कांग्रेस प्रणाली के विघटन के बाद भारतीय राजनीति में स्थायित्व बना रहा?

कांग्रेस प्रणाली के विघटन के बाद भारतीय राजनीति में स्थायित्व बनाए रखने में कुछ कठिनाइयाँ आईं, और 1977 के बाद पहली बार एक गैर-कांग्रेसी सरकार केंद्र में आई। इसके बाद भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय और बहुदलीय प्रणाली का उदय हुआ, जिसमें विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों ने भी अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया। कांग्रेस के प्रभुत्व के कमजोर होने के बाद, भारतीय राजनीति में एक प्रतिस्पर्धात्मक माहौल पैदा हुआ, जो लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए स्वस्थ साबित हुआ। हालांकि, कांग्रेस प्रणाली का विघटन भारतीय राजनीति में विविधता और लोकतांत्रिक विकल्पों की वृद्धि का प्रतीक माना जाता है​।

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