मानव विकास मानव विकास मानव विकास, सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता। जीवन का कोई उद्देश्य होना जरूरी है। अर्थात् लोग स्वस्थ हो विवेक पूर्वक सोचकर समाज में प्रतिभागिता करें व उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतन्त्र हों। विकास :- गुणात्मक परिवर्तनों को विकास कहा जाता है विकल्पों में वृद्धि […]
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अध्याय-4: प्राथमिक क्रियाएँ
प्राथमिक क्रियाएँ प्राथमिक क्रियाएँ :- प्राथमिक क्रियाएँ, आर्थिक क्रियाएँ : मानव के उन कार्यकलापों को जिनसे आय प्राप्त होती हैं । आर्थिक क्रिया कहा जाता है। मानव की क्रियाओं को मुख्यतः चार वर्गों में रखा जा सकता है – प्राथमिक क्रियाएँ द्वितीयक क्रियाएँ तृतीयक क्रियाएँ चतुर्थक क्रियाएँ प्राथमिक क्रियाएँ :- […]
अध्याय-5: द्वितीयक क्रियाएँ
द्वितीयक क्रियाएँ द्वितीयक क्रियाएँ:- द्वितीयक क्रियाएँ, प्राकृतिक रूप से प्राप्त कच्चे माल को जब मनुष्य अपना कौशल ज्ञान एवं श्रम लगाकर नये उपयोगी उत्पाद में बदल देता है तो इस द्वितीयक क्रिया कहा जाता है। विनिर्माण :- विनिर्माण से आशय किसी भी वस्तु के उत्पादन से है। हस्तशिल्प से लेकर […]
अध्याय-6: तृतीयक और चतुर्थ क्रियाकलाप
तृतीयक और चतुर्थ क्रियाकलाप तृतीयक और चतुर्थ क्रियाकलाप तृतीयक क्रियाकलाप :- तृतीयक क्रियाकलाप का सम्बन्ध अमूर्त सेवाओं से है। इनमें विभिन्न प्रकार की सेवाएँ सम्मिलित की जाती है। तृतीयक व्यवसायों में वस्तुओं का उत्पादन नहीं होता। उदाहरण :- शिक्षण कार्य, बैंकिंग, परिवहान व संचार वाणिज्य व व्यापार आदि। तृतीयक क्रियाओं […]